परब्रह्म परमेश्वर प्रकृति और प्रकृति द्वारा निर्मित इस जगत से परे हैं और प्रकृतिमय भी हैं। इस प्रकार उनकी दो विभूतियां हैं-एक त्रिपाद्विभूति है और दूसरी एकपाद्विभूति | त्रिपाद्विभूति को नित्यविभूति और एकपाद्विभूति को लीलाविभूति भी कहा गया है।
एकपाद्विभूति में श्री भगवान जगत के उदय, विभव और लय की लीला करते हैं। उन परमेश्वर का प्रकृति के साथ विहार चिरन्तन, अनादि, और अनंत है। प्रकृति के असंख्य ब्रह्माण्ड, भाण्डों को अहर्निश बनाने बिगाड़ने के अनवरत कार्य की समग्र रूप में जानने की शक्ति किसी प्राणी में नहीं है ।
मनुष्य तो यह भी नहीं जान सकता कि प्रकृति के साथ भगवान का यह विहार कब प्रारम्भ हुआ और कब तक चलेगा? वह तो यह कह कर संतोष कर लेता है कि यह विहार अनादि काल से चल रहा है और सदा चलता रहेगा।
सृष्टि और प्रलय क्या है
जब प्रकृति में परमात्मा के ईक्षण से-संकल्प से विकासोन्मुख परिणाम होता है, तो उसे सृष्टि कहते हैं और जब विनाशोन्मुख परिणाम होता है तो उसे प्रलय कहते हैं। सृष्टि और प्रलय के बीच की दशा का नाम ‘स्थिति’ है। इस तरह जगत की तीन अवस्थाएं हैं-सृष्टि, स्थिति एवं प्रलय। सृष्टि करते समय परमात्मा प्रद्युम्न, पालन करते समय अनिरूद्ध और संहार करते समय संकर्षण कहलाते हैं।
संकर्षण कौन हैं
इनमे से संकर्षण, परमतत्व भगवान के अनंत कल्याणकारी गुण हैं, उनमें छः प्रमुख हैं। इन्ही छः गुणों से जब वे ज्ञान और बल का प्रकाशन करते हैं, तब ‘संकर्षण’ कहलाते हैं। संकर्षण में वीर्य, ऐश्वर्य, शक्ति और तेज का अभाव नहीं। इनका वर्ण पद्मराग के समान है। ये नीलाम्बरधारी हैं।
चार कर कमलों में क्रमशः हल, मूसल, गदा और अभयमुद्रा धारण करते हैं। ताल इनकी ध्वजा का लक्षण है। ये जीव के अधिष्ठाता बनते हुए ज्ञान नामक गुण से शास्त्र का प्रवर्तन करते हैं और बल नामक गुण से जगत का संहार करते हैं।
प्रद्युम्न कौन हैं
परब्रह्म परमेश्वर वीर्य और ऐश्वर्य का प्रकाशन करते समय ‘प्रद्युम्न’ कहलाते हैं। इनमें ज्ञान, बल, शक्ति और तेज का केवल निगूहन होता है, अभाव नहीं। इनका वर्ण रवि किरण के समान है, ये रक्ताम्बरधारी हैं।
चार कर कमलो में क्रमशः धनुष, बाण, शंख, और अभयमुद्रा धारण करते हैं। मकर इनकी ध्वजा का चिन्ह है। मन मस्तक के अधिष्ठाता होते हुए भी ये वीर्य नामक गुण से धर्म का प्रवर्तन करते हैं और ऐश्वर्य नामक गुण से जगत की सृष्टि करते हैं।
अनिरुद्ध कौन हैं
जब परब्रह्म परमात्मा शक्ति और तेज का प्रकाशन करते हैं, तब ‘अनिरूद्ध’ कहलाते हैं। इनमें ज्ञान, बल, वीर्य और ऐश्वर्य का निगूहन होता, अभाव नहीं। इनका वर्ण नील है एवं ये शुक्लाम्बरधारी हैं। इनके चार कर कमलों में खड़ग, खेट, शंख और अभयमुद्रा सुशोभित रहती है।
मृग इनकी ध्वजा का चिन्ह है। अहंकार के अधिष्ठाता ये तेज नामक गुण से आत्म तत्व का प्रवर्तन करते हैं और शक्ति नामक गुण से जगत का भरण-पोषण करते हैं।
वासुदेव कौन हैं
जब परमतत्व भगवान त्रिव्यूह में सम्मिलित होते हैं, तब व्यूह-वासुदेव कहे जाते हैं। ये चंद्रमा के समान गौर और पीताम्बरधारी हैं। ये अपने चार कर कमलों में शंख, चक्र, गदा और अभयमुद्रा धारण करते हैं। गरूड़ इनकी ध्वजा का चिन्ह है।
इन चार व्यूहों के अन्य रूपान्तर भी है। केशव, नारायण और माधव-ये तीन वासुदेव के विलास हैं। केशव स्वर्णिम हैं और चार कर कमलों में चार चक्र धारण करते हैं। माधव इन्द्रनील के समान हैं और चार कर कमलों में चार गदा धारण करते हैं।
भगवान् के संकर्षण रूप के अन्य विलास
गोविन्द, विष्णु और मधुसूदन-ये संकर्षण के विलास हैं। गोविन्द चन्द्रगौर हैं और चार कर कमलों में चार शार्ङ्ग धनुष धारण करते हैं। विष्णु पद्म-किंजल वर्ण हैं और चार कर कमलों में चार हल धारण करते हैं। मधुसूदन अब्ज के समान वर्ण वाले हैं और चार कर कमलों में चार मूसल धारण करते हैं।
भगवान् के प्रद्युम्न रूप के अन्य विलास
त्रिविक्रम, वामन और श्रीधर-ये तीन, भगवान के प्रद्युम्न रूप के विलास हैं। त्रिविक्रम अग्नि के समान वर्ण वाले हैं और चार कर कमलों में चार शंख धारण करते हैं। वामन बालसूर्य के समान आभा वाले हैं तथा चार कर कमलों में चार वज्र धारण करते हैं। श्रीधर पुण्डरीक के समान वर्ण वाले हैं और चार कर कमलों में चार पट्टिश धारण करते हैं।
भगवान् के अनिरूद्ध रूप के अन्य विलास
हृषीकेश, पद्मनाभ और दामोदर, ये भगवान् के अनिरूद्ध रूप के विलास हैं। हृषीकेश विद्युत के समान प्रभा वाले हैं तथा चार कर कमलों में चार मुगदर धारण करते हैं। पद्मनाभ सूर्य के समान आभा वाले हैं और चार कर कमलों में शंख, चक्र, गदा और धनुष धारण करते हैं। दामोदर इन्द्रगोप वर्ण के हैं और चार कर कमलों में चार पाश धारण करते हैं।
एकपाद्विभूति में लीला के निमित्त को धारण किये हुए परमात्मा अनेक व्यूह कहलाते हैं। भगवान विष्णु सबमें व्याप्त हैं। वे समस्त रूपों में स्वरूपतः अभिन्न हैं। उनके अंग, आभूषण, आयुध, पार्षद, वाहन और धाम-सभी सम्पूर्ण रूप से उन्हीं के स्वरूप हैं। चक्रपाणि भगवान विष्णु की शक्ति और पराक्रम अनंत है। वे अगम्य हैं। उनकी कोई भी थाह नहीं पा सकता। समस्त जगत के निर्माता होने पर भी वे उससे परे हैं। उनके स्वरूप और लीला-रहस्य को उनकी कृपा से ही समझा जा सकता है।