महाभारत युद्ध के बीच में दण्ड धार धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा “संजय ! अर्जुन का संशप्तकों तथा अश्वत्थामा के साथ किस प्रकार युद्ध हुआ ? संजय ने कहा “महाराज ! सुनिये, संशप्तकों की सेना समुद्र के समान दुर्लङ्घ्य थी, उसके बाद भी अर्जुन ने उसमें प्रवेश कर तूफान-सा खड़ा कर दिया । वे तेज किये हुए बाणों से कौरव वीरों के मस्तक काट-काटकर गिराने लगे । थोड़ी ही देर में वहाँ की जमीन पट गयी और वहाँ पड़े हुए ढेर-के-ढेर मस्तक बिना नाल के कमल-जैसे दिखायी देने लगे ।
हजारों बाणों की वर्षा करके उन्होंने रथों, हाथियों और घोड़ों को उनके सवारों सहित यमलोक भेज दिया | तीखे बाण मार- मार कर शत्रुओं के सारथि, ध्वजा, धनुष, बाण तथा रत्नजटित मुद्रिका से सुशोभित हाथों को भी काट गिराया । यह देख बड़े-बड़े योद्धा साँड़ों के समान हुंकारते हुए अर्जुन पर टूट पड़े और तीखे तीरों से उन्हें घायल करने लगे । उस समय अर्जुन और उन योद्धाओं में रोमांचकारी संग्राम आरम्भ हो गया |
अर्जुन पर सब ओर से अस्त्रों की वर्षा हो रही थी, तो भी वे अपने अस्त्रों से उसका निवारण करके बाणों से मार-मारकर शत्रुओं के प्राण लेने लगे । जैसे हवा बादलों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार वे विपक्षियों के रथों की धज्जियाँ उड़ा रहे थे । उस समय अर्जुन अकेले होने पर भी एक हजार महारथियों के समान पराक्रम दिखा रहे थे ।
उनका यह पुरुषार्थ देख देवता, सिद्ध, ऋषि और चारण भी उनकी प्रशंसा करने लगे । देवताओं ने दुन्दुभि बजायी और अर्जुन तथा श्रीकृष्ण पर फूलों की वर्षा की । फिर वहाँ इस प्रकार आकाशवाणी हुई “जिन्होंने चन्द्रमा की कान्ति, अग्नि की दीप्ति, वायु का बल और सूर्य का प्रताप धारण किया है, वे ही ये श्रीकृष्ण और अर्जुन रणभूमि में विराज रहे हैं । एक रथ पर बैठे हुए ये दोनों वीर ब्रह्मा तथा शंकर की भाँति अजेय हैं । ये सम्पूर्ण प्राणियों से श्रेष्ठ नर और नारायण हैं ।”
प्राणियों से इस आश्चर्यमय वृत्तान्त को देख और सुनकर भी अश्वत्थामा ने युद्ध के लिये भलीभाँति तैयार हो श्रीकृष्ण तथा अर्जुन पर धावा किया । उसने श्रीकृष्ण को साठ तथा अर्जुन को तीन बाण मारे । तब अर्जुन ने क्रोध में भरकर तीन बाणों से उसका धनुष काट दिया ।
यह देख उसने दूसरा अत्यन्त भयंकर धनुष हाथ में लिया और श्रीकृष्ण पर तीन सौ तथा अर्जुन पर एक हजार बाणों का प्रहार किया । इतना ही नहीं, अश्वत्थामा ने अर्जुन को आगे बढ़ने से रोक कर उनके ऊपर हजारों, लाखों और अरबों बाण बरसाये । उस समय ऐसा जान पड़ता था मानो उसके तरकस, धनुष, प्रत्यंचा, रथ, ध्वजा तथा कवच से और बाँह, हाथ, छाती, मुंह, नाक, कान, आँख तथा मस्तक आदि अंगों एवं रोम-रोम से बाण छूट रहे हैं ।
इस प्रकार अपने सायक समूहों की बौछार से उसने श्रीकृष्ण और अर्जुन को बींध डाला और अत्यन्त प्रसन्न होकर महामेघ के समान भयंकर गर्जना की । अश्वत्थामा की गर्जना सुन कर अर्जुन ने उसके चलाये हुए प्रत्येक बाण के तीन-तीन टुकड़े कर डाले । इसके बाद उन्होंने संशप्तकों के रथ, हाथी, घोड़े, सारथि, ध्वजा और पैदल सिपाहियों को भयंकर बाणोंसे मारना आरम्भ किया ।
गाण्डीव से छूटे हुए नाना प्रकार के बाण तीन मील पर खड़े हुए हाथी और मनुष्यों को भी मार गिराते थे । उस समय अर्जुन ने शत्रुओं के बहुत से सजे-सजाये घुड़सवारों और पैदल सैनिकों का सफाया कर डाला । शत्रुओं में से जो लोग रण में पीठ दिखाकर भाग नहीं गये, बराबर सामने डटे रहे, उनके धनुष, बाण, तरकस, प्रत्यंचा, हाथ, बाँह, हाथ के हथियार, छत्र, ध्वजा, घोड़े, रथ की ईषा, ढाल, कवच और मस्तक को अर्जुनने काट डाला ।
पार्थ के बाणों के प्रहार से रथ, घोड़े और हाथियों के साथ उनके सवार भी धराशायी हो गये । यह देख अंग, बंग, कलिंग और निषाद देशों के वीर अर्जुन को मार डालने की इच्छा से हाथियों पर सवार हो वहाँ चढ़ आये । किंतु अर्जुन ने उनके हाथियों के कवच, मर्मस्थान, सैंड, महावत, ध्वजा और पताका आदि को काट डाला । इससे वे हाथी वज्र के मारे हुए पर्वतशिखर की भाँति जमीन पर ढह पड़े ।
इसी बीच में अश्वत्थामा ने अपने धनुष पर दस बाण चढ़ाये और मानो एक ही बाण छोड़ा हो, इस प्रकार उन दसों को एक ही साथ छोड़ दिया । उनमें से पाँच बाणों ने तो अर्जुन को घायल किया और पाँच ने श्रीकृष्ण को क्षतविक्षत कर दिया । उन दोनों के शरीर से खून की धारा बहने लगी । उनका इस प्रकार पराभव देखकर सबने यही माना कि अब वे मारे गये । उस समय भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा “अर्जुन ! ढिलाई क्यों कर रहे हो, मारो इसे ।
जैसे चिकित्सा न करने पर रोग बढ़कर कष्टदायक हो जाता है, उसी प्रकार लापरवाही करने से यह शत्रु भी प्रबल होकर महान् दुःखदायी हो जायगा” ।”बहुत अच्छा” | कहकर अर्जुन ने भगवान् की आज्ञा स्वीकार की और सावधान होकर उन्होंने अश्वत्थामा की बाँह, छाती, सिर और जंघा को बाणों से छेद डाला । फिर घोड़ों की बागडोर काटकर उन्हें बाणों से बींधना आरम्भ किया ।
घोड़े घबराकर भागे और अश्वत्थामा को रणभूमि से दूर हटा ले गये । अश्वत्थामा अर्जुन के बाणों से इतना घायल हो चुका था कि फिर लौटकर उनसे लड़ने की उसकी हिम्मत नहीं हुई । थोड़ी देर तक घोड़ों को रोककर उसने आराम किया और फिर कर्ण की सेना में प्रवेश कर गया । इसके बाद श्रीकृष्ण और अर्जुन संशप्तकों का सामना करने चल दिये ।
इसी समय उत्तर की ओर पाण्डव-सेना में बड़े जोर का आर्तनाद सुनायी पड़ा । वहाँ दण्डधार पाण्डवों की चतुरंगिणी सेना का संहार कर रहा था । यह देख भगवान् कृष्ण ने रथ को लौटाकर उधर ही घुमा दिया और अर्जुन से कहा “मगध देश का राजा दण्डधार बड़ा पराक्रमी है, वह कहीं भी अपना सानी नहीं रखता । इसके पास शत्रुओं का संहार करने वाला एक महान् गजराज है, उसे युद्ध की उत्तम शिक्षा मिली है और बल तो सबसे अधिक है ही । इनमें से किसी भी दृष्टि से यह राजा भगदत्त से कम नहीं है । पहले तुम इसी का संहार कर डालो, फिर संशप्तकों को मारना” ।
इतना कहकर भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को दण्डधार के निकट पहुँचा दिया । वह काले लोहे के कवच पहने हुए घुड़सवारों और पैदल सैनिकों को अपने मदोन्मत्त गजराज के द्वारा गिराकर कुचलवा रहा था । वहाँ पहुँचते ही श्रीकृष्ण को बारह और अर्जुन को सोलह बाण मारकर दण्डधार ने उनके घोड़ों को भी तीन-तीन बाणों से घायल किया । इसके बाद वह बारंबार हँसने और गर्जने लगा । तब अर्जुन ने भल्लों से उसके धनुष-बाण, प्रत्यंचा और ध्वजा को काट दिया ।
इससे कुपित हो दण्डधार ने श्रीकृष्ण और अर्जुन को घबराहट में डालने की इच्छा से अपने मदोन्मत्त गजराज को उनकी ओर बढ़ाया और तोमरों से उन दोनों पर वार किया । यह देख पाण्डुनन्दन अर्जुन ने अत्यंत तीव्र, विद्युत गति से तीन क्षुरप्र चलाकर उसकी दोनों भुजाओं और मस्तक को एक ही साथ काट डाला, इसके बाद उसके हाथी को भी सौ बाण मारे । उनकी चोट से पीड़ित होकर हाथी जोर-जोर से चिग्घाड़ने लगा और चक्कर काटता तथा लड़खड़ाता हुआ इधर-उधर भागने लगा ।
अन्त में ठोकर खाकर वह महावत के साथ ही गिरा और मर गया । युद्ध में दण्डधार के मारे जाने पर उसका भाई दण्ड श्रीकृष्ण और अर्जुनका वध करने के लिये चढ़ आया । आते ही वह श्रीकृष्ण को तीन और अर्जुन को तेज किये हुए पाँच तोमर मारकर भीषण गर्जना करने लगा । तब अर्जुन ने उसकी दोनों बाँहें काट डाली और उसके मस्तक पर एक अर्धचन्द्राकार बाण मारा । उसकी चोट से दण्ड का मस्तक कटकर हाथी पर से जमीन पर जा पड़ा इसके बाद उन्होंने दण्ड के हाथी को भी बाणों से विदीर्ण कर डाला ।
उनकी चोट से अत्यन्त व्यथित होकर वह हाथी चिग्घाड़ता हुआ गिरकर मर गया । तत्पश्चात् दूसरे-दूसरे योद्धा भी उत्तम हाथियों पर सवार होकर विजय की इच्छा से चढ़ आये, परंतु सव्यसाची ने औरों की भाँति उन्हें भी मौतके घाट उतार दिया । फिर तो शत्रु की बहुत बड़ी सेना भाग खड़ी हुई और अर्जुन संशप्तकों का संहार करने के लिये चल दिये।