सिद्धि विनायक मंदिर

सिद्धि विनायक मंदिर

हमारे देश की फिल्मी दुनिया की आन-बान और शान मुंबई नगरी का विश्व प्रसिध्द सिद्धि विनायक मंदिर हमेशा से ही न्यूज़ पेपर, टी.वी चैनल और सोशल मीडिया पर सुर्खियों में छाया रहता है़। क्योंकि भगवान गणेश के इस आस्था के धाम में अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए देश के बड़े-बड़े राजनेता, फिल्मों के सुपरस्टार यहाँ आकर नतमस्तक ही नहीं होते बल्कि हर वर्ष करोड़ों रुपये का दान भी करके जाते हैं।

इस मंदिर के गणपति बप्पा हर आम और खास व्यक्तियों के सपने सच करते हैं। अपने भक्तों की मुरादें पूरी करने वाले इस सिद्धि विनायक मंदिर की प्रसिद्धि हमारे देश में ही नहीं बल्कि सात समंदर पार विदेशों तक फैली हुई है। इसलिए यहाँ विदेशी पर्यटकों का भी इस मंदिर में ताँता लगा रहता है़।

मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर की स्थापना कब, कैसे और किस तरह हुई  ?

इस संबंध में अनेक कहानियाँ कही जाती हैं। जिसमें से एक कथा सर्वाधिक प्रचलित है़। जो आपके लिए प्रस्तुत है़। यह सोलवीं-सत्रहवीं सदी का किस्सा है। महाराष्ट्र राज्य के “बोले” गाँव नामक ग्रामीण इलाके में एक श्रमिक सिंचाई के लिए खेत को तालाब से जोड़ने हेतु नाली बनाने के लिए जमीन में खुदाई कर रहा था कि अचानक खुदाई करते समय उसका हाथ का फावड़ा किसी वस्तु से टकराया। उसने सोंचा कि यह पुराने जमाने का जमीन में गड़ा हुआ धन तो नहीं, यह सोंचकर उसने जमीन में और अधिक खोदना आरंभ कर दिया।

उस खुदाई में एक अदभुत आकार का पत्थर निकला। वह पत्थर देखने में किसी मूर्ति सा लग रहा था। मानो ऐसा लग रहा था कि यह किसी देवी या देवता की बहुत पुरानी मूर्ति रही होगी। लेकिन स्पष्ट नहीं था कि यह मूर्ति किस देवी या देवता की है?  क्योंकि उस मूर्ति का मुकुट तो नजर आ रहा था लेकिन मूर्ति का शेष भाग पथरीले आवरण में बंद था। जब उस बोले गांव के ग्रामीणों ने उस मूर्ति को देखा उनका कौतूहल जागा।

उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि यह मूर्ति किस भगवान की है और उसे इस पथरीले आवरण में क्यों बंद किया गया है़ ? घर आदि बनाने वाले एक मिस्त्री को बुलाया गया। उससे यह कहा गया गया कि इस मूर्ति के पथरीले आवरण को इस तरह तोड़ो कि मूर्ति पर कोई खरोंच न आये। उस मिस्त्री ने गाँव वालों के कहने पर वैसा ही किया। उस मूर्ति के आवरण को छेनी -हथौड़ी की सहायता से तोड़ा गया तो सभी ग्रामवासी उस मूर्ति को देखकर चकित रह गए।

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वह मूर्ति भगवान गणेश की प्रतिमा से मिलती जुलती थी। लेकिन गाँव वालों ने देखा कि उस मूर्ति में गणेश जी की मूर्ति की सूंड़ गलत बनी हुई थी। अधिकांश रूप से देखा जाता है कि गणेश जी की मूर्ति का सूंड़ बायीं ओर घूमी रहती है। लेकिन खेत की जमीन के अंदर से प्राप्त गणेश जी की मूर्ति की सूंड़ दाहिनी ओर घूमी हुई थी। गाँव वालों ने सोचा गणेश जी की ऐसी अनोखी मूर्ति मिलने का क्या संकेत है ?

क्या गाँव के ऊपर कोई विपदा तो नहीं आने वाली है। सभी ग्रामवासियों का मन आशंका से भर गया। अपनी आशंका के समाधान के लिए गाँव वालों ने गांव के ही एक विद्वान पंडित को बुलाया। गाँव के पंडित ने भी गणेश जी की उस विचित्र मूर्ति को देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। उसके बाद उन्होंने अपने घर जाकर आध्यात्मिक ग्रंथों के पन्ने पलट डालें।

ताकि उन्हें इस बात की जानकारी मिल सके कि गणेश जी की मूर्ति का सूंड इस तरह दायीं ओर घूमने का क्या अर्थ है? गाँव के उन पंडित जी द्वारा पौराणिक ग्रंथों के पन्ने पलटते-पलटते अचानक एक पंक्ति पढ़कर गांव के पंडित जी का चेहरा खिल उठा। दरअसल उस पंक्ति में गणेश जी की मूर्ति के दाहिनी होने का प्रतिफल लिखा हुआ था।

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जिसमें बताया गया था कि यदि जिन गणेश जी की प्राचीन मूर्ति की सूंड़ दाहिनी ओर होती है निश्चय ही उसके दर्शन पाने वाले लोग भाग्यशाली होते हैं। उन गणेश जी की मूर्ति का दर्शन करने के पश्चात भक्तों के संपूर्ण दुख-मिट जाते हैं। साथ ही उन्हें धन और वैभव की प्राप्ति होती है। ग्रामवासियों को गाँव के पंडित ने यह बात बताई तो वे सभी खुशी से उछल पड़े।

उन्हें लग रहा था कि ऊपर वाले ने उन ग्राम वासियों के लिए इस मूर्ति के रूप में खुशी का खजाना भेज दिया है। गाँववालों ने बड़े धूमधाम से उन गणपति की मूर्ति को एक छोटे से मंदिर में स्थापित किया। अब गाँव वाले नित्य भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने लगे। धीरे-धीरे उस गाँव का भाग्य बदलने लगा। उस की फसल बहुत अच्छी होने लगी।

जिसके कारण उस गाँव में खुशियों की बहार आ गयी। ग्राम वासियों की सुख-समृद्धि में दिन पर दिन बढ़ोत्तरी होने लगी। एक बार गाँव में सूखा पड़ गया। ऐसे संकट के समय में गाँव वालों को अपने गाँव के गणेश जी से ही आस थी। सभी गाँव वाले मिलकर गणेश जी की मंदिर पहुंचे। उन्होंने भगवान गणपति से हाथ जोड़कर विनती की कि “हे गजानन, हमारे गाँव को सूखे की मार से बचाओ”।

गणपति बप्पा से यह निवेदन करते-करते उस गाँव के कुछ ग्रामवासियों की आँखे भर आईं। कुछ ही दिनों बाद देखते ही देखते बादल घिरने लगे और उस वर्ष गाँव में खूब बारिश हुई। गणेश जी की कृपा से वह गाँव सूखे की मार से बच गया और खेतों में शानदार फसल लहलहा उठी। इसके बाद तो गाँव वालों में उस गणेश मंदिर के प्रति आस्था और बढ़ गई और धीरे- धीरे वह आस्था सच्ची भक्ति में बदल गई।

गाँव वाले अपने मंदिर के गणेश भगवान को पिता के समान मानने लगे। वह अपने सुख-दुख में गाँव के गणेश भगवान को शामिल करने लगे। धीरे-धीरे समय बदलता चला गया और उस गाँव के छोटे से मंदिर ने एक भव्य रूप धारण कर लिया। आज भी उस मंदिर के गणेश जी की मूर्ति की सूंड़ दायीं ओर घूमी हुई है। भक्तों की मनोकामना को शीघ्र ही सिद्ध करने वाले भगवान गणेश की इस मूर्ति को सिद्धि विनायक कहा जाने लगा और इस मंदिर का नाम सिद्धि विनायक मंदिर हो गया।

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यहाँ सिद्धि विनायक के दर्शन से भोलेनाथ की कृपा भी मिलती है़

सिद्धिविनायक मंदिर में चार भुजाओं वाले गणपति की मूर्ति सचमुच अद्भुत होने का पर्याय है़। वहीं इस मंदिर के गणेश जी की मूर्ति की सूंड़ का दायीं ओर होना भक्तों में चर्चा का विषय बना रहता है़। ज्योतिष विशेषज्ञों का कहना है कि चार भुजाओं वाले भगवान गणेश का दर्शन भक्तों के लिए कल्याणकारी है। गणेश जी की मूर्ति की चारों भुजाएं पूर्व, पश्चिम और उत्तर दक्षिण से खुशी का संदेश लेकर आती हैं।

सिद्धिविनायक मंदिर में गणेश जी की मूर्ति के एक हाथ में कमल का फूल दूसरे में अंकुश, तीसरे में मोतियों की माला और चौथे हाथ में मोदक (मिष्ठान) से भरा हुआ बर्तन है़। कहते हैं भगवान गणेश की ऐसी मूर्ति मंगलकारी होती है । इसके अतिरिक्त इस धाम के भगवान गणेश के मस्तक पर चंद्र और गले में सर्पों की माला है जो हमें भगवान शंकर का स्मरण कराती है। इसीलिए कहा जाता है कि सिद्धिविनायक मूर्ति के दर्शन के उपरांत गणपति के साथ-साथ भोलेनाथ की भी कृपा प्राप्त होती है।

रिद्धि- सिद्धि देती हैं वैभव का वरदान

सिद्धिविनायक मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति के दोनों ओर उनकी पत्नियां रिद्धि और सिद्धि की मूर्ति विद्यमान है जो माँ लक्ष्मी और दुर्गा का ही अंश हैं, और जो भक्तों को समृद्धि, धन-वैभव और सफलता प्रदान करने वाली हैं। ज्योतिष पंडितों का कहना है कि जिस मंदिर में भगवान गणेश सपरिवार विद्यमान हो वह धाम अनोखा ही होता है।

क्योंकि ऐसा बहुत कम धार्मिक स्थानों मैं देखने को मिलता है। दरअसल रिद्धि- सिद्धि प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं जिनका विवाह भगवान गणेश के साथ हुआ था । ये देवियाँ सौभाग्य और परम शक्ति प्रदान करने वाली हैं।

यह दुनिया के सबसे धनी मंदिरों में से एक है

सिद्धिविनायक मंदिर देश के उन मंदिरों में से एक है जहां भक्तगण सर्वाधिक धन संपत्ति दान करते हैं। कहा जाता है कि प्रत्येक वर्ष इस मंदिर में करोड़ों रुपए चढ़ावे के तौर पर आते हैं। इस मंदिर का छप्पर फाड़ चढ़ावा कभी-कभी विवाद का विषय बन जाता है।

इसीलिए इस मंदिर के दान के सदुपयोग के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा एक समिति गठित की गई है। इस मंदिर को धनी बनाने में देश के बड़े-बड़े राजनेताओं और फिल्म स्टारों का बहुत बड़ा योगदान है। कहा जाता है कि इस मंदिर में धन अर्पित करने से माँ लक्ष्मी आपके घर का रास्ता खोज लेती है।

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