जिस समय श्री कृष्ण द्वारिका में शासन करते थे उस समय द्वारिका साक्षात बैकुंठ के समान थी। जिसमें भगवान का भरा पूरा परिवार रहता था। ऐसा कहा जाता है कि उनकी 8 पटरानियां थी जिनके नाम थे रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, मित्रवन्दा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी। जिनसे उनके बहुत से पुत्र और पुत्रियां थे।
उसके बाद श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस द्वारा बंधक बनाई गई 16 हजार स्त्रियों को उस राक्षस से मुक्त कराकर उनसे विधिपूर्वक विवाह किया। उनकी 8 पटरानियों में से एक जाम्बवती नाम की पटरानी थी जिससे उनका विवाह रिक्षराज जाम्बवंत जी ने कराया था। ये जाम्बवंत जी वही थे जो रामायण काल में हुए राम-रावण युद्ध में भगवान राम के सलाहकार थे। जाम्बवंत जी भगवान विष्णु के परम भक्त थे।
जाम्बवती पटरानी होते हुए भी श्री कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पित रहीऔर आजीवन उनकी सेवा करती रही। जाम्बवती और भगवान श्री कृष्ण का एक पुत्र था जिनका नाम सांब था। जो भगवान श्री कृष्ण की ही भांति सोलह कला संपन्न थे। दिखने में अत्यंत मनोहर साम्ब में बरबस ही कृष्ण की छवि दिखाती थी| उस समय कुछ ऐसा हुआ की एक समारोह में साम्ब की मुलाकात दुर्योधन के पुत्री लक्ष्मणा से हुई |
सांब को देखते ही दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा उनसे प्रेम करने लगी। सांब की दृष्टि भी जब लक्ष्मणा पर पड़ी तो वो भी उसके आकर्षण में बंध गए।दुर्योधन समेत पूरा कुरुवंश लक्ष्मणा के कृष्ण-पुत्र साम्ब से विवाह के विरुद्ध था | इसलिए दोनों ने गंधर्व विवाह(प्रेम विवाह) करने का निर्णय लिया और विवाह कर लिया तत्पश्चात सांब लक्ष्मणा को अपने रथ में बैठाकर द्वारिका ले जाने लगे तो कौरवों ने मार्ग में ही हस्तिनापुर की पूरी सेना के साथ उस पर हमला बोल दिया।
कौरवों की विशाल सेना का साम्ब ने अकेले डट कर सामना किया और दुर्धर्ष युद्ध किया मगर अकेला कब तक विशाल सेना का सामना कर पाता। अतः साम्ब को हार का मुंह देखना पड़ा और कौरवों ने साम्ब को बंदी बना लिया। जब द्वारिका में साम्ब को कौरवों द्वारा बंदी बनाए जाने का समाचार पंहुचा तो कृष्ण के बड़े भैया बलराम जी हस्तिनापुर पहुँच गए और कौरवों से शांति वार्ता की और कहा वह साम्ब को छोड़ दें और उनकी कुल वधु लक्ष्मणा को विदा कर दें।
कौरवों ने सीधे और साफ़ शब्दों में बलराम जी की बात मानने से इंकार कर दिया। बलराम जी का क्रोध सातवें आसमान पर चढ़ गया। उन्होंने अपने हल से हस्तिनापुर पर प्रहार किया और हस्तिनापुर का पूरा भूगोल बदलने लगे, वे हस्तिनापुर को खींचकर गंगा में डूबोने के लिए चल पड़े।
कौरव बलराम जी का अत्यंत भयानक और रौद्र रूप देख कर डर गए और उन से क्षमा याचना करने लगे। बलराम जी ने उन्हें क्षमा कर दिया। कौरवों ने सांब और लक्ष्मणा को पूरे आदर और सम्मान के साथ बलराम जी के साथ विदा किया। द्वारिका जाकर सांब और लक्ष्मणा का सनातन संस्कृति के अनुसार विवाह संपन्न हुआ।
तो इस प्रकार से एक अकेले बलराम जी ने अपने बाहुबल से पूरे कौरव वंश को भयभीत और आतंकित कर दिया | यहीं से दुर्योधन उनसे प्रभावित होकर उनका शिष्य बनने का प्रयत्न करने लगा |