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एक बौद्ध भिक्षु के पुनर्जन्म की कथा
पुनर्जन्म की सभी घटनाओं को एक ही श्रेणी में नहीं रखा जा सकता | हर घटना अपने आप में एक नए रहस्य को समेटे होती है | कुछ घटनाएं दूरदर्शन अथवा दूरानुभूति का भ्रम पैदा करती हैं लेकिन उनकी विवेचना केवल चुनिन्दा पहलुओं पर नहीं की जा सकती |
प्रस्तुत घटना थाईलैंड के एक बौद्ध भिक्षु की है | एक दुबले पतले, भारतीय योगी जैसे दिखाई देने वाले बौद्ध भिक्षु जब थाईलैंड के ‘नाखोन’ नामक गाँव में पहुंचे तो वहां उन्होंने एक साधारण से दिखने वाले ग्रामीण घर के बरामदे के कोने की ओर संकेत करते हुए शांत एवं सहज, स्वाभाविक ढंग से कहना आरंभ किया कि ‘किस प्रकार 49 वर्ष पहले यहीं पर अपनी मृत्यु हो जाने पर उन्होंने शोक मनाने वालों लोगों को अपनी चटाई के चारों तरफ देखा था |
उस चटाई पर उनका शव रखा हुआ था | उन्होंने स्वयं अपनी दाह संस्कार की पूरी प्रक्रिया को देखा था और बाद में अपनी छोटी बहन के लड़के के रूप में उनका पुनर्जन्म हुआ था | थाईलैंड के उन भिक्षु का नाम फ्रा राज्सुथार्जन (Phra Rajasuthajarn) था और वे थाईलैंड के बौद्ध संघ के अत्यंत सम्मानित सदस्य भी थे |
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वहां उनकी पुनर्जन्म की आश्चर्यजनक कथा सब को भली भांति पता थी | उनके पूर्व जन्म के संबंधियों द्वारा इन तथ्यों की पूरी तरह से पुष्टि भी कर दी गई थी | जैसे, पैदा होने के बाद जब उन्होंने बोलना शुरू किया था तभी अपनी तोतली जबान से अपनी इस समय की माँ को बहन कहकर संबोधित किया था और अपने सभी संबंधियों के नाम बता कर उन्हें पहचान लिया था |
उन्होंने अपने पिछले जीवन की घटनाओं की बहुत निकटस्थ जानकारी प्रदर्शित की थी, जिसे संभवता वह इस जीवन में नहीं जान सकते थे | थाईलैंड ही नहीं बल्कि अन्य दक्षिण एशियाइ देशों में भी पुनर्जन्म की चकित कर देने वाली घटनाएं सुनने को मिलती हैं | इसी प्रकार से श्रीलंका में भी पुनर्जन्म की एक विचित्र घटना सुनने में आई |
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मामला 1963 का है जन श्रीलंका के बाटापोला गाव में रूबी कुसुमा नाम की एक लड़की पैदा हुई | उसके पिता सीमन सिल्वा एक डाकिया थे | रूबी ने जब बोलना शुरू किया तो अक्सर अपने पिछले जीवन की बाते बताती | वह कहती कि ‘पिछले जन्म में वह एक लड़का थी | उसका पिछले जन्म वाला घर वहांसे सात किलोमीटर दूर, अलूथवाला नाम के एक गाँव में था’ |
रूबी ने दावा किया था कि उसका पुराना घर (पिछले जन्म वाला) इस घर से बहुत बड़ा था और उसके पास पहनने के लिए बहुत सारे पायजामे थे | वह अक्सर अपनी माँ से कहती कि ‘मेरी पुरानी माँ तुमसे बहुत गोरी थी और वह जैकेट तथा महंगे कपड़े पहनती थी’ | उसने बताया की उसके घर में खाने-पीने की बहुत सारी सामग्री थी और नारियल की तो भरमार ही थी |
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वह अक्सर अपनी माँ को ताने देती कि तुम्हारे पास तो खाने में डालने के लिए कभी-कभी नारियल होता ही नहीं | बच्ची ने अपने मां-बाप को यह भी बताया कि वहां वह स्कूल में पढ़ती थी और एक बार उसकी प्यारी चाची उसे उलूथ वाला नंदराम मंदिर ले गई, जहां बरामदे में किताबें रखने का एक बक्सा रखा हुआ था |
उसे यह भी अच्छी तरह याद था कि उसकी चाची ने उसे वह पेंसिल उठा लेने को कहा, जो उस बक्से में गिर गई थी | उसे यह भी याद था कि उसने मंदिर के अहाते में बेली फल भी खाया था | मंदिर के आंगन के बीचोबीच में बेली का पेड़ था जिससे वह फल गिरा था |
अपने पिछले जन्म के पिता के बारे में उसका कहना था कि वह मोटर बस चलाते थे और जब भी घर आते थे टमाटर और शक्कर जरूर लाते थे | रूबी जब भी अपने पिछले जन्म की मौत का जिक्र करती थी तो उसके माता-पिता बड़ी उलझन में पड़ जाते थे | उसका कहना था कि एक बार फसल की कटाई में हाथ बटाने के बाद जब वह अपने घर की ओर लौटी तो कुएं पर अपने पैर धोने गई |
वहां अचानक से उसका पैर फिसला और वह कुएं में गिर पड़ी | उसने हाथ ऊपर करके शोर भी मचाया परंतु किसी ने सुना ही नहीं | रूबी के अभिवावकों को उसके पिछले जन्म के माता-पिता श्रीमान और श्रीमती पुन्चिनोना को ढूंढ निकालना मुश्किल नहीं था | खोजबीन करने पर पता चला कि उनका बेटा करुणासेना सन 1956 में मरा था |
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उन्होंने उस के कुए में डूब जाने की घटना और दूसरी बातें भी सच बतायीं और कहा कि लड़की की सारी बातें बिल्कुल सच है | उसके बाद रूबी के अभिवावक और जांच पड़ताल करने वाले, उसको ले कर अलूथवाला नंदराम मंदिर भी गए |
मंदिर के पुजारी ने बताया कि लड़की ने मंदिर के बारे में जो कुछ कहा है, वह सत्य है | ‘उन्होंने किताबें रखने का बक्सा भी दिखाया और अहाते के बीचो-बीच बेरी का पेड़ भी |
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समाज के पुराने और बुजुर्ग लोग आज भी इन घटनाओं को प्रमाणिक तथ्यों के साथ बताते हैं लेकिन दुर्भाग्य से नयी पीढ़ी (जिनको दुनिया Facebook से शुरू हो कर Google पर ख़त्म होती) के पास फुर्सत ही नहीं उनके साथ वक़्त बिताने की |