जब विक्रमादित्य अपने राज्य के नौनिहालों की प्राणरक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने से भी नहीं हिचके
राजा भोज को, स्वर्ण सिंहासन की नवीं पुतली, मधुमालती ने जो कथा सुनाई उससे विक्रमादित्य की प्रजा के हित में अपने प्राणों की आहुति करने की भी भावना झलकती है । वह कथा इस प्रकार है | एक बार राजा …