आधुनिक दुनिया में प्रेतों के अस्तित्व को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं | ‘तथाकथित’ बुद्धिजीवी और आधुनिक रहन-सहन के तौर-तरीकों को पसंद करने वाले लोग सामान्यतः इनके अस्तित्व को नकारते हैं और कभी-कभी अपने प्रिय लोगों के बीच इनका मजाक बना कर आनंदित भी होते हैं |
लेकिन हर वो चीज जो दिखाई और सुनाई न दे, जरूरी नहीं कि उसका अस्तित्व ही न हो ! ईश्वर न करे कभी इनका सामना वास्तविक प्रेत से हो क्योकि सामना होने पर सबसे अधिक आतंकित भी ऐसे ही लोग होते हैं |
प्रेतों के विषय में आधुनिक मनीषी जैसे स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविन्द आदि ने अपने तथ्यपूर्ण विचार रखे हैं लेकिन उनका वर्णन किसी और प्रकरण में करेंगे |
कई बार ऐसा भी होता है कि शरीर छोड़ने के बाद आत्मा को पता ही नहीं चलता कि कब उसने इस दुनिया से विदा ले ली | ऐसा सामान्यतः तब होता है जब एक जन्म के बाद, दूसरा जन्म ग्रहण करने से पहले, उसे अपने बचे हुए कर्म-फल को बहुत ही सीमित शक्तियों के साथ भोगना होता है | ये समयान्तराल बहुत कष्टकारी हो सकता है लेकिन किसी सामान्य व्यक्ति के लिए उस आत्मा की पीड़ा को समझ पाना मुश्किल होता है |
लन्दन के बेलग्राविया जिले का इटन स्क्वायर, वहां के संपन्न नागरिकों की एक शानदार बस्ती, समय 22 जून 1893 की शाम वहां आयोजित एक समारोह में अचानक भगदड़ मच गयी | वहां के हास-परिहास का वातावरण अचानक चीख-पुकार और भय के माहोल में बदल गया |
वहां उपस्थित भद्र पुरुषों और महिलाओं में श्रीमती ट्रायन तब भौंचक्की रह गयी जब उन्होंने हांथ बढ़ाकर, नौसेना की वर्दी पहने, अपने पति सर जॉर्ज ट्रायन को छूना चाहा और उनका हांथ उनके पति के शरीर के आर-पार निकल गया |
ये दृश्य देखकर वहां उपस्थित कई लोगों के गले से चीख निकल गयी और श्रीमती ट्रायन तो सदमे से लगभग बेहोश हो गयी | उसी समय एक वृद्ध महिला ने वाईस एडमिरल सर जॉर्ज ट्रायन से आश्चर्यचकित होकर पूछा कि क्या आप जीवित हैं ? जॉर्ज ट्रायन इससे पहले कोई जवाब दे पाते, अचानक से ग़ायब हो गए |
ग़ायब होने से पहले लोगों ने सर जॉर्ज ट्रायन के चेहरे पर आश्चर्य और एक गहरे अविश्वास का भाव स्पष्ट रूप से देखा | लगभग ठीक उसी वक्त के आस-पास, वे, ब्रिटेन के शाही नौसैनिक बड़े, एच. एम्. एस. विक्टोरिया (H.M.S. Victoria) के सारे जहाजों के साथ सीरिया के त्रिपोली के निकट समंदर में डूब चुके थे |
लम्बे चौड़े कद-काठी के सर जॉर्ज ट्रायन अपने दमदार और रोबीले स्वाभाव की वजह से भी जाने जाते थे | ब्रिटेन का शाही नौसैनिक बेड़ा एच. एम्. एस. विक्टोरिया काफ़ी शक्तिशाली बेड़ा था जिसकी कमान सर जॉर्ज ट्रायन को सौपी गयी थी |
उस दिन आसमान साफ़ था जब हज़ारों लोगो की भीड़ और सेना के उच्चाधिकारियों के सामने वो नौसेनिक बेड़ा अपने नियमित अभ्यास पर था | सर ट्रायन उस अभ्यास की प्रकृति को गुप्त रखना चाहते थे क्योकि वो अपने मातहतों को, अचानक से पैदा हुई दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों से कैसे पार पाया जाय, ये सिखाना चाह रहे थे |
उन्होंने अपने पूरे बेड़े को दो भाग में बांटा | एक भाग, एच. एम्. एस. विक्ट्री, का नेतृत्व वो स्वयं कर रहे थे और दूसरे भाग, एच. एम्. एस. कैंपर डाउन का नेतृत्व उन्होंने अपने डिप्टी कमांडर एडमिरल हेस्टिंग्स मार्खम को दिया | दोनों भागों को उन्होंने एक समानांतर कॉलम (Column) की तरह आगे बढ़ने का निर्देश दिया |
थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर उन्होंने अचानक से एक बड़ा विचित्र और भयावह आदेश दिया | उन्होंने दोनों बेडो को अचानक से 180 डिग्री पर घूम कर (वो भी एक दूसरे की दिशा में) जिस रास्ते से आये थे उसी रास्ते से, वापस जाने का आदेश दिया | सीधी सरल भाषा में कहें तो यू-टर्न लेने का आदेश दिया वो भी एक-दूसरे की दिशा में |
अगर इन दोनों बेड़ों के बीच कम से कम 1500 मीटर की दूरी रही होती तो वो बेड़े आपस में टकराने से बच सकते थे लेकिन उनके बीच की दूरी 1000 मीटर के करीब थी | दोनों बेड़ों पर मौज़ूद अधिकारियों और सैनिकों के हांथ-पांव फूल गए, मृत्यु आसन्न थी, और हुआ भी वही जिसका डर था |
दोनों बेड़े आपस में टकराए और वाईस एडमिरल सर जॉर्ज ट्रायन अपने कई अधिकारियों और सैनिकों के साथ समंदर की गहराइयों में समा गए | सर ट्रायन के मुख से आखिरी शब्द यही निकले कि “सब मेरी गलती की वजह से हुआ है” |
लगभग इसी समय वो अपनी पूरी नौसैनिक वर्दी में सजे अपने निवास पर आयोजित समारोह में दिखे | बाद में इस दुखद समाचार के मिलने पर प्रत्यक्षदर्शियों ने अनुमान लगाया की उन्होंने उस शाम सर ट्रायन का प्रेत देखा था |
जीवन जीने पर हमारा अधिकार हो सकता है लेकिन मृत्यु पर नहीं | मृत्यु भी केवल, इस दुनिया के सारे कारोबार समेट कर दूसरी दुनिया में जाने का माध्यम मात्र है | और अनिश्चितता से भरे इस संसार में, दूसरी दुनिया से बुलावा कभी भी आ सकता है इसलिए हमें इसके लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए |
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