काफी पहले की बात है | मगध क्षेत्र के कोथवा, रामपुर, नयनचक्र, मुस्तफापुर, आदमपुर और आसोपुर आदि गाँवों में, कुल मलकर एक ही विद्यालय था, जो काफी प्रसिद्ध था, उसका नाम था ‘वेदरत्न विद्यालय’ | इस विद्यालय में कुल छः कोठरियाँ थीं, अतः कक्षा छः तक ही कक्षाएँ चलती थीं । एक छात्रावास भी था, जिसमें पूरे प्रान्त से विद्यार्थी आकर रहते तथा पढ़ते थे ।
उनके लिये एक भोजनशाला (रसोई) थी और एक खेल का मैदान भी था | मैदान में गेंद और बल्ले से भी खेला जाता था । इस प्रकार उस समय के हिसाब से विद्यालय में सभी सुविधाएँ थीं । विद्यालय में पहली कक्षा से ही हिन्दी, संस्कृत, गणित, अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू हो जाती थी । पढ़ाई अच्छी होती थी । स्कूल के मैनेजमेंट द्वारा इस स्कूल को खोलने का उददेश्य था आर्य-मत का प्रचार करना ।
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लेकिन दुर्भाग्य से यहाँ हो कुछ और रहा था | इस विद्यालय का नाम तो ‘वेदरत्न विद्यालय’ था, लेकिन यह बच्चों को वेदविरोधी शिक्षा देता था । विद्यालय की दूसरी कक्षा में ‘धर्मशिक्षा-दूसरा भाग’ नामक एक अनिवार्य पुस्तक थी, जिसके प्रथम पृष्ठ पर लिखा था- प्रश्न-क्या भगवान् अवतार लेते हैं?
उत्तर-नहीं । अगर मान लिया जाय कि भगवान् अवतार लेते हैं तो वे भी जन्मने-मरने वाले तथा अव्यापक हो जायँगे, अतः अवतार की बात गलत है उसे नहीं मानना चाहिये । राम चन्द्र जी दशरथ एवं कौशल्या से जन्मे और आज नहीं हैं, इसलिये मरे भी |
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अगर राम को भगवान् माना जाय तो ईश्वर को भी जन्म ने और मरने वाला कहना पड़़ेगा । अतः अवतार लेने को ईश्वर का कृत्य नहीं माना जा सकता । अब रही व्यापकता की बात । रामकथा में आता है कि कैकेयी को दिये वरदानस्वरूप जब राम वन में चले गये तो उनके वियोग में अयोध्यावासी तड़पने लगे, अयोध्या सूनी हो गयी ।
दशरथ जी की मृत्यु प्रमाण है, जो राम के वियोग में मर गये । यदि राम ईश्वर होते तो व्यापक होने से वनवास के समय अयोध्या में भी रहते और फिर रामवियोग होता ही क्यों? इस प्रकार अवतार मानने पर अव्यापकता का दोष भी जुड़ जाता है ।
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इस ‘धर्मशिक्षा’ को पढ़ाने वाले शिक्षक भी उसी मत को मानने वाले और उन्ही तर्कों में विश्वास करने वाले थे । वे प्रत्येक लड़के से पाठ पढ़ाने के बाद पूछते ‘क्या राम को अवतार मानते हो, जो जन्म ने मरने वाले थे तथा व्यापक भी नहीं थे’? अब लड़का क्या कहता? कहता ‘अब नहीं मानेंगे’ ।
हिन्दी पढ़ने वालों में एक लड़का ऐसे घर में उत्पन्न हुआ था, जहाँ सुबह-शाम रामधुन गायी जाती थी । उसको आज की पढ़ाई अच्छी नहीं लगी थी | किंतु अपने मन में उमड़-घुमड़ रहे प्रश्नों का उत्तर न मिलने से वह उद्विग्र हो गया, उसकी भूख बन्द हो गयी । उसने माँ से कहा ‘माँ आज हम नहीं खायेंगे, तबियत ठीक नहीं है’ ।
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संयोग से उसी शाम उस लड़के के पिता दानापुर से वापस आ गये, जो ‘सनातन धर्म-सभा’ द्वारा दानापुर में संचालित संस्कृत टोला नामक विद्यालयों में पढ़ाते थे तथा सातवें दिन घर आते थे । लड़के की माँ ने पिता से कहा ‘देखिये, आज लड़का कहता है हम नहीं खायेंगे, तबियत ठीक नहीं है । इसे देखिये तो जरा ।
लड़का पहले ही पिता के पैर छूने आ गया था । पिता ने स्नेह से सर पर हाँथ फेरते हुए पूछा ‘क्या बात है, भोजन क्यों नहीं करते’ ? तब उदिग्न लड़के ने कहा ‘हमारे मन में तो राम हैं, परंतु……….’ फिर उसने सारी बातें दोहरा दीं । पिता ने कहा ‘बैठो, साथ में भोजन करो । कल तुम्हें अपने साथ ले चलेंगे, उत्तर एक मिनट में मिल जायगा’ ।
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लड़के के पिता को अगले दिन सुबह 10 बजे संस्कृत टोला जाना था, इससे कुछ पहले ही एक इक्के पर बैठकर वे अपने आवास पर आ गये । उनका आवास एक मन्दिर में था । पिता-पुत्र दोनों साथ में द्वार पर पहुँचे । तब लड़के ने पिता से कहा कि विद्यालय जाने में आपको 10 मिनट की देर हो जायेगी, कोई बात नहीं, अगर आप कल के प्रश्न का उत्तर अभी दे दें तो मन हल्का हो जायेगा ।
तब उन्होंने मन्दिर से मिटटी का एक बुझा हुआ दीपक और माचिस निकाली और लड़के से पूछा-‘बोलो यहाँ कहीं अग्नि है कि नहीं?’ लड़के ने चारों ओर देखा, वहाँ अग्नि नहीं थी सो उसने नहीं में सर हिलाया । पिताजी ने कहा कि देखो, अब हम माचिस जलाते हैं, फिर कहा देखो, दीपक में अग्नि है । इसके बाद पिता ने उससे पूछा कि ‘अब बताओ अग्नि सारे मन्दिर में है या केवल दीये में है’?
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लड़के ने थोड़ा रुक कर गंभीरता से कहा ‘अग्नि तो सभी जगह है भले ही वह दिखायी न पड़े ।’ पिता ने कहा ‘बेटा ! अगर अग्नि को सभी जगह व्यापक मानते हो तो यह बताओ कि यह हाथ की दियासलाई में है कि नहीं’ । लड़के के ‘हाँ’ में उत्तर देने पर कहने लगे ‘इस प्रकार इसे कलकत्ता में, पटना में, जहाँ भी जलाओगे; यह जल जायगी न !’ ।
इसी को संस्कृत (शास्त्रों) में कहा जाता है कि अग्नि समूचे विश्व में व्यापक है, परन्तु दिखती नहीं । जहाँ-जहाँ उसको प्रकट किया जाता है, वह वहीं पर साकार हो कर दिखती है । इसके बाद पण्डित जी ने दीपक बुझा दिया और पूछा कि अब आग है या नहीं? उसने कहा ‘नहीं, दीपक बुझ गया है’ ।
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पिता ने बताया कि वस्तुतः यह आग नहीं थी, यह उस अग्नि का जन्मना-मरना भी नहीं था, वास्तव में यह उस अग्नि का प्रकट होना और न होना था । भाव यह है कि अप्रकट रूप से अग्नि हर जगह व्याप्त है, परंतु दिखती नहीं है । जब माचिस आदि किसी उपाय से दिख जाती है या प्रकट हो जाती है, तब उसकी व्यापकता में कोई दोष (कमी) नहीं आता ।
इसी प्रकार भगवान राम दशरथ एवं कौशल्या से प्रकट हुए थे, मनुष्य की तरह जन्मे नहीं थे । इसीलिये गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-‘भए प्रकट कृपाला……।’ और आज राम दिखते नही तो इसका यह अर्थ नहीं कि वे मर गये, वे केवल अप्रकट हो गये हैं । सामान्य मनुष्यों के जन्म ने-मरने से यह सर्वथा भिन्न है ।
इसी बात को गीता में भगवान् ने कहा है “हे अर्जुन! मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात् निर्मल और अलौकिक हैं-इस प्रकार जो मनुष्य तत्त्व से जान लेता है, वह शरीर को त्यागकर फिर जन्म को प्राप्त नहीं होता, अपितु मुझे ही प्राप्त होता है ।
इसके बाद अपने बेटे को साथ लेकर पण्डित जी संस्कृत टोला चले गये । रास्ते में लड़के ने पूछा ‘पिताजी! आपने रामायण और गीता के प्रमाण दिये,..लेकिन इनको हमारे स्कूल वाले नही मानते, अतः हमें कोई वेद का प्रमाण दीजिये’ । तब पिता ने मुस्कुराते हुए कहा ‘चलो हम पढ़ायेंगे नहीं, एक पुस्तक देंगे, हमने जो अभी तक बताया है, वह वेद की ही बात है ।
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वेद का एक मंत्र है जिसका अर्थ है ‘जिस प्रकार समस्त ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट एक ही अग्नि नाना रूपों में उनके समान रूपवाला-सा हो रहा है, वैसे ही समस्त प्राणी की अन्तरात्मा परब्रह्म एक होते हुए भी नाना रूपों में उन्हीं के जैस रूपवाला हो रहा है और उनके बाहर भी है’ ।
‘कहने का तात्पर्य है कि अग्नि सारे संसार में व्यापक है, अप्रकट रूप से व्यापक है और यदि हम माचिस जलाये तो दीपक जलाने पर अल्प तथा होलिका जलायें तो वह व्यापक रूप् से प्रकट हो जाता है आदि । उसी तरह से भगवान् भी कभी राम के रूप में, कभी कृष्ण के रूप में प्रकट होते हैं । वेदों में भी भगवान् के अवतार-सिद्धान्त का वर्णन है’ |
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इस तथ्य को पाकर बालक को बड़ी प्रसन्नता हुई । उसने कहा कि ‘पिताजी ! जब इतनी साफ बात वेद में लिखी है तो ये लोग गलत क्यों पढ़ाते हैं’? अपने पुत्र के भोले प्रश्न पर पिता ने कहा “तुम इन सब बातों को मत पूछो, शाश्वत काल से चली आ रही इस नकारात्मकता का रहस्य तुम्हारी समझ में नहीं आएगा |
बस यूं समझ लो कि जहाँ भी तिमिर रुपी रावण विकराल होता जाएगा वहाँ राम प्रकट हो ही जाते हैं, फिलहाल तुम्हारा काम चल गया है, तुम इस प्रकरण को यहीं रहने दो’ ।
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अवतारी-विग्रह की विशेषता यह होती है कि भगवान् राम, कृष्ण आदि का अवतारी शरीर प्राकृत नहीं होता अर्थात् भगवान् के शरीर में हडडी, चाम, मांस आदि कुछ नहीं होता । भगवान् का स्वरूप है सच्चिदानन्द । वे ही भगवान् नीलरूप में प्रकट होते हैं |