कुछ वास्तविकता ऐन्शिएंट एलियन्स थ्योरी की

दुनिया भर में और भारत में लाखो लोग ये मानते हैं कि अतीत में और अब भी दूसरे ग्रहों एवं लोकों से प्राणी हमारे ग्रह यानि पृथ्वी पर आते रहे हैं | यानी इस ब्रह्माण्ड में हमारे ग्रह पृथ्वी के अलावा और भी जगह जीवन है | या कहें, हमसे उन्नत सभ्यताएं हैं | समय-समय पर धरती के अलग-अलग भागों एलियंस (दूसरी दुनिया के प्राणी) के उपस्थिति की ख़बरें मिलती रही हैं |लेकिन विज्ञान और तकनिकी क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी देश इन ख़बरों पर पर्दा डालते रहे हैं और सच्चाई को दुनिया से छिपाते रहे हैं |

ऐसा क्यों होता है ? अगर एलियंस से सम्बंधित इन्हें कुछ मिलता है तो उसे दुनिया से छिपाने में इनका कौन सा स्वार्थ सिद्ध होता है ? इसे तफ़सील से समझने के लिए हमें कुछ और पहलुओं पर भी ध्यान देना होगा |

दुनिया भर के पुरातत्वविदों एवं इतिहास वेत्ताओं का जब भी किसी नए ऐतिहासिक रहस्य से सामना होता है तो वो उसे एक विशिष्ट चश्मे से देखते हैं जो उन्हें बताता है कि दुनिया में वास्तविक ज्ञान अंग्रेज (यानि इसाई धर्म) ही लेकर आये | इसाई धर्म के अस्तित्व से पहले दुनिया में कुछ विशिष्ट प्राचीन सभ्यताएं तथा संस्कृतियाँ अलग-अलग भागों में थी |

जिन्होंने धर्म, विज्ञान, कला एवं सामाजिक क्षेत्रों में कुछ उल्लेखनीय उन्नतियाँ की लेकिन उनका प्रभाव, क्षेत्र-विशेष तक ही सीमित था | इसमें वो यूनान, रोम, बेबीलोन, मिश्र, भारत तथा चीन का नाम मुख्य रूप से लेते हैं | इनके ऐतिहासिक कालक्रम को भी वो कुछ विशिष्ट भागों में वर्गीकृत करते हैं जैसे ऐतिहासिक, प्रागैतिहासिक, पुरा-पाषाण, नव-पाषाण, ताम्र-युग, लौह-युग आदि |

इस प्रकार से वो इन संस्कृतियों की, इनके इतिहास की कुछ इस तरह से व्याख्या करते हैं कि हमें लगता है कि प्राचीन मनुष्य का जीवन हमारे आज के जीवन की तुलना में काफी कठिन रहा होगा जैसे उदहारण के तौर पर प्राचीन मनुष्य बिजली (इलेक्ट्रिसिटी) से परिचित नहीं रहा होगा तो आधी जिंदगी तो उसकी वैसे ही बेकार हो गयी क्योकि बिना बिजली के हम आज अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं |

फिर हमें लगता है कि उसके पास परिवहन के लिए भी हाथी, घोड़े, ऊंट, बैल, गधे या उनसे जुटी हुई गाड़ी या बहुत हुआ तो दो-तीन घोड़ों से जुटे हुए उच्च गति से दौड़ने वाले रथ होते होंगे | दूर देशों को जाने के लिए उनके पास नौका परिवहन के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा जिसमे महीनो लगते होंगे | उनके वस्त्र, उनके विज्ञान आदि के पिछड़ेपन के बारे में हमारी ऐसी ही कुछ सोच बनती है |

लगभग ऐसा ही इतिहास हम सभी ने पढ़ा है | लेकिन ये मूर्धन्य इतिहासकार उस समय मौन हो जाते है जब उनसे पिसा की मीनार, बेबीलोन के झूलते हुए बाग़, मिश्र के पिरामिड, भारत के ताजमहल, गोलकुंडा के महल, राजस्थान के दुर्ग के बारे में प्रश्न किया जाता है | वे इन्हें दुनिया के आश्चर्यों में तो गिनते हैं लेकिन इनके दुनिया में प्रगटीकरण, इनके ज्ञान-विज्ञान के बारे में मौन हो जाते हैं | भारतीय संस्कृत ग्रंथों में आये शब्दों, जैसे विमान, ब्रह्मास्त्र आदि की सही व्याख्या करने में भी उनकी जबान लड़खड़ाने लगती है |

कुछ वर्ष तक ये केवल मिथक थे | लेकिन एरिक वोन देनिकेन, डॉ चिल्ड्रेस और जोर्जियो जैसे खोजकर्ताओ के मन में कुछ और ही चल रहा था | आज जिसे हम ऐन्शिएंट एलियन थ्योरी जानते हैं वो इनके गहन शोध, परिश्रम और अनुभव का परिणाम है | कुछ समय पहले एरिक वोन देनिकेनकी लिखी पुस्तक “चेरियट्स ऑफ गॉड” प्रकाशित हुई |

इस पुस्तक से एरिक ने दुनिया को पहली बार बताया कि तथाकथित प्राचीन संस्कृतियाँ जिन देवताओं और भगवानों को पूजती थी (या आज भी पूजती हैं) वो एलियंस थे और उनका धरती पर आना और पृथ्वी के लोगो के साथ व्यव्हार असंदिग्ध है | अर्थात अतीत में वो धरती पर आते थे | धरती पर रहने वाले हमारे पूर्वजों ने जो देखा उसे ही अपने धर्म ग्रंथों में लिखा |

इनके धरती पर आने के कई संभावित कारण हो सकते हैं लेकिन देनिकेन के अनुसार मुख्य रूप से वो धरतीवासियों को विज्ञानं और टेक्नोलॉजी का ज्ञान देने आते थे | ऐन्शिएंट एलियन थ्योरी में विश्वास रखने वाले विद्वानों ने मुख्य धरा के वैज्ञानिको, इतिहासज्ञ और पुरातत्ववेत्ताओं को चुनौती दी है और तार्किक प्रमाणों से ये सिद्ध किया है कि धरती के इतिहास को पुनः, नए तरीके से लिखने की जरूरत है |

अब ऐसे प्रमाण सामने आ रहे हैं जो मुख्य धारा के वैज्ञानिकों को भी ये मानने पर विवश कर रहे है कि धरती पर सभ्यता कोई दो, चार या पांच हज़ार साल पुरानी नहीं है बल्कि इससे कहीं पीछे उन्नत विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी की चमक ने सभ्यताओं को रौशन कर रखा था |

ऐन्शिएंट एलियन थ्योरी आगे कौन से रूप में विकसित होगी, किन-किन रहस्यों को दुनिया के सामने लाएगी, ये अभी भविष्य के गर्भ में हैं लेकिन एक बात तो तय है अब दुनिया भर के सत्यान्वेषी विद्वानों को इन धूर्त इतिहासकारों की चालाकियां समझ में आने लगी है | इतिहास के पन्नो से अब, सदियों से जमा झूठ रूपी धूल की पर्त छंटने लगी है |


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