विक्रमादित्य की कहानी
विक्रमादित्य के स्वर्ण सिंहासन की आठवीं पुतली पुष्पवती ने राजा भोज को जो कथा सुनाई वह इस प्रकार थी | सम्राट विक्रमादित्य अद्भुत कला-पारखी थे । उन्हें श्रेष्ठ से श्रेष्ठ कलाकृतियों से अपने महल को सजाने का शौक था । …
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विक्रमादित्य के स्वर्ण सिंहासन की आठवीं पुतली पुष्पवती ने राजा भोज को जो कथा सुनाई वह इस प्रकार थी | सम्राट विक्रमादित्य अद्भुत कला-पारखी थे । उन्हें श्रेष्ठ से श्रेष्ठ कलाकृतियों से अपने महल को सजाने का शौक था । …
बेताल ने विक्रमादित्य को कथा सुनाना प्रारंभ किया | प्राचीन काल में यमुना नदी के किनारे धर्मस्थान नामक एक समृद्ध नगर हुआ करता था । उस नगर में गणाधिप नाम का राजा राज्य करता था। उसी नगर में केशव नाम …
बहुत पुरानी बात है, उस समय सत्य युग चल रहा था | एक बार भगवन ब्रह्मा के मानस-पुत्र सनकादि, जिनकी आयु हमेशा पंचवर्षीय बालक की-सी ही रहती है, वैकुण्ठ लोक में जा पहुँचे । वे भगवान् विष्णु के पास जाना …
ब्रह्माण्ड के प्रथम मनु यानि स्वायम्भुव मनु के वंश में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसिक पुत्री सुनीथा के साथ हुआ । उन दोनों पति-पत्नी को वेन नामक पुत्र हुआ । वेन अपने मातामह यानी नाना के स्वभाव …
विक्रम बेताल की कथा बहुत पुरानी है । एक समय धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम के एक राजा राज करते थे । उनकी चार रानियाँ थीं । उन चार रानियों से उनके छ: लड़के थे जो सब-के-सब बड़े ही चतुर …
मार्ग में कथा सुनाने के लिए विक्रम की अनुमति मिलने के बाद बेताल ने कथा सुनाना प्रारंभ किया | किसी समय काशी में प्रतापमुकुट नाम का राजा राज्य करता था । उसके वज्रमुकुट नाम का एक बेटा था । एक …
सिंहासन बत्तीसी के स्वर्ण सिंहासन की अंतिम पुतली थी रानी रूपवती राजा विक्रमादित्य के स्वर्ण सिंहासन की अंतिम यानी बत्तीसवीं पुतली का नाम था रानी रूपवती | बत्तीसवें दिन जब रानी रूपवती ने राजा भोज को स्वर्ण सिंहासन पर बैठने …
उनके मरते ही सर्वत्र हाहाकार मच गया । उनकी प्रजा शोकाकुल होकर रोने लगी । जब उनकी चिता सजी तो उनकी चिता पर देवताओं ने फूलों की वर्षा की
जयलक्ष्मी तीसवीं पुतली थी जिसने राजा भोज का रास्ता रोका था | जयलक्ष्मी ने राजा भोज को, सम्राट विक्रमादित्य की जो कथा सुनायी वह इस प्रकार थी |’राजा विक्रमादित्य जितने बड़े राजा थे उतने ही बड़े तपस्वी भी थे । …
सिंहासन बत्तीसी की उन्तीसवीं पुतली मानवती ने राजा भोज को बताया कि राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) वेश बदलकर रात में, अपने राज्य में, घूमा करते थे । ऐसे ही एक दिन घूमते-घूमते नदी के किनारे पहुँच गए । चाँदनी रात …