आपने सास-बहू के रिश्ते पर आधारित टी.वी. सीरियल तो बहुत देखे होंगे लेकिन आज हम आपको ऐसे मंदिर से परिचित करा रहे हैं जो सास बहू के नाम से प्रसिद्ध है। आप यह सोंचते होंगे कि सास बहु के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर अवश्य आधुनिक होगा। लेकिन आपका यह सोंचना बिल्कुल गलत है। सास-बहु के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर अति प्राचीन है।
इस मंदिर को सास-बहू का नाम दिए जाने के बारे में बड़ी अनोखी कथा प्रचलित है। जिसे जो कोई भी सुनता है तो आश्चर्यचकित रह जाता है, क्योंकि सास-बहु के रिश्ते के नाम पर रखा गया ऐसा मंदिर विश्व में कहीं और नहीं है।
दूर-दूर से लोग इस मंदिर को देखने आते हैं। उनके मन में यही जिज्ञासा रहती है कि देखें ऐसी कौन सी विशेषता है इस मंदिर में, जिसके कारण इस मंदिर को सास-बहू का नाम दे दिया गया। सचमुच सास-बहू के नाम का यह मंदिर पूरे विश्व में अपने आप में अकेला है।
आज से 1100 वर्ष पहले कच्छवाहा वंश के राजा महिपाल और रत्नपाल ने इस सास-बहू मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर राजस्थान के उदयपुर से थोड़ी दूर नागदा गाँव में स्थित है। आश्चर्य की बात यह है कि इस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा है लेकिन फिर भी इसे सास-बहू के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर को सास-बहू का नाम यूं ही नहीं दे दिया गया। इसके पीछे एक अनोखी कथा है। इस कथा को जानकर आपको आष्चर्य होगा।
सास-बहू के अद्भुत मंदिर की कथा
यह बात उस समय की है जब राजस्थान के उदयपुर क्षेत्र में, कच्छवाहा वंश के राजा महिपाल राज्य करते थे। उनकी पत्नी की भगवान विष्णु के प्रति असीम भक्ति थी। वह हर दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करती थी। एक दिन भगवान विष्णु ने राजा महिपाल को स्वप्न में दर्शन दिये।
विष्णु जी ने कहा कि ‘हे राजा, तुम मेरा एक मंदिर बनाओ, जिसमें मेरी सहस्त्रबाहु प्रतिमा हो। इससे तुम्हारा और तुम्हारी प्रजा का कल्याण होगा।’ सुबह उठते ही राजा ने अपनी धर्मपत्नी को सपने की बात बतायी। सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुईं। राजा ने मंदिर निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया।
राजा महिपाल ने देश के कोने-कोने से अच्छे से अच्छे मूर्तिकार बुलवाये। वह एक ऐसे अदभुद मंदिर की स्थापना करना चाहते थे, जैसा मंदिर पूरे भारतवर्ष में कहीं भी न हो। भगवान का बहुत सुंदर मंदिर बन कर तैयार हो गया। इस मंदिर में भगवान विष्णु की 1000 भुजाओं वाली प्रतिमा थी, जो 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी थी।
इस मंदिर को सहस्त्रबाहु का नाम दिया गया क्योंकि यहाँ भगवान विष्णु की 1000 भुजाओं वाली मूर्ति स्थापित थी। लेकिन कहानी अभी खत्म नहीं हुई। उधर राजा महिपाल का पुत्र विवाह योग्य हो गया था। रानी ने राजा से कह दिया था कि ऐसी बहु ही खोजना जो मेरी तरह धार्मिक कार्यों में रुचि लेने वाली हो।
राजा को अपनी पत्नी का परामर्श अच्छा लगा। उसने अपनी पत्नी की तरह ही पूजा-पाठ में रुचि रखने वाली धर्मपरायण लड़की खोज निकाली। बड़े धूम- धाम से उस कन्या से अपने पुत्र का विवाह कर दिया। राजा ने जिस लड़की से अपने पुत्र का विवाह किया था वह भगवान शिव की परम भक्त थी। वह देवों के देव महादेव की आराधना करती थी।
अब राजा महिपाल ने सोचा कि मैं अपनी बहू के लिए भी एक सुंदर शिव मंदिर की स्थापना कर दूँ। उन्होनें भगवान विष्णु के मंदिर सहस्त्रबाहु के पास ही एक शिव मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर को भी सहस्त्रबाहु के नाम से ही जाना जाने लगा। राजा महिपाल के द्वारा बनवाए गए मंदिरों में एक मंदिर राजा की पत्नी के लिए था। दूसरा शिव मंदिर उनकी बहू के लिए था।
दोनों का रिश्ता आपस में सास-बहू का था। पास -पास बने दोनों मंदिरों में एक में सास पूजा करती थीं और दूसरे मंदिर में उसकी बहू। इन दोनों मंदिरों का नाम राजा ने सहस्त्रबाहु रखा था। लेकिन सहस्त्रबाहु शब्द कहने में लोगों को बहुत कठिन लगता था। इसलिये अब लोग उन मंदिरों को सास-बहू के मंदिर के नाम से पुकारने लगे।
धीरे-धीरे यही नाम प्रचलन में हो गया। अपने नाम के अनुसार सास अर्थात भगवान विष्णु का मंदिर बड़ा था। जबकि भगवान शिव का छोटा बहु रानी का मंदिर था। सास-बहू के नाम से प्रसिद्ध यह सहस्त्रबाहु मंदिर, जिसमें भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों भक्तों पर अपनी कृपा बरसा रहे हैं।
इन मंदिरो के कारण ही इस पूरे क्षेत्र में भगवान विष्णु और शिवजी दोनों की महान कृपा है। लोग यहाँ की उत्तरोत्तर प्रगति में सहस्त्रबाहु मंदिर का बहुत बड़ा आशीर्वाद मानते हैं।