वैमानिक शास्त्र: प्राचीन भारतीय ग्रंथों में आये विमानों का रहस्य

Wright_Flyer_Test_Flights_at_Fort_Myerप्रकृति की बनायी इस सृष्टि में जहाँ हमारी पहुँच नहीं, अक्सर उनका रहस्य हमें आकर्षित करता है | प्राचीन काल के मानवों को उड़ने वाले पक्षी चकित कर दिया करते थे, क्योकि वो स्वयं उड़ नहीं सकता था | उसे लगता कि काश वो हवा में उड़ पाता तो अपने दैनिक जीवन में होने वाली बहुत सारी समस्याओं को हल कर लेता |

लेकिन मनुष्य का खोजी स्वभाव, अज्ञात को जानने की उत्कट लालसा ने आज उसे विज्ञान के उस शिखर पर पहुंचा दिया है जहाँ वो, न सिर्फ स्वयं अपने विमान में उड़ सकता है बल्कि सैकड़ों लोगों को एक साथ लेकर उड़ान भर सकता है, ध्वनि की गति से कई गुना तेज़ (Supersonic and Hypersonic) हवा में उड़ सकता है, और अंतरिक्ष की अज्ञात गहराइयों में उतर सकता है |

आपको जानकार थोड़ा आश्चर्य होगा कि ये सब कुछ हुआ है पिछले 114 वर्षों में | 114 वर्ष पहले इस धरती पर कोई मनुष्य किसी भी तरह की उड़ान भरने में सक्षम नहीं था | 17 दिसम्बर 1903 को राइट बंधुओं (Wright Brothers) ने नार्थ कैरोलिना में दुनिया की पहली सफल मानवीय उड़ान भरी जिसमे उनका यंत्र (Flying Machine) नियंत्रित रूप से निर्धारित समय तक संचालित किया गया |

लेकिन उनका ये ‘यंत्र’ कोई विमान नहीं था बल्कि एक उन्नत किस्म का ग्लाइडर ही था | प्रिंटिंग प्रेस, बाइसिकल और मोटर आदि के साथ काम करने का अनुभव तथा नित नए प्रयोगों से सीखने वाले ज्ञान से उन्होंने एयरो डायनामिक्स (Aerodynamics) के वो सिद्धांत विकसित किये जिनपे आधारित आज के विमान हवा में उड़ते हैं |

लेकिन आज से हज़ारों साल पहले, पानी में चलने वाले भीमकाय जहाज़ों के निर्माता और विश्व के सात आश्चर्यों में गिने जाने वाले गीज़ा के पिरामिड तथा पीसा की मीनार आदि के निर्माता, मनुष्य ने हवा में उड़ने वाले जहाजों के लिए कुछ नहीं किया, या उसे इसका कुछ भी ज्ञान नहीं था, ऐसा कैसे हो सकता है ?

ये विकासवाद का ऐसा तथ्य है जो ‘विकासवादियों’ की उलटी बुद्धि को थोड़ी देर के लिए स्थिर कर देगा | ऐसा नहीं है कि प्राचीन मनुष्य ने विमानों के लिए कुछ नहीं किया, जबकि हवा में उड़ने का स्वप्न उसका बहुत पहले से ही रहा है |

सच तो यह है कि इस धरती ने कई बार विनाश देखा है, प्रचंड विनाश ! आखिरी बार इसने, आज से पांच हज़ार साल पहले, महाभारत काल में देखा था | उस समय, उस महायुद्ध को एकदम से आसन्न देख कर, अर्जुन ने कृष्ण से प्रश्न किया था कि “हे केशव अगर ये युद्ध हुआ तो सारा ज्ञान-विज्ञान, सब कुछ नष्ट हो जाएगा,.फिर क्या होगा ?”

अर्जुन की ये चिंता एकदम उचित थी क्योकि उस समय टेक्नोलॉजी काफी उन्नत (Advanced) अवस्था में थी | एक से बढ़कर एक विनाशकारी हथियार लेकर रखे थे लोग | जरासन्ध, कर्ण, द्रोंण, अश्वत्थामा, शल्य, और भीष्म जैसे योद्धा अकेले पूरी धरती का संहार करने में सक्षम थे |

लेकिन अर्जुन (शायद) ये नहीं जानते थे कि ये धरती बची रहे, इसका ज्ञान विज्ञान भी बचा रहे (लेकिन सुरक्षित हांथों में रहे) और सब कुछ नियंत्रित वातावरण (Controlled Environment) में ही हो, ये सुनिश्चित करने ही तो कृष्ण इस धरती पर आये थे |

ancient vimanasफिर भी महाभारत युद्ध की वजह से प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की अभूतपूर्व क्षति हुई और रही सही कसर पूरी कर दी मध्य काल के अति बर्बर और जाहिल आतताइयों और आक्रमणकारियों ने | इन रक्त-पिपासु पिशाचों ने यहाँ के विश्वविद्यालयों में तथा आचार्यों के पास पीढ़ी-दर-पीढ़ी संभाल कर रखे गए अमूल्य ज्ञान की निधियों को अग्नि में भस्मिसात कर दिया |

आज से दो-ढाई हजार साल पहले तक भारत में विमानों का प्रयोग प्रचलित था | चाणक्य ने अपनी कृति अर्थशास्त्र में इनका उल्लेख किया है | फिर महाराजा भोज के ‘समरांगणसूत्रधार’ नामक ग्रन्थ में भी पारे से उड़ने वाले विमानों का ज़िक्र है | इसी प्रकार से मध्यकालीन ग्रन्थ युक्तिकल्पतरु में भी विमानों का उल्लेख हुआ है |

अँगरेज़ विद्वान थॉमस मैकाले (Thomas Macaulay) ने जब यहाँ के बचे हुए संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद कराके पढ़ना शुरू किया तो उसे ‘विमानों’ के रूप में कुछ रहस्यमय नज़र आया | उसके कुछ समय बाद महर्षि दयानंद ने अपना ग्रन्थ ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ लिखा जिसमे उन्होंने पूरा एक अध्याय इन्ही विमानों पर लिखा |

उसमे उन्होंने महर्षि भरद्वाज कृत वैमानिक शास्त्र का भी उल्लेख किया | उस समय अँगरेज़ विद्वानों की जो मंडली भारत में थी उसे इन सब पर विश्वास न हुआ लेकिन उनकी लोलुप निगाहों में ‘वैमानिक शास्त्र’ और ‘यंत्रसर्वस्वं’ जैसे ग्रन्थ बैठ चुके थे |

उन यूरोपीय विद्वानों ने देखा कि जिनका ज़िक्र ग्रंथों में हुआ है, वे केवल हवा में उड़ने वाले विमान नहीं थे बल्कि अविश्वसनीय हथियारों से लैस, अकल्पनीय गति से, अन्तर्तारकीय (Interstellar) यात्रायें करने में सक्षम विमान थे |

प्राचीन ऋषियों के विमान ऐसा ही एक विमान, अमेरिकी सेना को, सन 2009 में, अफगानिस्तान की पहाड़ियों में मिला जिसे दुनिया से छिपा के रखा गया | उस समय के तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा, जर्मनी की एंजेला मोर्केल समेत दुनिया के शक्तिशाली देशों के राष्ट्राध्यक्ष उसे देखने आये |

कहा जाता है कि जब अमेरिकी सैनिकों ने पहली बार इस ‘अनोखी’ चीज (विमान) को देखा तो वे इसे गुफा से बाहर निकालने का प्रयास करने लगे | उनके इसी प्रयास में वो विमान सक्रीय (Active) हो गया जिसकी वजह से वहाँ प्रकाशीय किरणों के साथ एक जबरदस्त विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र पैदा हुआ और वहाँ एक ‘काल-गह्वर’ (Time Well) का निर्माण हुआ जिसमे फँस के आठ अमेरिकी सैनिक गायब हो गए |

अधिक जानकारी आप निम्नलिखित लिंक्स पर क्लिक करके ले सकते हैं-: (http://www.whatdoesitmean.com/index1432.htm, https://ufoholic.com/conspiracy/us-soldiers-discover-ancient-vimana-inside-a-remote-cave-in-afghanistan/, https://internationalresearchsociety.wordpress.com/2012/08/14/ancient-flying-machine-found-in-cave-world-leaders-rush-to-afganistan/) |

रशियन सैनिकों को ये बात पहले से पता थी | आज से 35-40 वर्ष पहले जब वे चरमपंथी अफ़गान लड़ाको से लोहा ले रहे थे तभी उन्होंने इस विमान को वहां देखा था | उनके रिपोर्ट के अनुसार, ये संस्कृत भाषा में लिखे गए ग्रन्थ ‘महाभारत’ के काल का ‘रुक्म’ विमान था |

maharshi bharadwajपुराने समय के ऋषि-महर्षि, चाहे वो धर्म-प्रवर्तक रहे हों या किसी विद्या या कला के अविष्कारक रहे हों, अपने विषय को वेद से अनुमोदित या अविष्कृत हुआ घोषित करते थे क्योकि उनका ज्ञान वो वेद से ही प्राप्त करते थे |

इसी प्रकार से महर्षि भारद्वाज ने भी वेद से ही वैमानिक शास्त्र को आविष्कृत किया, यथा “निमर्थ्य तद्वेदाम्बुधिम भारद्वाजो महामुनि | नवनीतम समुद्रत्य यंत्रसर्वस्वरुपकम” (वृत्तिकार 10) | अर्थात भारद्वाज महामुनि ने वेद रुपी समुद्र का निमर्थन करके यंत्रसर्वस्व ग्रन्थ (जिसका एक भाग वैमानिक प्रकरण है) मक्खन रूप में निकाल कर दिया है |

दरअसल, वैमानिक प्रकरण या वैमानिक शास्त्र, यंत्रसर्वस्व ग्रन्थ का ही एक भाग (अध्याय) है जिसमे यंत्रों के विषय में ऐसे 40 अध्याय थे | वर्तमान में सम्पूर्ण ग्रन्थ की प्राप्ति अलभ्य है |

ऐसा नहीं है कि वैमानिकी पर केवल भारद्वाज मुनि ने ही काम किया बल्कि उनसे भी पहले जिन मुनियों, आचार्यों के नाम मिलते है उनमे प्रमुख रूप से नारायण मुनि, शौनक, गर्ग, वाचस्पति, चाक्रयाणी तथा घुन्डिनाथ आदि हैं | इनकी कृतियाँ क्रमशः विमानचन्द्रिका, व्योमयानतन्त्र, यंत्रकल्प, यानबिंदु, खेटयानप्रदीपिका, तथा व्योमयानार्कप्रकाश हैं |

विमानों के निर्माणकर्ता (Engineers) में विश्वकर्मा, मनु तथा मय दानव आदि का नाम आदर से लिया जाता है | यंत्रसर्वस्व के केवल वैमानिक प्रकरण (जिसे दुनिया वैमानिक शास्त्र के नाम से जानती है) को आठ अध्यायों, 100 अधिकरणों और 500 सूत्रों में महर्षि भरद्वाज ने रचा था | जैसा कि महर्षि भारद्वाज ने स्वयं अपने मंगलाचरण वचन में कहा है – सूत्रे पञ्चशतैर्युक्त शताधिकर्णस्तथा | अष्टाध्याय समायुक्त मतिगूढ़ मनोहरम |

प्राचीन विमानइस ग्रन्थ का काल क्या है, निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता (जिन लोगों ने बताया भी है तो केवल अनुमान के तौर पर बताया है) क्योकि मूल हस्तलेख आज तक किसी को नहीं मिला, जहाँ भी मिली प्रतिलिपि ही मिली |

पहली प्रतिलिपि 1918 की थी जो बड़ौदा राजकीय संस्कृत लाइब्रेरी में मिली | दूसरी प्रतिलिपि 1919 की थी जो पुणे से मिली, इसमें ‘लोह्तंत्रम’, ‘दर्पण प्रकरण’, ‘शक्तितन्त्रम’ आदि लगभग 100 वैमानिकी ग्रंथों का उल्लेख हुआ तथा नारायण, गालव आदि लगभग 36 आचार्यों का भी नाम दिया है जिन्होंने वैमानिकी के विकास में योगदान दिया |

विमान शब्द का अर्थ वास्तव में जिस संस्कृति ने पूरी दुनिया को विमान शब्द से परिचित कराया उसी सभ्यता और संस्कृति के लोग हवा में उड़ने के लिए ‘वायुयान’ का प्रयोग करते थे | आज भी पूरी दुनिया वायुयान का ही प्रयोग करती है, विमान का नहीं |

प्राचीन भारतीय लोग हवाई यात्रा के लिए वायुयान और समुद्री यात्रा के लिए ‘जलयान’ का प्रयोग करते थे | तो फिर विमान क्या था ? दरअसल विमान शब्द ‘विमा’ से आया है जिसका अर्थ होता है आयाम (Dimension) | वास्तव में विमान एक ऐसा यन्त्र (Machine) था, जिसकी सहायता से (या जिसमे बैठ कर) ‘अंतर्विमीय’ (Inter-Dimensional) यात्रा की जा सकती थी | तो स्पष्ट रूप से ये समझा जा सकता है कि प्राचीन काल के ‘विमान’ लोकोत्तर (Interstellar) यात्राएँ करने में सक्षम थे |

भारतीय ग्रंथों में तीन तरह के विमानों का ज़िक्र आया है-मान्त्रिक, तान्त्रिक और यान्त्रिक | मान्त्रिक विमान वो होते थे जो स्वयंसिद्ध थे यानि पूरे विमान की एक स्वत्रंत चेतन सत्ता होती थी जिसे मन्त्रों द्वारा मानसिक शक्ति से नियंत्रित किया जा सकता था | पुष्पक विमान इसी श्रेणी का विमान था | वाल्मीकि कृत रामायण में उल्लेख आया है कि पुष्पक विमान मन की गति से चलता था |

रुक्म विमानवास्तव में ‘मन की गति’ यहाँ प्रतीकात्मक है | पुष्पक विमान (या मन की गति से उड़ने वाले अन्य विमानों) को जहाँ से उड़ान भरनी होती वहाँ वो अव्यक्त होता और सीधा उसी स्थान पर व्यक्त होता जहाँ उसे प्रगट होना होता | बीच का समयांतराल इतना अल्प होता कि उसमे बैठे यात्री को इसका पता ही नहीं लगता कि कब वो अव्यक्त हुआ और कब व्यक्त हुआ |

तांत्रिक विमान वो होते थे जो औषधियुक्त विभिन्न शक्तिमय पदार्थों के प्रयोग से चलते थे | महाभारत काल में इनका काफी प्रयोग हुआ है | यांत्रिक विमान कई प्रकार के होते थे जिनमे प्रमुख थे शकुनी विमान (पक्षी के आकार का पंख पुच्छ सहित विमान), रुक्म विमान (खनिज पदार्थों के संयोग से चलने वाला, तथा रुक्म अर्थात सोने जैसी आभा बिखेरने वाला लौह धातु से बना विमान), सुन्दर विमान (धुंए से चलने वाला विमान) तथा त्रिपुर विमान (तीनों स्थानों, जल,स्थल और गगन में गति करने में सक्षम एक विशालकाय विमान) |

इन विमानों की गतियाँ भी विभिन्न प्रकार की होती थी जैसे चालन, कम्पन, उर्ध्वगमन, अधोगमन, मण्डल गति-चक्र गति, धूम गति, विचित्र गति, अनुलोम गति-दक्षिण गति, विलोम गति-वाम गति, परान्गमुख गति, स्तम्भन गति, तिर्यक गति, विविध गति तथा नानागति | आकाश में विमानों के मार्ग पांच प्रकार के थे-रेखापथ, मंडलाकार, कक्षीय मार्ग, शक्ति-मार्ग तथा केंद्र |

महर्षि भरद्वाज कृत इस वैमानिक प्रकरण में शत्रु द्वारा प्रयोग किये जाने वाले प्रहारों से तथा आकाशीय पदार्थों से भी अपने विमान की रक्षा करने के विधान (तरीके) दिए गए हैं | जैसे अगर शत्रु ने आपके विमान के रास्ते में कोई ‘दम्भोलि’ (एक प्रकार का प्रक्षेपास्त्र) फेंक दी हो तो उसके प्रहार से बचने के लिए अपने विमान की तिर्यक गति कर दें या अपने विमान को कृतिम मेघों (Artificial Clouds) में छिपा दें तथा शत्रु के विमान पर तामस यंत्र से तम (अन्धकार) का प्रहार करें जिससे उसके विमान के आगे ‘दिशाहीनता’ की स्थिति पैदा हो जाय |

Ancient Vimanयुद्ध काल में इन विमानों को, शत्रु द्वारा भूमि में छिपाए हुए भीषण प्रहारक ‘अग्निगोल’ से भी खतरा होता था | यद्यपि ये अग्निगोल धरती के भीतर गहराई में छिपाए गए होते लेकिन इनके रेंज में अगर कोई हवा में उड़ता हुआ विमान आ जाये तो उनमे भीषण विस्फोट होता था तथा वो विमान को नष्ट कर देता था |

इनसे बचाव के लिए इन विमानों में गुहागर्भदर्श यंत्र लगे होते थे | इन गुहागर्भदर्श यंत्रों से शक्तिशाली ‘सूर्य किरणें’ निकलती थी जो जमीन के भीतर काफी गहराई में प्रविष्ट होकर उन छिपे हुए विस्फोटक पदार्थों को ऊपर विमान में चित्र रूप में दिखा देती थी |

यहाँ गुहागर्भदर्श यंत्र को हम एक तरह का राडार समझ सकते हैं और शक्तिशाली सूर्य किरणें, उच्च क्षमतावान विद्युतचुम्बकीय तरंगे होंगी जिनका प्रयोग विमानों के गुहागर्भदर्श यंत्र करते होंगे |

आकाश में भी शत्रुओं के आक्रमण से बचाव के लिए कई उपाय बताये गए हैं जैसे, यदि शत्रु के कई विमानों ने अपने विमान को चारो तरफ से घेर लिया हो तो अपने विमान की ‘द्विचक्र कीली’ को चलाने से 87 (डिग्री) की एक ज्वालाशक्ति प्रगट होगी उसे मंडलाकार में घुमा देने पर अपने आस-पास के सारे शत्रु-विमान जल कर भस्म हो जायेंगे |

यदि आपके विमान के तरफ कोई शत्रु-विमान प्रचंड वेग से आ रहा हो तो शत्रु के विमान की तरफ 4087 तरंगें फेंक कर उसे उड़ने में असमर्थ किया जा सकता है जिससे वो नष्ट हो जाएगा | मालूम पड़ता है 4087 किसी विशिष्ट प्रकार की तरंग का नाम था जिसमे इतनी क्षमता थी कि किसी विमान के पूरे वैमानिक तंत्र को कार्य करने से रोक दे |

नीचे खड़ी शत्रु-सेना पर अपने विमान से ‘शब्द-संगण’ या महाशब्द प्रहार किया जा सकता था जिससे नीचे खड़े शत्रु सैनिक या तो बहरे हो जाते या ह्रदयभंग (Heart Attack) को प्राप्त होते |….

क्रमशः……

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