इस दुनिया में सबसे बड़ा कष्ट है ‘मृत्यु’ ! किसी के लिए स्वयं की मृत्यु और किसी के लिए अपने किसी ‘प्राणों से भी अधिक प्रिय’ की मृत्यु | उसका सबसे बड़ा कारण है मृत्यु को ही अंत मान लेना | मृत्यु नजदीक, मतलब खेल ख़त्म | न आप और ना आपके भगवान कोई आपकी और मृत्यु के बीच में नहीं आता |
इस सम्बन्ध में मार्कंडेय ऋषि और भगवान शिव की कथा प्रासंगिक है जब बारह वर्ष की अल्पायु में शिव-भक्त मार्कंडेय जी की मृत्यु हुई तो भोले भंडारी चौंके उन्होंने धर्मराज से आपत्ति जताई ‘मेरे भक्त पर काल का क्रूर प्रहार’ | धर्मराज ने विनम्रतापूर्वक कहा “प्रभु आपका ही बनाया नियम तो है, मृत्यु अटल है..उसे कैसे टाला जा सकता है” |
महादेव ने गरजते हुए पूछा कितनी आयु है इसकी | उन्होंने बताया बारह वर्ष | शिव जी ने कहा “ठीक है लेकिन अब से इसकी आयु मेरे समय के अनुसार बारह वर्ष होगी” | धर्मराज उन्हें प्रणाम करके अपने धाम लौट आये | भगवान शिव के समयानुसार बारह वर्ष मतलब लगभग अमर | अपने जीवन के अंत तक असंख्य सृष्टियों (जिनकी गणना न की जा सके) की उत्पत्ति और लय देखेंगे मार्कंडेय ऋषि |
कहने का तात्पर्य यह की परब्रह्म के साकार स्वरुप भगवान शिव ने भी मृत्यु को टाला नहीं बस उसका समय-चक्र बदल दिया, मृत्यु का समय अभी भी बारह वर्ष ही था | लेकिन कई बार मृत्यु से ज्यादा भयानक मृत्यु का भय होता है | लेकिन सत्पुरुषों के लिए मृत्यु भयानक नहीं होती | अगर आपने जीवन में अच्छे कर्म किये हैं तो निश्चित रूप से आपकी मृत्यु सुखद होगी |
इस तथ्य पर अधिकतर जीवित लोगों को विश्वास नहीं होगा लेकिन मृत्यु के दरवाजे से वापस लौटकर आने वाले कुछ ऐसा ही अनुभव बताते हैं | लोगों की मृत्यु और मृत्यु के पार के अनुभवों को विश्व के कई जाने-माने मूर्धन्य विद्वानों जिनमे रेमंड मूडी, डॉ रोबर्ट, डॉ जेम्स, अन्थोनी, ग्रेस रोशेर, एलिजाबेथ कुब्लर, मिसेज जेन शेरवुड, मिसेज हेस कोप, आर हेस्टिंग्स, तथा भारत में दीपक चोपड़ा, दिनेश डिसूज़ा, एवं आचार्य श्रीराम शर्मा आदि ने विस्तृत रूप में लिपिबद्ध किया है |
डॉ रेमण्ड मूडी का नाम बड़ा है | कैथोलिक चर्च की मान्यताओं को मानने वाले डॉ रेमण्ड एक जाने माने डॉक्टर तथा लम्बे समय तक चिकित्सा शास्त्र में प्रोफेसर रहे, इसलिए उनके अनुभव एवं शोधकार्य विशेष महत्व रखते हैं | मौत के दरवाज़े से लौट कर आने वाले कई लोगों ने दिव्य प्रकाश, सुरम्य स्थानों का मनोहारी वर्णन किया है |
ऐसी ही एक घटना का ज़िक्र, अपनी पुस्तक ‘The Book of Living Dead’ में सर विलियम बैरेट ने किया है जिसमे जर्मनी के बॉन शहर में एक महिला की हालत प्रसव-पीड़ा के दौरान बिगड़ गयी | नर्स ने तुरंत लेडी डॉक्टर को बुलाया | डॉक्टर ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा था | महिला अर्ध बेहोशी की अवस्था में थी |
अचानक उसने डॉक्टर का हाँथ पकड़ लिया और बोली “डॉक्टर,…मत परेशान हो | मुझे उस संसार में चली जाने दो | कितना मनोहारी दृश्य है वहाँ, कितने अच्छे लोग दिख रहे हैं वहाँ के | इतना दिव्य प्रकाश है कि पूरा वातावरण प्रकाशमान हो रहा है वहाँ” | फिर एक ओर घूमकर अपने मृत पिता से बात करने लगी जैसे सचमुच वो वहाँ खड़े हों |
वो बोली “पिताजी मै शीघ्र ही आ रही हूँ लेकिन देखिये न ये लोग मुझे आने ही नहीं देते” | फिर अचानक से खामोश हो गयी, चेहरे पर आश्चर्य का भाव था उसके | ठीक उसी समय उसकी माँ ने कमरे में प्रवेश किया | उसने अपनी माँ से पुछा “माँ, ये जेनी पिताजी के साथ कैसे है वो तो हैम्बर्ग में पढ़ रही थी न” ? |
जेनी उसकी छोटी बहन थी जिसकी कुछ दिन पहले एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी थी लेकिन ये खबर उससे छुपायी गयी थी | दो दिन बाद उस बूढ़ी माँ की सूनी आँखों में फिर से आँसू थे क्योंकि उसकी बड़ी लड़की भी इस दुनिया से विदा हो गयी थी और जा पहुँची थी वहाँ जहाँ उसके पिता और छोटी बहन थे |
मृत्यु के बाद के कुछ असाधारण, विश्व-प्रसिद्ध अनुभवों को आचार्य श्री राम शर्मा ने अपनी पुस्तकों में संकलित किया है | उनके अनुसार डेट्रॉइट (Detroit), अमेरिका में कुछ वर्ष पूर्व एक प्रसिद्ध अखबार में ‘उस-पार’ नाम के शीर्षक से लेखों की एक श्रंखला छपी थी जिसमे ऐसे ही लोगों (जो मौत के मुंह से वापस लौट कर आये थे) के अनुभव, संस्मरण शैली में प्रकाशित हुए थे |
इन संस्मरणों में एक अनुभव लिन्मेल्बिन का था जो अमेरिका के मियामी का रहने वाला था | अंतिम समय के अनुभवों को उन्होंने लिखा “तेज़ बुखार के कारण मेरे मष्तिष्क में भारी जलन हो रही थी | मेरी हालत ख़राब होती चली जा रही थी | पीड़ा बढ़ते-बढ़ते अचानक सब कुछ शांत हो गया | मैंने अपने आप को काफी हल्का, शांत, शीतल, स्वतंत्र और शक्ति-संपन्न महसूस किया |
मुझे लगा मै हवा में तैर रहा था | अपने चारो तरफ का वातावरण मुझे काफ़ी रंगीन और सुहावना लगा | वो बस अद्वितीय अनुभव था | इस आश्चर्यजनक स्थिति का पहले तो कोई कारण नहीं समझ आया फिर लगा शायद मै मर चुका हूँ लेकिन यह स्थिति भी अधिक देर तक नहीं बनी रही, मुझे लगा कि किसी ने मुझे मेरे ही शरीर में धकेल दिया हो, और मै जीवित हो गया |
होश में आने पर मैंने देखा कि मेरे परिवार वाले मेरे मृत शरीर को दफनाने के लिए आवश्यक तैयारी में लगे हुए थे | मृत्यु के बाद वापस जी उठने पर परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे खासतौर पर मेरी छोटी बेटी” |
शो एन्विन ने अपनी पुस्तक “Death: An Interesting Journey” में, अपने व्यापक शोध कार्यों से कुछ गंभीर परिणाम निकाले हैं | उनके अनुसार मृत्यु के समय घटनाएं बहुत तेज़ी से घटती हैं और जीवात्मा एक ऐसी दुनिया में पहुँचती है जहाँ कम्पन बहुत तेज़ होता है और घटनाओं की आवृत्ति (Frequency) अत्यधिक होती है जिसके फलस्वरूप कम समय में बहुत सारी घटनाएं हो सकती वहाँ (उस दुनिया में) |
शो ने बताया, हाँलाकि मृत्यु के समय होने वाले अनुभवों का आधार अपना-अपना विश्वास एवं मान्यताएं होती हैं लेकिन इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जीवात्मा की चेतना, शरीर, बोध होने की क्षमता अत्यंत सूक्ष्म एवं उन्नत होती है | इसलिए वह पुराने शरीर को छोड़ने के लिए पहले से ही तैयार होती है | यहाँ तक कि दुर्घटना घटने की स्थिति में जीवात्मा पहले ही शरीर को छोड़ देती है |
इसी कारण इस प्रकार से मरने वाले व्यक्तियों को अपने शरीर में लगी चोट का या टूटफूट का न तो अहसास होता है और ना ही किसी प्रकार की पीड़ा होती है | अपने निष्कर्षों के लिए उदहारण देते समय उन्होंने स्विट्ज़रलैंड के जैसन हरमन (Jason Herman) का ज़िक्र किया जो एक बार बर्फीले तूफ़ान में फंस गए थे |
उस समय लगभग उनका प्राणांत हो गया था | खोजी अभियान दल ने जब उन्हें ढूँढा तो उनमे जीवन के लक्षण विद्यमान थे | उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, सौभाग्य से वो बच गए | बाद में उन्होंने अपना उस समय का अनुभव बताया कि रास्ते की तलाश में वो कई घंटे तक भटकते रहे | भूख से तड़पते हुए, थककर आखिरकार वे बर्फ पर गिर गए और उनकी चेतना लुप्त हो गयी |
उन्होंने बताया कि उस अवस्था में केवल उन्हें इतना याद था कि वो एक ऐसी जगह थे जहाँ काफी सुख एवं आनंद महसूस कर रहे थे | इसी से मिलता-जुलता अनुभव डॉ एम् बेन्फोर्ड ने भी अपने लेख में दिया है | उनके अनुसार दुर्घटनाओं के कारण घटित होने वाली मृत्यु की घटना इतनी तेज़ी से घटती है कि जीवात्मा को अपने भौतिक शरीर से अलग होने का अनुभव भी नहीं होता | यद्यपि ये आकस्मिक दुर्घटनाये बड़ी भीषण और दर्दनाक होती हैं लेकिन जो मर जाते हैं उनके लिए मृत्यु बड़ी विस्मयकारी घटना होती है |
मृत्यु के समय होने वाले अनुभवों पर शोध कार्य करने वालों में डॉ एलिजाबेथ कुब्लर रोस का नाम काफी सम्मान से लिया जाता है | उन्होंने ऐसे तीन सौ से भी अधिक लोगों से मुलाकात की जो मौत के मुंह में जा कर वापस लौट आये थे | इन लोगों में से ज्यादातर लोगों ने अपने अनुभवों को जिस तरह से व्यक्त किये उनसे तो यही प्रतीत होता है कि मौत कोई दुखदायी घटना नहीं | मरने से पहले तक ये लगता ज़रूर है कि कोई बहुत बड़ी यंत्रणा देने वाली घटना होने जा रही है लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ होता नहीं |
आचार्य श्री शर्मा लिखते हैं कि कुछ लोगों को मृत्यु में इतना अधिक आनंददायी अनुभव होता है कि उनके अनुसार वो अपने जीवन में इससे अधिक आनंदित कभी नहीं हुए | इसके सन्दर्भ में उन्होंने दो घटनाओं का ज़िक्र किया है जो इस प्रकार है |
पहली घटना लन्दन के अलर्सगेट स्ट्रीट (Aldersgate Street) की है जहां एक मकान में आग लगी हुई थी | फायर ब्रिगेड के लोग अपने काम में लगे हुए थे | इन्ही लोगों में फायर ब्रिगेड का एक कर्मचारी जेम्स बर्टन भी था | वो उत्साही व्यक्ति आग के बीच में घुस कर आग बुझाने का प्रयास कर रहा था | इसी बीच एक दुर्घटना घट गयी, जलता हुआ एक खम्भा उसके ऊपर आ गिरा और फिर कुछ और सामान उसके ऊपर आ गिरे |
लगभग आठ घंटे वो उस मलबे के नीचे दबा रहा | निकाले जाने के बाद उसे गहन चिकित्सकीय सहायता के लिए हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया | दैव योग से उसकी जान बच गयी |
उसने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि “एक पल के लिए मुझे अपनी पत्नी कि याद ज़रूर आई थी लेकिन उसके बाद मै किसी अनजान दिशा से आने वाली अत्यंत मधुर संगीत कि स्वरलहरियों को सुनते-सुनते जैसे खो सा गया था लेकिन उस समय भी मेरे सोचने की और अनुभव करने की क्षमता बरकरार थी | मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे मै फूलों की सेज पर हूँ और जहाँ पर मै था वो जगह बिलकुल स्वर्ग जैसी लग रही थी” |
दूसरी घटना टोरंटो, कनाडा (Toronto, Canada) के बेली कैमरून की है जो रोज कि तरह उस दिन (जुलाई 1977) भी रिहर्सल से घर वापस लौट रहे थे | लेकिन बीच रास्ते में ही उनका दिल बैठ गया, घर की चाभी वो स्टूडियो में ही छोड़ आये थे और स्टूडियो अब तक बंद हो चुका था | बिल्डिंग की उपरी मंजिल पर घर होने कि वजह से वहां तक पहुँचने के लिए उनको पाइप का सहारा लेना पड़ा |
पर चढ़ने के दौरान बीच में ही पैर फिसलने के कारण वो गिर पड़े और अचेत हो गए | आस-पड़ोस के लोग आवाज़ सुनते ही बाहर निकले, तुरंत ही उन्हें टोरंटो के ही एक हॉस्पिटल के आई सी यू में भर्ती कराया गया | खोपड़ी में चार फ्रैक्चर थे | इसके अलावा, डॉक्टरों ने पाया कि भर्ती होने के बीस मिनट बाद तक उनकी हृदय गति रुकी रही |
डॉक्टर्स ने उस समय उनको मृत घोषित कर दिया | लेकिन आश्चर्यजनक रूप कुछ समय बाद उनकी साँसे चलनी शुरू हो गयी तो डॉक्टर्स भी चकित हुए | जब तक उनकी साँसे रुकी थी उस दौरान उनके अनुभव बड़े विचित्र थे | अपनी अनुभूतियों का वर्णन करते हुए कैमरून ने बताया कि “दुर्घटना के कुछ क्षणों बाद मैंने अपने को अपने शरीर से अलग पाया |
मेरे लिए ये मेरे अब तक के जीवन की सर्वाधिक आश्चर्यजनक घटना थी | मेरा ही शरीर मेरे सामने निर्जीव पड़ा था…मै बता नहीं सकता उस समय मै क्या महसूस कर रहा था | इसके साथ ही मै अपने आप को बहुत हल्का भी महसूस कर रहा था | मुझे लगा कि प्रयास करने पर मै उड़ भी सकता हूँ | ऐसा विचार आते ही मै पलक झपकते ही उड़ कर छत पर जा पहुंचा |
इतने में मुझे एक प्रकाश पुंज दिखाई पड़ा | पता नहीं उसमे ऐसा क्या आकर्षण था कि मै उसके साथ खिंचता चला गया | मै तब तक उस प्रकाश-पुंज के पीछे चलता रहा जब तक कि एक स्थान पर वो प्रकाश पुंज रुक नहीं गया | मै दौड़ कर आगे बढ़ा उसे छूने के लिए | मुझे उस प्रकाश कि आभा में एक सुनहरा विशाल महल दिखाई पड़ा जिसमे एक बड़ा सा दरवाज़ा लगा हुआ था |
मैंने उस दरवाजे को धकेल कर खोलने की कोशिश की और वो आसानी से खुल भी गया | भीतर एक बड़े से आलीशान सजे हुए कमरे में मेरे पिताजी खड़े थे जो दो वर्ष पहले ही मर चुके थे | लेकिन आश्चर्य, वो बिलकुल युवावस्था में दिखाई पड़ रहे थे जबकि वो अपनी वृद्धावस्था में मरे थे | उस स्थान पर अनेक लोगों की बातचीत सुनाई दे रही थी पर मेरे और पिताजी के अलावा वहां कोई और नहीं दिखाई पड़ रहा था |
मुझे साथ लेकर पिताजी दूसरे वाले कमरे में जाकर बैठ गए | सामने एक दर्पण जैसा झलकने वाला स्वच्छ पर्दा लगा था | अचानक उसमे मेरे जीवन की सभी घटनाएं क्रमबद्ध रूप से उभरने लगी | अपने द्वारा की गयी गलतियों के लिए मै चित्रों को देखकर मन ही मन पश्चाताप का अनुभव करने लगा साथ-ही साथ मुझे ये आश्चर्य भी हो रहा था कि ये घटनाएं तो केवल मुझे ही मालूम थी तो ये यहाँ पर सबको कैसे मालूम हुई | पर इसका मुझे कोई उत्तर नहीं मिल सका |
चित्रपट पर उभरने वाली घटनाओं के अंत के साथ ही वह प्रकाशपुंज फिर से प्रकट हुआ | उससे आदेशात्मक स्वर फूटा “तुम्हारी आयु अभी बाकी है” और कुछ धुंधले क्षणों बाद मै अपने शरीर में वापस था” | ज़िन्दगी के खेल निराले है, रहस्यमय है लेकिन मौत उससे भी ज्यादे रहस्यमय है | जिन्होंने ज़िन्दगी को सकारात्मक तरीके से जीया है वो जानते है कि उनका अंत भी सुखद होगा |
मैंने कहीं पढ़ा था कि स्वयं को प्रसन्न रखना ही ईश्वर कि सर्वोपरि भक्ति है क्योंकि जब आप स्वयं प्रसन्न रहेंगे तभी दूसरों को ख़ुशी दे पायेंगे और प्रसन्नता के लिए सबसे अधिक आवश्यक है पुरुषार्थ | कर्महीन और आलसी लोगों के लिए न इस लोक में कोई जगह है और ना परलोक में | इसलिए पुरुषार्थी बनिये और प्रसन्न रहिये क्योंकि दुनिया तो बनती बिगड़ती रहती है लेकिन आप तो कल भी थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे…!
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