प्राचीन समय की बात है | भारतवर्ष के पश्चिम की तरफ अर्बुदाचल नामक पर्वत के पास अहुक नाम का एक भील रहता था। उसकी पत्नी का नाम आहुका था। पति-पत्नी दोनों ही भगवान शिव के भक्त थे। वे दोनों अपने गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए अपनी दिनचर्या का अधिकांश समय भगवान शिव की उपासना में ही व्यतीत करते थे। ऐसा प्रतीत होता था मानो उस भील-दम्पती का पूरा जीवन भोले भण्डारी शिव की पूजा-अर्चना के लिये पूर्णतया समर्पित था।
आहुक और आहुका की भीषण परीक्षा
एक दिन की बात है | संध्या के समय जब भगवान भास्कर अस्ताचल की ओर बढ़ रहे थे, उस समय भगवान शंकर भील की शिव भक्ति की परीक्षा के लिये एक यति स्वरुप सन्यासी का वेष धारण कर उसकी कुटिया पर पहुंचे। संयोग से उस समय केवल आहुका ही वहां थी, उसने सन्यासी को प्रणाम करके उनका स्वागत किया। आहुक आहार (भोजन) की खोज में जंगल में गया हुआ था, लेकिन थोड़ी ही देर में वह भी कुटिया पर पहुंच गया और उसने भी घर आये सन्यासी को प्रणाम किया।
सन्यासी बोले ‘भील! मुझे आज की रात बिताने के लिये जगह दे दो। मैं कल प्रातःकाल यहां से चला जाऊंगा।’ आहुक ने कहा-‘यतिनाथ! हमारी यह झोपड़ी छोटी है। इसमें केवल दो व्यक्ति ही रात में ठहर सकते हैं। अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है और कुछ रोशनी है। अतः आप रात बिताने के लिये किसी अन्य स्थान की खोज कर लें।’
उसकी इस बात को सुन कर आहुका बोली-‘प्राणनाथ! देखिए, ये यतिनाथ हमारे अतिथि हैं। हम गृहस्थ हैं। गृहस्थ धर्म अनुसार हमें इनकी सेवा करनी चाहिये। इन्हें किसी अन्य स्थान पर जाने के लिये नहीं कहना चाहिये। अतः रात में आप दोनों झोपड़ी में अंदर रहियेगा और मैं शस्त्र लेकर बाहर पहरा दूंगी।’
पत्नी की बातें सुन कर, आहुक ने कहा ‘तुम ठीक कहती हो कि हमें घर आये अतिथि का सत्कार करना चाहिये। अतः आज रात यति महाराज हमारे यहां रहेंगे। मेरे होते हुए तुम्हें बाहर पहरा देने की जरूरत नहीं है। आप दोनों झोपड़ी में अंदर रहना और मैं शस्त्र लेकर बाहर पहरा देते हुए आप लोगों की रक्षा करूंगा।’
आहुक की मृत्यु एवं आहुका का विलाप
भोजन करने के बाद यतिनाथ और भील की पत्नी तो कुटिया में अंदर सो गये तथा आहुक शस्त्र लेकर बाहर पहरा देने लगा। रात के समय भयानक जंगली हिंसक पशुओं ने आहुक को अपना आहार बनाने का प्रयत्न शुरू कर दिया। वह बलवान मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार उन विशालकाय भयानक पशुओं से अपना बचाव करता रहा, लेकिन उसके प्रारब्ध के अनुसार अंततः जंगली पशु उसे मार कर खा गये।
प्रातःकाल आहुका ने कुटिया से बाहर निकल कर जब अपने पति को मृत देखा तो वह बहुत दुःखी हुई और तीव्र स्वर में रुदन करने लगी । उसका रुदन सुन कर यति भी जब कुटिया से बाहर निकले तो आहुक को मृत देख कर वो बहुत दुखी हुए | उन्होंने अत्यंत दुखित स्वर में भीलनी से कहा कि यह सब उनके कारण हुआ है।
भीलनी आहुका बोली ‘यतिनाथ! आप दुःखी मत होइये। कदाचित मेरे पति की मृत्यु का प्रारब्धवश ऐसा ही विधान था। गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए इन्होंने प्राण त्याग दिये हैं। इनका कल्याण ही हुआ है। आप मेरे लिये एक चिता तैयार कर दें, जिससे मैं पत्नी धर्म का पालन करते हुए अपने पति का अनुसरण कर सकूं।’
भगवान् शिव का, आहुका को वर देने के लिए, प्रकट होना
आहुका की बातें सुन कर सन्यासी ने पहले तो उसे ऐसा करने से रोका फिर उसके हठ करने पर उसके लिये एक चिता तैयार कर दी। आहुका ने ज्यों ही चिता में प्रवेश किया, त्यों ही भगवान शिव साक्षात अपने रूप में उसके समक्ष प्रकट हो गये और उसकी प्रशंसा करते हुए बोले ‘तुम धन्य हो पुत्री। मै तुम पर अति प्रसन्न हूं। तुम इच्छा अनुसार मुझसे वर मांगो। तुम्हारे लिये मुझे कुछ भी अदेय नहीं है।’
भगवान शंकर को अपने सामने प्रत्यक्ष देख कर और उनकी वाणी सुन कर आहुका आत्म विभोर हो गयी। उसके थरथराते अधरों से वचन नहीं निकल सके । उसकी उस स्थिति को देख कर देवाधि देव महादेव अति प्रसन्न होकर बोले ‘मेरा जो यह यतिरूप है, यह भविष्य में हंस रूप में प्रकट होगा। मेरे कारण तुम पति-पत्नी का बिछोह हुआ है। मेरा हंस स्वरूप तुम दोनों का मिलन करायेगा।
तुम्हारा पति निषध देश में राजा वीरसेन का पुत्र ‘नल’ होगा और तुम विदर्भ नगर में भीम राज की पुत्री ‘दमयन्ती’ होओगी। मैं हंस अवतार लेकर तुम दोनों का विवाह कराऊंगा। तुम दोनों राजभोग भोगने के पश्चात वह मोक्ष पद प्राप्त करोगे, जो बड़े-बड़े योगेश्वरों के लिये भी दुर्लभ है’-इतना कह कर भगवान शिव अन्तर्धान हो गये और भीलनी आहुका ने अपने पति के मार्ग का अनुसरण किया।
आहुक और आहुका का नल और दमयंती के रूप में जन्म लेना और हंसरूप भगवान शिव द्वारा उनका पुनर्मिलन होना
कालान्तर में आहुक नामक भील निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र ‘नल’ हुआ और निषध देश का राजा बना। उस समय नल के समान सुंदर और गुणवान व्यक्ति पृथ्वी पर नहीं था। आहुका भीलनी विदर्भ के राजा भीम की पुत्री ‘दमयन्ती’ हुई। उस समय दमयन्ती के समान पृथ्वी पर सुंदरी और गुणवती स्त्री नहीं थी। दोनों के रूप और गुणों की चर्चा सर्वत्र होती थी।
नल और दमयंती के पूर्व जन्म के अतिथि-सत्कार जनित पुण्य एवं शिव आराधना से प्रसन्न होकर यतिनाथ भगवान शिव अपने वचनों को सत्य प्रमाणित करने के लिये हंस रूप में प्रकट हुए। हंस अवतारधारी भगवान् शिव मानव वाणी में कुशलता से बातें करने एवं संदेश पहुंचाने में निपुण थे।
भगवान शंकर ने हंस रूप में दमयंती को नल के और नल को दमयंती के रूप और गुणों को बता कर उन्हें विवाह के लिये स्वयंवर आयोजित करने को कहा । स्वयंवर में दमयंती ने नल के गले में वर-माला पहना दी और दोनों का विवाह हो गया।
भगवान शिव ही यतिनाथ के वेष में आहुक और आहुका की परीक्षा लेने गये थे। उनके कारण ही उनका बिछोह हुआ था और उन्होंने ही उन्हें फिर मिला दिया। भोले भण्डारी महादेव शीघ्र ही प्रसन्न होकर अपने भक्तों को वर देने के लिये प्रसिद्ध हैं। शिव की सर्वत्र पूजा-उपासना होती है। सर्वत्र शिवालय प्रतिष्ठित हैं। जहां ‘हर-हर महादेव’ की ध्वनि गूंजती है। कल्याणकारी भगवान शिव सबका भला ही करते हैं।