दैत्याकार व्हेल ने जिसे निगल लिया वो मौत के मुंह से जिन्दा वापस आया

Whaleउन्नीसवीं शताब्दी के अंत में जेम्स बर्टली अचानक से चर्चा में आ गया | अखबारों के हेडलाइंस उसी की ख़बरों से रंगी हुई थी | बात ही कुछ ऐसी थी, लगभग डेढ़ दिन तक व्हेल मछली के पेट में रहने के बाद जिन्दा निकला था जेम्स |

निश्चित रूप से तो कहा नहीं जा सकता लेकिन जहाँ तक जानकारी उपलब्ध है, ये कहानी एक गुमनाम कंपनी के माध्यम से अमेरिकी अखबारों में छपी | अमेरिका के मिसौरी (Missouri) प्रान्त के, उस समय के, प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र ‘The Globe’ (St. Louis Globe-Democrat) में सबसे पहले ये खबर छपी |

इसके बाद ‘A Modern Jonah’ शीर्षक से एक दूसरे, तत्कालीन दैनिक समाचार पत्र ‘The Wheeling Daily Intelligencer’ में यह खबर छपी | उस दिन तारीख़ थी 2 जुलाई सन् 1891 की ।

पाठकों का ध्यान खींचने में यह खबर कामयाब रही लिहाज़ा अगले कुछ महीनों तक अलग-अलग अखबारों में यह खबर अलग-अलग शीर्षक, जैसे ‘व्हेल के पेट में जिन्दा इन्सान’, ‘आधुनिक जोनाह का उद्धार’ आदि, से छपी |

उन अखबारों में छपी ख़बरों के अनुसार, 1891की गर्मियों के दिन थे जब दक्षिणी अटलांटिक महासागर के फाल्कलैंड द्वीप समूह (Falkland Island) में व्हेल मछली के शिकार के लिए निकला एक जहाजी बेड़ा दुर्घटनाग्रस्त हो गया | अंग्रेज मछुआरा जेम्स बर्टली भी उसमे सवार था |

दिन खुशनुमा था और आसमान भी साफ़ था लेकिन समंदर की उफनती हुई लहरें मानो किसी अनिष्ट की सूचना दे रही थी | अचानक से उन्हें एक विशालकाय व्हेल नज़र आयी | गहरे समंदर के प्राणियों की समझ भी शायद गहरी होती है | अंग्रेज मछुआरे सतर्क कम और उत्साहित ज्यादा थे |

अपने ऊपर होने वाले वार से बौखलाई व्हेल ने पलटवार किया और उनका जहाजी बेड़ा समंदर की सतह से लम्बवत खड़ा हो गया | यद्यपि वो जहाज डूबने से बच गया लेकिन इस आपाधापी में एक नाविक तत्काल डूब गया । दूसरा जेम्स बर्टली गायब हो चुका था ।

शिकारी खुद शिकार हो चुके थे | हाँलाकि जेम्स बर्टली के गायब होने का उस समय पता नहीं चल सका लेकिन सुरक्षित निकल आने के बाद जब अभियान में शामिल लोगों की गिनती हुई तो जेम्स बर्टली गायब था | उसे व्हेल ने निगल लिया था ।

दरअसल जब व्हेल के वार से जहाज का एक हिस्सा ऊपर की तरफ उछला तो जेम्स भी हवा में लगभग दस फीट ऊपर उछल गया और नीचे गिरते वक़्त सीधा व्हेल के खुले हुए जबड़े के अन्दर गिर गया | व्हेल ने उसे निगल लिया था |

ऐसा निगला हुआ व्यक्ति जीवित बच जाएगा, इसकी उम्मीद करना बेमानी था ? पर बर्टली निराश नहीं हुआ । जेम्स के अनुसार व्हेल के दलदलीय पेट में फसने के बावज़ूद उसने हिम्मत नहीं हारी |

उसने अपना चाकू, अपनी कमर के पास से, किसी प्रकार निकाला तथा बड़ी हिम्मत के साथ व्हेल का पेट चीरना प्रारम्भ किया । वहाँ की जकड़न उसे कुछ करने नहीं दे रही थी, फिर भी उसने अपना प्रयास जारी रखा तथा पेट चीर कर बाहर निकलने की कोशिश करता रहा ।

उधर एक खोजी अभियान जो जेम्स बर्टली की तलाश में लगा था, उसे दूसरे दिन सफलता मिली | खोजी अभियान दल को जेम्स, लगभग अचेत अवस्था में तैरता हुआ मिला । गोताखोर उसे किसी प्रकार से बाहर लेकर आए और अस्पताल में भर्ती कराया |

डॉक्टर्स को भरोसा था कि वो जेम्स को ठीक कर ले जायेंगे | दो हफ्ते तक कोमा में रहने के बाद तीसरे हफ्ते में जाकर कहीं उसके मस्तिक ने ठीक से काम करना शुरू किया । लेकिन उसका सारा शरीर पीला पड़ चुका था |

पूरे शरीर की चमड़ी का रंग एक अजीब सा दिखने लगा था और उसकी चमड़ी का रंग अंत तक वैसा ही बना रहा । जेम्स की आँखों की रौशनी ने भी उसका साथ लगभग छोड़ दिया था | बहुत कम रौशनी बची थी आँखों में लेकिन इन सब के बाद भी, इस घटना के बाद लगभग अठारह वर्ष तक जीवित रहा जेम्स |

‘डेट डिबैट्स’ समाचार पत्र में छपे जेम्स बर्टली के संस्मरण के अनुसार उसने बताया कि “व्हेल के मुंह में प्रवेश करते वक़्त मुझे लगा की जैसे मै एक भयानक अँधेरी गुफा में घसीटा जा रहा हूँ । उसके दलदल जैसे पेट में, मै सांस तो ले पा रहा था लेकिन पर गर्मी इतनी तेज़ पड़ रही थी मानो मुझे उबाला जा रहा हो, फिर भी मैंने हिम्मत से काम लिया ।

अपनी कमर में फंसे हुए चाक़ू की तरफ जब मेरा ध्यान गया तो मैंने बड़ी कठिनाई से उसे वहाँ से निकाला, जो मछली की आंतों में बुरी तरह कसा हुआ था । मेरे हिलने-डुलने की सम्भावना तो बिलकुल भी नहीं थी वहाँ, फिर भी किसी तरह से, वहीँ से (जहाँ पर मै फंसा था) मछली का पेट चीरने का प्रयास शुरू किया” ।

जेम्स के अनुसार व्हेल के पेट की अंदरूनी परतें इतनी मोटी तथा उसकी भीतरी अंग-रचना इतनी जटिल थी कि उसके अंगों की परतों को फाड़ते-उभारते उसे घंटो लग गए | जेम्स ने बताया कि इस दौरान वो कई बार अचेत हुआ लेकिन उसकी किस्मत में मरना नहीं लिखा था इसीलिए आज वो पूरी दुनिया के सामने था |

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