प्राचीनकाल में महिषासुर नामक एक महा पराक्रमी असुर का जन्म हुआ था , जो रम्भ नामक असुर का पुत्र था एवं दैत्यों का सम्राट था। उसने युद्ध में सभी देवताओं को हराकर इन्द्र के सिंहासन पर अपना अधिकर जमा लिया था। वह अभूतपूर्व शक्तिशाली एवं मायावी था। देवताओं को उसने आसानी से पराजित कर दिया था।
वह वहीं इंद्रलोक से तीनों लोकों पर शासन करने लगा और पराजित देवता उससे परेशान होकर ब्रह्मा जी की शरण में चले गए । ब्रह्मा जी ने उन सभी देवताओं की पीड़ा सुनी और सारे देवतागण को अपने साथ लेकर उस जगह प्रस्थान कर दिए जहां भगवान विष्णु और भगवान शंकर उपस्थित थे।
महिषासुर मर्दिनी कौन थीं
वहाँ पहुंच कर उन्होंने महिषासुर के अत्याचारों के बारे में भगवान शिव और विष्णु जी को अवगत कराया, ब्रह्मा जी से सारी बातें सुन कर भगवान विष्णु और शंकर जी महिषासुर समेत सभी दैत्यों पर अत्यन्त क्रोधित हो उठे । क्रोध में भगवान विष्णु के मुख से महान तेज उत्पन्न होने लगा । इसी प्रकार से भगवान शंकर , ब्रह्मा जी, देवराज इन्द्र आदि देवों के शरीर से भी तेज प्रकट होने लगा।
वहाँ सभी देवताओं के मुख से निकला तेज मिलकर एकत्र हो गया और एक महान देदीप्यमान तेज़ में परिवर्तित हो गया, जिससे सारी दिशाएं प्रकाशयुक्त प्रकाशवान् हो उठी जो अंत में एक अत्यंत भीषण विद्युत् के समान सुन्दर नारी के रूप में परिवर्तित हो गया।
वह नारी साक्षात महिषासुर मर्दिनी, माँ दुर्गा थीं जिनके प्रकट होने पर देवताओं ने प्रसन्न होकर उनकी स्तुति कर उन्हें आभूषण तथा अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये । महिषासुर मर्दिनी, माँ दुर्गा ने आश्चर्यजनक और भीषण गर्जना कर सम्पूर्ण अंतरिक्ष को प्रतिध्वनित कर दिया जिसकी वजह से तीनों लोकों में हलचल मच गयी, पृथ्वी तो कांप उठी और विभिन्न लोकों के समुद्र अपनी हदें पार कर उछलनेलगे।
सभी देवतागण देवी का जय – जयकार का नारा लगाते हुए गदगद वाणी से उनकी स्तुति कर रहे थे, जिसके अद्भुत शब्द को सुन कर दैत्यों ने अपने-अपने हथियार उठा लिये। उन्हें समझ में आ गया था कि एक भीषण युद्ध दस्तक दे रहा था।
महिषासुर के सेनापतियों का वध माँ दुर्गा ने किस प्रकार किया
महिषासुर सभी दैत्यों को साथ लेकर उस शब्द को लक्ष्य करके उसकी तरफ दौड़ पड़ा जहाँ पहुंच कर दैत्यों ने देवी दुर्गा का एक ऐसा रूप देखा, जिसमे देवी के चरणों के भार से पृथ्वी दब रही थी और उनके प्रकाश से तीनों लोक प्रकाशित हो रहा था। महिषासुर का सेनापति चिक्षुर, उन महान देवी दुर्गा पर टूट पड़ा | देखते ही देखते दैत्यों ने युद्ध छेड़ दिया।
चतुरंगिणी ने भी अपनी सेना लेकर दुर्गा पर हमला कर दिया । उदग्र, महाहनु, बाष्कल और असिलोमा ये सभी रथी सैनिकों के अग्रणी थे जिनमे असिलोमा का हमला रोम तलवार के समान तीखा था। वह सभी, युद्ध स्थल में आकर देवी से लोहा लेने लगे और इस तरह हाथी सवार और घुड़सवार सैनिक भी देवी को चारों ओर से घेर अस्त्र-शस्त्रों से प्रहार करने लगे। देवी दुर्गा ने खेल-खेल में ही उन सभी के अस्त्र-शस्त्रों को काट गिराया।
उस समय दुर्गा निःश्वास गण बन दैत्यों पर चढ़ गई और देखते ही देखते, इसके बाद, दुर्गा ने त्रिशूल, गदा और शक्ति की वर्षा कर बहुत से महा दैत्यों का संहार कर डाला। दैत्यों की सेना में हाथी, घोड़े और असुरों के शरीर से इतना रक्त गिरा कि वहां कई रक्त कुण्ड बन गये । जिस तरह आग तिनके के ढेर को जला देती है, वैसे ही दुर्गा देवी ने थोड़ी ही देर में सारी दैत्य सेना का सफाया कर दिया। देवगण हर्षित हो देवी दुर्गा पर पुष्पों की वृष्टि करने लगे।
अपनी सेना का विनाश देख कर सेनापति चिक्षुर क्रोध से तिलमिला उठा और दुर्गा पर बाणों की वर्षा करने लगा । देवी ने अपने बाणों से उसके बाणों को काट कर उसके रथ के घोड़ों और सारथियों को भी मार गिराया साथ ही उसके धनुष और ध्वजा को भी काट गिराया। चिक्षुर को अपने शूल पर बड़ा ही गर्व था इसिलए उसनेअपने शूल से दुर्गा पर पूरी ताकत से प्रहार किया; किंतु दुर्गा के पास पहुंचते ही उस शूल के टुकड़े-टुकड़े हो गये।
उसके शूल के टुकड़े आकाश में प्रज्वलित हो उठे; और दुर्गा ने अपने शूल के प्रहार से उसके शूल के सैकड़ों टुकड़े कर दिये और चिक्षुर को भी यमलोक का पथिक बना दिया। दुर्गा के शस्त्र प्रहार से उदग्र भी धराशायी हो कर यमलोक सिधार गया ।
महिषासुर वध
अब महिषासुर भैंसे का रूप धारण कर देवी दुर्गा के श्वास से उत्पन्न हुए गणों को त्रास देने लगा। तत्पश्चात वह देवी दुर्गा के सिंह पर भी झपट पड़ा जिसे देख देवी के क्रोध का आक्रोश बढ़ गया।
महिषासुर उग्र से उग्रतर हो अपने खुरों से पृथ्वी को खोद सींगों से पहाड़ों को उखाड़-उखाड़ कर दुर्गा की ओर फ़ेंक रहा था, साथ ही साथ गरज भी रहा था। उसके वेग से पृथ्वी में दरारें पड़ने लगीं और सींगों के झटके से बादलों के टुकड़े-टुकड़े हो गये। उसने बड़े वेग से देवी दुर्गा पर आक्रमण किया परन्तु देवी ने उसे पाश से बांध दिया। बंध जाने पर उसने भैंसे का रूप त्याग कर सिंह का रूप धारण कर लिया।
जब परमेश्वरी ने उसका मस्तक काटना चाहा, तब वह तलवार लिये हुए एक पुरूष के रूप में दौड़ा। दुर्गा ने बाण वृष्टि कर पाश से उसे बांध लिया जिसके बाद उसने हाथी का रूप धारण कर भगवती के सिंह को पकड़ कर खींचने लगा ।
भगवती ने उसकी सूंड काट डाली जिसके पश्चात उसने दैत्य से पुनः भैंसे का रूप धारण कर लिया। उसे पहले की तरह पैंतरेबाजी करते देख सारा जगत त्रस्त हो गया । देवताओं को भयभीत देख कर देवी दुर्गा उछल कर महिषासुर के ऊपर चढ़ गयीं तथा उसे पैर से दबाकर उसके कण्ठ पर शूल से प्रहार कर दिया।
महिषासुर पुनः दूसरा रूप धारण कर आधा परिवर्तित हुआ ही था कि देवी दुर्गा ने उसको पूरा परवर्तित होने से रोक दिया । जब वह उस दशा में भी पैंतरे बदलने लगा, तब दुर्गा ने उसका मस्तक तलवार से काटा गिराया । महिषासुर की बची हुई सेना सिर पर पैर रख कर भाग खड़ी हुई । इस प्रकार देवताओं को संताप देने वाला महिषासुर नष्ट हो गया।
सभी देवगण देवी दुर्गा की स्तुति करने लगे और गन्धर्व जयगान करने लगे । देव लोक की अप्सराएँ प्रसन्नता से देवी दुर्गा के सम्मान में नृत्य करने लगीं। सबने चन्दन, अक्षत, दिव्य पुष्प और धूप आदि से प्रेमपूर्वक दुर्गा देवी की पूजा की और तदनन्तर देवताओं को वरदान देकर जगदम्बा अन्तर्धान हो गयीं।