किसी का खज़ाना जब लोक कहावत बन जाए तो ये सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उस खज़ाने में कितना धन रहा होगा | भारत में ये कहावत फ़ारसी भाषा से आई है | कहते है की राजा कारून (ई पूर्व ५६० से ई पूर्व ५४७ तक), जिसे अंग्रेजी में किंग क्रोसस (King Croesus) भी कहते हैं, के पास बेहिसाब धन था |
उसके खज़ाने में अद्वितीय, अनुपम, सोने की मूर्तियाँ, हीरे, जवाहरात, सोने चांदी के बर्तन तो थे ही साथ ही कुछ विचित्र और आश्चर्यजनक चीजें भी थीं जो उस समय बहुत सो लोगों के समझ में नहीं आयीं |
क्रोशस का साम्राज्य एशिया माइनर (आज का तुर्किस्तान या टर्की) में लीडियन साम्राज्य के नाम से प्रसिद्ध था, जिसकी सीमाएं भूमध्य सागर, ईज़ियन सागर और काला सागर तक थी | क्रोशस के साम्राज्य की राजधानी सार्डिस थी जिसकी समृद्धि की, और क्रोशस के खजाने की चर्चा दूर-दूर तक थी |
ये वो समय था जब भारत वर्ष एक अत्यंत समृद्ध देश था, विदेशियों की गिद्ध दृष्टी हमेशा इसको ललचाई आँखों से देखती थी, लेकिन उन आँखों में हिम्मत नहीं हुआ करती थी कि वो भारतीयों से लोहा ले सकें | घनानंद (जिसे उसकी असंख्य सम्पत्ति के लिए महापद्म्नंद भी कहा जाता था) का युग आने वाला था | भारतीय व्यापारी दुनिया के कोने-कोने तक अपने व्यापार को फैला रखे थे | उनका व्यापार लीडिया तक भी था |
अन्य राजाओं की तरह क्रोशस को भी स्वर्ण से अत्यधिक प्रेम था किन्तु क्रोशस असाधारण खज़ाने का स्वामी होने के बावज़ूद अत्यंत कृपण था | कहते हैं कि उसके साम्राज्य में ढेर सारी सोने की खादाने भी हुआ करती थी | वहां की नदियों में भी स्वर्ण-कण बहते हुए आते थे |
यूनानी संस्कृति के दीवाने राजा क्रोशस के बारें में यहाँ तक कहा जाता है कि ये, यूनानी राजा ‘मिडास’ का वंशज था | यूनानी पौराणिक कथाओं में राजा मिडास का वर्णन उसके स्वर्ण के प्रति अत्यधिक प्रेम के कारण आता है | मान्यता है कि मिडास जिस वस्तु को छू देता था वो सोना बन जाती थी | लेकिन उसका यही वरदान उसके लिए जानलेवा साबित हुआ |
प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक अरस्तु (Aristotle) के अनुसार मिथक बताते हैं की मिडास भूख और प्यास से तड़प-तड़प के मरा क्योकि उसके शरीर से छू कर कोई भी वस्तु सोना बन जा रही थी (सिवाय उसके अपने शरीर के) |
उसी मिडास का वंशज था क्रोशस जिसके खुद के अन्दर भी सोने के प्रति अगाध प्रेम था | उसके अत्यधिक स्वर्ण-भंडार को देखकर उस जमाने में लोगों ने लीडिया को सोना उगलने वाली धरती कहना शुरू कर दिया था |
उसकी बेहिसाब सम्पत्ति से इर्ष्या करने वाले लोगों ने बाद में ये फैलाना शुरू कर दिया की क्रोशस ने ये खज़ाना ‘काफ़िर विद्या’ यानि काले जादू टोने से जमा किया है | लेकिन बहुत से लोगों को ये भी विश्वास था कि क्रोशस को देवताओं का सानिध्य प्राप्त था जिनकी सहायता से उसने ये धन जमा किया था |
क्रोशस को उसके टकसाल में ढाली हुई स्वर्ण-मुद्राओं के लिए भी जाना जाता है | कहा जाता है की उससे पहले उस क्षेत्र में सिक्के ठोक-पीट कर बना लिए जाते थे लेकिन क्रोशस ने सर्वप्रथम अपने यहाँ निर्मित टकसाल में ढाली हुई स्वर्ण-मुद्रा चलाई जिसे ‘इलेक्ट्रम’ नाम दिया | इस इलेक्ट्रम नाम की स्वर्ण-मुद्रा में सोने की शुद्धता को लेकर बेहद सावधानी बरती जाती थी |
यूनान पर अधिकार करने वाले पहले एशियाई विदेशी होने का श्रेय भी क्रोशस को प्राप्त है | क्रोशस के साम्राज्य के अवसान के समय, ईसा से लगभग ५४६ वर्ष पूर्व, पश्चिम एशिया यानि फारस में एक नए सम्राट कुरुष (जिसे साइरस नाम से भी जाना जाता है) का उदय हो रहा था, जिसकी महत्वाकान्छा उसे क्षितिज के उस पार तक अपना साम्राज्य फ़ैलाने के लिए प्रेरित कर रही थी |
ये वही कुरुष था जिसके पोते जर्कसीज़ ने थर्मोपोली के प्रसिद्ध युद्ध में यूनानी साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले स्पार्टा राज्य के राजा लिओनाइडस प्रथम को हराया था | लिओनाइडस अपने चुने हुए ३०० बेहतरीन लड़ाकों के साथ युद्ध लड़ा लेकिन ज़र्कसीज़ की सेना कल्पना से भी परे विशाल थी | लिओनाइडस को हार का सामना करना पड़ा |
कुरुष ने जब अपनी विजय यात्रा शुरू की तो उसने समूचे पश्चिम एशिया को जीतते हुए लीडिया पर आक्रमण किया | क्रोशस को कुरुष की शक्ति का अंदाज़ा था | उसे कुरुष के उभरते हुए स्वर्णिम भाग्य के बारे में भी पता था इसलिए उसने कुरुष से लड़ने की बजाय उसकी अधीनता स्वीकार करना उचित समझा | इसके बाद फ़ारस के लोगों को क्रोशस के खज़ाने एवं उससे जुड़ी मिथकीय बातों के बारे में पता चला |
समय बीता, सभ्यताएं गुजरीं और क्रोशस का खज़ाना, पश्चिम एशिया में “कारूं का खज़ाना” नाम से प्रसिद्ध हो गया | कुछ लोगों ने तो यह भी लिखा है कि भारतीय उपमहाद्वीप से गए कुछ व्यापारियों ने ही क्रोशस को ‘इंद्रजाल’ विद्या सिखाई जिसकी सहायता से उसने अपने अन्तकाल में अपना सारा खज़ाना ज़मीन में दफ़न कर दिया………सदा के लिए !
सदियाँ बीतीं, सहस्राब्दियाँ भी बीतीं और उसके रहस्यमय खज़ाने में समय की धूल पर्त-दर-पर्त जमा होती चली गयी | जीवित रह गयी तो सिर्फ एक लोकोक्ति “कारूं का खज़ाना” |
आज से कोई इक्यावन साल पहले, तुर्की के एक शहर ‘उसक’ के पश्चिमी भाग में स्थित ग्योर नाम के एक गाँव में कुछ पांच-सात ग्रामीण, लीडियन काल की एक राजकुमारी की समाधि को खोद रहे थे | उस समय वहां उन्हें कुछ स्वर्ण आभूषण मिले जिसे उन्होंने सरकार को देने की बजाय चुरा लिया |
अब तक उन्हें अच्छे से समझ आ चुका था की यहाँ और खज़ाना गड़ा हुआ है | एक साल बाद 1966 में उन्होंने फिर से खुदाई की | अबकी बार उन्हें डेढ़ सौ के करीब सोने चांदी के बर्तन, आभूषण और सजावटी सामान मिले | सोने के अधिकाधिक लालच में, दो साल बाद 1968 में, उन्होंने एक बार और खुदाई की | इस बार उन्हें कोई सोना तो नहीं मिला लेकिन कुछ वाल पेंटिंग्स मिली |
उन ग्रामीणों ने उन सोने चांदी के सामानों और वाल पेंटिंग्स को चोर बाज़ार के शातिरों को बेच दिया | ऐसी मान्यता है की उन ग्रामीणों के हांथ जो कुछ लगा वो क्रोशस के खज़ाने का एक छोटा सा हिस्सा मात्र था |
लेकिन जिस आशा से उन ग्रामीणों ने उन अत्यंत कीमती सामानों को बेचा था कि वो धनी हो जायेंगे एवं एक सुखी और समृद्ध जीवन जियेंगे, ऐसा कुछ उनके साथ हुआ नहीं | बजाय इसके, उनके जीवन में दुर्भाग्य का एक सिलसिला सा चल पड़ा | यही से क्रोशस के खज़ाने की शापित होने की बात प्रचलित हुई |
सबसे पहले वे पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए जब उनके बीच में खजाने को बेचने पर मिले धन के बटवारे के समय झगड़ा हुआ | बाद में पुलिस ने गहरी छानबीन की और वहाँ के स्थानीय शातिर चोर अली बेईलर को पकड़ा लेकिन उससे पता चला की खज़ाना तो तुर्की की सीमा पार कर चुका है |
उन ग्रामीणों में से एक ग्रामीण ने काफ़ी समय बाद एक पत्रकार को बताया हम में से एक मित्र के तीनो लड़के मारे गए जिसमे से एक की गला रेतकर बेरहमी से हत्या कर दी गयी | एक दूसरे ग्रामीण के दोनों बच्चे दूर देश में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए |
एक मित्र को लकवा मार गया और वो लगभग अपाहिज हो कर मरा | एक ग्रामीण ने अपने पुत्र की मौत के बाद पीड़ादायक परिस्थितियों में अपनी पत्नी से तलाक लिए और बाद में उसने आत्महत्या कर ली |
उसने बताया की उन सभी ग्रामीणों में अंतिम व्यक्ति मै ही बचा हूँ लेकिन मेरी स्थिति भी पागलों वाली हो गयी है | शायद दुनिया को ये बताने के लिए, कि कैसे हमने 40 पीपे सोने से भरे हुए दुनिया से छिपाया, मै जीवित बचा हूँ |
जैसे अपने देश में कारूं का खजाना एक लोकोक्ति के रूप में प्रसिद्ध है वैसे ही पश्चिमी जगत में भी एक कहावत प्रसिद्ध है “ऐज़ रिच ऐज़ क्रोशस” (As Rich As Croesus)
अतिशय धनी होना चमकते हुए सौभाग्य का सूचक है और अगर आपने ये धन अपने परिश्रम और दूसरों के सहयोग से कमाया है तो आप यशस्वी हैं | फिर आपका कर्तव्य बनता है कि उस धन से आप दूसरों का कल्याण करें, जो दुखी हैं, बेसहारा हैं, कष्ट में हैं, जिनको आप जैसों की जरूरत है, उनका दुख दूर करें, उनके चेहरे पर मुस्कान लायें |
अगर आप ऐसा करते हैं तो आप पायेंगे की आपका ईष्ट (परमात्मा) आपके ह्रदय में परमानेंट यानि स्थायी निवास बना कर रहने लग गया है | उस क्षण की अनुभूति को शब्दों में बताना मुश्किल है | लेकिन अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो किसी समय के लिए बचा कर रखा गया अतिशय धन अन्तकाल में बहुत कष्ट देता है |
क्रोशस के बेहिसाब खज़ाने का धन कहाँ गया, किस परिणाम को प्राप्त हुआ ये अभी तक अनसुलझा है लेकिन ये दुनिया के रहस्यमय खजानो में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है |