एक बार महर्षि जैमिनी को महाभारत में आये कुछ तथ्यों से सम्बंधित कुछ संदेह उत्पन्न हो गया | मन में चल रही उहापोह के बीच उन्हें मार्कंडेय मुनि का ध्यान आया | वे उनके पास गए और उनसे अपने संदेह निवारण के लिए आग्रह किया |
उस समय तक सांझ हो चली थी और मार्कंडेय मुनि के संध्या वन्दन का समय हो रहा था लेकिन उन्होंने महर्षि जैमिनी की बातें सुनी और सब सुनने के बाद उन्होंने महर्षि जैमिनी को विंध्य पर्वत की एक कन्दरा में रहने वाले 4 पक्षियों के पास जाने को कहा |
महर्षि जैमिनी द्वारा उन पक्षियों के बारे में पूछे जाने पर मारकंडे जी ने बतलाया कि वह मुनिवर समीक के द्वारा पालित पक्षी है | महर्षि मार्कंडेय जी ने उन्हें पूरी कथा बतायी जिसके अनुसार एक समय दुर्वासा ऋषि ने क्रोधित हो कर वपु नामक अप्सरा को तिर्यक योनी में जन्म लेने का श्राप दिया जिसके फलस्वरूप वपु नामक उस अप्सरा ने, गरुड़ वंशीय कंधर नामक पक्षी की पत्नी मदनिका के गर्भ से तार्क्षी नामक पक्षिणी के रूप में जन्म लिया था |
वही तार्क्षी द्रोण नामक एक ब्राह्मण को ब्याही गई थी, जिससे गर्भधारण करने पर साढ़े तीन महीने के बाद वह तार्क्षी, जब महाभारत युद्ध हो रहा था, उड़ती हुई उस क्षेत्र से निकली | उसी समय अर्जुन ने अपने किसी शत्रु के ऊपर बाण का संधान किया था जिसके प्रभाव से उसका शरीर छिल गया और वह अपने गर्भस्थ अंडों को गिराकर स्वयं भी मृत्यु को प्राप्त हो गयी |
संयोगवश उसी समय युद्ध लड़ रहे भगदत्त के सुप्रवीक नामक गजराज का विशालकाय गलघंट भी बाण लगने से टूटकर गिरा और उसने अंडों को आच्छादित (ढक लिया) कर दिया | युद्ध समाप्त होने के पश्चात्, शिष्यों के साथ उधर की तरफ विचरण करते हुए समीक मुनि ने उन अण्डों को देखा और वे उनको उठा लाए |
आश्रम के पवित्र वातावरण में उन चारों अण्डों से कुल चार पक्षी निकले और कुछ समय बाद परिपुष्ट होकर एक दिन वे पक्षी मनुष्य की वाणी बोलते हुए अपने गुरु यानि समीक मुनि को प्रणाम करने गए | मुनिवर समीक ने विस्मित होकर उनसे उनके पूर्व जन्म का वृतांत पूछा | उन्होंने बतलाया कि ‘हम चारों भाई पूर्व जन्म में सुक्रष नामक ब्राह्मण के ज्ञानी पुत्र थे |
लेकिन एक दिन हमने अपने पिता की आज्ञा का उल्लंघन करके उनका अपमान कर दिया | इससे उन्होंने क्रोधित होकर हमें तिर्यक योनि में जाने का शाप दे दिया | अतः हे गुरुदेव ! हम वही चारों ब्राम्हण कुमार हैं, जो अब पक्षी होकर तार्क्षी के गर्भ से उत्पन्न हुए हैं | हमारी माता महाभारत के युद्ध में मारी गई है | हे गुरु ! अब हमें आप आज्ञा दीजिए, हम विंध्य पर्वत की इसी मनोहर कंदरा में निवास करेंगे” |
यह कथा सुनाने के बाद मार्कंडेय जी ने कहा- हे मुनिवर ! आप वहीँ जाइए | वे वेद ज्ञान संपन्न चारो पक्षी आपको उपदेश करेंगे और आपकी शंका का समाधान करेंगे | तब महर्षि जैमिनी समीक मुनि के आश्रम की उसी मनोहर कन्दरा में गए और पूर्व ज्ञान की स्मृति से संपन्न उन पक्षियों ने उनके सारे संदेहों का निवारण कर दिया |
इस प्रकार हमारे धर्म ग्रंथों तथा इतिहास और पुराण आदि के अध्ययन से पता लगता है कि इस धरा पर पशु-पक्षी तक भी जातिस्मर होते रहे हैं और उन्हें भी पूर्व जन्म का ज्ञान होता है | और प्राचीन काल के ऋषि-मुनि, भले ही वो ब्रह्मर्षि रहे हों लेकिन अगर उन्हें किसी तिर्यक योनि के पशु-पक्षी से उन्हें ज्ञान मिल रहा हो तो उन्होंने कभी संकोच नहीं किया बल्कि उसे आदर पूर्वक ग्रहण किया | धन्य है यह सनातन धर्म और धन्य है यह भारत भूमि |
रहस्यमय के अन्य आर्टिकल्स पढ़ने के लिए कृपया नीचे क्लिक करें
काकभुशुंडी जी एवं कालियानाग के पूर्व जन्म की कथा
भूत प्रेत की रहस्यमय योनि से मुक्ति
नल और दमयन्ती के पूर्वजन्म की कथा
देवर्षि नारद पूर्वजन्म में कौन थे
मिनोआन सभ्यता का रहस्यमय चक्र जो अभी तक अनसुलझा है
ब्रह्माण्ड के चौदह भुवन, स्वर्ग और नर्क आदि अन्यान्य लोकों का वर्णन
प्राचीन वाइकिंग्स द्वारा प्रयोग किया जाने वाला जादुई सूर्य रत्न क्या एक कल्पना थी या वास्तविकता ?
दैत्याकार व्हेल ने जिसे निगल लिया वो मौत के मुंह से जिन्दा वापस आया