आत्महत्या को जिंदगी की सबसे बड़ी भूल बताया गया है | आत्महत्या करने वाले ज्यादातर व्यक्ति अपने वर्तमान जीवन की हर समस्याओं हार मान चुके होते हैं उनके पास जीने का कोई कारण नहीं बचता और अपनी हर समस्या का समाधान उन्हें अपने जीवन का अंत करने में ही दिखाई पड़ता है |
लेकिन क्या हो अगर आत्महत्या के बाद जाना ही ऐसी दुनिया में हो जहाँ सिवाय दुःख, निराशा और हताशा के अलावा कुछ भी न हो और हताशा भी ऐसी जिसका कोई अंत नज़र न आता हो | जी हाँ ये अनिवार्य है और ऐसा होकर रहता है |
विस्तार में जाने से पहले हम आपको एक सत्य से परिचय करते है | इस संसार में (जिसमे हम रहते है) समस्त प्रकार के सुखों का प्रधान अवलम्बन (सहारा) भगवान् सूर्य ही हैं इस वजह से सूर्य को चर-अचर समस्त जगत की आत्मा के रूप में स्वीकार किया जाता है | वैदिक ग्रंथों में आत्मघाती मनुष्यों के बारे में क्या कहा गया है उसे पढ़िए :-
असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृता |
तास्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ||
अर्थात “आत्मघाती मनुष्य मृत्यु के बाद अज्ञान और अंधकार से परिपूर्ण, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को गमन करते हैं” | सर्वसामान्य लोग इससे अंदाजा लगा सकते है की जिन समस्याओं को लेकर कोई मनुष्य आत्महत्या करता है उन समस्याओं का हल कभी-न-कभी इस संसार में तो मिल सकता है नहीं तो स्वाभाविक मौत के बाद वो उससे छुटकारा पा ही जायेगा लेकिन आत्महत्या के बाद तो ऐसी ही अंतहीन समस्याओं का सामना हमेशा करना पड़ेगा क्योकि वो एक नया जीवन होगा-ऐसी ही समस्याओं से भरा अंतहीन जीवन ! इसलिए जिंदगी में सब कुछ करने की सोचियेगा लेकिन आत्महत्या करने की कभी मत सोचियेगा |
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