अभिशप्त बिल्ली के चित्र की वो ख़ूनी आँखें

Franz-Hartmannमामला उतना संगीन दिख नहीं रहा था जितना वास्तव में वो था | लेकिन होनी को जब-जब, जैसे-जैसे घटना होता है, वैसा हो कर ही रहता है | बहुत लोगों को यह बात थोड़ी देर से समझ आती है | काउंट एलेग्जेंडर (Count Alexander) को भी यह बात थोड़ी देर से समझ आयी, लेकिन, दुर्भाग्य से तब तक ऊपर वाले की क़िताब में उसकी ज़िन्दगी का हिसाब पूरा हो चुका था |.

कहानी को समझने के लिए थोड़ा फ्लैशबैक में जाना पड़ेगा | डॉ फ्रान्ज़ हार्टमैन (Dr. Franzz Hartmann), आधुनिक विश्व के इतिहास में किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं | 22 नवम्बर 1838 को डोनौवोर्थ (Donauworth), जर्मनी में जन्मे डॉ फ्रान्ज़ हार्टमैन, एक प्रसिद्ध डॉक्टर, परामनोवैज्ञानिक, विचारक एवं मूर्धन्य विद्वान थे |

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में विशेषज्ञ की हैसियत रखने वाले, डॉ हार्टमैन की अध्यात्मिक विद्या में भी गज़ब की पकड़ थी | अपने जीवन में काफ़ी समय तक वे हेलेना ब्लावाट्स्की से जुड़े रहे | वे उनसे काफी प्रभावित थे | हेलेना ब्लावाट्स्की के बारे में और जानने के लिए यहाँ क्लिक करें |

थियोसोफिकल सोसाइटी के बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल में लम्बे समय तक चेयरमैन के पद पर रहे डॉ फ्रान्ज़ हार्टमैन, इस विचित्र लेकिन दिल दहला देने वाली घटना के बारे में लिखते हैं कि “कुछ चीजें बहुत ही आश्चर्यचकित कर देने वाली एवं अविश्वसनीय होती हैं, बावज़ूद इसके वो हमारे लिए अनसुनी तथा नयी, नहीं होती हैं” |

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इसके बाद थोड़ा और प्रकाश डालते हुए, विन्स्बर्ग (Weinsberg), जर्मनी के एक साहित्यकार T. H. Kemer, द्वारा वर्णित एक घटना का उल्लेख करते हैं | जर्मन साहित्यकार T. H. Kemer अपने साथ घटी उस घटना के बारे में बताते हुए लिखते हैं कि “एक दिन वर्टेमबर्ग (Wurttemberg) के काउंट, एलेग्जेंडर क्रिस्चियन फ्रेडरिक (Alexander Christian Fredric (1801-1844)), जो की जर्मन सेना के अधिकारी, एवं कवि होने के साथ-साथ मेरे पिता के अच्छे मित्र भी थे, ने मेरे पिता को, एक साधारण से काले फ्रेम में एक चित्र भेजा |

यह एक जंगली बिल्ली का चित्र था | बिल्ली का आकार चित्र में भी उतना ही था जितना कि एक जंगली बिल्ली का होना चाहिए | यह चित्र नीली आभा लिए एक पेपर पर काले रंग की चाक से उकेरा गया था | जैसी नीली आभा उस पेपर की थी, ठीक वैसी ही नीली चमक उस बिल्ली की आँखों से भी निकल रही थी |

इस पूरे चित्र की सबसे खास बात यह थी कि कोई जितनी देर तक उस चित्र को देखता जाता, उसे वह बिल्ली उतनी ही जीवंत लगने लगती | और वो आँखें,..कुछ तो था उनमे…एक अजीब सी वितृष्णा और विषाद का भाव लिए घूर रही थीं वो आँखें | लगातार देखने पर, थोड़ी ही देर में असहज कर देती थीं वो आँखे और फिर अच्छे से अच्छे मज़बूत आदमी का भी दिल बैठने लगता |

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सीधे सरल शब्दों में ‘प्राणघातक’ थी वो आँखें | आज इतने वर्षो बाद भी मेरे जेहन में वो पल ज़िन्दा हैं जब मैंने पहली बार उन्हें देखा था” | केमर आगे लिखते हैं कि “उस तस्वीर के साथ एक पत्र भी मेरे पिता जी को प्राप्त हुआ जिसमे उनके परम मित्र काउंट एलेग्जेंडर (Count Alexander) ने जो लिखा था वो इस प्रकार था” |

“मेरे प्यारे जस्टिन, मै तुम्हारे पास इस चित्र को भेज रहा हूँ | यह चित्र इतनी अच्छी तरह से बनाया गया है कि मै इसे फाड़ना नहीं चाहता था | इसके बावजूद इस चित्र को मै अपने पास अब और नहीं रखना चाहता | इसने मुझे पागल कर दिया है | पता नहीं मुझ पर क्या सवार है | मुझे याद है कि पहली बार मैंने इसे अपने मातहत काम करने वाले एक वन्य सेवा अधिकारी के ड्राइंग रूम की दीवार पर टंगा देखा था |

जब मै उस अधिकारी से उसके घर पर मिला तब मुझे वह एक खुशमिजाज़ और जिन्दादिल किस्म का इन्सान लगा और उसने बताया भी कि वह अपनी पत्नी के साथ एक खुशहाल जीवन जी रहा था | लेकिन पता नहीं क्यों…अभी दो महीने पहले उस अधिकारी ने अपने आप को गोली मार ली, वो भी बिना किसी वजह के | ये बहुत ही विस्मयकारी था |

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बहरहाल मुझे उसके ड्राइंग रूम में टंगी उस बिल्ली की तस्वीर बहुत आकर्षक लगी | पता नहीं उसमे ऐसा क्या सम्मोहन था..| मैंने उस तस्वीर को उसकी पत्नी से मांग लिया और उसे अपने घर ले आया | लेकिन मेरे दोस्त, अब मै उसकी आँखों को और बर्दाश्त नहीं कर सकता | उसकी आँखे मेरा पीछा करती हैं, जब मै घर पर नहीं होता हूँ, तब भी |

उसके उदासी से भरे हुए नैनों के नश्तर मेरे ह्रदय को इस तरह से चीर रहे हैं कि मुझे लगता है कि बहुत जल्दी ही मै भी अपने जीवन का अंत वैसे ही करूंगा जैसे उस अधिकारी ने किया था | ऐसे में मुझे तुम याद आये मेरे दोस्त | मुझे पता है कि प्रेत, पिशाचों से सम्बंधित विषयों के तुम मास्टर हो, इसलिए ये आँखे तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगी और इसीलिए मै इसे तुम्हारे पास भेज रहा हूँ” |

केमर बताते हैं कि इस पत्र और तस्वीर को भेजने के कुछ ही दिनों बाद काउंट एलेग्जेंडर ने अपने आप को गोली मार ली, ठीक उसी अंदाज़ में जिस तरह से उस अधिकारी ने अपने आप को गोली मारा था | केमर लिखते हैं कि “अब वह तस्वीर हमारे घर की दीवार पर टंगी थी | मेरे पिताजी उस तस्वीर से नफ़रत करते थे | लेकिन वो उनके प्रिय मित्र द्वारा दिया गया आख़िरी तोहफ़ा था इसलिए उन्होंने उसे फाड़ा नहीं |

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आखिरकार एक दिन उन्होंने मुझे अपने कमरे में बुलाया और उस तस्वीर को मुझे देते हुए कहा कि ‘इस तस्वीर को बाहर, कहीं मुझसे दूर ले जाओ, मै इसे अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता | तब तक उस तस्वीर के विषय में मुझे ज्यादा कुछ नहीं पता था | मै उसे अपने कमरे में ले आया और एक दीवार पर टांग दिया |

मै भुलक्कड़ आदमी, लगभग साल भर बीत गया, मेरा ध्यान उस तस्वीर पर गया ही नहीं | एक जाड़े की रात, जब बाहर बर्फ गिर रही थी, मै अपने कमरे में बैठा पत्र लिख रहा था | अचानक से मुझे महसूस हुआ की मै उस कमरे में अकेला नहीं हूँ जबकि उस समय मै पूरे घर में अकेला था | मुझे लगा जैसे कोई अजनबी,..कुछ अजीब सा, मेरे आस-पास ही खड़ा है |

मैंने हड़बड़ा के अपने चारो तरफ अपनी नज़रें घुमायीं और मेरी निगाहें, तस्वीर में चित्रित उस बिल्ली की निगाहों से टकरा गयीं | मुझे लगा जैसे उदासी से भरी वो निगाहें मुझे पी जायेंगी | मेरा दिल बुरी तरह से बैठने लगा | मुझे उन आँखों से घृणा हो रही थी लेकिन सबसे बुरी बात यह थी कि वे मुझे अपने नियंत्रण में ले रही थी |

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उस समय मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरा शरीर, मेरे दिमाग की एक-एक नसें, मेरे विचार, इन सब पर कोई बुरी शक्ति कब्ज़ा जमाती चली जा रही थी | उस रात मै कब होश खो बैठा मुझे पता ही नहीं चला | अगली सुबह मै खुद को तारो-ताज़ा महसूस कर रहा था | पता नहीं उस तस्वीर में ऐसा क्या सम्मोहन था कि अभी भी मै उसे बाहर नहीं फेंकना चाह रहा था लेकिन मै जल्दी से जल्दी उससे छुटकारा भी पाना चाह रहा था | ऊपर वाले ने इसकी राह दिखाई भी |

मै एक ऐसे भद्र पुरुष को जानता था जो खेल एवं शिकार सम्बन्धी विषयों में गहरी रूचि रखता था | वो अपने नए बने घर को सजा संवार रहा था | उसे मेरे कमरे की दीवार पर टंगा वह बिल्ली का चित्र पसंद आया | उसके आग्रह पर मैंने उसे वह चित्र दे भी दिया | वह चित्र पा कर वह बहुत प्रसन्न था | उसने उसे अपने घर के बरामदे की दीवार पर टांग दिया |

लेकिन इसके लगभग छह महीने बाद, एक अत्यंत उदासी भरी शाम को उसने अपने आप को गोली मार ली, वो भी बिना किसी वजह के | मुझे सुनने में आया कि उसकी मौत के बाद उसके एक रिश्तेदार ने उसके घर से वह बिल्ली वाली तस्वीर उठा ली और उसे अपने घर की दीवार पर टांग दिया | लगभग तीन महीने बीते होंगे, उसका वह रिश्तेदार भी, रहस्यमय ढंग से अपने बिस्तर पर मरा हुआ पाया गया |

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हाँलाकि यह अंत तक रहस्य ही बना रहा कि उसके रिश्तेदार की मौत आत्महत्या करने से हुई या उसकी हत्या की गयी | लेकिन उसके बाद उस जंगली बिल्ली के तस्वीर का क्या हश्र हुआ ये मुझे कभी पता नहीं चल सका |

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