माँ का स्पर्श

माँ का स्पर्शविनीता के परिवार में अब तीन ही लोग थे। विनीता, उसके पिता और उसका एक छोटा भाई शलभ। माँ की पिछले वर्ष स्वाइन फ्लू के कारण मौत हो गई थी। तभी से विनीता बहुत दुखी रहने लगी थी। विनीता इस साल दसवीं क्लास की छात्रा थी। मां की मृत्यु के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उसी पर आ गई थी। सुबह-सुबह जल्दी उठकर खाना बनाना और फिर कॉलेज जाना और फिर लौटकर घर के कामों में व्यस्त हो जाना।

माँ की मौत के बाद विनीता को अब यह अहसास हुआ था कि माँ घर पर कितना काम करती थी। उस समय विनीता और उसका भाई शलभ दिन भर माँ से अपनी फेवरेट डिशेज़ की फरमाइश करते रहते थे। जिसे माँ खुशी-खुशी पूरा किया करती थी। माँ सुबह-सुबह सबका पसंदीदा ब्रैकफास्ट बनाती। फिर लंच की तैयारी करती।

घर की साफ-सफाई के बाद पिता जी का नौ बजे से पहले उनका टिफिन रेडी करना आसान नहीं था। अब यह सब माँ के न रहने पर विनीता को महसूस होता था। विनीता ने यह भी अनुभव किया कि माँ पूरे परिवार को एक सूत्र में बांधे रखती थी, लेकिन उसके जाते ही सब कुछ बिखरा-बिखरा लगता है।

सूनी-सूनी रसोई में अब विनीता अकेली किसी तरह उल्टा-सीधा खाना बनाती है। उसका छोटा भाई शलभ भी कभी- कभी उसकी हेल्प करता है। माँ के जाने के बाद अब दोनों भाई-बहन फेवरेट खाना भूल गये थे। किसी तरह आड़ी-टेढ़ी रोटी और जली सब्जी से पेट भर लेते थे। पिता जी को जैसा खाना मिलता था, चुपचाप खा लेते थे।

पिताजी रेलवे विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। सुबह चले जाते और शाम को ही घर आते थे। विनीता का छोटा भाई शलभ विनीता की जिम्मेदारी पर ही
था। उसको समय से खिलाना-पिलाना, साथ ही उसकी पढ़ाई-लिखाई की सारी जिम्मेदारी विनीता पर ही थी।

कोरोना काल में स्कूल-कॉलेज सब बंद हो गये थे। विनीता और उसका भाई घर पर रहते थे। लॉक डाउन में घर से बेवजह निकलना बंद था। विनीता मास्क आदि लगाकर बाजार से सब्जी, दूध आदि लेने जाती थी, क्योंकि घर से बाहर निकले बिना घर की जरूरत का सामान कैसे आता? एक दिन वही हो गया जिसका की डर था।

विनीता को तेज बुखार चढ़ गया, जांच करायी गयी, रिजल्ट कोरोना पॉजिटिव निकला। अब तो घर की सारी व्यवस्था पहले से अधिक चौपट हो गयी। माँ की मौत के बाद बेटी विनीता ही घर के सारे काम कर रही थी। विनीता के कोरोना पॉजिटिव हो जाने के बाद अब खाना-पीना कौन बनाता? घर की साफ -सफाई कौन करता? छोटे भाई शलभ को कौन देखता?

पिता जी ने घर पर एक काम वाली लगा ली, जो घर का सारा काम-धाम देखने लगी। कोरोना पॉजिटिव निकलने के बाद पिता जी और उसके छोटे भाई ने अपनी सुरक्षा के कारण विनीता से दूरी बना ली थी। विनीता को घर का एक अलग कमरा दे दिया गया था, जहाँ उसका खाना-पानी पहुंचा दिया जाता था। विनीता अब अकेले-अकेले उस कमरे में लेटे-लेटे दुखी होती रहती थी।

वह सोचती थी कि यह कोरोना ऐसी बीमारी आयी है कि जिसके कारण अपने भी दूर हो गए हैं। कोरोना वायरस के बुखार ने विनीता को एकदम तोड़ दिया था। वह अपने आप को बहुत कमजोर महसूस करती थी। इसीलिए वह हमेशा अपने बेड पर लेटी रहती थी। वह अब बहुत मायूस रहने लगी थी। कमरे में अकेले लेटे रहने के कारण विनीता को बहुत अकेलापन लगता था।

अब उसे अपनी मां की बहुत याद आने लगी थी। वह सोचती थी कि यदि आज मां होती तो उसे इस तरह अकेला नहीं छोड़ती। जिस तरह उसके पिता और भाई ने उसे अकेला छोड़ दिया है। उस रात लेटे- लेटे यह सारी बातें सोंच-सोंच कर उसकी आंखों से आँसूँओं की धारा बह निकली। तेज बुखार में वह रोये जा रही थी। रोते-रोते विनीता को कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला।

उस रात स्वप्न में विनीता को अपनी मां दिखाई दीं। विनीता अपनी मां से लिपट कर रोने लगी। वह उनसे कहने लगी कि ‘माँ मुझे करोना हो गया है। पिता जी और भैया ने मुझे अकेला छोड़ दिया है। यदि आज तुम होती तो तुम मुझे इस तरह अकेला छोड़ती। देखो मेरा बुखार ही नहीं उतर रहा है।’

इतना कहते-कहते विनीता फूट-फूट कर रोने लगी। माँ ने विनीता को अपने आंचल में छुपा लिया और विनीता की बुखार से तपते के माथे पर अपना हाथ रख दिया। विनीता को लगा कि उसे आराम मिल रहा है। उसने भी माँ के हाथों पर अपना हाथ रख दिया। उसे लग रहा था कि मां का माथे पर रखा हाथ उसके बुखार को खींच रहा है और उसे चैन मिल रहा है।

उसकी तबीयत पहले से ठीक हो रही है। मां सारी रात विनीता के साथ रही। वह कभी विनीता का सर दबाती तो कभी हाथों-पैरों की मालिश करती। विनीता को ऐसा लग रहा था कि माँ उस रात विनीता की बीमारी को दूर करने में जुट गई है। विनीता को गहरी नींद आ गयी।

सुबह हो चुकी थी। विनीता का छोटा भाई शलभ दरवाजा खटखटा रहा था। वह कह रहा था कि दीदी चाय ले लो। विनीता अपने भाई शलभ की आवाज सुनकर जाग गयी थी। विनीता को रात की सारी बात याद आने लगी। कैसे उसके रोने पर माँ उसके पास आयीं। उसकी रात भर सेवा की। अब विनीता यह सोंच रही थी कि क्या माँ सच में रात में आई थी या यह उसका कोई स्वप्न था?

ये सारी बातें सोचते-सोचते विनीता ने अपने माथे पर हाथ रखा, उसका बुखार उतर गया था। अब उसे पक्का यकीन हो गया था कि माँ रात को आयी थीं और माँ के स्पर्श के बाद ही उसका बुखार उतरा है। वह दौड़ी-दौड़ी माँ की तस्वीर के सामने गयी। उसने माँ को धन्यवाद दिया। उसकी आखें नम हो चली थीं।

विनीता इस बात की चर्चा अपने पिता और अपने भाई शलभ से करना चाहती थी। लेकिन चुप रही उसे सोंचा कि सपने की बात कौन मानेगा जबकि सच यही था कि उस रात विनीता की मां की आत्मा विनीता के पास आई थी, क्योंकि उस रात वह बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी। माँ ने ही विनीता को कोरोना वायरस के चंगुल से बाहर निकाला।

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