यह सत्ययुग की बात है | अत्यन्त प्राचीनकाल में ‘स्यूमरश्मि’ नाम के एक ऋषि हुआ करते थे | वो दिव्य तेज़ के स्वामी थे लेकिन एक बार उन्हें परम प्रभु परमेश्वर के सम्बन्ध में अनेक महान कौतूहल उत्पन्न हुए | उन्होंने अपने ध्यान से अनुमान लगाया कि उनके प्रश्नों का समाधान कपिल मुनि ही कर सकते हैं | इसलिए वो कपिल मुनि के पास गए |
उन्होंने कपिल मुनि से अत्यन्त श्रद्धापूर्वक शिष्य की भाँति अनेक प्रश्न किये थे । भगवान् के अवतार कपिल मुनि ने उनके तर्कों का खण्डन करते हुए और उनके प्रश्नों का समाधान करते हुए उनसे कहा था “कि जो मनुष्य समस्त प्राणियों पर दया, क्षमा, शान्ति, अहिंसा, सत्य, सरलता, अद्रोह, निरभिमानता, लज्जा, तितिक्षा और शम को प्राप्त कर लेता है वो परब्रह्म को प्राप्त कर लेता है । इस प्रकार विद्वान पुरूष को मन के द्वारा कर्म के वास्तविक परिणाम का निश्चय समझना चाहिये” ।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धरती को धारण करने वालों में धर्मादि के साथ भगवान् कपिल का भी नाम आता है | कहा भी गया है कि ‘धर्म, काम और काल, वसु और वासुकि, अनन्त और कपिल-ये सात पृथ्वी को धारण करने वाले हैं’ । महाभारत काल में शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह के शरीर-त्याग के समय वेदज्ञ व्यासादि ऋषियों के साथ भगवान् कपिल भी वहाँ उपस्थित थे ।
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अपनी माँ को ब्रह्म और जीव का उपदेश देने के बाद भगवान् कपिल अपनी माता से विदा होकर परम पुण्यतोया जाहृवी नदी के तट पर पहुँचे । फिर उनके तट का सौन्दर्य देखते हुए वे धीरे-धीरे वहाँ पहुँचे, जहाँ भगवती भागीरथी (गंगा जी) महासागर मे मिलती हैं । उसे ‘गंगासागर’ भी कहते हैं | ऐतिहासिक दृष्टी से ये जानना महत्वपूर्ण है कि उस समय धरती पर (आर्यावर्त में) गंगा जी का अवतरण नहीं हुआ था |
भगवान् कपिल के वहाँ पहुँचने पर समुद्र ने सशरीर समीप आकार उनके चरणों में प्रणाम कर उनकी सविधि पूजा की । यह दृश्य देखकर आकाश से देवता तथा सिद्धादि परम प्रभु का स्तवन करते हुए उनके ऊपर दिव्य पुष्पों की वर्षा करने लगे । भगवान् कपिल की वहाँ निवास करने की इच्छा जानने पर समुद्र के प्रसन्नता की सीमा न रही । उसने इसे अपना परम सौभाग्य समझा ।
तब से भगवान् के अवतार कपिल मुनि वहीं समुद्र के भीतर रहकर अपना तप और अनुसन्धान कार्य करते हैं । वर्ष में एक दिन मकर की संक्रान्ति के दिन समुद्र ने वहाँ से हट जाने का वचन दिया था, जिससे उस दिन वहाँ जाकर दर्शन करने वाले अक्षय पुण्य प्राप्त कर सकें । आज से हज़ारों साल पहले राजा सगर के साठ हज़ार बलिष्ठ पुत्र यज्ञ के घोड़े की खोज के लिए धरती को खोदते हुए तपोमूर्ति भगवान् कपिल के आश्रम पर पहुँचे और उनकी धर्षणा करने पर उनके नेत्र की ज्वाला से भस्म हो गये ।
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बाद में उनके उद्धार के लिए भागीरथ जी ने, धरती पर गंगा जी का अवतरण संभव कराया | भगवान् कपिल मुनि सांख्य-दर्शन के प्रवर्तक हैं । आप भागवत धर्म के मुख्य बारह आचार्यों में से एक हैं । आपका एक नाम ‘चक्रधनु’ भी है ।
एक बार विष्णु-वाहन गरूड़ ने महर्षि गालव को बताया था “सूर्य के समान तेजस्वी महर्षि कर्दम से उत्पन्न हुए ‘चक्रधनु’ नामक महर्षि इसी दिशा में रहते थे, जिन्हें सब लोग कपिलदेव के नाम से जानते हैं । उन्होंने ही सम्राट सगर के पुत्रों को भस्म कर दिया था” । आज भी प्रतिवर्ष मकर-संक्रान्ति के दिन गंगासागर-संगम पर सहस्रों स्त्री-पुरूष भगवान् कपिल के पुनीत आश्रम के दर्शनार्थ जाते हैं ।