रूस के साइबेरिया का तुंगुस (Tungus) क्षेत्र, दिन था 30 जून 1908 का और घड़ी की सूइयाँ सुबह के सात बज के बीस मिनट का इशारा कर रही थीं | अचानक एक प्रलयंकारी विस्फोट होता है जिससे एक विशालकाय क्षेत्र में एक जलजला सा उठता है | लगभग पच्चीस किलोमीटर रेडियस के क्षेत्र में, क्या मनुष्य, क्या जानवर और क्या जंगल, सब कुछ जल कर भस्म हो गया |
महाविध्वंसक था यह विस्फोट
हिरोशिमा और नागासाकी पर बरसाए गए परमाणु बमो की तुलना में कई गुना ज्यादा विध्वंसकारी था ये विस्फोट | लगभग 8 करोड़ वृक्ष विशुद्ध रूप से जल कर भस्म हो गए | इस विस्फोट की तीव्रता इतनी अधिक थी कि इसकी वजह से वहां की धरती पर (रिक्टर स्केल पर) ५ तीव्रता का एक विनाशकारी भूकंप आया |
तबाही का ऐसा मंजर फैला कि उसके भस्मावशेष, इस घटना के पचास साल बाद तक दिखाई देते रहे | बात करें अगर घटना की तो उस क्षेत्र के आस-पास के स्थानीय प्रत्यक्ष दर्शियों ने बताया कि उस समय उन्होंने आकाश में एक आग का गोला देखा जो सूर्य से भी ज्यादा चमकदार था |
क्या कहा प्रत्यक्षदर्शियों ने
जिस जगह विस्फोट हुआ उस स्थान से लगभग साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर किरनेस्क (Kirnesk) में अग्नि का एक विशालकाय स्तम्भ (Pillar) देखा गया | उसी समय, एक छोटे किन्तु नियमित अंतराल में एक विचित्र सी ध्वनि सुनाई पड़ी और ठीक इसी के बाद एक विशालकाय एवं भारी-भरकम वस्तु के ज़मीन से टकराने की आवाज सुनायी दी और उसके बाद चारो तरफ सिर्फ तबाही थी |
दस्तावेज़ बताते हैं कि विस्फोट में इतनी भयंकर शक्ति थी कि दक्षिणी किरनेस्क (Kirnesk) के मवेशी अपने स्थान से लगभग 500 किलोमीटर दूर क्षत विक्षत हालत में मिले | थोड़ी दूर रहने वाले स्थानीय किसानों के शरीर के कपड़े जल कर उनके शरीर से ही चिपक गए | कइयों के शरीर हवा में ही 40 फ़ीट तक उछल गये |
कुछ स्थानीय किसान जो सौभाग्य से अपनी जान गँवाने से बच गए थे, जब उनकी मूर्च्छा टूटी तो उन्हें लगातार बिजलियों के कड़कने की आवाज़े सुनायी दे रही थी | कुछ के कानों में इतनी पीड़ा हो रही थी मानों कानो से पिघला हुआ शीशा बह रहा हो | कइयों के घरों के बर्तन तक पिघल गए | इस विस्फोट से लगभग दो हज़ार पशु जलकर भस्म हो गए |
उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने की परिकल्पना
इस रहस्यमय घटना की व्याख्या यद्यपि कई विद्वानों ने अलग-अलग तर्कों के आधार पर की है | किन्तु इनमे से कोई भी थ्योरी अंतिम रूप से सत्य नहीं सिद्ध हो पायी है | इस घटना के घटित होने के पीछे सबसे प्रबल सम्भावना किसी दैत्याकार उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने की थी | ज्यादातर लोग आज भी यही मानते हैं कि उस दिन धरती से एक विशालकाय उल्कापिंड ही टकराया था |
लेकिन वहीँ दुनिया के सामने यह तथ्य भी था कि हज़ारों साल पहले अमेरिका के एरिज़ोना में, ऐसा ही एक उल्कापिण्ड टकराने से 315 मील चौड़ा एक गड्ढा धरती पर हो गया था | लेकिन साइबेरिया की धरती पर ऐसे कोई निशान नहीं थे | इसलिए ये थ्योरी संदिग्ध सिद्ध हो गयी | और इस पर विद्वानों में सहमति नहीं बन सकी |
परग्रही एलियंस के युद्ध की सम्भावना
1950 आते-आते पूरी दुनिया में एलियंस और उनकी परग्रही सभ्यता के बारे में काफी चर्चा होने लगी थी | उसी समय के आस-पास एक नयी सम्भावना व्यक्त की गयी | जो साइबेरिया में घटी इस घटना की बिलकुल अलग तरीके से व्याख्या करती थी | इस सम्भावना के अनुसार एक अत्याधुनिक परग्रही सभ्यता ने साइबेरिया के वायुमंडल में नाभिकीय विस्फोट किया था जिसकी वजह से वहां उतनी तबाही हुई थी |
बाद में इस सम्भावना को एक ठोस प्रामाणिक आधार भी मिला | सं 1958 में, इस क्षेत्र में काफी मात्रा में रेडियो एक्टिविटी मिली | लेकिन 1961 में हुई एक नयी रिसर्च से ये सामने आया कि जितनी भीषण तबाही के प्रमाण मिले हैं वो वातावरण में होने वाले किसी नाभिकीय विस्फोट से संभव नहीं | उसके बाद यह सम्भावना भी खारिज हो गयी |
वायुमण्डल में धूमकेतु के प्रवेश करने की परिकल्पना
उसके बाद प्रस्तुत की गयी तीसरी परिकल्पना के अनुसार उस दिन कोई धूमकेतु वहां के वायुमण्डल में इतनी तेज़ी से आया कि उसका ऊपरी हिस्सा, जो जमी हुई गैसों और धातु के टुकड़ों से बना था, अत्यधिक ऊष्मा के कारण फट गया |
जिससे उसकी गैस और धूल के कण पूरे वातावरण में चारो तरफ फ़ैल गए और उसी की वजह से विस्फोट के बाद भी साइबेरिया के नभमण्डल में कई दिनों तक ‘चमकीली रात्रि’ जैसा दृश्य बना रहा | लेकिन ये परिकल्पना भी कपोल कल्पना ही साबित हुई | बाद में हुई खोजों के प्रमाणों ने इसे असत्य सिद्ध कर दिया |
शायद ब्रह्माण्ड का एंटीमैटर बना विस्फोट का कारण
एक अन्य परिकल्पना के अनुसार उस दिन एक एंटी मैटर से बना हुआ एक ‘एंटी रॉक’ साइबेरिया के वायुमण्डल में प्रवेश किया और हमारी दुनिया के मैटर के परमाणुओं से संयोग कर के, रहस्यमयी गामा किरणों के एक अग्निगोलक में तब्दील हो गया जिसके फलस्वरूप वहां एक प्रलयंकारी विस्फोट हुआ | यह परिकल्पना सन 1967 के आस-पास आयी |
इसके सिद्धांत साइबेरिया के निवासियों के शरीर जलने तथा असाधारण रासायनिक व नाभिकीय विस्फोट के परिणामस्वरूप होने वाले वायमण्डलीय बदलावों की समुचित व्याख्या करता था, किंतु विस्फोट के कारण स्वरूप में, दो अलग-अलग स्थानों में होने वाली घटनाओं की कड़ियाँ जोड़ने में असमर्थ था |इसके अलावा एंटी मैटर और उनके मैटर से संयोग होने पर होने वाले विप्लवकारी परिणामों पर अध्ययन अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है |
तो क्या उस दिन कोई ब्लैकहोल पृथ्वी से टकराया था
सन 1975 में स्टीफेन हॉकिंग द्वारा ब्लैकहोल के सिद्धांत को प्रकाश में लाने के बाद, इस घटना को भी एक दूसरे चश्मे से देखा गया और एक नयी परिकल्पना प्रस्तुत की गयी | इसके अनुसार उस दिन, उस समय एक बिलकुल नन्हा सा ब्लैकहोल साइबेरिया के उस इलाके से टकराया था | और पृथ्वी के उस हिस्से से होते हुए वह उत्तरी अटलांटिक में जा निकला |
वैज्ञानिकों के अनुसार ब्लैकहोल इस ब्रह्माण्ड के ऐसे सघनतम पिंड होते हैं जहाँ समय का प्रवाह रुक गया होता है आइंस्टीन के साधारण सापेक्षिकता के सिद्धांत के अनुसार इस ब्रह्माण्ड में कोई भी पिंड जितना द्रव्यमान लिए होता है, वहां उस पिंड पर समय का प्रवाह उतना ही धीमा होता है | ब्लैकहोल इस ब्रह्माण्ड के महादैत्य हैं |
ब्लैकहोल क्या होते हैं
ब्लैकहोल्स का घनत्व इतना अधिक होता है कि वहाँ का पलायन वेग (Escape Velocity) प्रकाश के वेग से भी अधिक होता है | इसलिए ब्लैकहोल्स के अंदर से न केवल प्रकाश बल्कि कोई भी विद्युतचुम्बकीय विकिरण बाहर नहीं आ पाता | इसीलिए ब्लैकहोल्स की दुनिया अभी भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ ही बनी हुई है | कल्पना करिये की आप ब्लैकहोल्स की सबसे बाहरी लेकिन सुरक्षित घेरे पर खड़े हुए हैं | वहां तक आप सुरक्षित हो सकते हैं |
वहां से बहुत दूर स्थित यान में बैठा व्यक्ति आप को देख भी सकता है लेकिन जैसे ही आप उस ब्लैकहोल के गुरुत्व घेरे की चपेट में आये, पलक झपकते ही आप अदृश्य हो जाएंगे और आपका शरीर अणुओं और परमाणुओं में विभक्त हो जाएगा लेकिन हाँ ऐसा होने के पहले आपकी छवि, वहां ब्लैकहोल की गुरुत्वीय सीमा पर, एक छाया की तरह अंकित हो जायेगी क्योंकि वहां समय का प्रवाह लगभग रुका हुआ है |
वैज्ञानिकों का एक बड़ा समूह यह मानता है कि हमारे ब्रह्माण्ड के निर्माण के समय से ही नन्हे-नन्हे ब्लैकहोल्स का निर्माण हो चुका है | उस समय कुछ वैज्ञानिकों ने तर्क दिया कि अगर ऐसा ही एक नन्हा ब्लैकहोल पृथ्वी के किसी हिस्से से टकरा जाए तो साइबेरिया के विस्फोट जैसी घटना हो सकती है लेकिन फिर ऐसी परिस्थित में जहाँ से वह ब्लैकहोल निकलेगा वहां भी ऐसी ही प्रलयंकारी विस्फोटक घटना होनी चाहिए लेकिन साइबेरिया विस्फोट के केस में ऐसा नहीं हुआ | अटलांटिक या पृथ्वी की किसी अन्य जगह विस्फोट नहीं हुआ |
वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बन कर खड़ा है यह रहस्य
इसलिए वैज्ञानिकों ने इस थ्योरी को भी संदिग्ध मानते हुए खारिज कर दिया | तमाम तरह के शोध अनुसंधानों के बावजूद यह रहस्य अभी भी दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बन कर खड़ा हुआ है | लेकिन इतना तो तय है कि जब भी ब्रह्माण्ड की उन उन्नत सभ्यताओं (जिनके संरक्षण में हमारी पृथ्वी है) से हमारा सामना होगा, इस रहस्य से ज़रूर पर्दा उठेगा |