यदि आप अपने बच्चे से पढ़ाई में मन लगाने के लिए बार-बार कह-कह कर थक गये हों लेकिन इसके बावजूद वह स्टडी में रुचि नहीं ले रहा है तो उसके स्टडी रूम को ध्यान से देखिये और पता लगाइये ऐसे कौन से बाधक तत्व हैं जो बच्चे को पढ़ाई में मन लगाने रोक रहें हैं, क्योंकि आपके बच्चे का स्टडी में मन न लगने का कारण यह भी हो सकता है कि उसकी स्टडी रूम में कोई वास्तु दोष हो।
हम उसके स्टडी रूम में थोड़ा सा बदलाव लाकर बच्चे के मन मस्तिष्क में पढ़ाई के प्रति रुचि जगा सकते हैं। इस विषय पर वास्तु शास्त्र में सैकड़ों शोध किये गए तब जाकर कुछ सार्थक तत्व निकल कर आये। वही बहुमूल्य सुझाव हम आपके लिये लेकर आयेहैं । पहली महत्वपूर्ण बात यह है कि बच्चे की पढ़ाई का कमरा बहुत बड़ा नहीं होना चाहिए न ही उसमें अत्यधिक फर्नीचर होना चाहिए।
उस कमरे में बच्चे के काम लायक फर्नीचर ही होना चाहिए क्योंकि स्टडी रूम में अधिक कुर्सी-मेज आदि बच्चे के मन में भटकाव लाते हैं। यदि उस कमरे में फर्नीचर के नाम पर दो कुर्सी और एक टेबल और एक किताबों के लिये एक आलमारी हो तो पर्याप्त है। बच्चे के सोने और पढ़ने का कमरा अलग-अलग होना चाहिए क्यों की यदि पढ़ाई और सोने का कमरा एक होगा तो बच्चे तो बच्चे के मन में आलस्य जागेगा जो उसके अध्ययन में बाधा पहुँचायेगा।
स्टडी रूम में बहुत सारी तस्वीरें या बहुत सारी साज-सजाव की वस्तुएं नहीं होना चाहिए क्योंकि स्टडी रूम में बहुत सारी तस्वीरें या सामान बच्चे के ध्यान को भंग करते हैं। अगर चाहे तो अध्ययन कक्ष में प्रेरणा देने वाली एक-दो तस्वीरें अवश्य लगा सकते हैं। वास्तु की दृष्टि से भागते हुए घोड़ों का चित्र बच्चे के मन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इसके अतिरिक्त बुद्धि के देवता भगवान गणेश या विद्या की देवी मां सरस्वती का चित्र वातावरण को आध्यात्मिक बनाता है।
बच्चे की पढ़ाई करते समय उसके मुख की दिशा का बहुत बड़ा महत्व है। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर पूर्व दिशा में बैठकर पढ़ाई करना सर्वोत्तम है। इसके अलावा पूर्व, पश्चिम या उत्तर दिशा में मुँह करके भी पढ़ाई कर सकते हैं। बस ध्यान देने की बात यह है कि दक्षिण दिशा में कभी मुंह करके स्टडी नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस दिशा में मुंह करके पढ़ा हुआ भूल जाता है।
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उचित दिशा में मुंह करके अध्ययन करने से बच्चे का बुध, गुरु, चंद्र और शुक्र ग्रह मजबूत होता है। वह उसे कुशाग्र बनाता है। बच्चे की पढ़ाई वाले कमरे में पर्याप्त रौशनी होनी चाहिए। यदि दिन के समय प्राकृतिक प्रकाश कमरे में आता है तो सर्वोत्तम है। क्योंकि सूर्य का प्रकाश बच्चे में सकारात्मक ऊर्जा को उत्पन्न करता है और उसे बुद्धिमान बनाता है।
प्रकाश के मामले में एक और महत्वपूर्ण वास्तु टिप्स यह है कि यदि बच्चे की स्टडी टेबल पर टेबल लैंप रखते हैं तो उसकी एकाग्रता में विकास होता है। क्योंकि टेबल लैंप का प्रकाश केवल कॉपी-किताबों पर होता है तो ऐसी दशा में बच्चे की दृष्टि भी अपनी कॉपी या किताब पर टिकी रहेगी। जिससे उसका सारा ध्यान अपने अध्ययन सामग्री पर रहेगा। इधर-उधर भटकेगा नहीं।
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बच्चे की स्टडी रूम के रंग के संबंध में वास्तु शास्त्रियों ने काफी अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यदि स्टडी रूम की दीवारों का रंग पीला या हरा होगा तो सर्वोत्तम है। लेकिन स्टडी रूम के परदों का रंग, हरा, नीला या पीला कोई भी हो सकता है। स्टडी रूम में रखे हुए फर्नीचर की दिशा का भी अपना महत्व है। कमरे में किताबों की अलमारी या रैक पूर्व या उत्तर दिशा में होनी चाहिए।
यह ध्यान देना चाहिए कि स्टडी टेबल दीवार से सटी हुई हो। बच्चे की बैठने वाली कुर्सी के पीछे दीवार होनी चाहिए। उसके पीठ पीछे खुली हुई खिड़की या ओपन एरिया बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। एक महत्वपूर्ण बात यह कि स्टडी रूम से सटा हुआ वॉशरूम कभी नहीं होना चाहिए। क्योंकि वॉशरूम नेगेटिव ऊर्जा पैदा करता है। जबकि बच्चे को सकारात्मक ऊर्जा की आवश्यकता है। स्टडी रूम साफ-सुथरा होना चाहिए।
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हर वस्तु अपने-अपने निश्चित स्थान पर रखी हुई हो। कोई सामान बिखरा हुआ न हो। कमरे में हल्की सी सुगंध हो तो बहुत अच्छा होगा। बच्चे के स्टडी रूम में आस पास की आवाजें कमरे में नहीं जानी चाहिए। क्योंकि वास्तु के अनुसार यह आवाजें उसके मन को विचलित करती हैं। उसे अपने लक्ष्य तक पहुँचने से रोकती हैं। इसलिय बच्चे का स्टडी रूम मकान के शांत एरिये में होना चाहिये।
बच्चे का स्टडी रूम ऐसी जगह होना चाहिए जहाँ लोगों का आवागमन कम से कम हो। क्योंकि स्टडी रूम में आने-जाने का रास्ता होने के कारण बच्चे का ध्यान पढ़ाई में कम लगेगा। बच्चे की पढ़ाई के समय उस कमरे में परिवार का अन्य कोई सदस्य पढ़-लिख तो सकता है लेकिन स्टडी रूम में पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य कोई गतिविधि स्टडी को बाधित करती है।
वास्तुशास्त्र की यह छोटी-छोटी बातें बहुत कीमती हैं। यदि हम उनके नियमों का पालन करते तो हैं तो उनके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं। अच्छा यही होगा कि मकान बनाते समय हम यह पहले से निश्चित कर लें कि स्टडी रूम कहाँ होगा? तब दिशाओं आदि का ध्यान रखकर कमरे का निर्माण करें तो अति उत्तम रहेगा।