परकाया प्रवेश या प्रेतलीला

परकाया प्रवेश या प्रेतलीलाकोई सौ, डेढ़ सौ साल पहले जब आत्मा ईश्वर और पुनर्जन्म के सम्बन्ध में चर्चा चलती तो उस जमाने के नव-बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक काफ़ी उछल कूद मचाते (आज के पाखण्डी, वामपंथी बुद्धिजीवियों की तरह) और एक विशेषज्ञ की तरह इस विषय की निरर्थकता सिद्ध करने में अपनी सार्थकता समझते | इसकी वजह थी |

उस समय नित नयी होने वाली वैज्ञानिक खोजें, विज्ञान के नए-नए आयाम स्थापित कर रही थीं | वैज्ञानिक खोजें, उनकी सार्थकता और भविष्य के अनुमान पर चर्चा, उस समय आधुनिकता का पर्याय बन गयी थी |

धर्म, अध्यात्म, परम्परा और मान्यताएँ केवल घर की चारदीवारी में क़ैद होकर पूजाघरों तक सीमित हो रही थीं | उनकी वैज्ञानिक विवेचना और सार्थकता सिद्ध करने का साहस कुछ विरले लोग ही दिखा पाते और जो ऐसा प्रयास करते उन्हें पढ़े-लिखे ‘मूर्ख विद्वानों’ का नीड़ अपमानित करने का प्रयास करता | लेकिन समय बड़ा ही बेरहम है |

ये सीधा आगे नहीं बढ़ता बल्कि गोल घूम जाता है | विज्ञान अब क्रमशः प्रौढ़ होता चला जा रहा है | सौ वर्ष पूर्व का उत्साह अब ठंडा पड़ रहा है | आत्मा और उसके पुनर्जन्म में अब अधिकांश लोग विश्वास करने लगे है |

यह माना जाने लगा है कि आत्मा है और मरणोत्तर जीवन के बाद भी उसकी सत्ता पूरी तरह से समाप्त नहीं होती बल्कि किसी न किसी रूप में बनी रहती है | यही सत्ता जब मनुष्य शरीर छोड़ कर अन्तरिक्ष में भ्रमण करती है तो उसका परिचय कभी-कभी प्रेतात्माओं के रूप में मिलता है |

स्वर्ग और नर्क आदि की अनुभूतियों के लिए नाना प्रकार की भोग योनियाँ भी इसी अवधि में होती हैं | इसके बाद फिर पुनर्जन्म का चक्र चल पड़ता है | कहीं-कहीं प्रेतों के, अनुकूल परिस्थितियां पा कर, यानी दुर्बल मनःस्थिति वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर के उनकी मूल सत्ता को परे धकेलकर अपना वर्चस्व स्थापित कर बैठने के भी प्रमाण मिले हैं |

इसी क्रम में आत्मा की स्वतंत्र सत्ता के प्रमाण में परकाया प्रवेश के सिद्धांत का समर्थन करने वाले कुछ आधुनिक और विस्मित करने वाले लेकिन परखे एवं पहचाने उदहारण हैं जिन्हें अन्धविश्वास नहीं कहा जा सकता |

अमेरिका के डॉक्टर आसवन व वहीँ की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एक अन्य प्रोफेसर ने मिलकर “बीसवीं सदी में अचेतन मनोविज्ञान की नई खोजें” जैसे विषय पर विस्तृत खोज की है | अपने विषय से सम्बंधित उन लोगों ने अनेकों प्रमाणों का संग्रह किया है |

अपने शोधकार्यों के विवरणों में उन्होंने ये सिद्ध करने का प्रयास किया है कि आत्मा की स्वतंत्र सत्ता है और वह एक शरीर से दूसरे शरीर में परिवर्तन करते रहने में समर्थ है | डॉक्टर आसवन ने अपने शोध में एक ऐसे व्यक्ति ज़िक्र किया है जिसका बर्तन बेचने का कारोबार था जो की काफी अच्छा चल रहा था |

एक दिन वो अपने घर से टहलने के लिए निकला था लेकिन अचानक गायब हो गया | उसके घर वालों ने उसे बहुत तलाश किया लेकिन उसका कहीं कुछ पता नहीं चल सका | गायब हुआ कारोबारी वहाँ से काफी दूर जा कर एक बिलकुल अनजान सी जगह पर अपनी आजीविका चलाने लगा लेकिन एक बिलकुल नए व्यक्तित्व के साथ |

अब यहाँ पर वो एक मैकेनिक था | वह मशीनों की मरम्मत का काम करता था और घूम फिर कर अपनी रोजी-रोटी का काम करता था | ऐसा नहीं था कि एक मैकेनिक के तौर पर वह नौसिखिया था बल्कि एक सिद्धस्त की तरह वह सारे काम को अंजाम देता मानो इन्ही मशीनों के बीच पला-बढ़ा हो |

इसी प्रकार उसने दो वर्ष आनंद पूर्वक रोजी-रोटी कमाते हुए गुजार दिए | जिस सराय में वो ठहरता, जिस भोजनालय में वो खाना खाता, उन्ही के यहाँ उसने ऐसी व्यवस्था जमा ली मानो उन स्थानों से वह पुराना परिचित रहा हो | उन दुकानों के नए पुराने सभी कर्मचारियों के नाम और व्यवहार उसे याद थे |

इसी प्रकार मरम्मत का काम जहाँ उसे मिलता, वहाँ भी उसका सब कुछ जाना पहचाना होता | दो वर्ष इसी तरह बीत गए | इसके बाद, एक दिन अचानक, उसकी इसी जन्म की ‘पूर्व स्मृति’ जगी और वह आश्चर्य के साथ अपनी नयी स्थिति और पुरानी स्थिति की तुलना करने लगा और स्तब्ध रह गया कि उसका नाम, घर, और व्यवसाय सब कुछ कैसे बदल गया ? और पुरानी स्थिति से इस नई स्थिति में उसे कैसे और किसने डाल दिया ?

जिस नए व्यक्ति के रूप में वो दो वर्ष से रह रहा था वो भी कोई कल्पना नहीं बल्कि वास्तविक सच्चाई थी | दो वर्ष बाद मानो गहरी नींद से उठा हो | अब उसे अपने घर की याद आयी और वह वापस लौट चला |

कुछ दिनों तक उसे अपने दूसरे व्यक्तित्व की स्मृति रही, बाद में वो भी धुंधली होती चली गयी और कुछ समय बाद उसे उन दिनों की बातें लगभग पूरी तरह विस्मृत हो गयी | अब वह पहले की तरह अपना बर्तन बेचने का कारोबार करने लगा था |

शोधकर्ताओं ने इस घटना को बहुत गंभीरता से लिया | मामला पर्सनालिटी डिसऑर्डर का लग रहा था | लेकिन ये घटना थोड़ी अलग थी | काफी शोध के बाद डॉक्टर आसवन इसी निष्कर्ष पर पहुंचें कि हो न हो यह किसी प्रबल आत्मा का, एक सामान्य आत्मा को वशवर्ती कर के उसके शरीर पर अपना कब्ज़ा कर लेने की घटना है |

जब उसने कब्ज़ा छोड़ा तो मन, मस्तिष्क और इन्द्रियां अपनी पुरानी स्मृतियों के साथ काम करने की स्थिति में आ गयी | इस घटना को डॉक्टर आसवन ने अपने अनुमानित निष्कर्ष के साथ कई प्रसिद्ध समाचार पत्रों में छपवाया |

ऐसी ही एक दूसरी रहस्यमय घटना रोड्स नगर के निवासी एसेल्बर्न की है | एक दिन वह बैंक से 10 हज़ार का चेक एनकैश करा कर बाहर निकला और अचानक ग़ायब हो गया | घर वाले तलाश करते रहे पर कुछ पता न चल पाया | परिवार को एक आशंका यह भी थी कि कहीं एसेल्बर्न लुटेरों के चंगुल में न फँस गया हो |

लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं था बल्कि इससे कुछ अजीब हुआ था | ग़ायब होने के बाद वह वहाँ से सैकड़ों मील दूर एक दूसरे शहर में जा पहुंचा और वहाँ उसने चीनी (शक्कर) का व्यापार इतनी कुशलता से किया मानो वह उस व्यापार का कोई माहिर खिलाड़ी रहा हो | चीनी के दूसरे व्यापारी उसके बातचीत और व्यापार के तौर तरीकों से बहुत प्रभावित रहते और वो उसे निष्णात अनुभवी मानने लगे थे |

उसका नाम भी अब बदल चुका था | वह उस क्षेत्र का जाना-माना नाम ए. जे. ब्राउन बन चुका था | आश्चर्यजनक रूप से उसने दो महीने में बेहिसाब रूपया पैसा कमाया और उस क्षेत्र में अपनी धाक जमा ली |

लेकिन उसके बाद एक दिन अचानक उसे याद आया वो तो रोड्स शहर का रहने वाला एसेल्बर्न है तो ये उसके साथ क्या हो रहा है ? वह यहाँ कैसे आ गया ? और जिस चीनी के व्यवसाय से उसका दूर-दूर तक कोई लेना-देना तक नहीं था वह उसे क्यों करने लग गया ? इतनी अपिरिचित जगह पर इतनी दूर उसे कौन और कैसे ले गया ?

इन सब सवालों का उसके पास कोई जवाब नहीं था | वह डर गया | उसने तुरंत ही अपना चीनी का व्यवसाय समेटा और वापस अपने घर की और चल पड़ा | इस घटना का भी लगभग वैसा ही निष्कर्ष था और यही अनुमान लगाया गया कि कोई मृत आत्मा किसी जीवित शरीर पर कब्ज़ा करके उससे अपनी रूचि के अनुसार काम करा सकती है |

ऐसी ही एक घटना इंग्लैंड के डॉक्टर मोर्टन प्रिंस ने छपवाई | डॉ प्रिंस, मिस बोचेमम्प नाम की एक लड़की का ईलाज कर रहे थे | उस लड़की का ईलाज करने के दौरान उन्होंने अपना मत व्यक्त किया था कि “भूत या प्रेत जैसी कोई चीज संभव है जो गतिशील हो सकती है” | इस लड़की की दशा कभी-कभी बड़ी विचित्र हो जाती थी |

कई बार उसे दर्द होता था और कुछ देर तक उसकी विचित्र स्थिति रहती, उसके सारे क्रिया-कलाप, बात-व्यवहार बदल जाते | उस समय वह अपना नाम ‘सैली’ बताती और पूरे परिवार वालों को बहुत तंग करती | कई ऐसे पत्र लिख देती, जिसके विषय बोचेमम्प से सम्बंधित होते ही नहीं थे, बाद में उस लड़की के लिए परेशानी बढ़ जाती |

बाद में जब सैली चली जाती तो बोचेमम्प का व्यवहार फिर पहले जैसा हो जाता | इस तरह की घटनाएं वास्तव में कई तथ्यों को समेटे होती हैं | पाश्चात्य जगत के वैज्ञानिकों एवं मनोवैज्ञानिकों के लिए अभी भी ये रहस्यमय व अनसुलझी हैं | समय बदल रहा है |

बदलते समय में पूर्वाग्रहों एवं रूढीवादिताओं का कोई स्थान नहीं होना चाहिए क्योंकि पूर्वाग्रह और रूढीवादितायें केवल अज्ञानता का पर्दा डालती हैं | लेकिन खास बात यह है कि यही बात वैज्ञानिकों पर भी लागू होती है !..

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