इतिहास साक्षी है कि भारत में एक से बढ़कर एक ताकतवर वीरों ने जन्म लिया है। आज हम उस एक वीर की बात करने जा रहे हैं जिसकी शक्तिशाली भुजाओं की कोई मिसाल नहीं थी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कि वह पराक्रमी चार सौ किलो की तलवार हाथ में उठाकर लड़ता था और पूरी-पूरी सेना को अकेले ही परास्त देता था।
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के कण-कण में इस वीर की वीरता की कहानी सुनायी देती है। लोरिकायन गाथा के माध्यम से लोग उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में उसकी वीरता के किस्से आज भी कहते-सुनते नजर आते हैं।
उसकी वीरता और साहस के चिन्ह आज भी पूर्वी उत्तर प्रदेश मौजूद हैं। चार सौ किलो की तलवार उठाने वाले इस वीर की अदभुद और अविश्वसनीय ताकत का एक उदाहरण उसी के नाम पर लोरिक पत्थर के रूप में हमें आज भी दिखाई देता है।
इस आठ फुट लंबे, भीमकाय और बड़ी- बड़ी मूछों वाले शक्तिशाली वीर पुरुष का नाम था लोरिक। जो अपनी प्रेमिका मंजरी से बहुत प्रेम करता था। जिसे पाने के लिये उसने अघोरी किले पर आक्रमण कर दिया और विजयी रहा। वीर लोरिक इस सोननदी वाले आदिवासी इलाके का हीरो था। उसने ऐसे -ऐसे कमाल किये, जिनके निशान आज भी देखकर लोग दातों तले अंगुली दबा लेते हैं।
रॉबर्टसगंज से लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी पर मारकुंडी घाटी नजर आती है। जहाँ है एक विशालकाय चट्टान, जो दो टुकड़ों में खड़ी है। इस विशालतम चट्टान के दो टुकड़े करने वाला यही वीर लोरिक है।
जिसने अपनी तलवार के एक ही वार से इस बड़ी चट्टान को दो टुकड़ों में बाँट दिया था। आज भी यह स्थान लोरिक पत्थर के नाम से प्रसिद्ध है। लोग इस विशाल चट्टान को दो टुकड़ों में देखकर उस वीर लोरिक लोरिक के भुजाओं की अदभुद शक्ति की कल्पना करते हैं।
वीर लोरिक ने इस विशालकाय चट्टान के दो टुकड़े क्यों किये? इसके पीछे की क्या कहानी है? आइये जानते हैं यह कहानी, जो 600 साल पुरानी है। लेकिन यह कहानी है बड़ी दिलचस्प और आश्चर्य से भरी। वीर लोरिक ने अपनी प्रेमिका मंजरी को पाने की चाहत को पूरा करने के लिए यहां पत्थरों पर इतिहास लिख दिया। आइये हम इस प्रसिद्ध लोरिक पत्थर की पूरी कथा से आपको परिचित कराते हैं।
युद्ध में अघोरी किले की सेना को हराकर, अपनी प्रेमिका को पत्नी के रूप में पाकर वीर लोरिक, अपने घर बलिया की ओर जा रहा था। बलिया जाने का रास्ता रॉबर्ट्सगंज से होकर ही था। घोड़े पर सवार होकर वीर लोरिक और उसकी प्रेमिका मंजरी इसी पहाड़ी इलाके से गुजर रहे थे कि रास्ते में मारकुंडी घाटी पड़ी।
मंजरी ने लोरिक से कहा कि “हे लोरिक, मेरी बात सुनो। मैं यहाँ इस रमणीय स्थान पर थोड़ी देर विश्राम करना चाहती हूँ।” वीर लोरिक ने कहा, “जैसी तुम्हारी इच्छा मंजरी, हम इस मारकुंडी घाटी में थोड़ी देर रुकने के बाद फिर आगे बढ़ेंगे।” मारकुंडी घाटी में रुकते ही मंजरी को कुछ विचार आया।
मंजरी की नजर उस घाटी के एक विशालकाय चट्टान पर पड़ी, जो इस घाटी में लगभग 500 मीटर की ऊंचाई पर खड़ी थी। उस विशालकाय चट्टान का आकार बहुत बड़ा था। मंजरी ने लोरिक को उस विशालकाय चट्टान के निकट बुलाया और उससे कहा कि “तुम इस चट्टान को देख रहे हो? यह चट्टान इस घाटी की सबसे बड़ी चट्टान है।”
मंजरी ने फिर कहा कि “न जाने हम यहाँ वापस कब लौटे! अब तो मैं ससुराल जा रही हूं। मेरी इच्छा है कि तुम इस घाटी में कुछ ऐसी पहचान छोड़ जाओ कि जिसे लोग सदा याद रखें। वीर लोरिक मंजरी के मन की बात सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने मंजरी से कहा कि “तुम क्या चाहती हो? मेरी शक्तिशाली भुजाओं में असंभव को संभव करने की ताकत है। बस तुम आदेश करो क्या करना है।”
लोरिक की बात सुनकर मंजरी ने मुस्कुराते हुए कहा कि “हे मेरे लोरिक, मैं इस बात को अच्छी तरह जानती हूं। इसीलिए कह रही हूँ। अघोरी के किले की सेना को परास्त करने वाले हे मेरे वीर लोरिक, मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। तुम वह कर सकते हो जो दूसरे नहीं कर सकते।”
मंजरी ने उस मारकुंडी घाटी की इस सबसे अधिक विशालकाय चट्टान की ओर इशारा करते हुये कहा कि “तुम अपनी तलवार के एक वार से इस चट्टान के दो टुकड़े कर दो। लेकिन शर्त यह है की तुम्हारी तलवार का वार इतना सटीक हो कि यह विशालतम चट्टान दो भागों में बंटे लेकिन दोनों टुकड़े ऐसे ही पहले की भांति अपनी जगह खड़े रहें।”
वीर लोरिक अपनी प्रेमिका मंजरी की बात सुनकर हंसा और बोला “बस इतनी सी बात।” फिर लोरिक ने अपनी 400 किलो की तलवार हवा में लहरायी और एक ही वार में इस विशाल चट्टान के दो टुकड़े कर दिये।
मंजरी बहुत प्रसन्न हुई। उसने कहा हम लोगों के प्रेम का प्रतीक इस चट्टान के रूप में सदा अमर रहेगा। उसके बाद मंजरी ने अपने सुहाग के प्रतीक सिंदूर को उस चट्टान पर छिड़क दिया। लोरिक बहुत भावुक हो गया। आज भी यह अदभुद स्थल सोनभद्र में अपनी अमिट गाथा गा रहा है। अचरज की बात यह है कि मंजरी के सिंदूर की लालिमा आज भी लोरिक पत्थर की उस चट्टान पर दिखाई देती है और लोरिक-मंजरी की कथा आज भी इस पूरे आदिवासी क्षेत्र सोनभद्र में गायी जाती है।