भूत प्रेत की रहस्यमय योनि से मुक्ति केवल श्राद्ध आदि संस्कार कर्मों के करने से ही नहीं मिलती | कभी-कभी स्थितियाँ विचित्र हो जाती हैं | समझ में नहीं आता गड़बड़ कहाँ हुई | प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने में पवित्र नदी गंगा जी का भी प्रमुख योगदान है |
भारतीय धार्मिक एवं पौराणिक ग्रंथों में गंगा जी की महिमा का बहुत बखान है | भागीरथी गंगा जी प्रत्यक्ष मुक्ति प्रदान करने वाली है | इसी सम्बन्ध में एक कथा आती है | किसी समय एक धनी सेठ हुआ करते थे |
सेठ जी बड़े धर्म परायण, सात्विकता से भरे हुए, गौ, ब्राह्मण, साधु, महात्माओं में भक्ति रखने वाले और दयालु थे | अपनी पूर्ण आयु प्राप्त कर के, एक भरा पूरा परिवार और अपने उत्तराधिकारियों के लिए एक संपन्न व्यवसाय छोड़कर वह मृत्यु को प्राप्त हुए |
सेठ जी श्री स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी के अनन्य भक्त थे | स्वामी जी के कई शिष्य थे | सेठ जी की जब मृत्यु हुई उस समय स्वामी जी बद्रीनाथ यात्रा पर थे | स्वामी जी ने जब अपनी बद्रीनाथ यात्रा के दौरान यह समाचार सुना तो लौटते समय सांत्वना देने के लिए उनके घर पधारे |
स्वामी जी के, सेठ जी के घर में प्रवास के दौरान एक दिन रात्रि में जब सभी लोग सो गए तो सेठ जी का बड़ा पुत्र स्वामी जी के पास आया और रोते हुए उसने अपने पिता की दुर्गति प्राप्ति का वर्णन किया |
ऐसे परम धार्मिक और सह्रुदयात्मा शिष्य की ऐसी गति सुनकर स्वामी जी स्तब्ध रह गए और आश्चर्य करने लगे | उनके आश्चर्य करने पर सेठ जी के बड़े पुत्र ने स्पष्टीकरण करते हुए बताया कि “महाराज ! यह सच है और पिताजी मुझे समय-समय पर दिखाई भी देते हैं और कभी-कभी उनकी प्रेतात्मा भी मेरे शरीर में आती है | आप शीघ्र उनकी मुक्ति का उपाय कीजिए, मुझे उनके लिए बहुत दुःख हो रहा है” | यह कह कर वह रोने लगा |
अभी रात्रि का तीसरा पहर शुरू ही हुआ था, स्वामी जी सोच में पड़ गए लेकिन उन्होंने सेठ जी के बड़े पुत्र को ढांढस बधाया और और उनकी मुक्ति का आश्वासन देकर उसे विदा किया | रात्रि का चौथा पहर बीतने वाला था लेकिन स्वामी जी की आँखों में नीन्द नहीं थी |
मन में उहापोह चल रही थी कि सेठ जी की आत्मा का आवाहन किया जाए या कुछ समय तक प्रतीक्षा की जाए तभी अचानक स्वामी जी को कुछ आहट महसूस हुई | वहां जो कुछ भी था उससे सामान्य व्यक्ति के रौंगटे खड़े हो जाते लेकिन स्वामी जी इस आहट को पहचानते थे |
स्वामी जी उठ खड़े हुए तो उन्होंने अपने पैरों के पास एक अस्पष्ट सी पुरुषाकृति को देखा | उनके उठ खड़े होने पर वह आकृति उनके चरणों में गिर पड़ी और अत्यंत धीमी आवाज में उन्हें अपनी इस दुर्गति होने की घटना उसने सुनाई |
उस घटना का सारांश यह था की एक बार एक महात्मा ने किसी तीर्थ में धर्मशाला निर्माण के लिए कुछ धन का संग्रह किया था और वह द्रव्य इनके यहां जमा कर दिया था | बहुत वर्षों तक वह महात्मा नहीं आए |
बाद में सेठ जी ने कहीं से सुना कि हरिद्वार के कुंभ में ही उनका देहावसान हो गया | उन महात्मा का वह संग्रहित धन सेठ जी के पास ही रह गया, जिसे सेठ जी ने अपने लिए प्रयोग कर लिया और इसी कारण उन सेठ जी को यह दुर्गति प्राप्त हुई |
स्वामी जी ने प्रातः काल यह पूरी घटना सेठ जी के बड़े पुत्र समेत पूरे परिवार को बताई और उनके बड़े लड़के को निर्देश दिया कि तुम उन महात्मा का धन और उनका इतने वर्षों का व्यवसायिक ब्याज एवं अपने पिता के निमित्त दान देने के लिए कुछ धन, इतने रुपए लेकर हरिद्वार चले जाओ और वहां नित्य गरीब दुखियों तथा साधु महात्माओं की अन्न, वस्त्र से सेवा करो और प्रतिदिन दोनों समय गंगा स्नान करो तथा गंगाजल की अंजली अर्ध्य प्रदान करो |
जब सब रुपए इसी प्रकार से उनकी सेवा में व्यय हो जाएंगे तो तुम्हारी पिता की मुक्ति हो जाएगी और उन्हें उच्च लोकों में स्थान मिलेगा | स्वामी जी के निर्देश पर सेठ जी के बड़े पुत्र ने ऐसा ही किया | बाद में फिर कभी सेठ जी इस प्रकार से अपने परिवार में दिखाई नहीं दिए |
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