जब पश्चिमी दुनिया धार्मिक कर्मकांडों के नाम पर पारंपरिक औपचारिकताओं का अनुकरण कर रही थी। उसी समय वर्ष 1817 में एक ऐसे व्यक्ति ने पृथ्वी पर जन्म लिया जो इन पूजा के कर्मकांडों को महत्वहीन मानता था। उनकी दृष्टि में प्रार्थना वास्तविकता में प्रभु से वार्तालाप है। जिसके लिए किसी औपचारिकता की आवश्यकता ही नहीं है। हम कहीं भी और कभी भी प्रभु से सीधे जुड़ सकते हैं।
उसके लिए हमें बस अपने हृदय के सच्चे पन्नों को खोलकर इस सृष्टि को संचालित करने वाले परमपिता परमेश्वर को दिखाना होगा। धर्म की एक नई परिभाषा गढ़ने वाले ईरान के इन धार्मिक गुरु का नाम था बहाउल्लाह, जिन्होंने अपना एक नया धर्म चलाया। जिसका नाम रखा बहाई धर्म। यह वह धर्म है जो यह कहता है कि सभी धर्मों का स्रोत एक है। ईश्वर एक है। ईश्वर और ईश्वर से जुड़ी हुई तमाम चर्चाओं के लिए पूरे विश्व में बहाई धर्म के सात मंदिर हैं।
ये उपासना स्थल वेस्टर्न समोआ, सिडनी ऑस्ट्रेलिया, कंपाला यूगांडा, पनामा सिटी पनामा, फ्रैंकफर्ट जर्मनी, विडमेट अमेरिका और नई दिल्ली भारत में स्थित हैं। भारत की नई दिल्ली में स्थापित बहाई धर्म का यह मंदिर लोटस टेंपल अर्थात कमल मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है ।
कमल के समान खिल उठता है जहाँ ह्रदय
नई दिल्ली के नेहरू प्लेस में स्थित इस मंदिर का अपना अद्भुत आकर्षण है। पर्यटक जैसे-जैसे कमल मंदिर की ओर अपना कदम बढ़ाता है तो वैसे-वैसे उसका हृदय कमल के फूल के समान खिलता जाता है। क्योंकि इस स्थान पर आकर उसे एक अलौकिक प्रसन्नता का आभास होता है। कमल के कई अर्थ होते हैं जैसे पूर्णता चमत्कार और कला आदि। तो निश्चित रूप से इस कमल मंदिर में आकर उसे जीवन में पूर्णता का आभास होता है।
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वहीं हम ईश्वर के अपने आस-पास मौजूद होने के चमत्कार से परिचित होते हैं। साथ ही इस कमल मंदिर की वह कला देखते ही बनती है़ जो अवर्णनीय है़, और अविस्मरणीय है़। कमल मंदिर अपने नाम के अनुरूप यह विशाल खिले हुए सफेद कमल की भांति बना हुआ है।
मंदिर की बनावट अपने आप में अद्भुत है़। यह पूरा मंदिर एक पुष्पित, पल्लवित पंकज के सदृश्य है। बहाई धर्म के इस मंदिर में पर्यटक जब इस विशाल कमल फूल के अंदर प्रवेश करते हैं तो वहाँ की विलक्षणता से परिचित होते हैं।
मंदिर में न कोई मूर्ति है और न कोई यज्ञ शाला
कमल मंदिर वास्तव में अपने आप में अनोखा है। जब हम किसी मंदिर में प्रवेश करते हैं तो हमारे मन में मंदिर के अंदर एक मूर्ति की कल्पना होती है। लेकिन इस मंदिर में ऐसा कुछ भी नहीं है। कमल मंदिर के अंदर न कोई मूर्ति है और न यहाँ कोई अन्य धार्मिक कर्मकांड किया जाता है। अब आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा फिर यह बड़ा मंदिर किस उद्देश्य से बनाया गया है।
यह मंदिर वह पूजा स्थल है जहाँ इस सृष्टि को चलाने वाले परमपिता परमेश्वर का स्मरण किया जाता है अर्थात प्रार्थना के साथ-साथ ध्यान साधना। सृष्टि के रचयिता की चर्चा की जाती है। वह चर्चा जो उस प्रभु से जुड़ी हुई होती है जिसने इस धरती पर जीवों की रचना की है। यहाँ प्रभु शब्द रूप में विद्यमान है़। चाहे वह बोला जाने वाला शब्द हो या लिखा जाने वाला। मंदिर के अंदर इतना बड़ा स्थान है।
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जहाँ लगभग 500 लोग एक साथ बैठ सकते हैं। कमल मंदिर में धार्मिक ग्रंथों के बहुमूल्य पंक्तियों का वाचन किया जाता है। विभिन्न धर्म के धार्मिक ग्रंथों के अमृत के समान शब्दों को अपने कानों से सुन कर श्रोता आध्यत्मिक जगत में प्रवेश कर जाते हैं।
कमल मंदिर कहाँ पर स्थित है
पूरे विश्व में जब बहाई धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी तब भारत में भी इस धर्म की एक छोटी सी नदी बह निकली। कहने का अर्थ यह कि भारत में कुछ लोग इस धर्म की अच्छाइयों से प्रभावित होकर बहाई धर्म के अनुयायी बन गये। ऐसे में आवश्यकता थी ऐसे धार्मिक स्थल की जहाँ लोगों को बहाई धर्म की शिक्षाओं से परिचित कराया जा सके ।
भारत की राजधानी नई दिल्ली में विशाल कमल मंदिर की स्थापना की परिकल्पना गयी। वर्ष 1986 में बहाई धर्म का यह मंदिर अस्तित्व में आया। यह मंदिर नई दिल्ली के कालका जी मंदिर के निकट स्थित है। कमल मंदिर की अदभुत सुंदरता हर किसी के मन को मोह लेती है। इस मंदिर के वास्तुकार फरीबर्ज साहब थे। इस लोटस टेंपल के वास्तुकला को देखने के लिए हर वर्ष देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं।
नई दिल्ली का कमल मंदिर अभिव्यंजनात्मक वास्तु कला शैली का अनुपम उदाहरण है। यह सफेद विशाल मंदिर विस्तृत गुंबद वाला आराधना स्थल है़, जो हर किसी के हृदय में भक्ति भाव को भर देता है। कमल मंदिर के चारों ओर विकसित घास का मैदान मंदिर की शोभा में चार चाँद लगाता है।
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कमल मंदिर में प्रति घंटे प्रार्थना की जाती है। यह प्रार्थना इस धरती पर रहने वाले हर जीव के लिए होती है। धर्म, भाषा क्षेत्र आदि के बंधनों से तोड़कर यह मंदिर केवल मानव मात्र के लिए ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी एवं इस धरती पर सांस लेने वाले छोटे से छोटे प्राणियों के लिए कल्याण के लिए यहाँ प्रार्थना की जाती है़।
इस मंदिर के 9 द्वार और 9 कोनों की कहानी
कमल मंदिर में नौ प्रवेश द्वार और नौ कोने हैं। मंदिर के 9 प्रवेश द्वार और 9 कोनों के संबंध में अलग-अलग मुख से अलग-अलग कहानी कही जाती है। कुछ लोगों का कहना है कि बहाई धर्म के कुल 9 सिद्धांत हैं। इसलिए इस मंदिर की 9 की संख्या उन्हीं का प्रतीक है। तो कोई जानकार कहता है कि गणित में 9 की संख्या सबसे बड़ी और शक्तिशाली है़।
इस मंदिर के प्रवेश द्वारों से आने वाले आगंतुक के जीवन में शक्ति और शांति आती है। इस मंदिर का हर द्वार बहाई धर्म के सिद्धांतों की व्याख्या करता है। बहाई धर्म के 9 प्रेरणादायक सिद्धांत इस प्रकार हैं –
- इस जगत में ईश्वर एक ही है।
- सभी धर्मों और जातियों का स्रोत एक है।
- विश्व में शांति होना चाहिए।
- सभी के लिए न्याय आवश्यक है़।
- नर-नारी में समानता होनी चाहिए।
- सभी को शिक्षित होना चाहिए।
- विज्ञान और धर्म को साथ-साथ जोड़ा जाना चाहिए।
- विश्व में सभी के पास रोटी और कपड़ा और मकान होना चाहिए।
- मानवता की एकता।
ईश्वर स्वयं सुनते हैं कमल मंदिर की अध्यात्मिक चर्चा
ऐसा कहा जाता है़ कि इस कमल मंदिर में जब प्रभु की महिमा की चर्चा की जाती है तो ईश्वर स्वयं सुनने के लिए उपस्थित हो जाते हैं। ऐसा वहाँ लोगों ने कितनी बार आभास किया है। इस कमल मंदिर के शांत वातावरण में वह अलौकिक शक्ति है जो यहाँ आने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
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यहाँ इस कमल मंदिर में एक बार आने वाला व्यक्ति बार-बार यहाँ आने की लालसा रखता है। क्योंकि उसे लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति उसे खींच रही है। वह शक्ति है परमपिता परमेश्वर की। क्योंकि यहाँ इस कमल मंदिर में आने वाला व्यक्ति ईश-प्रेम की डोर से बंध चुका होता है।