इतिहास की गहराइयों में, समय की पर्त-दर-पर्त धूल जब छँटती है तो कभी-कभी ऐसी नायाब चीज सामने आती है कि उस समय हम आवाक रह जाते हैं | कितने ही ऐसे तथ्य और घटनायें आज भी समय की रेत में दबी पड़ीं हैं जिनका कोई नामलेवा नहीं बचा | ऐसी ही एक घटना का ज़िक्र आज हम आपसे करने जा रहे हैं जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं |
ये घटना द्वितीय विश्वयुद्ध के आस-पास के समय की है | ये 1944 का वर्ष रहा होगा | इटली (Italy) का एक जहाज अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) से हो कर गुजर रहा था | जहाज के कैप्टेन ने महासागर की उफनती हुई लहरों पर कोई चीज बहती हुई देखी | दिन अभी निकला ही था और कप्तान अपने नियमित इंस्पेक्शन पर थे |
रहस्य ऐसा कि हर कोई अवाक् था
बहने वाली वस्तु ने उनके मस्तिष्क में कौतूहल उत्पन्न किया | अपने आदमियों को आदेश दे कर उन्होंने, समन्दर से उस वस्तु को अपने जहाज में उठवा लिया | जहाज पर आते ही उसे देखने वालों की भीड़ लग गयी | वो दरअसल, लकड़ी की बनी हुई एक अत्यन्त सुन्दर स्त्री की प्रतिमा थी | बनी हुई तो वो लकड़ी की ही प्रतीत हो रही थी लेकिन उस पर समन्दर के खारे पानी का या अन्य किसी आघात का कोई चिन्ह नहीं दिखाई पड़ रहा था |
मदमस्त कर देने वाले नारी सौंदर्य की जीवंत अभिव्यक्ति थी वह
मदमाते नारी सौन्दर्य की दमकती हुई, इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति उस मूर्ती में हुई थी कि वहाँ उपस्थित सभी का मुंह खुला रह गया | सभी मंत्रमुग्ध हुए बस उसे देखे जा रहे थे | प्रतिमा के नीचे बने लकड़ी के चौखट पर उसका नाम अंकित था “एटलान्श” | थोड़ी देर तक अफरा-तफरी के माहौल के बाद अचानक से दो नाविक, उस प्रतिमा पर आसक्त हो कर अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे |
अपने मुंह से कुछ बुदबुदाते हुए उन्होंने अपने हाँथ-पैर अजीब तरीके से हिलाए और फिर समंदर में छलांग लगा दी | जहाज का कप्तान समझदार था | उसने स्थिति की गम्भीरता को समझने में देर नहीं लगायी | एक सन्देह भरी निगाह उसने मूर्ती पर डाली और फिर उसे जहाज के भीतर बने एक मजबूत केबिन में रखकर, बाहर से ताला जड़ दिया |
सौंदर्य ऐसा की स्वर्ग की अप्सरा मालूम पड़ती थी वह
अगली कुछ रातें कप्तान ने काफी बेचैन हो कर काटी | इतनी सुन्दर और जीवंत प्रतिमा उसने अपने पूरे जीवन में नहीं देखी थी | मालूम पड़ता था जैसे अभी बोल देगी वो और सौन्दर्य ऐसा जैसे किसी स्वर्गीय लोक से आयी हो | लेकिन उसके सामने कुछ ही पलों में जो कुछ घटा, वो साबित करने के लिए पर्याप्त था की ‘वो मूर्ती श्रापित थी’ |
इतना प्रचंड आकर्षण की जो देखता वो होश खो बैठता
इटली के बन्दरगाह पहुँचने पर जहाज के कप्तान ने सबसे पहले, उस प्रतिमा को पास के म्यूजियम में रखवा दिया | उस प्रतिमा में आकर्षण इतना प्रचंड था कि वहां, उस म्यूजियम में भी उस प्रतिमा को देखने के लिए भयंकर भीड़ इकठ्ठा होने लगी | आप शायद विश्वास न करें लेकिन कितने ही लोग म्यूजियम में उस प्रतिमा को देखकर पागल हो गए |
रहस्य अत्यंत गहरा था
मदहोशी का आलम ये था कि, 13 अक्टूबर 1944 को, एक जर्मन सेना के लेफ्टिनेंट ने म्यूजियम में उस प्रतिमा को देखकर अपना मानसिक संतुलन खो दिया और उसके सामने बुदबुदाने लगे और थोड़ी ही देर में, होलेस्टर में रखी अपनी सर्विस रिवाल्वर निकाल कर, अपने ही सीने में गोली दाग कर उन्होंने आत्महत्या कर ली |
अब म्यूजियम के अधिकारियों के भी कान खड़े हो गए | हाँलाकि म्यूजियम के कार्यकारी अध्यक्ष को श्राप जैसी बातों पर यकीन नहीं था | लेकिन लेफ्टिनेंट की आत्महत्या के बाद उन लोगों ने उसे वहां से हटा देने का विचार किया | लेकिन उस मूर्ती के अत्यंत दुर्लभ और अपने आप में अनोखी कलाकृति होने की वजह से उसे, वहां से हटाया नहीं जा सका |
लेकिन अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) का वह रहस्य अनसुलझा ही रह गया
हांलाकि उस मूर्ती के सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक ज़रूर लगा दी गयी | इस तरह की घटनाओं की वजह से दुनियाभर के विद्वानों का ध्यान उधर आकृष्ट हुआ लेकिन वो मूर्ती कहाँ से आयी, उसका निर्माता कौन था और सबसे बड़ा प्रश्न कि वो मूर्ती किसकी थी, इन सब सवालों का कोई निश्चित उत्तर नहीं मिल सका |
कुछ लोगों का अनुमान था कि वो प्रतिमा अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) के किसी द्वीप की राजकुमारी की रही होगी, जो अपने समय की अद्वितीय सुंदरी रही होगी | बहुत से विद्वान उस प्रतिमा को खोये हुए महाद्वीप अटलांटिस (Atlantis) से भी जोड़ कर देखते हैं | लेकिन जिस प्रकार से अटलांटिस (Atlantis) की कहानियां समय की धुन्ध में आज भी तैर रही हैं, उसी प्रकार से यह प्रतिमा भी, उसी धुन्ध में, अपनी कहानी कहने को बेताब किसी को ढूंढ रही हैं….|