उस रात ठण्ड बहुत ज्यादा थी | दिसंबर की ठंडी और निःशब्द राते अक्सर अपने रूहानी होने का अहसास दिलाती हैं | बाएं हाँथ से एकदम गर्म कॉफी का प्याला पकड़े, मिसेज हेलेन एकले (Mrs. Helen Ackley), अपने पति मिस्टर जॉर्ज एकले (Mr. George Ackley) को विदा कर रही थी | वो बालकनी में खड़ी थीं |
जगत प्रसिद्ध हडसन नदी के किनारे बनी ये उनकी अठारह कमरों वाली आलीशान हवेली किसी समय भूतिया हवेली के नाम से लोगों को डराती थी | अपने पति के जाने के काफी समय बाद तक हेलेन बालकनी में खड़ी रहीं | उनके मन में भावनाओं और विचारों का जो ज्वार उठ रहा था उसके आगे हडसन नदी की उत्ताल तरंगे भी फीकी पड़ रही थी |
उन्हें अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि क्या कभी ये हवेली भूतिया रही होगी | हाँलाकि उन लोगों को यहाँ शिफ्ट हुए अभी कुछ ही समय बीता था लेकिन कभी उन लोगों ने कुछ डरावना महसूस नहीं किया | भगवान जाने क्या…|
पाँच हज़ार स्क्वायर फीट में फ़ैली विक्टोरिया कालीन ये ईमारत बाहर से दिखने में तो भव्य थी ही अन्दर से भी काफी क्लासिक थी | एक दिन अपने खेतों में जाते समय जॉर्ज को यह हवेली दिखी थी | उन्हें अक्सर घोर आश्चर्य होता था कि इतनी भव्य और आलीशान हवेली इतने समय से वीरान पड़ी थी |
मिस्टर जॉर्ज प्रैक्टिकल आदमी थे | उन्हें भूत प्रेत पर यकीन नहीं था | बहुत दिनों से उनको वो हवेली खरीदने का मन कर रहा था लेकिन संयोग नहीं बन पा रहा था | अपने सारे महत्वपूर्ण कामो को दरकिनार कर एक दिन आखिरकार जॉर्ज ने वो आलीशान हवेली खरीद ही ली |
नए घर में उनका पूरा परिवार खुश था | तो फिर ऐसा क्या था उस घर में जिसने इतने समय से लोगों को आतंकित कर रखा था ? कहीं ऐसा तो नहीं कि यहाँ रहने वाला अशरीरी तत्व अब इस घर को छोड़ जा चुका हो | या फिर ये सब कुछ एक अफ़वाह से अधिक कुछ नहीं था ?
बाहर एक हलकी सी धुंध छाई हुई थी जो जॉर्ज के ओझल होने के बाद और गहरा गयी थी | अपने ख्यालों में खोई हेलेन को इसका अहसास नहीं था क्योंकि ऐसी ही एक धुंध उनके मन में भी छाई हुई थी | बालकनी का दरवाजा बंद करके कमरे में आने पर उन्हें ऐसा लगा जैसे कमरे में कोई खड़ा है और उन्हें देख रहा है बिलकुल करीब से |
कमरे में मद्धिम प्रकाश था इसलिए वहाँ की हर चीज देखी जा सकती थी…कहीं कोई नहीं था | उन्होंने इसे अपने मन का ‘अनजाना भय’ समझा और जैसे ही वो अपने कमरे में जाने के लिए मुड़ी, उन्हें उस अनजाने भय की साँसे अपनी गर्दन के आस-पास महसूस होने लगी | एक पल में उनको वो आलीशान हवेली भूतिया लगने लगी |
चीखने से पहले वो पलट कर पीछे की ओर भागी | लेकिन ये क्या…एक लम्बी-चौड़ी छाया उनके रास्ते में खड़ी थी | डर के मारे घिग्घी बंध गयी और मुंह से केवल बुदबुदाहट निकल रही थी उनके | “डरो मत” ! एक धीर-गंभीर लेकिन क्षीण सी आवाज उस छाया से आई |
“अभी तक जितने भी लोग इस घर में आये हैं, सभी हमसे भयभीत होते रहे हैं जबकि हमारा उद्देश्य मनुष्यों की सहायता करना और उनकी सहानुभूति अर्जित करना है” सामने वाले के मुंह से ऐसी बातें सुनकर मिसेज एकले का आत्मविश्वास जगा और उन्होंने साहस करके पूछा “आप लोग कौन हैं, कितने व्यक्ति हैं और इस रूप में आपको यहाँ क्यों भटकना पड़ रहा है” ?
इन सब का जवाब उस छायापुरुष ने दिया “हम लोग कुल तीन व्यक्ति हैं जो तुम्हारे वंश के ही हैं | तुम्हारा यहाँ आना केवल एक संयोग मात्र नहीं है | हमारे द्वारा जॉर्ज को दी गयी विचार रुपी प्रेरणा ही तुम्हे परिवार समेत यहाँ खींच लायी |
मनुष्य शरीर त्यागने के बाद एक योनि ऐसी होती है जिसमे उच्च अशरीरी आत्माएं (पितर) सहायक और मार्गदर्शक के रूप में सूक्ष्म और स्थूल जगत में भ्रमण करती रहती हैं व सभी की सहायता करती रहती हैं | जब इस हवेली को प्रेतग्रस्त (Haunted) घोषित कर दिया गया तो हम लोगों ने उचित समझा कि तुम्हे यहाँ बुलाया जाय” |
उस रात हेलेन काफी समय तक अपने पूर्वज पितर से बात करती रहीं कुछ समय बाद उनके पितर ने हडसन नदी के इतिहास और उसकी सुन्दरता के विषय मे चर्चा शुरू कर दी | बातों में खोई हेलेन को पता ही नहीं चला कि कब वो छाया वहाँ से चली गयी |
ये घटना उन दिनों (सन 1967) के लगभग सभी अखबारों की हैडलाइन बनी | रीडर्स डाइजेस्ट ने अपने मई 1977 के अंक में इसको छापा भी | रीडर्स डाइजेस्ट के उस लेख को हेलेन ने स्वयं लिखा जिसका शीर्षक था “My Haunted House on Hudson” |
यद्यपि आज की तारीख़ में रीडर्स डाइजेस्ट का वो अंक मिलना एक मुश्किल काम है क्योंकि डेलावेर प्रान्त के लाइब्रेरी सिस्टम ने केवल 1980 के बाद से रीडर्स डाइजेस्ट की डिजिटल प्रति सुरक्षित रखना शुरू किया है |
हाँलाकि हेलेन के दामाद द्वारा, इन्ही घटनाओं पर लिखा गया एक लेख, इन्टरनेट पर उपलब्ध है | जैसा की उनके पड़ोसियों ने उम्मीद की थी कि एकले परिवार इन डरावनी घटनाओं के बाद वो हवेली छोड़ कर चला जाएगा, वैसा हुआ नहीं | जॉर्ज, हेलेन और उनके बच्चों ने यह तय किया की वो वहीँ रहेंगे |
आये दिन घर के किसी-न-किसी सदस्य की भेंट उन अदृश्य पितरों से होती रहती जो उन्हें अलग-अलग मौकों पर अपनी सहायक मनोवृत्ति का परिचय देती रहीं | कई बार ये पितर घर के सदस्यों के साथ हँसी-मज़ाक के मूड में भी होते | हाँथ से मुह में जा रहे नाश्ते का टुकड़ा कोई अदृश्य छाया अपने मुंह में झपट लेती और एक साथ सभी हंस पड़ते |
हेलेन की बड़ी लड़की थी सिंथिया (Cynthia) | इसी सिंथिया के दूसरे पति ने, इस घर में अपने अनुभवों के आधार पर एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था “The Ghost of Nyack” |
ऐसा प्रतीत होता था कि उन अदृश्य पितरों को सिंथिया से विशेष लगाव था | सुबह पढ़ने के लिए अगर वो नियत समय पर नहीं उठती तो उसका बिस्तर ज़ोरों से हिलने लगता और तब तक हिलता जब तक कि वह उठकर बैठ नहीं जाती | छुट्टियों में, सोते समय सिंथिया ने प्रार्थना की कि प्लीज मुझे देर तक सोने देना और पितर आत्माओं ने बात मान ली, फिर छुट्टियों में उसे परेशान नहीं किया |
सिंथिया ने अक्सर एक राजकीय वेशभूषा पहने महिला को अपने कमरे में गुजरते हुए देखा | सन 1976 में जॉर्ज और हेलेन ने सिंथिया का विवाह किया | विवाह समारोह को सफलतापूर्वक संपन्न करने के बाद जैसे ही हेलेन अपने कमरे में पहुँची उसे चिरपरिचित गंभीर आवाज़ सुनाई दी “हमारी ओर से भी सिंथिया के लिए कुछ उपहार है जो उस आलमारी में रखा हुआ, उसे आशीर्वाद स्वरुप हमारी तरफ से दे देना” |
हेलेन ने तुरंत वह आलमारी खोली, उसमे एक अतिसुन्दर नक्काशी किया हुआ चाँदी के चम्मचों का जोड़ा था | वर्ष भर बाद सिंथिया को बेटा पैदा हुआ तो और रिश्तेदारों के उपहारों के साथ उसे पितरों की तरफ से भी सोने की अँगूठी, उपहार स्वरुप मिली | यह घटना इन पितरों द्वारा एकले परिवार को, आत्मीयता-वश दी गयी, सहायता, सहानुभूति एवं प्रेम को दिखाती है जो अप्रतिम है |
हिन्दू धर्म में पितरों का अत्यधिक महत्व है | वो देवताओं के सामान उच्च श्रेणी की आत्माएं ही होती हैं | प्रसन्न होने पर वो दिव्य अनुदानों की झड़ी लगा सकते हैं और रुष्ट होने पर उचित दंड भी दे सकते हैं |
साधारण मनुष्यों को तो भौतिक लिप्साओं से फुर्सत ही नहीं | उन्हें तो प्रेत और पितर में अंतर ही नहीं समझ में आता | निम्न कोटि की प्रेत आत्माओं से पितर आत्माएं सर्वथा भिन्न होती हैं | उनका उद्देश्य आत्म-कल्याण के लिए पथ-प्रदर्शन करना, सत्परामर्श देना ही होता है | उनके निज के कोई क्षुद्र स्वार्थ नहीं होते | उनका हम मनुष्यों से संपर्क के पीछे कोई क्षुब्ध प्रयोजन भी नहीं होता | वे तो सिर्फ सन्मार्ग दिखाने और कल्याण करने के लिए ही संपर्क करते हैं |
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