कभी-कभी कुछ ऐसी रहस्यमय घटनायें घट जाती हैं कि जिसके कारण हम यह मानने के लिए विवश हो जाते हैं कि मरने के बाद भी प्रेत, पितर आदि योनियाँ भी होती है। एक ऐसी ही रहस्यमय कहानी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के हीरालाल चौराहे की है। इस चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस के पद पर हरिप्रसाद (गोपनीयता की वजह से नाम बदल दिया गया है) नाम के व्यक्ति तैनात थे। हरिप्रसाद जी ट्रैफिक पुलिस के पद पर पिछले 20 वर्षों से कार्यरत थे। वे अपनी ड्यूटी के प्रति बहुत निष्ठावान थे।
वे हमेशा समय पर अपने कार्यस्थल पर पहुंचते और पूरी ईमानदारी के साथ अपने ट्रैफिक कार्य का निर्वाह करते थे। महीने में कम से कम छुट्टियां लेते थे क्योंकि इस चौराहे पर ड्यूटी देने वालों की कमी थी। उस चौराहे पर भीड़ का दबाव बहुत ज्यादा था। उनका सोचना था यदि मैं अधिकतर अवकाश पर रहूँगा तो इस चौराहे पर कोई ट्रैफिक पुलिस न रहने के कारण भारी दुर्घटना हो सकती है।
घर वाले हरिप्रसाद जी को उलाहना देते कि क्या तुमने ही सारे विभाग का ठेका लिया है़? तो ट्रैफिक पुलिस हरि प्रसाद जी चिढकर उत्तर देते कि हाँ, मैंने ही उस चौराहे का ठेका लिया है। मरने के बाद भी मैं उस जगह भूत बनकर काम करता रहूंगा।
घर वाले हरि प्रसाद जी की ऐसी बातें सुनकर चुप हो जाते थे। धीरे-धीरे ट्रैफिक पुलिस हरि प्रसाद जी की आयु 45 वर्ष की हो चली थी। एक दिन अनहोनी हो गई। हरि प्रसाद जी ड्यूटी करके बाइक से अपने घर लौट रहे थे कि एक ट्रक से उनके बाइक की भिड़ंत हो गई और घटनास्थल पर ही उनकी मृत्यु हो गई।
इस घटना को कई महीने बीत गए थे। वह चौराहा बिना ट्रैफिक पुलिस हरि प्रसाद के सूना हो गया था। दसअसल उनकी मौत हो जाने के पश्चात किसी भी ट्रैफिक पुलिस की ड्यूटी इस चौराहे पर नहीं लगी थी।
लेकिन लोगों को कभी-कभी यह महसूस होता था कि मरने के बाद भी ट्रैफिक पुलिस हरि प्रसाद जी की आत्मा अभी भी हीरालाल चौराहे के इर्द-गिर्द घूम रही है। क्योंकि भारी भीड़ के समय हरि प्रसाद जी तो नज़र नहीं आते थे लेकिन उनकी व्हिसिल की आवाज उस समय सुनाई देती थी।
एक दिन उस चौराहे पर भयंकर दुर्घटना होते-होते बची। हुआ यूं कि उस दिन जब इस चौराहे से एक स्कूल रिक्शा गुजर रहा था तो अचानक एक छोटा बच्चा उस स्कूल रिक्शे से उछलकर सड़क पर आ गिरा।
दुर्भाग्यवश दूसरी तरफ से एक वैन आ रही थी। इससे पहले कि वह बच्चा उस वैन के नीचे आकर दब जाता, उससे पहले ही लोगों ने देखा कि एक ट्रैफिक पुलिस ने बड़ी तेजी के साथ उस गिरे हुए बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया।
जिसके कारण उस बच्चे की जान बच गई वरना उसकी वैन के नीचे दबकर मौत हो सकती थी। उस ट्रैफिक पुलिस ने उस बच्चे को फिर रिक्शा में बैठा दिया। स्कूल पहुँचकर जब उस रिक्शा चालक ने स्कूल के प्रिंसिपल को सारी बात बताई तो उनके मन में उस ट्रैफिक पुलिस के प्रति आदर के भाव जाग उठे, जिसने उनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे की जान बचायी थी।
स्कूल के प्रिंसिपल साहब अब उस चौराहे के उस ट्रैफिक पुलिस को उनके अच्छे कार्य के लिए पुरस्कृत करना चाहते थे। जिसने उनके स्कूल की एक छोटे बच्चे की जान बचायी थी।
एक दिन प्रिंसिपल साहब अपने उस एक रिक्शा चालक के साथ अपनी गाड़ी से हीरालाल चौराहे पहुँचे। उन्हें उस ट्रैफिक पुलिस से मिलने की चाह थी, जिसने बच्चे की जान बचाने का नेक कार्य किया था।
जब वह उस चौराहे पर पहुँचे तो उन्हें वहाँ कोई न मिला। तब उन्होंने ट्रैफिक विभाग से पता किया कि इस हीरालाल चौराहे पर कौन सा ट्रैफिक पुलिस तैनात है? ट्रैफिक विभाग से जो कुछ उन्हें पता चला वह चौंकाने वाला था।
उन्हें पता लगा कि लगभग 3 महीने पहले उस चौराहे पर हरि प्रसाद नाम के व्यक्ति ट्रैफिक पुलिस के रूप में कार्यरत थे, लेकिन एक एक्सीडेंट में उनकी मृत्यु हो गयी। उसके पश्चात अब तक उस चौराहे पर किसी की भी ड्यूटी नहीं लगी है़।
यातायात विभाग के अधिकरियों की यह बात सुनकर स्कूल के प्रिंसिपल साहब भौच्चके रह गये कि जब उस चौराहे पर कोई ट्रैफिक पुलिस तैनात नहीं है तो फिर वह कौन था जिसने बच्चे की जान बचाई? लेकिन अब सबको समझ में आ गया था कि उस बच्चे को बचाने वाला कोई और नहीं, ट्रैफिक पुलिस हरि प्रसाद जी की आत्मा थी।
जिसने हीरालाल चौराहे पर उस स्कूली बच्चे की जान बचायी थी। लोग आश्चर्यचकित थे कि मौत के बाद भी ट्रैफिक पुलिस हरि प्रसाद जी उस चौराहे पर ड्यूटी कर रहे हैं। क्योंकि अभी तक उस चौराहे पर किसी अन्य ट्रैफिक पुलिस की तैनाती नहीं हुई है़। ट्रैफिक पुलिस हरि प्रसाद जी की आत्मा के द्वारा इस चौराहे पर ड्यूटी करने का कारण बस इतना रहा होगा कि उनका यह चौराहा दुर्घटना से बचा रहे।