जानिये कौन हैं एलियन, क्या हैं उनकी विशेषताएं और वो हमें क्यों नहीं दिखायी देते

lkiu(भाग- 1) –

दुनिया भर के एस्ट्रो फिजिसिस्ट में इस समय हमारे ब्रह्माण्ड के आकार को लेकर बड़ा मतभेद बना हुआ है | अलग अलग वैज्ञानिक या कह लीजिये वैज्ञानिकों का समूह, अलग अलग तर्क पिछले कई साल से देते आ रहे हैं पर उनमे अभी तक एक आम राय नहीं बन पा रही है | उनके इस मतभेद का अंदाज़ा आप विगत कुछ वर्षों में बनने वाली हॉलीवुड फिल्मों को देख कर लगा सकते हैं |

असल में इन सब कठिन प्रश्नों का उत्तर पहले से ही मौजूद है हमारे अत्यंत मूल्यवान हिन्दू धर्म के दुर्लभ ग्रंथों में | यूँ तो बहुत से अमूल्य हिन्दू धर्म के ग्रंथों का नाश हुआ, भारत में मुग़लों और अंग्रेजों के शासन काल में, पर जो थोड़े बहुत ग्रन्थ मिलते हैं उनसे भी ऐसी उपयोगी जानकारी मिल जाती है जो आज के मॉडर्न साइंस के वैज्ञानिक कई साल रिसर्च कर के भी नहीं खोज पाते हैं |

लेकिन यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि सिर्फ ग्रन्थ ही वो माध्यम नहीं हैं इन दुर्लभ जानकारियों को पाने के लिए, भारतवर्ष के दिव्य आदरणीय संत साधू समाज भी बहुत कुछ जानते हैं इन विषयों के बारे में, जिसका खुलासा समय आने पर वे सिर्फ योग्य व गम्भीर पात्रों के सामने ही किया करते हैं |

हमारी टीम ने जब भारत के प्राचीन ज्ञान, विज्ञान और इतिहास के मूर्धन्य जानकार श्री डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी से इन प्रश्नों के सन्दर्भ में पूछा तो उन्होंने बताया की भगवान् सूर्य के वरद शिष्य श्री वराह मिहिर जी द्वारा लिखित एक ग्रन्थ में वर्णन आता है अपने इस ब्रह्माण्ड के आकार के बारे में |

kउन्होंने बताया कि आदरणीय ऋषि श्री वराह मिहिर के अनुसार श्री ब्रह्मा जी ने ईश्वरीय प्रेरणा से अपने इस ब्रह्माण्ड का निर्माण इस प्रकार किया है की ये दिखने में दो कड़ाहियों की तरह दिखता है जो एक दूसरे पर उल्टा कर के रखी हुई हैं मतलब जैसे एक सीधी रखी कड़ाही (खाना बनाने वाली) पर उलट कर दूसरी कड़ाही रख दी जाय तो जो एक अंडाकार आकृति बनती है ठीक वही आकृति अपने इस ब्रह्माण्ड की भी है |

और अपनी पृथ्वी इस अंडाकार आकृति के ठीक बीचो बीच में ही स्थित है | डॉक्टर उपाध्याय आगे इस बात को भी जोड़ते हैं कि कड़ाहियों का एक दूसरे के ऊपर उल्टा रखना इस बात का भी द्योतक है की इस ब्रह्माण्ड का एक एंटी ब्रह्माण्ड भी मौजूद है, जो आश्चर्यजनक रूप से इस ब्रह्माण्ड का हिस्सा होते हुए भी इससे अलग है |

ब्रह्माण्ड का निर्माण ब्रह्मा जी ने, परमेश्वर के सनातन स्वरुप ओंकार नाद (ॐ) की अनन्त शक्तियों से किया है | इस ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में उसी ओंकार का ही स्पंदन है | उसी स्पंदन से ही वो कण गतिमान है और ये सारा ब्रह्माण्ड भी गतिमान है | गायत्री मन्त्र समेत अन्य 7 करोड़ मन्त्र ओंकार से ही प्रकट हुए हैं और इन सभी मन्त्रों की अलग अलग विशिष्ट भूमिकाएं हैं इस सृष्टि में | गायत्री मन्त्र की तो अति विशिष्ट भूमिका है इस ब्रह्माण्ड के निर्माण में | गायत्री मन्त्र ओंकार का ही विस्तार स्वरुप है | वास्तव में ये सारे महामन्त्र, उस शब्दब्रह्म के ही विभिन्न कलाओं में अभिव्यक्तियाँ ही हैं |

okअगर हम थोड़ा विस्तार से समझे तो इस ब्रह्माण्ड के हर कण कण में ॐ ही अव्यक्त रूप से समाया है | ॐ ही वो उर्जा है जो हर जगह भिन्न भिन्न रूप में व्यक्त होती है अर्थात भिन्न भिन्न रूप, आकृति (हम सभी जीव, जन्तु, पेड़, पौधे, हवा, पहाड़, नदियाँ आदि सब कुछ) का निर्माण कर उसे गतिमान या स्थिर भी करती है | इस सृष्टि के हर परमाणु के अन्दर के पार्टीकल्स को भी ॐ ने ही गतिमान किया है |

ॐ ही शब्द ब्रह्म है और ये अनाहत नाद है मतलब बिना किसी टक्कर या आघात के पैदा होने वाली ध्वनि क्योंकि ये स्वर प्रारम्भ व अन्त रहित है | हमारे सौरमण्डल के सारे ग्रह सूर्य का चक्कर लगाते हैं पर क्या सूर्य भी किसी का चक्कर लगाता है | ग्रहों का सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाने की बात तो सभी लोग जानते हैं पर सूर्य भी किसी का चक्कर लगाता है इस बात पर आज के वैज्ञानिक भी कन्फर्म नहीं हैं | हमारे शास्त्र कहते हैं कि सूर्य जिसका चक्कर लगाता है उसे महा सूर्य कहते हैं और यह महा सूर्य कुछ और नहीं, विष्णु नाभि ही है |

यद्यपि यह सत्य है कि आधुनिक वैज्ञानिकों का एक बड़ा समूह इस बात पर अब विश्वास करने लगा है कि हमारे सौर मंडल का प्रधान, हमारा सूर्य भी किसी न किसी का चक्कर लगा रहा है, किन्तु उनके पास तथ्यों और प्रमाणों का आभाव होने की वजह से वे अभी अँधेरे में भटक रहे है | डॉक्टर उपाध्याय बताते हैं कि जिस प्रकार हमारा सूर्य उस महासूर्य (विष्णु नाभि) का चक्कर लगा रहा है उसी प्रकार, इस ब्रह्माण्ड की अन्य सृष्टियों के केन्द्रक सूर्य, उसी महासूर्य (विष्णु नाभि) के चक्कर लगा रहे हैं | हाँलाकि महासूर्य का चक्कर लगाने के उनके पथ अलग-अलग हैं | और उन सूर्यों की ब्रह्माण्ड में स्थिति तथा उनके पथ ही उन सूर्यों की सृष्टि तथा उनमे पैदा होने वाले प्राणियों की भिन्नता तय करते है |

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अगर हम बात करें विष्णु नाभि की तो विष्णु नाभि अर्थात भगवान विष्णु की नाभि एक अनन्त पहेली है क्योंकि खुद पूरे ब्रहमांड को बनाने वाले ब्रह्मा जी भी विष्णु नाभि के रहस्य को आज तक पूरी तरह से समझ नहीं पाए | विष्णु नाभि से निकले कमल में ही श्री ब्रह्मा जी अवतरित हुए थे !

vishnujiइस रहस्य को कम ही लोग जानते हैं कि भगवान विष्णु का बैकुण्ठ धाम वास्तव में उनका शरीर ही है | और भगवान् विष्णु के शरीर को ही महा स्थान भी कहा गया है | इस महा स्थान में किसी भी प्रकार का समय काम नहीं करता है | डॉक्टर सौरभ बताते हैं कि ये महा स्थान ही अनन्त ब्रह्मांडों में जाने का गेट वे (रास्ता) है | इस महा स्थान को सबसे बड़ी प्रयोग शाला भी कहते हैं क्योंकि सारे ब्रह्मर्षि गण इसी स्थान पर आकर ईश्वर के अनन्त विस्तार पर लगातार अनुसन्धान करते रहते हैं |

प्रोफेसर श्री सौरभ उपाध्याय जी आगे बताते हैं कि हमारे सौरमंडल के सारे ग्रह क्यों बार बार दीर्घ वृत्ताकार पथ पर ही घूमा करते हैं | इसके पीछे के कई गूढ़ रहस्यों में से एक रहस्य यह है कि जो भविष्य है वही इतिहास है और जो इतिहास है वही भविष्य है | अर्थात जब कोई ग्रह किसी गोलाकार पथ पर चक्कर लगाता है तो उस पथ पर जो बिंदु ग्रह के रास्ते में आगे पड़ता है वह ग्रह का भविष्य है पर जैसे ही ग्रह उसे पार कर जाता है वैसे ही वह बिंदु उस ग्रह का इतिहास हो जाता है पर जैसे ही वह ग्रह फिर से वापस चक्कर लगाकर उस बिन्दु के पास आता है वैसे ही वह बिन्दु फिर से उसका भविष्य हो जाता है |

अतः जो कहावत है की हिस्ट्री रीपीट्स इटसेल्फ वो एकदम सही है क्योंकि इतिहास में ही भविष्य के बीज छुपे रहते हैं | इसे भविष्य पुराण में भगवान् के कल्कि अवतार के बारे में भी पढ़ कर समझा जा सकता है जिसमे भगवान् के भविष्य में होने वाले अवतार (इस कलियुग के अन्त में) की सारी लीलाओं को भूतकाल की घटनाओं की तरह ऐसा लिखा गया है जैसे की ये सारी घटनाएं पहले भी कभी हो चुकी हों | यहाँ भी वही सिद्धांत लागू होता है की जो हमारा अतीत था वो किसी का आने वाला भविष्य है और जो हमारा भविष्य है वही कभी किसी का अतीत था |

universeहालाँकि कोई भी घटना हो वो अपने आयाम से भी पहचानी जाती है | इसको इस तरह से भी समझा जा सकता है कि एक ही जगह पर एक ही समय में कई अलग अलग घटनाएं घटित हो सकती हैं अगर उनके आयाम अलग अलग हों | साधारणतया लोग तीन आयाम के बारे में ही समझते हैं लम्बाई, चौड़ाई और ऊचाई, पर वास्तव में भेद की दृष्टी से आयाम अनन्त हैं |

अलग अलग आयाम में रहने वाले लोग एक ही स्थान रहते हुए भी एक दूसरे को नहीं देख पाते | जिस प्राणी की चेतना का जितना ज्यादा विस्तार होता है, वो प्राणी उतने अधिक आयामों वाली दुनिया में रहता है | आर्ष ग्रंथों में आये, दैवीय और अर्ध दैवीय प्राणियों में, सातवें आयाम तक नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, किरात, विद्याधर, ऋक्ष, पितर, देवता, प्रजापति, दिक्पाल आदि (जिन्हें आजकल के वैज्ञानिक एलियन समझते हैं) रहते हैं | ब्रह्मा जी ने इस ब्रह्माण्ड का विस्तार 11 आयामों तक किया है ! ग्यारह चरणों तक विस्तृत होने के बाद भी, भेद की दृष्टी से आयाम अनंत हैं |

आयाम को समझना हो तो इनको एक छोटे से उदाहरण से थोड़ा बहुत समझा जा सकता है | जैसे आप दूर से एक कमरे के खुले दरवाजे को देखें तो आपको दरवाजे की दिशा में एक छोटा सा क्षेत्र जैसा दिखाई देगा, पर जब आप कमरे के खुले दरवाजे के पास आकर खड़े हो जाएँ तो आपको पता चलेगा की कमरा केवल लम्बाई में ही नहीं चौड़ाई में भी है | और जब आप कमरे के दरवाजे से अन्दर आकर खड़े होंगे तो आपको पता चलेगा की कमरा लम्बा, चौड़ा के अलावा ऊँचा भी है | ठीक इसी तरह जैसे जैसे साधना से मानव के दिव्य नेत्र खुलते जाते हैं, और उसकी चेतना का विस्तार होता जाता है, वैसे वैसे वो मानव लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई के अलावा, न केवल अन्य दिव्य आयामों के बारें में जानने समझने लगता हैं, बल्कि आयाम भेद से वह अन्य सृष्टियों के प्राणियों को भी देखने समझने लगता है |

yakshhमानवों से ऊँचे विस्तार वाले आयामों की सृष्टियों में रहने वाले जीवों की दिव्य प्रजातियों (नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, किरात, विद्याधर, पितर, देवता, प्रजापति, दिक्पाल आदि) को देखने के लिए प्राणी की चेतना का अपेक्षित विकास जरूरी होता है |

वास्तव में ये दिव्य प्रजातियाँ ज्ञान और विज्ञान में इतनी आगे हैं की आज के मॉडर्न साइंस के वैज्ञानिकों को उनकी दुनिया का विज्ञान असम्भव जैसा प्रतीत होगा | इन सभी दिव्य प्रजातियों का विज्ञान, हिन्दू धर्म के महा प्राचीन वैदिक ज्ञान पर आधारित है |

असल में वेदों में जो भी मन्त्र व श्लोक लिखे हैं, स्वर भेद से उन सब के कई अर्थ निकलते हैं और उन्ही अर्थों में बहुत से दुर्लभ रहस्य भी छुपे हुए हैं | वेदों में लिखे मन्त्र गूढ़ संस्कृत भाषा में लिखे हैं और उस संस्कृत का प्रथम दृष्टया जो अर्थ निकलता है सिर्फ वही एक साधारण संस्कृत ट्रांसलेटर निकाल सकता है पर उन संस्कृत के श्लोकों में छिपा, गुप्त गूढ़ अर्थ जो की अति उच्च विज्ञान के फ़ॉर्मूले भी हैं उन्हें सिर्फ उच्च स्तर के हठ योगी, राज योगी, भक्त योगी या तंत्र योगी ही खोज सकते हैं |

वेदों के इन संस्कृत श्लोकों का अर्थ देखने सुनने में बहुत साधारण सा लगता है (एक साधारण प्रार्थना या पूजा की तरह) पर वास्तविकता इतनी भीषण है की साधारण आदमी कभी कल्पना भी नहीं कर सकता है | वेद अपौर्षेय हैं अर्थात वे ईश्वर की रचना हैं | सनातन धर्म के इन अति प्राचीन दुर्लभ ज्ञान को जानबूझकर ऐसा अति गोपनीय तरीके से छिपाया गया है की कोई भी कुपात्र कभी भी उसका बुरा फायदा ना उठा सके |

बात करें हम अगर, सनातन धर्म ग्रंथों में आये दैवीय और अर्ध दैवीय प्राणियों की तो ऐसा नहीं हैं की ये विशेष प्रजातियाँ केवल पहले के ज़माने में ही पायी जाती थी | ये सारी उच्च प्रजातियाँ आज भी हैं बस इन्हें देख पाने और इनसे बातचीत करने की क्षमता बहुत ही कम लोगों में बची हैं | बहुत ऊँचे दर्जे के साधू सन्त तपस्वी ही इन प्रजातियों को देख और इनसे बात कर सकते हैं | दरअसल जो भी मनुष्य पवित्र आचरण एवं ध्यान साधना द्वारा अपनी चेतना का विस्तार करने में सक्षम हो जाते हैं वो इन उच्च विस्तार वाले आयामों की सृष्टियों में रहने वाले दैवीय व अर्ध दैवीय प्राणियों को देखने, सुनने, समझने व उनसे बात करने में समर्थ हो जाते हैं |

fआज के समय में एलियंस का जैसा रंग रूप व दुनिया बतायी जाती है, वैसा कुछ है नहीं | वास्तव में, ग्रे एलिएन जैसा कोई एलिएन नहीं होता है | एक सोचे समझे षड्यंत्र के तहत ग्रे एलिएन की थ्योरी महज कुछ लोगों द्वारा फैलाई गयी अफवाह हैं | जबकि सच्चाई तो यह है कि ऊपर लिखी दिव्य प्रजातियाँ ही समय समय पर मानवों के हितार्थ (या कभी-कभी अपने स्वार्थों के वशीभूत हो कर भी) पृथ्वी पर अपने दिव्य विमानों से आती जाती रहती हैं और प्रत्यक्षदर्शी लोग उन्हें देखकर एलिएन और उनके विमान को देखकर UFO (उड़न तश्तरी) समझ लेते हैं |

प्राचीन भारतीय ज्ञान के मूर्धन्य विद्वान प्रोफेसर श्री सौरभ उपाध्याय जी इन दिव्य प्रजातियों के बारे में कुछ जानकारियां इस प्रकार बताते हैं, जैसे नाग बिरादरी, अर्ध दैवीय बिरादरी है और नाग का मतलब सांप नहीं होता है क्योंकि संस्कृत में नाग का मतलब होता है जिसका रूप निश्चित ना हो | नाग लोग भगवान् शिव के ही रूप भगवान् वासुकी की पूजा करते हैं |

नाग लोग अपने उन्नत हथियारों और युद्ध वीरता के लिए पूरे ब्रह्माण्ड में प्रसिद्ध हैं इसलिए जब भी देवों का राक्षसों से युद्ध होता है, देवता नागों को अपनी मदद के लिए जरूर बुलाते हैं | नाग प्रजाति अपने वचन की भी पक्की होते हैं | अपने रूप सौन्दर्य के लिए भी ये नाग प्रजाति जगत प्रसिद्ध है |

ज्यादातर यक्ष अमित आयु के होते हैं | कहने का तात्पर्य यह कि इनकी शारीरिक संरचना इस प्रकार से होती है कि इनकी नाभि के जिस कोटर में प्राण होता हैं उस कोटर पर अमृत तत्व का खोल चढ़ा होता है जिससे ये सामान्य परिस्थितियों में तब तक जीते हैं जब तक इनका जीने से मन उब नहीं जाता है | देह त्यागने के लिए जैसे ही वो उस अमृत को यौगिक क्रिया से सुखाते हैं उनका शरीर तुरन्त गलकर समाप्त हो जाता है | इन यक्षों के राजा कुबेर हैं जो अथाह संपत्ति और दुर्लभ रत्नों के स्वामी हैं | श्री कुबेर खुद एक महान शिव भक्त भी हैं और भगवान् शिव के आशीर्वाद से ही वे धन पति बने |

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गन्धर्व प्रजाति के प्राणी नृत्य, संगीत और व्यूह रचना के विशिष्ट महारथी होते हैं | संगीत का विज्ञान इतना बड़ा है कि इसका ओर छोर मिल पाना सम्भव नहीं हैं | संगीत कला की मुख्य अधिष्ठात्री महामाया देवी सरस्वती जी हैं | प्राचीन शास्त्रों में ऐसे ऐसे दुर्लभ संगीत का गान है जिनसे दुनिया का हर काम सिद्ध किया जा सकता है | महाभारत काल के युवराज दुर्योधन की माँ गांधारी, खुद एक गन्धर्व कन्या थी |

पितर, मानवों के वो सज्जन पूर्वज होते हैं जो अपने अच्छे कर्मों की वजह से पितर लोक में निवास पाते हैं | पितर लोक, एक दिव्य लोक है मतलब वहां हर सुख सुविधाएँ हैं पर इन सबके बावजूद कोई वहां लम्बा नहीं रहना चाहता क्योंकि पितर लोक में रहने वाले प्राणी, तृप्ती (संतुष्टि) के लिए, पृथ्वी पर स्थित अपने वंशजों पर निर्भर रहते हैं और इस कलियुग में कितने ऐसे सदाचारी वंशज बचे हैं जो अपने पूर्वजों के मरने के बाद उनका पिण्ड दान, श्राद्ध, तर्पण आदि नियम से और पूरे विधि विधान से करें | अगर कोई वंशज नियम से करता है तो उसे उसके पूर्वज का बेहद कीमती आशीर्वाद मिलता है जो उसके जीवन में बहुत काम आता है |

देवताओं के लोकों में भी कई अलग अलग स्तर होता है | सप्तस्तर तक विकसित आयामों वाली सृष्टि में रहने वाले देवता सर्वोच्च शक्तिशाली कहे जाते हैं | कुछ मनुष्य देवताओं को ही भगवान् समझते हैं जो की गलत है | देवता भी मनुष्यों की तरह, पर मनुष्यों से ऊची, जीवों की प्रजाति है |

अगर हम केवल अपनी पृथ्वी को देखें तो पायेंगे की हमारी पृथ्वी खुद इतनी विशाल है की आज तक उसके हजारों रहस्यों को कोई समझ नहीं पाया, तो पृथ्वी जैसे ही अन्य कई लोकों से मिलकर एक ब्रहमांड का निर्माण होता है |

ऐसे ही अनन्त ब्रह्माण्ड भगवान् श्री विष्णु के हर एक एक रोम में समाये हुए हैं और अपने ऐसे ही परम विराट रुप का जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में दर्शन दिया था तो अर्जुन जैसे बहादुर योद्धा का भी कलेजा भय से मुंह में आ गया था | उन परम रहस्यमय ईश्वर की ये महती कृपा ही है की हम साधारण मनुष्य भी उन्हें समझने के प्रयास में कुछ आगे बढ़ पाते हैं |

क्रमशः

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