महाभारत के युद्ध में दुशासन की दर्दनाक मौत का वर्णन जिस किसी ने भी पढ़ा वह अंदर तक कांप गया। किसी पापी को उसके पाप के दंड के लिए ऐसी भी हृदय विदारक मौत मिल सकती है़, कोई नहीं जानता था। महाभारत के युद्ध में दुशासन वध के अत्यंत भयानक दृश्य को देखकर ऐसा लगता था कि युद्ध भूमि में गदाधारी भीम, दुशासन को उसके पापों की सजा देने के लिए अपने साथ अन्य शस्त्रों के अतिरिक्त एक और अमोघ शस्त्र लेकर आए थे।
वह शस्त्र था प्रतिशोध की ज्वाला, जो गदाधारी भीम के अंदर द्रौपदी के चीर हरण के समय उत्पन्न हुई थी। यह प्रतिशोध की अग्नि भीम के हृदय में उस समय लगातार प्रज्ज्वलित होती रही, जब तक की दुशासन का जीवन उस प्रतिशोध की आग में झुलस न गया।
दुशासन कौन था? उसका जघन्य अपराध क्या था जिसके कारण उसे दर्दनाक मौत मिली ? कब और किन वीर योद्धाओं के द्वारा दुशासन को मौत की सजा दी गई। दुशासन के मौत का समाचार सुनकर उनके पिता धृतराष्ट्र पर क्या प्रभाव पड़ा? यही सब है आज चर्चा का विषय।
दुशासन कौन था
दुशासन कुरु वंश का राजकुमार था। वह हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र का पुत्र था। दरअसल दुशासन के मौत की कहानी उसी दिन लिखी जा चुकी थी जब उसने अपने बड़े भाई दुर्योधन के कहने पर वह कार्य किया, जिसे देखकर विधाता भी लज्जित हो गए। यह निंदनीय घटना जहाँ घटी, वह कुरुवंश के महाराजा धृतराष्ट्र का दरबार था। जिस दरबार में पांडवों की पत्नी द्रौपदी का अपमान हुआ।
द्रौपदी की शपथ
यह अपमान इसलिए हुआ क्योंकि पांडव ने कौरवों के साथ जो ध्यूत क्रीड़ा (जुआ) की, और उसमें वह हार गए थे। इस जुए में पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर ने अपनी सारी सम्पति और राजपाट के अतिरिक्त अपनी पत्नी द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया था।
दुशासन ने भरी सभा में द्रौपदी को उसके बालों से पकड़कर घसीटा। फिर उसने सबके सामने द्रौपदी को नग्न करने का प्रयास किया। उसी समय द्रौपदी ने घायल सिंहनी की तरह गरजकर शपथ ली कि वह तब तक अपने केश को नहीं बांधेगी जब तक उन्हें दुशासन के रक्त से नहीं भिगो लेती।
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दरअसल पौराणिक गाथाओं के अनुसार महारानी द्रौपदी का चीरहरण वह हृदय विदारक घटना थी, जिसे देखकर अपने धाम में बैठे विधाता का हृदय भी द्रवित हो गया था। कहते हैं कि उसी समय देवताओं ने द्रौपदी को यह वरदान दिया कि हे द्रौपदी, तेरी दुशासन से प्रतिशोध की यह अभिलाषा अवश्य पूर्ण होगी।
दुःशासन और भीम का युद्ध
कौरव और पांडव के बीच कुरुक्षेत्र की रणभूमि में चलने वाला महाभारत का युद्ध 18 दिन चला। जिसमें कौरव पक्ष के महारथी एक के बाद एक मारे गए और अंत में पांडव पक्ष की विजय हुई। लेकिन महाभारत की युद्धभूमि में अन्य योद्धाओं के बीच हुए युद्ध की तरह ही दुशासन और गदाधारी भीम के बीच हुये घमासान युद्ध को भी इतिहास प्रसिद्ध बताया जाता है।
कुछ विद्वानों के शोध के अनुसार गदाधारी भीम और दुशासन के मध्य तुमुल युद्ध हुआ था। यह वह युद्ध का तरीका है जिसमें योद्धाओं द्वारा आक्रामक रवैया को अपनाया जाता है। जिस दिन भीम और दुशासन के मध्य युध्द हुआ। आकाश में चारों दिशाएं रक्त की तरह लाल थीं। सर्वप्रथम दुशासन और भीम के मध्य युद्ध धनुष बाण के माध्यम से आरंभ हुआ।
दोनों तरफ बाणों की बौछार दिखाई देने लगी। लड़ते-लड़ते दुशासन ने अपने एक बाण से भीम का धनुष काट डाला। उसके बाद भीम ने अपने दिव्य प्रभाव से पुनः पहले से अधिक शक्तिशाली धनुष प्राप्त कर लिया। कहते हैं कि यह धनुष वज्र के समान कठोर था। इस बार फिर दुशासन ने भीम का धनुष काटने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रहा। दोनों योद्धा निरंतर एक दूसरे पर अस्त्र-शस्त्र की बौछार कर रहे थे।
दुशासन बार-बार गदाधारी भीम पर हावी होना चाहता था। लेकिन असफल रहता था। पांडवों की पत्नी द्रोपदी भी अपने विमान में, आकाश मार्ग से आकर, अंतरिक्ष से दुशासन और भीम के बीच हो रहे युद्ध को देख रही थी। साथ ही भगवान कृष्ण से प्रार्थना कर रही थी कि हे भगवन, शीघ्र से शीघ्र पापी दुशासन को उसके पापों का दंड मिले। ताकि द्रौपदी के हृदय को शीतलता प्राप्त हो सके। युद्ध में गदाधारी भीम का पराक्रम और एक नारी का श्राप दोनों ही दुशासन को क्षीण बना रहा था।
अपनी मृत्यु को सामने देख कर दुःशासन डर गया
दुशासन जब भीम से युद्ध कर रहा था तो उसे एक बार तो ऐसा लगा कि जैसे भैंसे पर बैठकर मृत्यु के देवता यमराज आकाश मार्ग में उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। अपनी मौत सामने देखकर दुशासन बुरी तरह डर गया। दुशासन और भीम के मध्य धनुष बाण का युद्ध अधिक देर नहीं चल सका। भीम ने अपनी गदा से दुशासन का धनुष बाण तोड़ डाला। इसके बाद गदाधारी भीम ने दुशासन पर लगातार सैकड़ों गदाओं का तेज वेग के साथ प्रहार किया।
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दुशासन बुरी तरह घबरा गया। क्योंकि दुशासन को भीम के इस आक्रामक रवैया का अनुमान ही नहीं था। भीम के द्वारा दुशासन की तरफ फेंके गए गदाओं से वह बुरी तरह घायल हो गया। अब दुशासन अपने आपको बहुत निसहाय अनुभव कर रहा था। युद्ध भूमि में ऐसा लग रहा था कि मानो भीम नामक शक्तियों का पुंज दुशासन को प्राणहीन करने के लिए आमादा है।
तभी भीम ने हाथ जोड़कर एक शत्रु संहारक मंत्र पढ़ा तो उनके हाथ में चमत्कारिक रूप से एक अदभुत विशाल गदा आ प्रकट हो गई। भीम ने गदा को हवा में घुमाकर तीव्र गति से दुशासन के मस्तक को निशाना बनाकर उस पर प्रहार किया। भीम के द्वारा फेंकी हुई गदा दुशासन के मस्तक पर लगी ।
जिसके कारण उसके सर से रक्त की धारा फूट निकली। दुशासन मूर्छित होकर धरती पर जा गिरा। लेकिन थोड़ी देर बाद दुशासन अपनी शक्ति को वापस पाकर उठ खड़ा हुआ। भीम भी एक क्रोधित सिंह की भांति दुशासन पर झपटा और एक बार फिर तुमुल रीति से अपनी गदा से दुशासन के कंधे पर प्रहार किया। दुशासन अब अपने आपको संभाल नहीं पाया और धरती पर जा गिरा।
अब गदाधारी भीम दुशासन को कोई अवसर नहीं देना चाहते थे। इसलिए वह दौड़ कर विद्युत गति से दुशासन की छाती पर सवार हो गये और अपनी गदा से दुशासन का सर फोड़ डाला। जिसके कारण सर से रक्त की तेज धारा बह निकली ।
उसके बाद भीम ने दुशासन की एक भुजा को पकड़ा और खींचकर उखाड़ दिया। फिर उसे हवा में लहराते हुए उछाल दिया। फिर उसके बाद भीम ने दुशासन की दूसरी भुजा पकड़ी और उसे भी उखाड़ दिया। कहते हैं कि भीम ने दुःशासन की छाती चीर डाली और उसमें से निकलने वाले रक्त का पान करने लगा।
द्रौपदी की प्रतिज्ञा पूरी हुई
दुशासन का मस्तक पहले ही फूट चुका था। अब उसकी दोनों भुजाएं भी उखाड़ दी जा चुकी थीं। दुशासन का वध हो चुका था। कुरुक्षेत्र की रणभूमि दुशासन के रक्त से भीग रही थी। युद्ध भूमि में चारों तरफ दुशासन का रक्त ही रक्त बह रहा था।
अब तक अंतरिक्ष में स्थित अपने विमान में बैठी, युद्ध को देख रहीं महारानी द्रौपदी नीचे जमीन पर उतर आई और उन्होंने अपने हाथ की अंजुलि में दुशासन के बह रहे रक्त को भरा और उससे अपने केशों को भिगो लिया। द्रौपदी के अपमान का प्रतिशोध पूरा हो चुका था। दुशासन को उसके पापों का दंड मिल चुका था। दुशासन वध का वृतांत जब राजा धृतराष्ट्र ने संजय से सुना उनकी आंखों से अश्रु की धारा बह निकली।