चूड़ाला कौन थीं और परकाया प्रवेश से उन्होंने कौन सा अभूतपूर्व कार्य किया था

चूड़ाला कौन थीं और परकाया प्रवेश से उन्होंने कौन सा अभूतपूर्व कार्य किया था
चूड़ाला कौन थीं और परकाया प्रवेश से उन्होंने कौन सा अभूतपूर्व कार्य किया था

पुनर्जन्म और परकाया प्रवेश दोनों दो अलग-अलग तथ्य हैं | यद्यपि इन दोनों का संबंध एक ही जीव आत्मा से अवश्य हो सकता है इसलिए कई बार लोगों को भ्रम भी हो जाता है | वास्तव में हमारे पार्थिव शरीर में ही हमारा सूक्ष्म शरीर भी रहता है और कारण शरीर भी |

स्थूल शरीर का रूप, जो प्रत्यक्ष होता है, सभी को दिखाई देता है | इसका दूसरा रूप जो सूक्ष्म शरीर के नाम से जाना जाता है वह सर्वसाधारण को हमेशा दृष्टिगोचर नहीं हो सकता है | हमारे शास्त्रों में यत्र-तत्र उस सूक्ष्म शरीर का रूप इसी पार्थिव शरीर के रूप के जैसा बताया गया है लेकिन उसकी लंबाई अंगुल मात्र की मानी गई है |

भगवान शिव और ब्रह्मा जी का परमपिता परमेश्वर से सम्वाद

कुछ विद्वानों ने इसका रूप ऐसा झीना और पारदर्शी माना है कि उस झीने रूप से प्रकाश भी आर पार हो सकता है | मृत्यु के उपस्थित होने पर जीवात्मा इस स्थूल शरीर को छोड़ने के पश्चात उसी सूक्ष्म शरीर से यात्रा करता है और बीच का समय व्यतीत करके, किसी गर्भ में प्रवेश करके पुनर्जन्म प्राप्त करता है तथा इसी सूक्ष्म शरीर के द्वारा सिद्ध योगी जन परकाया प्रवेश भी करते हैं |

परकाया प्रवेश एक अति प्राचीन विद्या है | योग वशिष्ठ में महर्षि वशिष्ठ जी ने श्री रामचंद्र जी को परकाया प्रवेश की विधि समझाते हुए बताया था “हे राम ! जिस तरह वायु पुष्पों में से गंध खींचकर उसका घ्रणेंद्रिय से संबंध कर देता है, उसी तरह योगी रेचक के अभ्यास रूप योग से कुंडलीनि रुपी घर से बाहर निकलकर ज्यो ही दूसरे शरीर में जीव का संबंध कराता है, त्यों ही यह शरीर परित्यक्त हो जाता है |

जीव रहित यह देह चेष्टाओं से रहित होकर काष्ठ और मिट्टी के पुतले के सदृश पड़ा रहता है | जैसे सिंचन करने वाला पुरुष जल पूर्ण कुंभ से जिस वृक्ष और लता को सींचने की इच्छा करता है, उसे ही सींचता है | वैसे ही अपनी रूचि के अनुसार देह, जीव, बुद्धि , स्थावर और जंगम आदि, सब में उनकी संपत्ति का भोग करने के लिए जीवो का प्रवेश कराया जाता है |

उक्त प्रणाली से परदेह में इस सिद्धि का उपयोग कर स्थित हुआ योगी, यदि अपना पहला शरीर विद्यमान रहा तो उसमें पुनः प्रविष्ट हो जाता है और यदि ना रहा तो दूसरे शरीर में जब तक उसकी रुचि बनी रहती है तब तक वह उस में प्रविष्ट होकर स्थित रहता है |

योग रूप एश्वर्य से संपन्न चैतन्य जीवात्मा सदा प्रकट, दोष शून्य परमात्मा तत्व को जानकर, जो कुछ भी, जैसा चाहता है, वैसा ही उसे तत्काल प्राप्त भी कर लेता है” |

एक जुआरी से पाताल सम्राट बनने का रास्ता बलि ने कैसे तय किया

योगी वशिष्ठ जी ने जिस प्रकार से श्री रामचंद्र जी को परकाया प्रवेश की साधना को समझाया उससे प्रतीत होता है कि परकाया प्रवेश योग साधना की एक महान सिद्धि है और यह सब को नहीं प्राप्त हो सकती केवल योग्य अधिकारी (पात्र) ही यौगिक साधना के अभ्यास से इसे हस्तगत कर सकता है | इस सिद्धि के लिए महान प्रयत्न की आवश्यकता पड़ती है |

‘रेचक’ प्राणायाम से, श्वांस-प्रश्वास प्रक्रिया द्वारा पहले प्राण पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करना होता है | फिर इस पूर्ण नियंत्रण के बाद कुंडलिनी (मूलाधार स्थान) से जीव-आत्मा को बाहर निकालकर योगी मनचाहे शरीर में प्रवेश करा देता है | वशिष्ठ जी के अनुसार यदि वह अपने पूर्व शरीर को सुरक्षित रख सके तो पुनः उसमे भी प्रवेश पा सकता हैं |

आदि शंकराचार्य जी ने ऐसा ही किया था | इसी प्रसंग में, योगवशिष्ठ में चूड़ाला का भी वृत्तान्त आता है | योग वशिष्ठ में आये चूड़ाला के इतिहास से अवगत होता है की वह एक सती साध्वी नारी थी | वह बड़ी विदूषी थी और कई जटिल यौगिक क्रियाओं में सिद्धहस्त भी थी | इन्ही यौगिक सिद्धियों के बल से उसे भूत , भविष्य और वर्तमान का पूरा ज्ञान हो जाता था, एक प्रकार से वह त्रिकाल दर्शी थी |

पृथ्वी , आकाश (अंतरिक्ष एवं अन्य ऊर्ध्व लोक) और पाताल (समस्त अधोलोक), सर्वत्र उसकी गति थी | उसका विवाह महाराज शिखिध्वज से हुआ था | उसने अपने पति को भी योगी और त्यागी तथा मानव से भी ऊपर देवतुल्य बना दिया था | उसके पति महाराज शिखिध्वज उस समय यौगिक साधनाओं में रत थे |

भूत प्रेत की रहस्यमय योनि से मुक्ति

एक दिन महाराज शिखिध्वज समाधिस्थ हो गए | इस बार उनकी समाधि ऐसी लगी की कई दिन व्यतीत हो गए , समाधि टूट ही नहीं रही थी | चूड़ाला उन दिनों कुंभ (पुरुष रूप में) नामक एक व्यक्ति के शरीर में, परकाया प्रवेश सिद्धि द्वारा प्रवेश करके दिन में राजा की देखभाल करती और रात्रि में मदनिका (स्त्री रूप में) नाम की जीवनसंगिनी के रूप में अपने पति की सेवा करती |

पति के समाधि चलती रही | काफी समय व्यतीत हो गए | चूड़ाला अब अधीर हो रही थी | अपने पति को समाधि से जगाने के लिए चूड़ाला ने (अपनी सीमाओं में रहते हुए) बहुत से प्रयत्न किए | लेकिन उन की समाधि भंग नहीं हुई |

अंत में चूड़ाला ने अपने पति की नाड़ियों से उनके ‘जीव’ का (उनके शरीर में) ठीक-ठीक पता लगाया और अपने पति को समाधी से जगाने का दृढ़ संकल्प करते हुए वह काम किया जो उससे पहले किसी स्त्री ने नहीं किया होगा |

चूड़ाला ने, परकाया प्रवेश की क्रिया द्वारा अपने ही पति के शरीर में, उनके जीव के रहते हुए, अपनी जीव-आत्मा का प्रवेश करा दिया | यह इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना थी | चूड़ाला अब अपने स्थूल इंन्द्रिय वाले शरीर को वहीं छोड़ कर पति के शरीर में प्रवेश कर चुकी थी | वहां पहुंचकर उसने सत्वसम्पन्न अपने स्वामी की चेतना को स्पंदित कर दिया और फिर निकल कर अपने शरीर में इस प्रकार प्रवेश कर गई, जैसे कोई चिड़िया अपने घोंसले में घुस जाती हैं |

देवर्षि नारद पूर्वजन्म में कौन थे

इसके बाद कुंभ रूपिणी चूड़ाला एक पुष्पाछादित स्थान में जा बैठी और सामगान करने लगी | उस सामगान को सुनकर राजा के शरीर में वर्तमान सत्व गुण संपन्न चेतना सक्रिय हो उठी | आंखें खोलने पर राजा ने अपने सामने कुंभ रूपिणी चूड़ाला को बैठे देखा और उनके चेहरे पर एक हल्की मुस्कुराहट तैर गयी | इस प्रकार चूड़ाला को अपने पति की समाधि तोड़ने के लिए और उनकी सेवा करने के लिए उन्ही के शरीर में प्रवेश करना पड़ा था |

इतिहास की सबसे सुंदर स्त्री क्या आप शिमला भूतिया टनल नंबर 33 के बारे में यह जानते हैं? क्या आप भूतों के रहने वाले इस कुलधरा गांव के बारे में जानते हैं? भूत की कहानी | bhoot ki kahani क्या आप जानते हैं कैलाश पर्वत का ये रहस्य? क्या आप जानते हैं निधिवन का ये रहस्य – पूरा पढ़िए
इतिहास की सबसे सुंदर स्त्री क्या आप शिमला भूतिया टनल नंबर 33 के बारे में यह जानते हैं? क्या आप भूतों के रहने वाले इस कुलधरा गांव के बारे में जानते हैं? भूत की कहानी | bhoot ki kahani क्या आप जानते हैं कैलाश पर्वत का ये रहस्य? क्या आप जानते हैं निधिवन का ये रहस्य – पूरा पढ़िए