इंग्लैंड की एक रहस्यमय घटना, डेजा वू या कुछ और
“जब मै 11 वर्ष की थी, उस समय हम बड़े दिन की छुट्टियाँ सेलिब्रेट करने अपने नॉर्थहेम्पटनशायर (Northampton shire) स्थित घर से अपने संबंधियों के घर वेमाउथ, डोरसेट (Weymouth, Dorset) की तरफ आये | मेरे साथ मेरा भाई और मेरी माँ भी थी |
एओविल (Yeovil) स्टेशन छोड़ने के बाद, थोड़ी दूर जा कर हमारी ट्रेन रुक गयी | मै खिडकियों से सामने के खेत और मैदान की तरफ देख रही थी | अचानक मुझे कुछ होने लगा | मुझे वह स्थान, विशेष रूप से मेरे सामने की पहाड़ी से सटा हुआ खेत बहुत जाना-पहचाना लगने लगा | मुझे बहुत आश्चर्य हो रहा था | अचानक मेरे सामने पूरी एक फिल्म सी चल गयी |
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मैंने अपने भाई से कहा “देखो जब मै बहुत छोटी थी तो इसी स्थान के आस-पास के एक मकान में रहती थी | मुझे याद है की उस सामने वाले खेत की एक पहाड़ी से दौड़कर उतरते समय मै गिर गयी थी | मेरा हाथ पकड़कर दो महिलायें उतर रही थी और उतरते समय हम सब गिर पड़े थे | सारे लोग मेरे ऊपर ही गिरे थे और मेरी टांग में बहुत बुरी तरह से चोट लग गयी थी” |
अचानक मेरी माँ ने मुझे टोका और जानबूझकर झूठ बोलने के लिए मुझे डांटने लगी | उन्होंने डाँटते हुए कहा “मुझे पता है तुम वहां से कभी नहीं गुजरी और ना ही मै कभी वहाँ गयी थी और तुम पहले वहाँ कभी रही भी नहीं हो तो फिर क्यों झूठ बोल रही हो”? | मुझे थोड़ा बुरा लगा लेकिन मैंने अपना आग्रह फिर से दोहराया | मैंने अब थोड़ा विस्तार से बताया ताकी उन लोगों को मेरी बात विश्वसनीय लगे |
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मैंने कहा कि “मैं जब वहां की पहाड़ी से भागी थी उस समय मैंने अपने पैर के घुटनों तक सफेद फ्रॉक पहन रखा था जिस पर छोटे-छोटे हरे पत्ते कढ़े हुए थे | जिन महिलाओं ने मेरा हाथ पकड़ा था उन्होंने नीली तथा सफेद स्कर्ट पहन रखी थी” | मैंने कहा “तब मेरा नाम मार्गरेट था” | लेकिन पता नहीं क्यों मेरा यह सब बताना मेरी माँ को पसंद नहीं आ रहा था | मानो उन्हें मेरी बातें असह्य लग रही थी |
इसके बाद उन्होंने मुझे डपटते हुए, वेमाउथ तक एकदम चुप बैठने को कहा | बाद में मुझे बताया गया कि मेरी उस पहाड़ी से उतरने की कोई संभावना ही नहीं थी क्योंकि मेरा घर वहाँ से बहुत दूर था और मै वहाँ कभी गयी ही नहीं | लेकिन उस दिन का अनुभव, मेरे मानस पटल पर इतनी जीवंत स्मृति की तरह था कि मै उसे भ्रम मानने को तैयार ही नहीं थी |
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समय बीतता रहा और उस दिन की घटना मेरे दिमाग़ी तन्तुओं से ओझल हो कर मेरे मष्तिष्क के एक अनजान कोने में गहरे बैठ गयी | लेकिन एक दिन इस घटना का पटाक्षेप होना था | मेरी किस्मत से वो दिन सत्रह साल बाद आया | मैं अपनी कंपनी के बॉस के साथ कार से, उसी क्षेत्र (डोरसेट) से गुजरते हुए जा रही थी | दिन की धूप खिली हुई थी, अचानक गाड़ी का पिछला पहिया पंक्चर हो गया |
टायर को बदलने के बाद हम दोनों पास के तालाब के निकट की एक पुराने मकान में गए जहां एक युवा महिला ने हमें चाय पिलाई | जब मैं उस कमरे की एक पुरानी कुर्सी पर बैठी चाय की प्रतीक्षा कर रही थी उसी समय अचानक मेरी निगाह सामने की दीवार पर टंगी एक पेन्टिंग पर गयी | काँच के फ्रेम में मढ़ी उस पेन्टिंग में मेरे उस बचपन का चित्र था जो न जाने कब से मेरे युवा शरीर से बाहर आने को बेचैन था |
उस पेन्टिंग में मै उसी पहाड़ी से उतर रही थी जिससे उतरने के दौरान मेरे पैर में भयंकर चोट लगी थी | मेरा हाँथ पकड़े दो युवा महिलायें भी थी उस फोटो में | सभी के चेहरे प्रसन्न मुद्रा में थे | फोटो में मै स्पष्ट देख सकती थी कि मै एक साफ़ और गंभीर चेहरे वाली पांच वर्ष की बच्ची थी और मैंने हरे रंग के पत्तों से कढ़ी हुई फ्रॉक पहन रखी थी |
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थोड़ी देर तक स्तब्ध हो कर फोटो देखने के बाद अचानक जैसे मुझे होश आया और मेरे मुंह से निकला “अरे, ये तो मै हूँ” | यह सुन कर मेरे बॉस और वहाँ खड़ी वह महिला हंसने लगी | उस महिला ने कहा “सुनो इस बच्ची का काफ़ी साल पहले देहांत हो चुका है लेकिन मेरा अनुमान है कि जब तुम छोटी, इसी की उम्र की रही होगी तो बिलकुल इसी के जैसी प्यारी सी रही होगी” |
मेरे बॉस ने भी उसकी बातों का अनुमोदन किया | लेकिन अब तक मै पूरी कहानी जानने को बेचैन हो चुकी थी | मेरी रुचि और बेचैनी देखकर उस महिला को थोड़ी हैरानी हुई लेकिन मेरे अनुरोध पर, फोटो फ्रेम में अंकित उस बच्ची की कहानी बताने के लिए उस महिला ने अपनी मां को पुकारा | दूसरे कमरे से अपना चश्मा ठीक करती हुई उसकी बूढ़ी माँ निकली |
न जाने क्यों, लेकिन उनको देख कर मेरी दिल की धड़कने तेज़ हो गयी | “उस बच्ची का नाम मार्गरेट था, मार्गरेट केम्प्थोर्न (Margaret Kempthorn)” | बूढी माँ ने आगे बताना शुरू किया | “वो एक धनी किसान की इकलौती पुत्री थी | उन दिनों मै भी उसके पिता के फार्म पर दूध बेचने के काम पर नियुक्त थी | मार्गरेट जब लगभग 5 वर्ष की बच्ची थी, तभी एक बार मै, एक दूसरी महिला के साथ मार्गरेट को ले कर पहाड़ी से नीचे उतर रही थी |
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नीचे ढलान पर तेजी से उतरते समय उस दूसरी महिला का पैर एक ख़रगोश के गड्ढे में जा पड़ा लेकिन संतुलन बिगड़ने से हम सभी नीचे गिर गए | उस बच्ची का दुर्भाग्य प्रबल था | वो बेचारी हम सब के नीचे आ गयी | उसकी एक टांग इतनी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई कि फिर ठीक ना हो सकी और इस दुर्घटना के 2 महीने बाद वह मर गई” |
अपने आंसुओं को आँखों में ही रोक कर उस वृद्ध महिला ने फिर बताना शुरू किया | “मेरी माँ मुझसे कहा करती थी कि इतनी दुबली लड़की होकर भी उसने जीवित रहने के लिए बहुत संघर्ष किया और यह अंतिम शब्द कहती हुई मरी कि “मैं मरूंगी नहीं” | बहुत बचाते हुए भी उस वृद्ध महिला के झुर्रियों वाले कपोलों पर दो बूंदे आंसुओं की लुढ़क पड़ी |
उस घटना का समय पूछने पर उसने वह चित्र नीचे उतारा | उस के पीछे की तरफ एक कागज का टुकड़ा चिपका हुआ था जिस पर लिखा था मार्गरेट केम्प्थोर्न, जन्म 25 जनवरी 1830, मृत्यु 11 अक्टूबर 1835 |
मार्गरेट के मृत्यु के दिन ही मेरे पिता की मां का जन्म नोर्थेंट्स में हुआ जो यहां से मीलों दूर है | मेरा स्वयं का जन्म दिन है 25 जनवरी | मेरे अन्दर उठ रहा सवालों का ज्वार अब शांत हो चला था” |