दूसरी दुनिया से आये हरी त्वचा वाले भाई-बहन का रहस्य

098एक अद्भुत प्रसंग की चर्चा 12 वीं सदी के ब्रिडलिंगटन के विख्यात संत विलियम ऑफ न्यूवर्ग ने अपनी कृति “हिस्टोरिया रेरम एंग्लिकैरम” में की है। वे लिखते हैं कि आज भी इंग्लैण्ड में यहाँ-वहां दो अलौकिक हरे बालकों का जिक्र होता रहता है। घटना तब की है, जब इंग्लैण्ड में हेनरी द्वितीय (1154−89) का शासन था।

एक दिन दो हरी त्वचा वाले भाई−बहन “मेरी डी उल्पिट्स” नामक स्थान पर एक रहस्यमय छिद्र से बाहर आये। उनके हाथ−पैर मनुष्यों जैसे थे, चमड़ी का रंग गहरा हरा था। वे विचित्र रंग की पोशाक पहने थे। उनके कपड़े किस पदार्थ (Material) के बने थे, यह नहीं जाना जा सका। जब वे सुराख से बाहर आये, तो बड़ी देर तक आश्चर्य चकित हो मैदान में इधर−उधर टहलते रहे।

अन्ततः किसानों ने उन्हें पकड़ लिया और वाइक्स में रिचर्ड डी कैल्नी के घर ले आये। कई महीनों के बाद उनकी त्वचा का रंग बदल गया। वे सामान्य मनुष्यों के रंग के हो गये। इसी बीच भाई बीमार पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई। बहन जीवित रही। बाद में उसने लीन के सम्राट से शादी कर ली।

जब उस लड़की से उसके इस दुनिया में पहुँचने का रहस्य पूछा गया, तो उसने कहा कि एक दिन वे दोनों भेड़ चराते हुए एक गुफा के द्वार पर पहुँच गये। जब उसमें प्रवेश किया, तो उससे घंटी जैसी अत्यन्त सुरीली ध्वनि आती सुनाई पड़ी। इसके उद्गम−स्रोत का पता लगाने के लिए वे बड़ी देर तक उस माँद में घूमते रहे और अन्ततोगत्वा इस संसार में पहुँच गये।

लड़की का कहना था कि इस लोक में आने के पश्चात् वे बहुत समय तक मैदान में यहाँ−वहाँ फिरते रहे। जब−ऊब गये, तो पुनः अपने लोक में लौट जाने की इच्छा हुई। उनने गुफा−द्वारा खोजना शुरू किया, पर उसे ढूँढ़ पाने में सफल न हो सके और ग्रामीणों द्वारा पकड़ लिये गये।

जब उससे उसके संसार के संबंध में पूछा गया, तो लड़की का कहना था कि वहाँ न तो यहाँ जैसी गर्मी है, ना प्रकाश। उस लोक को प्रकाशित करने वाला सूर्य जैसा कोई देदीप्यमान पिण्ड वहाँ नहीं है, किन्तु ऐसा भी नहीं कि वह संसार पूर्णतः अंधकारमय हो। एक सौम्य शीतल प्रकाश उस संसार को सदा प्रकाशित किये रहता है।

वह स्वयं को संत मार्टिन के राज्य का बताया करती थी (उससे प्रश्न पूछने वाले के अनुसार) और यह भी कि उसे पता नहीं उसका लोक किस ओर है। वह अक्सर कहा करती थी कि उसके अपने विश्व के नजदीक ही यहाँ जैसा प्रकाशवान एक अन्य लोक है, पर दोनों के बीच एक विशाल अगम्य नदी है |

राल्फ ऑफ काँगशैल (एसेक्स) ने इस घटना का उल्लेख अपनी पुस्तक “क्रोनिकन एग्लिकैरम” में किया है। इसके अतिरिक्त जारवेस ऑफ टिलबरी की कृति में भी इसका वर्णन आता है। प्रसिद्ध विद्वान अगस्टीनियन न्यूवर्ग ने अपने ग्रन्थ में एक स्थान पर इस प्रकरण पर अपना मन्तव्य प्रकट करते हुए लिखते हैं कि यद्यपि अनेकों ने इस प्रसंग को दावे के साथ चर्चा की है, फिर भी लम्बे समय तक वे इस संबंध में संदेह शील बने रहे।

उनका कहना था कि जिसका कोई तर्काधार ही न हो, उस पर अचानक कैसे विश्वास कर लिया जाय? उसे स्वीकारने के लिए बुद्धि को कैसे सहमत किया जाय? किन्तु फिर भी बाध्य होकर उन्हें ऐसा करना पड़ा। इसका कारण बताते हुए वे कहते हैं कि उनकी मुलाकात ऐसी कितनी ही प्रामाणिक साक्षियों से हुई, जिन पर शक करने का कोई कारण नहीं था, इसलिए इसे सत्य मान लेना पड़ा। यद्यपि उनकी स्वयं की बुद्धि इसे कभी समझ और सुलझा नहीं पायी |

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