एक बार महाभारत युद्ध में चलते समय राह में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से युधिष्ठिर को दिखाते हुए कहा “पाण्डुनन्दन ! ये हैं तुम्हारे भाई युधिष्ठिर । देखो, इन्हें मारने के लिये अत्यन्त बलवान् और महान् धनुर्धर कौरव-योद्धा बड़ी तेजी के साथ इनका पीछा कर रहे हैं । साथ ही उनकी रक्षा के लिये पांचाल देशीय वीर भी उनके पीछे-पीछे जा रहे हैं ।
यह राजा दुर्योधन भी रथियों की सेना से घिरकर राजा युधिष्ठिर पर धावा कर रहा है । इसका भी उद्देश्य यही है कि युधिष्ठिर को मार डालें । इस कार्य में इसके भाई भी साथ दे रहे हैं । ये हाथी सवार, घुड़सवार, रथी और पैदल-सभी उन्हें पकड़ने के लिये जा रहे हैं । अब देखो, सात्यकि और भीम ने पहुँचकर यद्यपि इन्हें बीच में ही रोक दिया है, तो भी ये संख्या में अधिक होने के कारण राजा की ओर बढ़े ही चले जाते हैं ।
शत्रु को संताप देने वाले राजा युधिष्ठिर भी यद्यपि बड़े बलवान् हैं, युद्ध की कला में निपुण हैं, उनका हाथ भी फुर्ती से चलता है, तथापि कर्ण ने उन्हें रण से विमुख कर दिया है । धृतराष्ट्र के पुत्र शूरवीर हैं, उनकी सहायता मिल जाने पर कर्ण अवश्य ही हमारे महाराज को कष्ट पहुँचा सकता है । इनके तथा और भी बहुत-से शूरवीरों के साथ ये युद्ध कर रहे थे ।
उन सब महारथियों ने मिलकर उन्हें परास्त किया है । राजा युधिष्ठिर उपवास करने के कारण बहुत दुर्बल हो गये हैं । ये अधिकतर ब्राह्मबल (क्षमा)- में ही स्थित रहते हैं, क्षात्रबल (निष्ठुरता)-में नहीं; जब से कर्ण के साथ इनकी भिडंत हुई है, तब से ये बड़े संकट में पड़ गये हैं ।
कर्ण धृतराष्ट्र के महारथी पुत्रों से यह कह रहा है कि ‘तुम लोग पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर को मार डालो ।’ पार्थ ! ये सभी महारथी स्थूणाकर्ण, इन्द्रजाल तथा पाशुपत नामक अस्त्र-शस्त्रों से राजा को आच्छादित कर रहे हैं । वे आतुर हो गये हैं, इस समय उन्हें विशेष सेवा की आवश्यकता है । अब शीघ्रता करनेका समय है-यह जानकर पांचाल तथा पाण्डव वीर बड़ी तेजी से उनके पीछे दौड़ते हैं ।
उन्हें यह आशा और विश्वास है कि यदि महाराज युधिष्ठिर पाताल में भी डूबते होंगे तो हम उन्हें बलपूर्वक निकाल लायेंगे । वह देखो, अब कर्ण अत्यन्त क्रोध में भरकर पांचालों की ओर दौड़ रहा है । उसके रथ की ध्वजा धृष्टद्युम्न के रथ की ओर जाती दिखायी दे रही है । पार्थ ! इस समय मैं तुम्हें एक परम प्रिय समाचार सुना रहा हूँ कि राजा युधिष्ठिर जीवित हैं ।
उधर वे महाबाहु भीमसेन हैं, जो सुंजयों की वाहिनी तथा सात्यकि के साथ लौटकर अपनी सेना के मुहाने पर खड़े हैं । पांचाल योद्धा तथा भीमसेन अपने तेज बाणों से अब कौरवों पर प्रहार कर रहे हैं । देखो, कौरव-सेना भाग चली । सैनिकों के घावों से खून की धारा जारी है । उनकी बड़ी दयनीय दशा दिखायी देती है । अब देखो, भीमसेन शत्रुओं की सेना को खदेड़ने लगे ।
उनकी वजह से कौरव-वाहिनी बड़े संकट में पड़ गयी है । ये रथी लोग भीम के भय से थर्रा उठे हैं । हाथी उनके नाराचों की मार से विदीर्ण हो-होकर जमीन पर गिर रहे हैं । बड़े-बड़े गजराज भीम के बाणों से घायल होकर अपनी ही सेना को रौंदते-कुचलते हुए भागे जा रहे हैं । अर्जुन ! पहचान लो, संग्राम विजयी वीरवर भीमसेन का ही यह दुःसह सिंहनाद सुनायी देता है !
यह लो, उन्होंने दस बाण मारकर निषादराज के पुत्र को भी मौत के घाट उतार दिया । अब कौरवों की बोलती बंद हो गयी है, पहले जैसी उनकी गर्जना नहीं सुनायी देती । भीमसेन ने दुर्योधन की तीन अक्षौहिणी सेनाओं को आगे बढ़ने से रोककर मार डाला है । जिनकी आँखें कमजोर हैं वे जैसे दोपहर के सूर्य की ओर नहीं देख सकते, वैसे ही ये कौरवपक्ष के राजा लोग भीमसेन की ओर आँख उठाकर देख नहीं पाते ।
उनके बाणों की मार से भयभीत हुए शत्रुओं को कहीं भी चैन नहीं मिलता” । भगवान् श्री कृष्ण के मुख से ये बातें सुनकर अर्जुन ने भीमसेन के दुष्कर पराक्रम पर दृष्टिपात किया । फिर अपने बचे-खुचे शत्रुओं को तीखे बाणों से मारना आरम्भ किया । संशप्तक योद्धा यद्यपि बड़े बलवान् थे तो भी वे अर्जुन की मार से युद्ध में नहीं ठहर सके । भयभीत होकर सब दिशाओं में भाग गये |