जिस किसी ने भी भारत के आंध्र प्रदेश में स्थित तिरुपति बाला जी धाम के देवता भगवान श्री बालाजी वेंकटेश्वर स्वामी के बारे में जाना वह भगवान की लीला के सामने नतमस्तक हो गया। क्योंकि इस तिरुपति मंदिर के देवता भगवान विष्णु की पृथ्वी पर आने कि लीला बड़ी अदभुत है और सभी को आश्चर्यचकित करने वाली है़। यह बड़ी कौतूहल भरी कथा है। मन में यह प्रश्न उठता है़ कि वह कौन से कारण थे जिसकी वजह से भगवान विष्णु को बैकुण्ठ लोक से पृथ्वी लोक में निवास करने के लिए आना पड़ा।
इस संबंध में भगवान विष्णु जी की लक्ष्मी जी से विवाद होने की कहानी बहुत प्रचलित है़। कहा जाता है कि किसी बात पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी में असहमति हो गयी और लक्ष्मी जी उनसे रूठ कर धरती पर आ गईं और भगवान विष्णु भी उनके पीछे-पीछे पृथ्वी पर आ गये।
ऐसा कहा जाता है कि तभी से भगवान विष्णु भगवान वेंकटेश्वर स्वामी के स्वरूप में भारत के आंध्र प्रदेश क्षेत्र के चित्तूर जिले के ऊंची पहाड़ियों पर निवास कर रहे हैं। भगवान विष्णु से लक्ष्मी जी क्यों और किस बात पर रूठी और क्यों पृथ्वी लोक चलीआई? आइये जानते हैं यह पूरी पौराणिक अद्भुत गाथा क्या है़ ?
भगवान विष्णु के धरती पर बसने की कथा
कहा जाता है कि एक बार महर्षि भृगु भगवान विष्णु के धैर्य की परीक्षा लेना चाहते थे। इसी प्रयोजन से महर्षि भृगु एक बार भगवान विष्णु के निवास स्थान वैकुंठधाम में पधारे। उस समय भगवान विष्णु जी के शयन का समय था। भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग पर निद्रा अवस्था में थे। तभी महर्षि भृगु ने बैकुंठ धाम में प्रवेश किया।
महर्षि भृगु भगवान विष्णु की गहरी निद्रा को तोड़कर उन्हें क्रोधित करना चाहते थे ताकि भगवान अपना धैर्य खो दें और वह इस धैर्य की परीक्षा में पराजित हो जायें। भगवान विष्णु को नाराज करने के उद्देश्य से महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु के आसन शेषनाग पर अपने पांव से तेज प्रहार किया। जिसके कारण गहरी निद्रा में सो रहे भगवान विष्णु की निद्रा भंग हो गई। वहाँ बैठीं लक्ष्मी जी यह सारा दृश्य देख रही थीं।
उन्हें महर्षि भृगु का यह स्वभाव अच्छा नहीं लगा। उन्होंने उसी समय भगवान विष्णु से कहा कि वे महर्षि भृगु को इस उद्दण्डता के लिए घोर दंड दें ताकि महर्षि भृगु को अपने इस कृत्य की सजा मिल सके। लेकिन महर्षि भृगु द्वारा शेषनाग को आघात पहुंचाये जाने और अपनी गहरी नींद टूट जाने के बाद भी भगवान विष्णु ने महर्षि भृगु से प्रेम पूर्वक कहा कि हे मुनिवर, आपका हमारे वैकुंठ धाम में स्वागत है।
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आइये बैठिए, हमारे वैकुण्ठ धाम में, मैं आपकी सेवा में हर पल तत्पर हूँ। लक्ष्मी जी ने जब देखा कि भगवान विष्णु महर्षि भृगु को दण्ड देने के बजाय उनका सत्कार कर रहें हैं तो उनके हृदय को बड़ा आघात पहुँचा। लक्ष्मी जी के मन के अनुसार महर्षि भृगु को दंड न मिलने पर वह विष्णु जी से रूठ कर वह पृथ्वी लोक चली गयीं। भगवान विष्णु बहुत चिंतित हो गए।
फिर उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा तो पता चला कि लक्ष्मी जी पृथ्वी लोक में पद्मावती के रूप में अवतरित हो गयीं हैं। भगवान विष्णु ने विचार किया कि अब उन्हें भी पृथ्वी लोक जाना चाहिए और अपनी प्रिया लक्ष्मी को मनाना चाहिए। यह सोंचकर भगवान विष्णु भी पृथ्वी लोक पर पहुंच गए। लक्ष्मी जी ने जब भगवान विष्णु को पृथ्वी लोक में देखा तो उनका अद्भुत प्रेम देखकर वह अति प्रसन्न हो गईं।
अब उनके हृदय में भगवान विष्णु के प्रति तनिक भी क्रोध नहीं था। अब भगवान विष्णु ने और लक्ष्मी जी ने पृथ्वीवासियों के हित में पृथ्वी पर ही भगवान श्री वेंकटेश्वर तिरुपति बालाजी के रूप में दक्षिण की तिरुमला की पहाड़ियों पर निवास करने का मन बना लिया और इसी पहाड़ी पर बस गये। ऐसा कहा जाता है कि आज भी भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी अपने सजीव रूप में दक्षिण की तिरुमला की पहाड़ियों में स्थित हैं।
उनकी दैवीय शक्ति का आज भी लोगों को आभास होता है। तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध यह धाम भारत का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। भगवान विष्णु का यह धाम समुद्र तलसे 32000 फीट ऊंचाई पर स्थित है। पौराणिक ग्रंथों में तिरुपति बालाजी के इस मंदिर का त्रिवेंदगम नाम से उल्लेख किया गया है।
तिरुपति बालाजी धाम के 8 रहस्य
‘सात पहाड़ों वाले मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध तिरुपति बाला जी महाराज का धाम एक ऐसा धाम है़ जहाँ भक्तों को नये-नये चमत्कारों और रहस्यों की अनुभूति होती है़। समय-समय पर इस धाम के देवता अपने भक्तों को जीवंतता का आभास कराते रहते हैं। आइये जानते हैं तिरुपति बालाजी महाराज के धाम के वे अनसुलझे रहस्य जो सदियों से रहस्य बने हुये हैं।
- वेंकटेश्वर बालाजी मंदिर की स्थापना का रहस्य
दक्षिण भारत के इस तिरुपति बाला जी के भव्य मंदिर को कब किसके द्वारा बनवाया गया इस बात का कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिलता है। कुछ इतिहासकार इस मंदिर की स्थापना पांचवी शताब्दी के आसपास मानते हैं तो कुछ छठीं शताब्दी के। इस मंदिर की स्थापना के संबंध में चोल और विजयनगर के नरेशों का नाम लिया जाता है। लेकिन यह सब केवल एक अनुमान है। वास्तव में इस मंदिर का संस्थापक कौन था ? इसके बारे में कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलते हैं।
इतिहास बताता है़ कि इस स्थान को एक समय में कांचीपुरम के राजाओं ने अपने अधिकार में ले लिया था। जिसके बाद इस धाम को भव्य स्वरूप प्रदान किया गया। तत्पश्चात 15वीं सदी में विजयनगर के सम्राटों ने इस बालाजी मंदिर पर अपना आधिपत्य जमा लिया। कहते हैं कि जब विजय नगर के राजाओं ने इस तिरुपति बालाजी मंदिर को सुंदर बनाने के लिए और साज-श्रृंगार के लिए इस मंदिर में धन लगाया तो उन राजाओं के वैभव में चार गुना वृद्धि हुई।
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इसके बाद तो यह बात इतिहास प्रसिद्ध हो गई कि इस धाम के प्रभु धन के देवता हैं। तिरुपति बालाजी वह भगवान है जो भक्तों के द्वारा स्वयं भी अत्यंत धनवान रहते हैं अर्थात यहाँ आने वाले भक्तों की तरफ से प्रचुर मात्रा में धन का चढ़ावा आता हैं। कहा जाता है कि यह तिरुपति बालाजी मंदिर के द्वार की चौखट वह पारस पत्थर है़ जिसको स्पर्श करते ही भक्तों के जीवन में धन-संपत्ति की वर्षा होने लगती है।
ब्रिटिश शासन काल के अंग्रेज शासकों में भी यह तिरुपति बालाजी का धाम प्रमुख आकर्षण का केंद्र बना रहा। ब्रिटिश शासन ने तिरुपति बालाजी मंदिर की देखभाल और देख-रेख स्थानीय मठ के महंत को सौंप दिया। वर्ष 1933 में इस भव्य मंदिर के देखभाल का जिम्मा स्वयं मद्रास सरकार ने ले लिया। उसी समय से राज्य सरकार, तिरुपति बालाजी मंदिर की देखरेख कर रही है।
- तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर की मूर्ति का रहस्य
कहते हैं कि जब इस तिरुपति बालाजी धाम के भगवान की आरती की जाती है़ तो भगवान की मूर्ति मुस्कराती हुई सी प्रतीत होती है़। इस मंदिर में भगवान विष्णु की जो मूर्ति दिखाई देती है, उस मूर्ति में लक्ष्मी जी की प्रतिमा भी समाहित है़। दरअसल सामने से एक दिखने वाली मूर्ति में भगवान विष्णु के हृदय स्थल पर माँ लक्ष्मी विराजमान हैं।
इस मंदिर की मूर्ति अपने आप में अनूठी है। यह मूर्ति कब, कहाँ से इस पावन धाम में आई ? इसके बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि यहा दक्षिण क्षेत्र के पर्वत की चोटी पर भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई है।
- तिरुपति बाला जी धाम में समुद्री आवाज का रहस्य
तिरुपति वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर, समुद्र तल से 32000 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ों पर स्थित है। लेकिन फिर भी इस मंदिर के भगवान की मूर्ति से समुद्र की लहरों की अद्भुत आवाज आती है। कुछ लोगों का कहना है कि इस धाम के देवता, भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति समुद्र से ही प्राप्त हुई है।
ऐसा भी कहा जाता है कि समुद्र की ध्वनि भगवान विष्णु के बैकुंठ धाम के क्षीर सागर का स्वर है। जहाँ भगवान विष्णु पहले निवास करते थे। उस समुद्र की लहरें अदृश्य रूप में अपने भगवान विष्णु के साथ रह रही हैं। इसलिए भगवान विष्णु की मूर्ति के आसपास से समंदर के लहरों का स्वर सुनाई देता है़। इसी कारण इस मंदिर में भगवान विष्णु का सजीव रूप माना जाता है।
- मंदिर की छड़ी का रहस्य
इस धाम में तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर के द्वार पर एक छड़ी रखी हुई है। यह छड़ी भक्तों को बहुत आकर्षित करती है। मंदिर की छड़ी के पीछे अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। कुछ लोगों का कहना है कि भगवान विष्णु जब इस धरती पर लक्ष्मी जी की तलाश करने के लिए आए उनके हाथ में यही जादुई छड़ी थी। जो भगवान विष्णु को पृथ्वी पर लक्ष्मी जी का पता बता रही थी।
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इस धाम में आने पर ऐसा लगता है़ कि अभी-अभी भगवान विष्णु यह जादुई छड़ी द्वार पर रखकर मूर्तिवत हो गये हों। यह छड़ी आज भी इस धाम में भगवान विष्णु के जीवंत होने का प्रमाण दे रहे हैं। इस मंदिर में रखी हुई छड़ी की ऐसी भी एक कथा है कि यह वह झड़ी है जिससे बालाजी को बचपन में चोट लगी थी। ऐसा कहा जाता है बालाजी के चेहरे पर आज भी उस चोट का घाव हैं। इसीलिए आज भी बालाजी की मूर्ति के चेहरे पर चंदन का लेप लगाया जाता है़ ताकि उनका वह घाव भर सके।
- बालाजी गाँव का रहस्य
इस तिरुपति बालाजी मंदिर में साज- श्रृंगार और प्रसाद आदि के लिए चढ़ाई जाने वाली सामग्री तिरुपति बालाजी के गांव से ही आती है। यह गाँव तिरुपति बालाजी मंदिर से लगभग 22 किलोमीटर दूर स्थित है। यह गाँव अपने आप में अनोखा है। यह “वह” गाँव है जहां की महिलाएं तिरुपति बालाजी के मंदिर पर चढ़ाई जाने समस्त पूजन सामग्री एवं प्रसाद आदि इसी गांव में बनाती हैं।
यह परंपरा कब और कैसे आरंभ हुई? इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिलता है। लेकिन इस गांव में किसी बाहरी पुरुष का प्रवेश वर्जित है। कहते हैं कि इस गांव की महिलाएं भगवान विष्णु की परम भक्त हैं। वे सभी भगवान विष्णु के भजन गाते हुये अपने हाथों से तिरुपति बाला जी को चढ़ाने के लिए मिठाई-फूल माला आदि बनाती हैं।
- राजनीतिक नेताओ और फिल्म स्टारों का यहाँ बालाजी मंदिर में आने का रहस्य
तिरुपति बालाजी वह चमत्कारी धाम है जहां के देवता को प्रणाम करने मात्र से आपकी सफलता के द्वार खुलने लगते हैं। इसीलिए कोई भी राजनीतिक नेता चुनाव लड़ने से पूर्व और कोई भी फिल्म अभिनेता अपनी नई फिल्म की शुरुआत करने से पहले इस मंदिर में आकर माथा अवश्य टेकते हैं। ऐसी मान्यता है़ कि अपने मन की अभिलाषा तुलसी दल अर्पित करते हुये सच्चे मन से मांगने पर इस मंदिर के देवता उसे अवश्य पूरा करते हैं ।
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- सबसे अधिक अमीर मंदिर होने का रहस्य
इस मंदिर की अपार श्रद्धा देश-विदेश के धनी वर्ग के लोगों को भी अपनी ओर खींचती है। कहा जाता है कि यहाँ आने के बाद इंसान को अपने जीवन में धन की कमी नहीं रहती। इस धाम के देवता के आशीर्वाद के बाद लोगों को धन का लाभ होने लगता है़। जिसके बाद भक्तगण अपने धन के लाभ का कुछ हिस्सा तिरुपति बालाजी धाम में चढ़ाने लगे। लोगों ने देखा कि हर वर्ष नियमित रूप से धन चढ़ाने से उनका व्यवसाय दिन दुगनी रात चौगुनी उन्नति करने लगा।
जिसके बाद लाखों की संख्या में लोग बालाजी महाराज के परम भक्त बन गए। जिस प्रकार लोग अपनी कुल आय का एक भाग अपने घर-परिवार के सबसे बड़े व्यक्ति को देते हैं। उसी प्रकार लोग अपनी इनकम का एक हिस्सा तिरुपति महाराज के चरणों में चढ़ाने लगे। इस प्रकार भक्तों के द्वारा दिया गया धन मंदिर में बढ़ने लगा और दूसरी तरफ उनके घरों में भी ।