हज़ारों वर्ष जीवित रखने वाली रहस्यमय भारतीय विद्या
भारतवर्ष में अंग्रेजी राज के दौरान अंग्रेज सैन्य ऑफिसर श्री एल. पी. फेरल काफी समय तक भारतीय सेना के प्रधान बने रहे | संयोग से आध्यात्मिक विद्या में उनकी गहरी रुची शुरू से ही थी | इसलिए जब उन्हें उनकी सेवाओं के लिए भारत जाने का अवसर मिला तो यहाँ आते ही उन्होंने इसकी गहरी छानबीन एवं अनुसंधान शुरू कर दिया |
उन्होंने भारतवर्ष के दिव्य मंदिरों एवं सिद्ध योगियों की क्रियाओं के बारे में पहले से ही सुन रखा था | वे इन सब से बहुत प्रभावित थे | इस देश में बिताये समय के दौरान उन्होंने अपनी आँखों देखी एक अद्भुत घटना का वर्णन अपने ही शब्दों में किया है, जो इस प्रकार से है |
“अनादि काल से मानव स्वयं से पूछता रहा है कि ‘मनुष्य या मानव क्या है?’, वह कहां से आता है और कहां चला जाता है? उसका प्रारंभ इसी जन्म से होता है अथवा इस जन्म से पहले भी उसका अस्तित्व था? यदि उसका कोई अस्तित्व था तो किस रूप में? क्या मृत्यु ही मानवीय जीवन की अंतिम परिणति है, उसके बाद कुछ नहीं? |
बहुत सारे पश्चिमी विद्वान एवं महान लेखकों ने इस सवाल पर कई ग्रन्थ लिखा है लेकिन यह भी सत्य है कि संसार के किसी भी विज्ञान में अभी तक इस प्रकार के रहस्यपूर्ण प्रश्नों को समझने या समझाने के लिए किसी माध्यम का अविष्कार नहीं हो सका है |
मैं अपने विद्यार्थी जीवन से ही इस विषय में गहरी दिलचस्पी लेता रहा हूं | अतः इस विषय में मैंने बहुत से विद्वानों के ग्रंथों का अध्ययन किया, जिन्होंने मेरे मन पर गहरा असर डाला | समय बीतता गया | मैं एक विद्यार्थी के जीवन से फौजी जीवन में प्रविष्ट हुआ |
सैनिक जीवन में प्रवेश करने के बाद मै अनुशासन, शिष्टाचार तथा सत्ता आदि के प्रति आकर्षित होने लगा | लेकिन इतना सब होने पर भी मेरी अंतश्चेतना पर इस प्रकार की सामग्री अज्ञात रूप से एकत्र होती रही, जिसे प्रज्वलित करने के लिए बस एक छोटी सी चिंगारी की जरूरत थी |
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सन 1937 में, मैं भारत में एक उच्च सैन्य पद पर काम करने आया | हिंदुओं का रहस्यमय देश ‘भारत’ मेरे लिए एक नयी जगह, नया अनुभव था, जिसके बारे में मैंने बहुत कुछ पढ़ा और सुना था |
इसलिए अवकाश के समय में, मै भारतीय भाषाओं, प्रथा-पद्धतियों, धर्म संप्रदायों और विशेष रूप से मुक्ति प्राप्त करने के सिद्धांतों का अध्ययन करने लगा, लेकिन उसी दौरान घटी एक घटना ने, रहस्यमय भारतीय साधुओं की ओर अचानक ही मेरे मन को खींच लिया |
मेरा ख्याल है कि यह घटना सन 1939 के आसपास की रही होगी | भारतीय प्रदेश आसाम और वर्मा की सरहद पर एक नदी के किनारे मै कुछ अफसरों के साथ एक सैन्य योजना बनाने में लगा हुआ था | उस नदी के दूसरे किनारे पर एक घना जंगल था और बीच में नदी का गहरा नीला पानी शांति से बह रहा था |
इसी बीच काफी दूरी पर नदी के पानी में हम सब ने एक विचित्र चीज बहती हुई देखी | दूर से देखने पर समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या चीज थी | मन में तीव्र जिज्ञासा पैदा होने पर, उत्तर जानने के लिए मैंने एक ताकतवर टेलिस्कोप लिया और सामने की ओर देखा |
नदी में बहने वाली वो चीज एक नवयुवक की लाश थी, जिसे नदी से बाहर निकालने के लिए एक सफेद दाढ़ी वाला, अस्थि-कंकाल मात्र, बूढ़ा आदमी कोशिश कर रहा था | साथी अफसरों का ध्यान खींचे जाने पर उन्होंने भी टेलिस्कोप का प्रयोग किया |
हम सब ने देखा कि उस बूढ़े आदमी ने लाश को बाहर निकाला और उसे वह नजदीक के एक पेड़ के पीछे ले गया | कुछ देर तक हम बारीकी से उसकी हर गतिविधि को देखते रहे | अब तक हमारी दिलचस्पी काफी बढ़ चुकी थी |
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फिर हमने आश्चर्य से देखा कि वह लाश, जिसे वहाँ उपस्थित सारे लोग मरा हुआ समझ रहे थे, उसी गीली पोशाक में एक जीवित आदमी की तरह चलती जा रही थी | मैं हक्का-बक्का रह गया और मैंने तुरंत सीटी बजाई | इस पर मेरे कुछ आदमी आ गए | मैंने उन्हें उस व्यक्ति को पकड़ने का हुक्म दिया, जो कुछ मिनट पहले ही एक लाश के रूप में मेरे सामने नदी में बह रहा था |
उस आदमी को पकड़ कर ऑफिस में मेरे सामने पेश किया गया | मैंने पूछा ‘तुम कौन हो, अभी कुछ समय पहले तक तो तुम एक मुर्दा आदमी के रूप में बहे जा रहे थे और अभी तुम जिंदा हो | यह सब क्या रहस्य है? और वह बूढ़ा आदमी कहां गया, जो तुम्हे नदी से बाहर निकाल कर लाया’? इसका जो उत्तर उसने दिया उससे मै अचम्भित रह गया |
उसने कहा वह स्वयं वही बूढ़ा आदमी है | थोड़ा गहराई से सवाल जवाब करने पर उसने रहस्योद्घाटन किया कि ‘वह योग जानता है | कड़ी तपस्या करने से वह ऐसा तरीका जान गया है जिससे वह अपनी शरीर, अपनी इच्छानुसार बदल सके |
वह अपनी इच्छा से आदमियों में या प्राणियों के शरीर में अपनी जीवात्मा को प्रविष्ट करा सकता है, परन्तु एक जीवित व्यक्ति के शरीर में किसी जीवात्मा का प्रवेश कराना पाप है इसलिए बूढ़ा होने पर जब वह किसी नवयुवक की लाश देखता है, तब वह अपनी जीवात्मा को उसके शरीर में प्रविष्ट करा देता है क्योंकि बूढ़े शरीर से चलना फिरना भी कठिन हो जाता है’ |
मेरे लिए यह एक चमत्कार था | मैं इस पर विश्वास ना कर सका | मैंने उससे पूछा ‘उस बूढ़े आदमी का शरीर कहां है?’ मुझे बतलाया गया कि उस पेड़ के पीछे वह निर्जीव शरीर पड़ा है’ | मेरे हुक्म पर वह लाश मेरे सामने लायी गयी और वास्तव में यह चमत्कार एक निर्णीत्त तथ्य बन गया |
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मैंने उस नवयुवक को अपने यहां एक मेहमान के रूप में ठहरने का आमंत्रण दिया, परंतु मुझे अत्यधिक दुःख व बेचैनी हुई जब उसने उसी रात को वह ठिकाना छोड़ दिया और उसके बाद मैं कभी उसका पता नहीं लगा सका |
उस घटना ने मुझे आत्मा के रहस्य को जानने के लिए अन्दर तक बेचैन कर दिया, परंतु वर्षों प्रयत्न करने के बाद भी पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण में निरंतर खोज करने पर भी मैं उस आदमी का पता नहीं लगा सका | कई वर्षों तक मैं बड़े विद्वानों, साधुओं और योगियों से मिलता रहा | वे योग, वेद, तथा गीता के सिद्धांतों पर प्रकाश डालते रहे, परंतु कोई भी व्यवहारिक परीक्षण द्वारा इन्हें दिखाने में समर्थ नहीं हुए |
मै हिन्दुओं के बहुत से तीर्थ स्थानों पर गया, जहां बड़ी इज्जत तथा सम्मान से मेरा स्वागत किया गया; परंतु इन सब का कोई भी सार्थक परिणाम नहीं निकला” |
समस्त प्रकार की रहस्यमयी विद्याओं का उद्गम स्थल है हिन्दू धर्म | इन रहस्यमयी विद्याओं के जानकार हमारे आपके बीच में ही हो सकते है | लेकिन वो कभी भी इनका प्रदर्शन नहीं करते | हम सभी सौभाग्यशाली हैं जो ऐसे देश, ऐसी संस्कृति में पैदा हुए जहाँ बाहरी और दूसरी दुनिया से भी लोग सीखने और यहीं का हो जाने के लिए आते हैं |