अबोध बालकों की हत्यारी पूतना पूर्वजन्म में कौन थी

बालकों-की-हत्यारी-पूतना-पूर्वजन्म-में-कौन-थीअबोध बालकों की हत्यारी पूतना पूर्वजन्म में कौन थी, इस सम्बन्ध में अलग-अलग पुराणों में अलग-अलग कथाएं दी हुई हैं | भागवत में पूतना को ‘लोक बालघ्नी राक्षसा रुधिराशना’ अर्थात पूतना संसार के बालकों की हत्या करने वाली एवं उनका रुधिर पान करने वाली राक्षसी थी ऐसा लिखा है |

पूतना बालको की हत्यारी थी | उसे बालकों को मारने वाला एक भयानक प्राणी समझकर, वह तत्कालीन स्त्रियों में भय का पर्याय बनी | आनंद रामायण के अंतिम अध्याय में एक कथा आती है |

उस कथा के अनुसार अंत समय में जब भगवान श्री राम समस्त अयोध्या वासियों के साथ अपने धाम को चलने लगे, तब सीता जी का निंदक धोबी तथा कैकई की दासी मंथरा की इच्छा ना देख कर, इन लोगों को अपने पुत्र कुश के साथ साकेत भेज दिया |

अपनी डाह, द्वेष और इर्ष्या की वजह से यह लोग प्रभु श्री राम के साथ उनके धाम नहीं गए | बाद में जब परमेश्वर कृष्णावतार के रूप में इस धरती पर आये तो वह धोबी ही पूर्वजन्म के वैर के कारण इस जन्म में भी भगवान का वैरी बनकर वह धोबी ही हुआ और कृष्ण जब गोकुल से मथुरा में प्रवेश किये तो उनके हाँथों मारा गया |

पूर्व जन्म की मंथरा, भगवान के कृष्णावतार के समय पूतना के रूप में जन्मी और उसने प्रभु की बाल्यावस्था में ही जान लेने की कोशिश की लेकिन उसे अपनी जान गंवानी पड़ी | इस प्रकार से दोनों ही कृष्ण के हाँथों मारे गए और उनका उद्धार हुआ |

आदिपुराण के अठारहवें अध्याय में लिखा है कि पूतना पूर्वजन्म में कालभीरु नामक ऋषि की कन्या चारुमती थी | वह कक्षीवान नामक महर्षि की पत्नी थी | एक बार पति के परदेश जाने पर वह एक शुद्र से संयुक्त हुई तथा पति के वापस आने एवं उनके सद्व्यवहार करने पर भी निरंतर उनके साथ दुष्टता पूर्ण व्यवहार करती रही |

अंत में कक्षीवान के धैर्य की सीमा टूट गयी उन्होंने उसे राक्षसी हो जाने का शाप दे दिया और कहा “तूने मेरी वंचना करके एक धूर्त के साथ प्रेम किया, अतः उस दुष्ट के द्वारा दूषित होने के कारण तू राक्षस योनि को प्राप्त होगी कालांतर में करुणा सागर भगवान श्रीकृष्ण ही तेरा उद्धार करेंगे | तुझे राक्षसी योनि से मुक्ति देंगे |

इस पुराण मे आगे चलकर नारद जी ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा है कि “ऐसी दुष्टा राक्षसी का दूध आखिर उन्होंने क्यों पिया?’ इसके उत्तर में भगवान ने उन्हें बताया कि एक बार च्यावन मुनियों को एक दोष से शीघ्र मरने का श्राप भगवान शिव से मिला था | उन्हें शीघ्र समाप्त करने के लिए पूतना आगे आई |

च्यावन मुनियों की श्राप मुक्ति में उनकी सहायता के लिए जो उसने पुण्य कर्म किया उसकी वजह से उसे कृष्णाधात्रीत्व का सौभाग्य मिला | इसी प्रकार से ब्रह्म वैवर्त पुराण के कृष्ण जन्म खंड में नारायण भगवान् ने नारद जी से तथा गर्ग संहिता, गोलोक खंड में राजा बहुलाश्व के प्रश्न पर नारद जी ने कहा था कि “यह पूतना पाताल नरेश राजा बलि की कन्या रत्नमाला ही थी |

जब वामन अवतार में भगवान श्रीहरि बली के यहां पर पधारे तो रत्नमाला को उन्हें देखते ही वात्सल्य भाव हो गया और वह सोचने लगी कि ईश्वर करे मुझे भी ऐसा ही कोई बालक हो तो मै उसे अपना दूध पिलाती |

रत्नमाला अपने कर्मों की वजह से द्वापर युग में पूतना के रूप में जन्मी लेकिन पूर्वजन्म में, वामनावतार के समय भगवान उसके ह्रदय की इच्छा जान गए थे अतः द्वापर के अंत में श्री कृष्ण रूप में जन्म लेकर उसका स्तनपान किया था | इसी प्रकार से कल्प भेद से पूतना के विषय में अन्य कथाएं है |

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