मंदिर जहां पुरुषों का कमीज पहनकर आना मना है

मंदिर जहां पुरुषों का कमीज पहनकर आना मना हैमंदिरों में जाते समय क्या पहना जाये और क्या नहीं, यह ज्यादातर निश्चित नहीं होता है। लोग-बाग अलग-अलग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिये तरह-तरह के रंगों के वस्त्र धारण करते हैं। इसी तरह जहाँ तक पुजारियों के वस्त्रों का सवाल है वह भी अलग-अलग मंदिरों के आधार पर अपने-अपने कपड़े पहनते हैं।

भारतवर्ष में अलग-अलग मंदिरों की अलग-अलग परंपरा है। उनकी अपनी मान्यता है, जो प्राचीन काल से चली आ रही है। जिसकी महत्ता को जानकर स्थानीय समाज ने उस पर पक्की मुहर लगा दी है।

आज हम आपको एक ऐसे मंदिर में ले चलते हैं जहाँ दर्शन के लिए पुरुष वर्ग का कमीज पहनकर मंदिर में प्रवेश करना पूरी तरह वर्जित है। इसका रहस्य हम आपको अवश्य बताएगें, क्योंकि अब आप मन में सोच रहे होंगे कि यह कैसी अनोखी परंपरा है? मंदिर में कमीज न पहनने के पीछे क्या तर्क है? लेकिन यह सच है कि यह एक ऐसा मंदिर है जहां प्रवेश करते समय पुरुष वर्ग अपने तन के ऊपरी हिस्से में कुछ नहीं पहनता।

इस मंदिर में जाते समय पुरुष समाज अपने शरीर के केवल निचले भाग में लुंगी या केरल की भाषा में कहें तो मुंडू पहनता है। लेकिन महिलाएं इस मंदिर में सलवार सूट या साड़ी पहनकर मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं। यहां वस्त्रों के मामले में भक्तों के अनुशासन का अनूठा दृश्य देखने ही बनता है।

यह पूजा का धाम है दक्षिण के द्वारिका के नाम से प्रसिद्ध, केरल का गुरुवायुर मंदिर का। जहाँ भगवान श्री कृष्ण अपने बाल्यावस्था में पूजे जाते हैं। यहां भगवान् कृष्ण के बाल रूप अर्थात गुरुवायुर रूप में पूजा की जाती है। यहां भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति की स्थापना की कहानी भी बड़ी रहस्यमयी और दिलचस्प है।

यहाँ स्थापित मूर्ति की बनावट यह बताती है कि इस मूर्ति को रचने वाला मूर्तिकार इस संसार का नहीं बल्कि अलौकिक ही होगा। यहां स्थापित भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के चार हाथ हैं। जिसमें भगवान के एक हाथ में शंख, दूसरे में सुदर्शन चक्र और तीसरे तथा चौथे हाथ में कमल का पुष्प है।

ऐसी मान्यता है कि यह श्रीकृष्ण की चार हाथों वाली मूर्ति भगवान विष्णु जी ने ब्रम्हा जी को प्रदान की थी। जो पहले द्वारिका स्थापित थी। लेकिन बाढ़ के पानी में तैरती हुईं यह मूर्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच गयी। द्वारिका से केरल में लाकर इस मूर्ति की स्थापना की कहानी आश्चर्य चकित करने वाली है।

ऐसा बताया जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की यह मूर्ति पहले द्वारिका में थी। लेकिन जब अंतिम समय वहां भयंकर बाढ़ आयी तो पानी की तेज बहाव में यह मूर्ति वहां से बह निकली। बाढ़ के पानी में तैरती हुई इस प्रतिमा पर गुरु बृहस्पति की नज़र पड़ी। तब गुरु बृहस्पति ने वायु देव से यह प्रार्थना की कि किसी तरह भगवान श्री कृष्ण की इस बहुमूल्य मूर्ति को नष्ट होने से बचायें। तब वायु देव ने अपने पौरुष-प्रताप से इस मूर्ति को नष्ट होने से बचाया। गुरु वृहस्पति ने इस कार्य के लिये वायु देव को धन्यवाद दिया।

अब भगवान कृष्ण की यह मूर्ति द्वारिका से तो उखड़ चुकी थी। अब गुरु वृहस्पति को ऐसी जगह की तलाश थी जहां इस मूर्ति को पुनः स्थापित किया जा सके। वे मूर्ति की स्थापना की चिंता को लेकर पूरे पृथ्वी लोक में भ्रमण करने लगे। वे खोज में थे कि इस धरा पर ऐसी कौन सी जगह सुयोग्य है जहां भगवान श्री कृष्ण की इस मूर्ति की स्थापित किया जा सके।

घूमते-घूमते गुरु वृहस्पति केरल पहुंच गये। जहां उन्होनें भगवान शंकर और माता पार्वती का ध्यान किया। गुरु बृहस्पति के आवाहन पर भगवान शंकर और माता पार्वती प्रकट हुए। उन्होंने गुरु बृहस्पति से उनका प्रयोजन पूछा। तब उन्होनें बताया कि मेरे पास भगवान श्री कृष्ण की एक मूर्ति है जो द्वारिका से बहती हुई मेरे पास आ गई है।

अब मैं इसे किसी दूसरे स्थान पर स्थापित करना चाहता हूं। कृपया यह बतायें कि कौन सा स्थान इस मूर्ति के लिए उचित रहेगा। भगवान शंकर ने तब गुरु बृहस्पति को बताया कि केरल जैसी पावन जगह ही इस कार्य के लिए सर्वोत्तम है। भगवान शंकर की अनुमति पाकर गुरु बृहस्पति और वायुदेव ने मिलकर भगवान श्री कृष्ण की इस मूर्ति को केरल में स्थापित किया और इस पूजा के धाम को गुरुवायुर मंदिर नाम दिया गया।

एक आश्चर्य की बात इस मंदिर की यह भी है कि भगवान श्री कृष्ण के इस मंदिर में सूर्य की पहली किरण भगवान गुरुवायुर अर्थात मुरलीधर के चरणों में ही पड़ती है। इस अदभुद नजारे को देखने के लिए दूर-दूर से भक्तजन यहां उपस्थित होते हैं। शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि, यहां के लिये खास होती है। इस दिन हजारों की संख्या में भक्तगण भगवान श्री कृष्ण के दर्शन के लिए आते हैं।

जब भक्तों को यहां आने के बाद यह पता चलता है कि यहाँ के मंदिर के भगवान खुद द्वारका से चलकर केरल राज्य की इस नगरी में कृपा बरसाने के लिए आये हैं, तो वे भावविभोर हो जाते हैं।

इस मंदिर में आयोजित होने वाला केरल का पारंपरिक नृत्य और गायन मन को मोह लगता है। इस मंदिर का सुबह का दृश्य अत्यंत मनमोहक लगता है। ऐसा लगता है कि स्वयं सूर्य के प्रकाश में स्वर्ग की अदभुद छठा पृथ्वी पर अपनी लीला का प्रदर्शन कर रही हो। इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की उपस्थिति का सुखद अहसास सदा होता है।

ऐसा लगता है कि मुरली की धुन कहीं आस -पास ही बज रही हो। इस मंदिर में पुरुषों को कमीज पहने की अनुमति क्यों नहीं है यह पूछने पर पंडित
गोपालन बताते हैं कि क्योंकि भगवान श्री कृष्ण यह चाहते हैं कि उनकी दृष्टि सीधे पुरुषों के हृदय स्थल पर पड़े और वह भक्तों के हृदय में बस जायें।

इस पावन स्थान पर आने के बाद लोग भगवान श्री कृष्ण के सच्चे भक्त बन जाते हैं क्योंकि भगवान की सलोनी मूरत उनके मन-मंदिर में स्थापित हो जाती है। केरल की इस गुरुवायुर मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की आशीर्वाद की वर्षा सदा होती रहती है।

जिसके कारण भक्तों के तन और मन दोनों तृप्त हो जाते हैं। क्योंकि यहाँ मुरली वाले का चमत्कार सर चढ़कर बोलता है। पौराणिक ग्रंथों में यह उल्लेख है कि गुरुवायुर में पूजन के पश्चात मम्मईंयुर में भगवान शिव की आराधना करके आप प्रभु की कृपा से मालामाल हो सकते हैं।

इतिहास की सबसे सुंदर स्त्री क्या आप शिमला भूतिया टनल नंबर 33 के बारे में यह जानते हैं? क्या आप भूतों के रहने वाले इस कुलधरा गांव के बारे में जानते हैं? भूत की कहानी | bhoot ki kahani क्या आप जानते हैं कैलाश पर्वत का ये रहस्य? क्या आप जानते हैं निधिवन का ये रहस्य – पूरा पढ़िए
इतिहास की सबसे सुंदर स्त्री क्या आप शिमला भूतिया टनल नंबर 33 के बारे में यह जानते हैं? क्या आप भूतों के रहने वाले इस कुलधरा गांव के बारे में जानते हैं? भूत की कहानी | bhoot ki kahani क्या आप जानते हैं कैलाश पर्वत का ये रहस्य? क्या आप जानते हैं निधिवन का ये रहस्य – पूरा पढ़िए