महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था | महाराजा युधिष्ठिर ने इस पूरे युद्ध के परिणाम स्वरुप अपने स्वजनों को खो देने के कारण बहुत समय तक विलाप किया | भगवन कृष्ण के समझाने पर उनकी तन्द्रा टूटी लेकिन वे पितामह भीष्म की वर्तमान स्थिति का ध्यान करते ही शोकातुर हुए जा रहे थे | यहाँ वे और उनके भाई-बन्धु राजसुख भोग रहे हैं और उनके पितामह शर-शैया पर पड़े हैं |
युधिष्ठिर को पता था कि पितामह भीष्म अत्यंत ज्ञानी एवं अनुभवी हैं उन्होंने स्वयं से शर-शैया का चुनाव भी इसलिए किया था कि इस जन्म (और पूर्वजन्म के भी अगर बचे हो तो उनको भी) के समस्त पाप कर्मों को भोगकर वह आवागमन के बंधन से मुक्त होना चाह रहे थे | लेकिन उनसे अपने पितामह का कष्ट देखा नहीं जा रहा था |
वे उनसे ज्ञान लेने उनके पास आते है | शरशैय्या पर पड़े हुए भीष्मजी युधिष्ठिर को एक कथा सुनाते हैं | भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा “हे राजन ! प्राचीन काल का वृतांत है | एक समय भगवान व्यास कहीं जा रहे थे | रास्ते में उनकी दृष्टि एक कीड़े पर पड़ी, जो एक यान (गाड़ी) की सीध में बड़ी तेजी से भागा जा रहा था |
उनकी सूक्ष्म दृष्टी उस कीट के मनोभावों की तरफ गयी और वह कीट के निकट आकर उससे पूछने लगे, “कीट ! तुम इतनी आतुरता से क्यों भागे जा रहे हो ? आज तुम पर ऐसी कौन सी विकट विपत्ति आ गयी है?” भयभीत कीट ने उत्तर दिया “भगवन ! देखिए ना, यह यान कितनी तेजी से चला आ रहा है मेरे पीछे | मुझे भय है कि कहीं यह मुझे कुचल ना डाले” |
व्यास जी ने गंभीर हो कर कहा “कीट ! तुम अधम तिर्यक योनि में पैदा हुए हो | तुम्हारी मृत्यु ही तुम्हारी इस अधम योनी से मुक्ति होगी जो की हर हाल में तुम्हारे लिए श्रेयस्कर होगी | तुम मुझे बताओ कि किस पाप के कारण तुम्हारा इस तिर्यक योनी में जन्म हुआ” ?
कीट ने कहा “भगवन ! पूर्व जन्म में मैं एक धनी शूद्र था | मै सदा विद्वानों एवम ब्राह्मणों को अपमानित किया करता था | मैं बड़ा कंजूस तथा सूदखोर भी था | अपने कपट से प्रायः सभी वर्णों की प्रिय वस्तुओं का अपहरण कर लिया किया करता था |
मैंने कभी दान और सत्कर्म नहीं किये, सदा केवल अपने कुटुंब और स्त्री का ही पोषण करता था | मांस और चावल खाया करता था | हां, इन सब बुरे कर्मों के बावजूद मैं अपनी बूढ़ी मां की सेवा किया करता था और एक बार अपने घर पर आए हुए अतिथि का सत्कार किया था | इन्ही पुण्य कर्मों वजह से पूर्व- स्मृति मेरा साथ नहीं छोड़ रही है” |
व्यास जी ने कहा “कीट ! परमेश्वर की कृपा से आज तुम्हारा मुझसे सामना हो गया है । अब 10 जन्मों के अंतराल में, मैं अपने तपोबल से तुम्हारी चेतना इतनी विकसित कर दूंगा कि तुम परम पद यानी मोक्ष के अधिकारी होगे” |
थोड़ा रुक कर व्यास जी ने पुनः कहा “एक स्थान पर बड़े कर्मनिष्ठ ब्राह्मण रहते हैं | तुम उनमे से ही किसी एक के पुत्र होकर मेरी कृपा से मोक्ष को प्राप्त कर लोगे” | इतना कहकर व्यास जी उठे और वहाँ से चले गए | इतने में वह यान (गाड़ी) आया और उसे दबाकर निकल गया |
कीट ने अपने प्राण त्याग दिए थे | इसके बाद वह क्रमशः गधा, साही, शूकर (सूअर), श्वान (कुत्ता), शृगाल (सियार) और फिर चांडाल हुआ | चांडाल के रूप में जन्मे उस कीट ने मृत्यु के पश्चात् पहले शूद्र और फिर वैश्य (व्यापारी) के रूप में जन्म लिया |
इसके बाद वह एक राज्य का राजकुमार हुआ, इस दौरान उसे अपने पूर्वजन्म की स्मृति बनी रही | जब वह राजकुमार ही था तब एक बार वह व्यास जी के पास गया और उनसे अपनी कृतज्ञता प्रकट की और उनसे अपने लिए (प्रभु के प्रति) उसने दास्य भाव मांगा |
फिर धर्मपूर्वक प्रजापालन कर के अंत में उसने तपस्या करते हुए योग धारण करते हुए अपनी देह त्याग दी | इसके बाद अगले जन्म में वह वह ब्राह्मण कुमार हुआ | तब व्यास जी ने आकर, उसे दर्शन दिए और शक्तिपात किया | उनकी कृपा से उसे तत्वज्ञान हो गया और जीवन के अंत में उसे परम पद की प्राप्ति हुई |
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