महाभारत में, अश्वत्थामा और भीमसेन के बीच हुए युद्ध में कौन विजयी हुआ

महाभारत में, अश्वत्थामा और भीमसेन के बीच हुए युद्ध में कौन विजयी हुआमहाधनुर्धारी कर्ण के महाभारत युद्ध में सेनापति बनने के बाद, महाभारत युद्ध का आँखों देखा हाल बताते हुए, धृतराष्ट्र से संजय कहते हैं “राजन् ! अब महान् धनुर्धर कर्ण ने अपने तीखे बाणों से पाण्डव-सेना का संहार आरम्भ कर दिया है । उसके नाराचों (बाणों) की मार से पीड़ित होकर झुंड-के-झुंड हाथी चिग्घाड़ने तथा सब ओर भागने लगे हैं । यह देख सूतपुत्र कर्ण पर पांडुपुत्र नकुल ने धावा बोला । दूसरी ओर से अश्वत्थामा दुष्कर पराक्रम दिखा रहा था, उसका भीमसेन ने सामना किया ।

केकय देशीय विन्द और अनुविन्द को सात्यकि ने रोका । श्रुतकर्मा ने चित्रसेन का मुकाबला किया । चित्र को प्रतिविन्ध्य ने रोक लिया । दुर्योधन राजा युधिष्ठिर से भिड़ गया और क्रोध में भरे हुए संशप्तकों पर अर्जुन ने धावा बोला । धृष्टद्युम्न कृपाचार्य के और शिखण्डी कृतवर्मा के साथ लड़ने लगा । श्रुतकीर्ति का शल्य के साथ और सहदेव का आपके पुत्र दुःशासनके साथ युद्ध होने लगा है ।

इस प्रकार उस द्वन्द्वयुद्ध में केकय वीर विन्द और अनुविन्द सात्यकि के ऊपर तेजस्वी बाणों की वर्षा करने लगे । यह देख सात्यकि ने भी उन दोनों को अपने बाणों से आच्छादित कर दिया । विन्द-अनुविन्द ने जब पुनः सात्यकि की छाती में चोट पहुँचायी तो उसने उन दोनों के धनुष काट दिये और तीखे बाणों से मारकर उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया ।

तब उन्होंने दूसरे धनुष हाथ में लिये और सात्यकि को बाणों से ढकना आरम्भ किया । उनकी बाणवर्षा से चारों ओर अन्धकार छा गया । फिर उन तीनों महारथियों ने एक-दूसरे के धनुष काट डाले । अब तो सात्यकि के क्रोध की सीमा न रही, उसने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ायी और एक अत्यन्त तीखा क्षुरप्र चलाकर अनुविन्द का मस्तक उड़ा दिया ।

अपने शूरवीर भाई को मारा गया देख महारथी विन्दने भी दूसरा धनुष उठाया और सात्यकि को साठ बाणों से बींधकर बड़े जोरसे गर्जना की । फिर उसकी छाती और भुजाओं को हजारों बाणों से घायल किया । इतने पर भी सात्यकि का चेहरा मलिन नहीं हुआ, उसने हँसते-हँसते पचीस बाण मारकर विन्द को घायल कर दिया ।

इसके बाद दोनों महारथियों ने एक-दूसरे का धनुष काट कर सारथि और घोड़े मार डाले । इस प्रकार जब वे रथहीन हो गये तो ढाल और तलवार हाथ में ले आपस में लड़ने लगे । दोनों ही तरह-तरह के पैंतरे बदलते और एक-दूसरे का वध करने के लिये पूर्ण प्रयत्न करते थे । इतने ही में सात्यकि ने विन्द की ढाल के दो टुकड़े कर दिये । फिर विन्द भी सात्यकि की ढाल काटकर तीखी तलवार ले मण्डलाकार पैंतरे देने लगा ।

इसी बीच में मौका पाकर सात्यकि ने बड़ी फुर्ती दिखायी । उसने तलवार का एक ऐसा हाथ मारा कि कवच सहित विन्द के शरीर के दो टुकड़े हो गये । विन्द प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा और सात्यकि उसे मारकर तुरंत ही युधामन्यु के रथ पर चढ़ गया । इसके बाद एक दूसरा रथ विधिपूर्वक सजाकर लाया गया । सात्यकि उस पर सवार हुआ और पुनः अपने बाणों से केकय-सेना का संहार करने लगा ।

उसकी मार खाकर केकयों की सेना ठहर न सकी । वह अपने प्रबल शत्रु का सामना करना छोड़ सब दिशाओंमें भाग गयी । इसके बाद श्रुतकर्मा ने क्रोध में भरकर पचास बाणों से राजा चित्रसेन को घायल किया । अभिसार नरेश चित्रसेन ने भी नौ बाणों से श्रुतकर्मा को बींधकर पाँच बाणों से उसके सारथि को भी पीड़ित किया । तब श्रुतकर्मा ने चित्रसेन के मर्मस्थान में तीखे नाराच से वार किया ।

उसकी गहरी चोट लगने से वीरवर चित्रसेन को मूर्छा आ गयी । थोड़ी देर में जब होश हुआ तो उसने एक भल्ल मारकर श्रुतकर्मा का धनुष काट दिया और फिर सात बाणों से उसे भी बींध डाला । श्रुतकर्मा को पुनः क्रोध आया, उसने शत्रु के धनुष के दो टुकड़े कर डाले और तीन सौ बाण मारकर उसे खूब घायल किया । फिर एक तेज धार भाले से चित्रसेन का मस्तक काट गिराया ।

अभिसार नरेश चित्रसेन मारा गया-यह देखकर उसके सैनिक श्रुतकर्मा पर टूट पड़े । परंतु उसने अपने बाणों की मार से उन सबको पीछे हटा दिया । दूसरी ओर प्रतिविन्ध्य ने चित्र को पाँच बाणों से घायल करके तीन सायकों से उसके सारथि को बींध दिया और एक बाण मारकर उसकी ध्वजा काट डाली । तब चित्र ने उसकी बाँहों और छाती में नौ भल्ल मारे ।

यह देख प्रतिविन्ध्य ने उसका धनुष काट दिया और पचीस बाणों से उसे भी घायल किया । फिर चित्र ने भी प्रतिविन्ध्य पर एक भयंकर शक्ति का प्रहार किया, किंतु उसने उस शक्ति को हँसते-हँसते काट दिया । तब उसने प्रतिविन्ध्य पर गदा चलायी । उस गदा ने प्रतिविन्ध्य के घोड़े और सारथि को मौत के घाट उतार उसके रथ को भी चकनाचूर कर दिया । प्रतिविन्ध्य पहले से ही कूदकर पृथ्वीपर आ गया था, उसने चित्र पर शक्ति का प्रहार किया ।

शक्ति को अपने ऊपर आते देख चित्र ने उसे हाथ से पकड़ लिया और पुनः प्रतिविन्ध्य पर ही चलाया । वह शक्ति प्रतिविन्ध्य की दाहिनी भुजा पर चोट करती हुई भूमि पर जा पड़ी । इससे प्रतिविन्ध्य को बड़ा क्रोध हुआ, उसने चित्र को मार डालने की इच्छा से तोमर का प्रहार किया । वह तोमर उसकी छाती और कवच छेदता हुआ जमीन में घुस गया तथा राजा चित्र अपनी बाँहें फैलाकर भूमिपर ढह पड़ा ।

चित्र को मारा गया देख उसके सैनिकों ने प्रतिविन्ध्य पर बड़े वेग से धावा किया, परंतु उसने अपने सायक समूहों की वर्षा करके उन सबको पीछे भगा दिया । उस समय, जब कि कौरव-सेना के समस्त योद्धा भागे जा रहे थे, केवल अश्वत्थामा ही महाबली भीमसेन का सामना करने के लिये आगे बढ़ा । फिर उन दोनों में घोर संग्राम होने लगा ।

अश्वत्थामा ने पहले एक बाण मारकर भीमसेन को बींध दिया । फिर नब्बे बाणों से उनके मर्मस्थानों में आघात किया । तब भीमसेन ने भी एक हजार बाणों से द्रोणपुत्र को आच्छादित करके सिंहके समान गर्जना की । किंतु अश्वत्थामा ने अपने बाणों से भीमसेन के बाणों को रोक दिया और मुसकराते हुए उसने भीम के ललाट में एक नाराच मारा । यह देख भीम ने भी तीन नाराचों से अश्वत्थामा के ललाट को बींध डाला ।

तब द्रोणकुमार ने सौ बाण मारकर भीमसेन को पीड़ित किया, किंतु इससे भीम तनिक भी विचलित नहीं हुए । इसी प्रकार भीम ने भी अश्वत्थामा को तेज किये हुए सौ बाण मारे, परंतु वह डिग न सका । अब उसने बड़े-बड़े अस्त्रों का प्रयोग आरम्भ किया और भीमसेन अपने अस्त्रों से उनका नाश करने लगे । इस तरह उन दोनों में भयंकर अस्त्र-युद्ध छिड़ गया ।

उस समय भीमसेन और अश्वत्थामा के छोड़े हुए बाण आपस में टकराकर अपनी सेना के चारों ओर सम्पूर्ण दिशाओं में प्रकाश फैला रहे थे । बाणों से आच्छादित हुआ आकाश बड़ा भयंकर दिखायी देता था । बाणों के टकराने से अग्नि पैदा होकर दोनों सेनाओं को दग्ध कर रही थी । उन दोनों वीरों का अद्भुत एवं अचिन्त्य पराक्रम देख सिद्ध और चारणों के समुदायों को बड़ा विस्मय हो रहा था ।

देवता, सिद्ध तथा बड़े-बड़े ऋषि उन दोनों को शाबाशी दे रहे थे । वे दोनों महारथी मेघ के समान जान पड़ते थे, वे बाण-रूपी जल को धारण किये शस्त्र रूपी बिजली की चमक से प्रकाशित हो रहे थे और बाणों की बौछार से एक-दूसरे को ढके देते थे। दोनों ने दोनों की ध्वजा काटकर सारथि और घोड़ों को बींध डाला, फिर एक-दूसरे को बाणों से घायल करने लगे ।

बड़े वेग से किये हुए परस्परके आघात से जब वे अत्यन्त घायल हो गये तो अपने अपने रथ के पिछले भाग में गिर पड़े । अश्वत्थामा का सारथि उसे मूर्छित जानकर रणभूमि से दूर हटा ले गया । भीम के सारथि ने भी उन्हें अचेत जानकर ऐसा ही किया ।

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