स्वर्ग की अवधारणा ऐसी है कि हर किसी के ह्रदय में एक कौतूहल और आनंद पैदा करती है | हर कोई मरने के बाद स्वर्ग जाने की ही इच्छा रखता है, चाहे वो किसी भी धर्म या सम्प्रदाय का हो | लेकिन इसी दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग होंगे जो जीते जी स्वर्ग जाने की इच्छा रखते होंगे | इतिहास गवाह है कि अतीत में, ब्रह्मर्षि विश्वामित्र की सहायता से किसी ने ऐसा प्रयास किया भी था | किन्तु क्या यह संभव है?
कुछ लोग महाभारत की एक कथा सुनाते हैं की महाभारत के इस महा युद्ध के कुछ समय बाद पाँचों पाण्डव राज पाट छोड़ कर हिमालय के लिए प्रस्थान करते हैं और जहाँ रास्ते में बारी बारी उन भाईयों की मृत्यु होती चली जाती है और सबके अन्त में युधिष्ठिर बिना मृत्यु को प्राप्त हुए, अपने जिन्दा शरीर के साथ ही स्वर्ग पहुच जाते हैं | क्या यह सच है?
वास्तव में ऊपर लिखी कथा ऐसी नहीं है जैसा की सुनने को मिलती रही है | भारतवर्ष के प्राचीन ज्ञान विज्ञान के मूर्धन्य जानकार डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी बताते हैं कि, इस कथा का तात्विक अर्थ कुछ और है | उनकी बात माने तो डॉक्टर सौरभ जी का कहना है कि, यहाँ हिमालय का अर्थ राज्य सुख में घिरे होने के बावजूद पांडव तपस्वी जैसा त्यागी जीवन जी रहे थे | पाण्डव भाईयों और द्रौपदी की, रास्ते में गिर कर बारी बारी मौत का मतलब उसी क्रम में उन सभी के जीवन कर्तव्य की समाप्ति और भव सागर से मुक्ति है |
युधिष्ठिर की बात करें तो धर्मराज युधिष्ठिर का हाथ पकड़कर देवराज इंद्र खुद उन्हें स्वर्ग ले गए, इसका तात्पर्य यह है की युधिष्ठिर का पुण्य प्रताप इतना प्रचण्ड था की स्वयं स्वर्ग के राजा इन्द्र को आना पड़ा उनके स्वागत के लिए पर इसका ये मतलब कत्तई नहीं है की युधिष्ठिर अपने हाड़ मांस की बनी इस स्थूल शरीर के साथ ही स्वर्ग चले गए !
युधिष्ठिर अपने जीवन के अंत काल में स्वर्ग गए पर अपने उस हाड़ मांस के शरीर की मौत के बाद | देवराज इन्द्र ने युधिष्ठिर का हाथ पकड़ कर अपने रथ में बैठाया और इतने में ही कब युधिष्ठिर के पञ्च भौतिक शरीर की मृत्यु हो गयी ये युधिष्ठिर को पता ही नहीं चला | ऐसा नहीं है की कोई अपने हाड़ मांस के शरीर के साथ स्वर्ग जैसे उच्च लोक में जा ही नहीं सकता पर उसके लिए चाहिए प्रचण्ड यौगिक शक्ति या मान्त्रिक शक्ति क्योंकि स्वर्ग का वातावरण इतना ज्यादा दिव्य तेजोमय है की साधारण मानव शरीर तो वहां पहुँचते ही भस्म हो जायेगी |
पर जब कोई लम्बे समय के लिए स्वर्ग जैसे उच्च लोकों में जाना चाहता है तो उसके लिए अपने इस जगत के भौतिक शरीर के साथ जाना फायदे मंद नहीं होता है | इसको ठीक से समझने के लिए आप कल्पना करिए की आप एक बेहद गरीब भिखारी है जिसके पास पहनने के लिए फटे चिथड़े कपड़े हैं और आप के पास अचानक से कोई बहुत अमीर राजा आता है और आपसे कहता है की, मै तुमसे बहुत खुश हूँ और तुम्हे अपने राजमहल में एक बड़े पद पर बैठा कर सम्मानित करना चाहता हूँ | तो क्या आप उस राजमहल में उसी फटे चिथड़े कपड़े में ही जाना और रहना पसन्द करेंगे ? बिल्कुल नहीं | आप उस राजमहल में बढियां महंगे और सुन्दर राजसी कपड़े में ही जाना पसंद करेंगे |
ठीक उसी तरह मानवों का पञ्च तत्वों से बना शरीर वास्तव में एक मल, मूत्र, कफ, वात, पित्त आदि दुर्गन्ध युक्त चीजों से बना कपड़ा ही तो है तो फिर इसी कपड़े को पहनकर, जीवात्मा को स्वर्ग जैसी दिव्य, तेजोमय जगह जाना सिर्फ मूर्खता ही तो है |
इसलिए ये, वास्तव में ईश्वर द्वारा दिया गया उपहार है की जब भी कोई महात्मा अपने जीवन में खूब परिश्रम, पुरुषार्थ कर दूसरे जरूरतमंदों, गरीबों, भूखों की सहायता करता है तो उसे मरने के बाद भगवान् एक नयी चमचमाती दिव्य शरीर प्रदान करते हैं और स्वर्ग में रहने का सुख भी |
धर्म ग्रंथों में स्वर्ग की अवधारणा जैसी भी रही हो लेकिन आज कल के लोगों में स्वर्ग के बारे में सही जानकारी नहीं है | आधुनिक युग की बात करे तो स्वर्ग के बारे में भी आज कई खुरापाती लोगों ने एक सोची समझी साजिश के तहत टेलीविजन, अखबारों के माध्यम से ये अफवाह फैला रखी है की स्वर्ग एक अय्याशी, मौज, मस्ती, अप्सराओं का डांस देखने का अड्डा है, और देवराज इंद्र सबसे बड़े शौक़ीन किस्म के आदमी है जबकि ऋषि नारद हर समय हंसी मजाक, चुगली करने वाले जोकर टाइप आदमी है |
इस तरह की अफवाह फ़ैलाने और अपनी कुत्सित कृतियों के माध्यम से ऐसा सन्देश देने का मुख्य उददेश्य यही हैं कि हिन्दुओं को हिन्दू धर्म, हिन्दू साधू संतों आदि के लिए नफरत पैदा हो और वो हिन्दू धर्म छोड़ कर दूसरे धर्म की तरफ आकृष्ट हों | यह एक अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र है | इस षड्यंत्र में कुछ चुनिंदा देशो का काफी पैसा लगा हुआ है | ऐसे में समझदार हिन्दुओं को इन साजिशों के खिलाफ, शासन के समक्ष न केवल विरोध जताना चाहिए की हिन्दू धर्म से जुड़ी चीजों का इस तरह से सार्वजानिक जगहों पर मजाक, अपमान बंद होना चाहिए, बल्कि इन चीजों का अपने-अपने स्तर पर (कानूनी दायरे में रहते हुए) प्रतिकार भी करना चाहिए |
भारतीय धर्म ग्रंथों में वर्णित स्वर्ग के बारे में जो इस तरह की गलत बातें दिखाई जाती है, वास्तव में ऐसा बिल्कुल है नहीं | क्योंकि स्वर्ग में वही लोग पहुचते हैं जो बहुत बड़े त्यागी और तपस्वी होते हैं और ऐसा कैसे हो सकता है की धरती पर त्याग और तपोमय जीवन जीने वाले यही लोग स्वर्ग पहुचते ही अय्याशी, मौज, मस्ती करने लगें |
हमारे शास्त्र बताते हैं की, वास्तव में स्वर्ग एक बहुत बड़ी प्रयोगशाला है जहाँ सभी महान स्वभाव और हमेशा दूसरों का परोपकार सोचने वाले देवता, इस ब्रह्माण्ड के बेहतर मैनेजमेंट के लिए, निरन्तर अनन्त, निराकार ईश्वर से प्राप्त ज्ञान और शक्तियों पर अनुसन्धान करते रहते हैं |
देवता ही प्रथम प्रभारी और जिम्मेदार होते हैं भगवान के बनाये हुए नियमों को ब्रह्माण्ड में लागू करवाने के लिए | वैसे तो परम सत्ता ने अनन्त ब्रह्माण्ड बनाये हैं और हर ब्रह्माण्ड की बहुत सी चीजें एक दूसरें से भिन्न है पर एक शाश्वत नियम हर ब्रह्माण्ड में लागू होता है की,- कर भला तो हो भला |