भारतीय पौराणिक ग्रंथों में कुब्जा एक ऐसी पात्र है जिसके जन्मांतरों के संबंध में बड़ी रोचक तथा आश्चर्य जनक कथायें मिलती हैं | गर्ग संहिता के ग्यारहवें अध्याय में राजा बहुलाश्व की एक कथा आती है |
एक बार बहुलाश्व ने नारद मुनि से कथा सुनने के दौरान उनसे प्रश्न किया कि “मुनिवर | उस सैरंध्री कुब्जा ने अपने पूर्व जन्म में ऐसा कौन-सा ऐसा दुष्कर तप किया था जिसके फलस्वरुप परमात्मा श्रीकृष्ण उस पर रीझ गए;
क्योंकि उनकी प्रसन्नता का लेश तो देवताओं के लिए भी अति दुर्लभ है? इस पर देवऋषि नारद जी ने उन्हें बताया कि काफी समय पहले की बात है | त्रेता युग में जब सूपर्णखा ने भगवान राम को पंचवटी में देखा तो उनके देवदुर्लभ रूप को देखकर, हृदय से आसक्त होकर मूर्छित सी होने लगी |
लेकिन उसने देखा कि राम का स्नेह तो उस पर तनिक भी नहीं हो रहा है जबकि सूपर्णखा उस समय अत्यंत लावण्यमयी बनकर विचर रही थी वहाँ | उसने ध्यान दिया कि राम उसे देखकर अत्यंत विरक्त एवं निविर्ण से हो रहे थे और उनका एकमात्र स्नेह भगवती सीता जी की ही तरफ था |
इसी डाह-द्वेष में जलती हुई वह राक्षसी सूपर्णखा, सीता जी को खाने के लिए उनकी तरफ लपकी लेकिन लक्षमण जी सतर्क थे | उन्होंने (लक्ष्मण जी ने) भी तत्काल उसके नाक कान काट डालें | लक्ष्मण जी उसका वध करना चाहते थे लेकिन भगवान् राम ने उन्हें ऐसा करने से मना किया, उन्होंने लक्ष्मण जी से केवल उसे दंड देने को कहा फलस्वरूप लक्ष्मण जी ने उस राक्षसी के नाक-कान काट दिए |
अपने अपमान से बिफरी हुई, क्रोधाग्नि में जलती वह राक्षसी अपने भाई रावण के पास आई और उसने रावण से सीता के अपहरण की प्रार्थना की | जब रावण ने सीता जी का अपहरण कर लिया तो एक बार पुनः वह राम लक्ष्मण को वन में अकेले पाकर उनसे (भगवान राम से) विवाह करने के लिए प्रार्थना करने आई |
पर इस बार भी उसकी इच्छा पूरी नहीं हुई | अब वह पूरी तरह से निराश हो गयी थी | अंत में जब रावण मार डाला गया और सीता विरहित राम भी बीच में जब उस पर ना रीझे तो हताश व निराश वह पुष्कर क्षेत्र में निराहार रहकर भगवन शिव के रूप का ध्यान करती हुई तपस्या करने लगी |
अंत में जब प्रभु ने दर्शन देकर उससे वर मांगने को कहा तो उसने राम को ही पति के रूप में वरण करने की कामना की | इस पर भगवान शंकर ने उन्हें भविष्य यानी द्वापर युग में कृष्ण रूप से उन्हें प्राप्त करने का उसे वर दे दिया | वही सूपर्णखा द्वापर में चलकर कुब्जा हुई |
इच्छा अनुसार रूप बदलने की सामर्थ्य रखने वाली वह सूपर्णखा नाम की राक्षसी ही मथुरा में कुब्जा के रूप में जन्मी और देवाधिदेव महादेव के वरदान से ही वह कृष्ण की प्यारी बनी | श्री लोमश रामायण में कुब्जा की कथा अन्य प्रकार से दी हुई है |
उस ग्रन्थ के अनुसार रामावतार के समय कैकयी दासी मंथरा ही द्वापर युग की कृष्ण प्रिया कुब्जा हुई | संक्षेप में वह कथा इस प्रकार है- अयोध्या वासियों को जब पता चला कि उनके प्राणप्रिय राजकुमार राम का राज्याभिषेक होने की बजाय उन्हें चौदह वर्ष के वनवास के लिए भेजा जा रहा है और इन सबके पीछे कैकेयी की दासी मंथरा का हाँथ है तो वे सब मंथरा पर कुपित हो गए और उन कुपित अयोध्या वासियों ने श्री लोमश जी से पूछा “प्रभु ! इस मंथरा का ही राम से विरोध क्यों है ? जबकि पशु-पक्षी, जड़, चेतन, वृक्ष आदि तक हमारे राम के प्रेमी हैं” |
इस पर लोमश जी ने उत्तर दिया “यह मंथरा जन्मांतर में प्रहलाद की पौत्री तथा विरोचन की पुत्री थी | उस जन्म में भी इसका नाम मंथरा ही था | इसका छोटा भाई बलि जब माता के गर्भ में ही था, तब देवताओं ने छलपूर्वक ब्राह्मण का रूप धारण कर विरोचन से अपनी सारी आयु ब्राह्मणों को दान देने की प्रार्थना की |
अतः दानी विरोचन ने अपना शरीर त्याग दिया | जिसके बाद दैत्य निराश्रित हो गए | वह मंथरा की शरण में गए | मंथरा ने उनको रक्षा का आश्वासन दिया | जिससे उत्साहित होकर शम्बर, मय, बाण आदि दैत्य युद्ध के लिए निकले, पर वे देवताओं से हार गए |
तब मंथरा देवताओं पर भयंकर क्रोधित हुई और क्रुद्ध होकर उसने नागपाश के द्वारा समस्त देवताओं को बांध लिया | नारद जी ने देवताओं के ऊपर आयी इस विपत्ति को वैकुंठ स्थित भगवान नारायण के समस्त निवेदित की | भगवान विष्णु ने इंद्र को अमोघ शक्ति दी जिससे इंद्र ने ना केवल नागपाश के बंधन को काटा बल्कि उसी शक्ति से इंद्र ने मंथरा को मार कर बेहोश कर दिया |
उस दिव्य शक्ति के प्रभाव से मंथरा का शरीर अपंग हो गया, वह कुब्जा-सी हो गई | दैत्य स्त्रियों ने भी पीछे से उसका बड़ा उपहास किया | मृत्यु के बाद अगले जन्म में वह उसी रूप में कश्मीर क्षेत्र में उत्पन्न हुई और भगवान विष्णु से प्रतिशोध लेने के लिए कैकई की दासी बन कर उसने रामराज्य की स्थापना में विघ्न डाला जिसकी वजह से वह सारे संसार में अपयश की भागी हुई |
उसका ही भगवान ने अपयश मिलने के कारण, कृष्णावतार के समय उद्धार किया” | कल्पभेद से अलग-अलग पुराणों में, कुब्जा के विषय में, अलग-अलग कथाएं मिलती हैं |
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