बालक, जिसने प्रेतयोनि में जन्म लेने के बाद भी अपनी पूर्वजन्म की स्मृति नहीं खोई
आज से कोई साठ वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के खेड़ी अलीपुर गाँव में पुनर्जन्म की एक बड़ी विचित्र घटना घटी | यहाँ के एक जाट परिवार में एक ऐसे बालक ने जन्म लिया जो न केवल अपने पूर्वजन्म की बातें बताता बल्कि वह यह भी कहता कि ‘मै नौ वर्ष बराबर पीपल के वृक्ष पर प्रेत बनकर रहा’ | बालक का नाम वीरसिंह था |
उस समय पूरे जिले में यह बात फैली हुई थी कि शिकारपुर, जिला मुजफ्फरनगर में एक ऐसा पांच वर्ष का बालक है जो अपने पिछले जन्म की बातें बताता है | ‘सन्मार्ग’ काशी में भी यह समाचार प्रकाशित हुआ |
समाचार पत्रों में छपी ख़बरों के अनुसार यह बालक वीरसिंह, गाँव खेड़ी अलीपुर में कलीराम जाट के यहाँ पैदा हुआ | जब यह बालक साढ़े तीन वर्ष का था तभी से यह कहता आ रहा था कि “मै शिकारपुर का हूँ | मेरा नाम सोमदत्त है | मेरे पिता का नाम पण्डित लक्ष्मीचन्द है | मेरी माता मुझे मेले में जाने के लिए बहुत पैसे दिया करती थी” |
उसकी यह बातें दूर-दूर तक फैलीं | धीरे-धीरे यह बातें पंडित लक्ष्मीचन्द के कानों में भी पहुंची | श्री लक्ष्मीचन्द जी की तीन कन्यायें थी, प्रकाशवती, कैलाशवती, और सरला देवी | इसी प्रकार से उनके दो लड़के भी थे, विष्णुदत्त और रविदत्त |
पण्डित लक्ष्मीचन्द जिस शिकारपुर में रहते थे वह वीरसिंह के गाँव खेड़ी अलीपुर से केवल पांच कोस की दूरी पर था | ख़बर सुनने के बाद उसकी सत्यता को परखने के लिए पंडित लक्ष्मीचन्द भी चल पड़े गाँव खेड़ी अलीपुर के लिए | वो दिन था चौबीस अप्रैल 1951 का जब सैकड़ों आदमी जमा हो गए थे कलीराम जाट के घर | लड़के को लाया गया |
विशाल जनसमूह के बीच में उस लड़के वीरसिंह ने न केवल अपने पूर्वजन्म के पिता, पण्डित लक्ष्मीचन्द को पहचाना बल्कि बाबा-बाबा कहकर उनसे लिपट गया | पण्डित जी के ह्रदय में पुत्र-स्नेह उमड़ आया | उसके पिता से अनुमति ले कर वे उसे शिकारपुर ले चले |
गाँव के पास पहुँचते ही लड़के ने उत्साह में पुकारना शुरू कर दिया ‘हमारा गाँव शिकारपुर आ गया’ | रास्ते में वह, स्वयं ही पण्डित लक्ष्मीचन्द का कुआँ, जंगल, खेत आदि देखकर कहने लगा कि ‘यह हमारे हैं’ | गाँव में घुसते ही उसे छोड़ दिया गया | वह स्वयं ही गलियों के रस्ते होते हुए चौराहे पर पहुँच गया | इसी चौराहे के पास पण्डित लक्ष्मीचन्द का मकान था |
पहले, उसे परखने के लिए, दूसरे के घर में ले जाया गया | घर के अन्दर पहुँच कर वह कहने लगा कि “यह हमारा घर नहीं है | यह तो पटवारी का घर है” | वास्तव में वह गाँव के पटवारी का ही घर था |
धीरे-धीरे चल कर उसने पण्डित लक्ष्मीचन्द जी का मकान जा पकड़ा और स्वयं उसमे घुस गया | लक्ष्मीचन्द जी की विशाल हवेली में आस-पड़ोस की पचासों स्त्रियाँ, लड़कियां इकठ्ठी हो रही थीं | पाँच वर्ष के उस बालक वीरसिंह ने उनमे से पण्डित लक्ष्मीचन्द जी की सारी कन्याओं को पहचाना | बारी-बारी से सभी का नाम बताया उसने |
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लक्ष्मीचन्द की स्त्री को देखकर उसने कहा कि “यह मेरी माँ है” | लेकिन अपनी माँ से वह थोड़ा दूर ही रहा | माँ के प्रति इस व्यवहार पर लोगों को थोड़ा ताज्जुब हुआ तो लोगों ने पूछा “तुम अपनी माँ से दूर क्यों हो”? लड़के ने थोड़ा नटखट अंदाज में उत्तर दिया “मेरी माँ ने तो मुझे कुछ दिया ही नहीं” |
पास बैठी माँ ने, जो उसकी सारी बातें सुन रही थी, तुरंत अपने पास से पांच रुपये का नोट निकाल कर उसे दिया जिसे देखकर वह बालक खुश हो कर अपनी माँ के गोद में बैठ गया और माँ-मेरी प्यारी माँ कहने लगा |
थोड़ा समय बीतने पर जब बाहर वाले सभी लोग चले गए तो परिवार वालों के पूछने पर उसने थोड़ा विस्तार से बताया | उसने बताया कि “मरने के बाद मै 9 वर्षों तक लगातार, अपने मकान के पीछे वाले पीपल के वृक्ष पर, प्रेत बन कर रहा | मै उस समय प्रेतावास्था में कुँए में घुस कर पानी पी लेता था और घर में घुस कर रोटी खा लेता था” |
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बातचीत के बीच में अचानक जैसे उसे कुछ याद आया और उसने घर के उस पुराने नौकर के बारे में पूछा जो लक्ष्मीचन्द जी के यहाँ बहुत पहले रहता था | उस नौकर को भी उसने स्वयं भीड़ में पहचाना | उसने अपने पूर्वजन्म के सारे भाइयों को भी पहचाना | अपने पूर्वजन्म के घर आ जाने के बाद उसे इतना अच्छा लगा कि अब वह अपने गाँव खेड़ी अलीपुर, जहाँ वह पैदा हुआ था, नहीं जाना चाहता था |
उसे दो बार जबरदस्ती उसके गाँव खेड़ी अलीपुर ले जाया गया लेकिन वहाँ उसने खाना-पीना सब छोड़ दिया | अंत में जब सब परिवार वाले परेशान हो गए तो तंग आ कर उसे शिकारपुर में पण्डित लक्ष्मीचन्द जी के यहाँ छोड़ आये | अब वह अपने पूर्वजन्म के माता-पिता, पण्डित लक्ष्मीचन्द व उनकी धर्मपत्नी के साथ शिकारपुर में ही रहने लगा |
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कुछ समय बाद वह स्कूल पढ़ने जाने लगा | थोड़ा बड़े होने पर उसने कुछ और आश्चर्यजनक बातें बतायी | नौ वर्ष तक प्रेत के रूप में पीपल के वृक्ष पर रहने के दौरान उसने गाँव के किस-किस हिस्से में क्या-क्या घटना घटी यह सब भी बताया जो की अपने आप में आश्चर्यजनक था |
पण्डित लक्ष्मीचन्द जी बताते थे कि “चौदह वर्ष हुए मेरा लड़का सोमदत्त साढ़े तीन वर्ष का हो कर मर गया | उस समय कैलाशवती, प्रकाशवती, और विष्णुदत्त थे | सरला और रविदत्त सोमदत्त के मरने के पश्चात् पैदा हुए थे” |
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अब कैलाशवती, प्रकाशवती, और विष्णुदत्त को तो पहचान लिया सो ठीक है, लेकिन बाद में पैदा होने वाले सरला तथा रविदत्त को भी पहचान लिया, क्योंकि यह लड़का (सोमदत्त) मरने के बाद भी पीपल के वृक्ष पर प्रेत के रूप में कई वर्षों तक रहा | ऐसी दशा में सबको पहचानना कोई आश्चर्य की बात नहीं |
पण्डित लक्ष्मीचन्द व उनकी धर्मपत्नी, उस बालक वीरसिंह को अपना पुत्र सोमदत्त ही मानते थे | बाद में पंडित जी नैनीताल चले गए उनके साथ उनका पिछले जन्म का पुत्र सोमदत्त (वीरसिंह) भी था |