सम्राट विक्रमादित्य ने, बिलकुल भी विचलित न होते हुए, तथा अपने धर्म का पालन करते हुए, वापस पेड़ पर लौटने वाले बेताल को फिर से अपनी पीठ पर लादा और चल दिए उसी तान्त्रिक के पास, जिसने उन्हें लाने का काम सौंपा था | थोड़ी देर बाद बेताल ने अपना मौन तोड़ा और राजा विक्रमादित्य से कहा “तुम भी बड़े हठी हो राजन, खैर चलो, मार्ग आसानी से कट जाए, इसके लिए मै तुम्हे एक कथा सुनाता हूँ |
बेताल ने विक्रम को कथा सुनाना प्रारंभ किया | किसी समय की बात है कुसुमपुर नाम के एक नगर में एक राजा राज्य करता था, जिसका नाम था चित्रसेन । उसके नगर में एक ब्राह्मण रहता था, जिसके चार बेटे थे । दैवयोग से लड़कों के सयाने होने पर एक दिन ब्राह्मण मर गया और उसकी विदुषी पत्नी ने उसके साथ ही योग विद्या से अपने प्राण भी त्याग दिए । वह योग साधना में पारंगत थी | पति का प्राणान्त हो जाने पर, इस संसार को निःसार जानते हुए उसने अपनी योग साधना से अपने प्राण त्याग दिए |
लेकिन उन दिवंगत ब्राह्मण दाम्पत्ति के रिश्तेदार बहुत ही नीच प्रकृति के थे | उन रिश्तेदारों ने उन बच्चों का सारा धन छीन लिया। वे चारों भाई फिर अपने नाना के यहाँ चले गये। लेकिन उनकी किस्मत बुरी थी कुछ दिन बाद वहाँ भी उनके साथ बुरा व्यवहार होने लगा।
तब हताश और निराश हो कर चारो भाइयों ने मिलकर सोचा कि कोई ऐसी महान विद्या सीखनी चाहिए, जिससे समाज में हर तरफ हमारा मान सम्मान बढ़े । यह सोच करके चारों चार दिशाओं में महान विद्याओं को सीखने चल दिये।
कुछ वर्षों बाद वे विद्या सीखकर एक ही स्थान पर मिले। एक भाई ने कहा, “भाइयों मैंने ऐसी विद्या सीखी है कि मैं मरे हुए प्राणी की हड्डियों पर मांस चढ़ा सकता हूँ।” दूसरे भाई ने सबसे कहा, “मैं उस मृत जानवर के खाल और बाल पैदा कर सकता हूँ।” तीसरे भाई ने बाकी सारे भाइयों से कहा, “मैं उसके सारे अंग बना सकता हूँ।” और अंत में चौथा भाई उन सबसे बोला, “और मैं उस मृत जानवर के शरीर में जान डाल सकता हूँ।”
फिर वे चारो भाई अपनी अपनी विद्या का बखान करके प्रसन्न होने लगे और अंत में अपनी विद्या की परीक्षा लेने जंगल में गये । वहाँ उन्हें रास्ते में एक मरे हुए शेर की हड्डियाँ मिलीं। उन्होंने उसे बिना पहचाने ही उठा लिया। फिर सभी ने उसी मृत जानवर को जीवित करने का निश्चय किया |
उनमे से एक ने उसके मृत शरीर में माँस डाला, दूसरे ने उसके शरीर में खाल और बाल पैदा किये, तीसरे भाई ने उस मरे हुए शेर के सारे अंग बनाये और अंत में चौथे भाई ने उसमें प्राण डाल दिये । इतने में शेर जीवित हो उठा और जीवित होते ही उसने स्वयं को अत्यन्त भूखा अनुभव किया | इसके बाद एक एक करके वह सबको खा गया।
यह कथा सुनाकर बेताल राजा विक्रमादित्य से बोला, “हे राजा, बताओ कि उन चारों में शेर बनाने का अपराध किसने किया?” राजा ने कहा, “जिसने प्राण डाले उसने, क्योंकि बाकी तीन को यह पता ही नहीं था कि वे शेर बना रहे हैं। इसलिए उनका कोई दोष नहीं है।”
यह सुनकर बेताल पहले तो अति प्रसन्न हुआ फिर वह पेड़ पर जा लटका। राजा विक्रमादित्य जाकर फिर उसे लाये । रास्ते में बेताल ने एक नयी कहानी सुनायी।