आप सच मानें या झूठ, लेकिन आज हम जिस मंदिर की चर्चा हम करने जा रहें हैं वह भूतों के मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। लोग यहाँ दूर-दूर से इस मंदिर के डरावने सच को देखने आते हैं। क्योंकि इस मंदिर का भूतों से जबरदस्त कनेक्शन है।
यदि आप इस मंदिर को सामने से देखेंगे तो आपको ऐसा लगेगा कि यह मंदिर बहुत जल्दबाजी में तैयार किया गया होगा। बल्कि इस मंदिर की बनावट यह कहती है कि निर्माण करने वाला इस मंदिर को अधूरा छोड़ कर चला गया होगा।
मंदिर बनाने वालों के साथ ऐसी क्या घटना घटी होगी कि जिसके कारण उन्हें इस मंदिर को अधूरा छोड़ कर ही भागना पड़ा। इस मंदिर से संबंधित अनेक रहस्यमय कहानियों का सच आज तक पता नहीं लग सका है।
इस मंदिर में पत्थरों का इस्तेमाल तो नज़र आता है। लेकिन मंदिर बनाने में उन पत्थरों को जोड़ कर खड़ा करने में किस वस्तु का प्रयोग किया गया होगा इसका आज तक पता न लग सका। क्योंकि आश्चर्य की बात है यह भी है कि पत्थरों से बने इस मंदिर का, बिना बालू-सीमेंट या गारा की सहायता से निर्माण किया गया है।
मिट्टी के टीले पर बना
20 फ़ीट ऊँचा यह मंदिर अपनी बनावट के कारण देखने में ऐसा लगता है कि अब गिरा, तब गिरा। लेकिन आश्चर्य कि बात यह है कि ग्यारहवीं शताब्दी का यह मंदिर अब तक सुरक्षित है। जबकि आसपास के सारे मंदिर गिरकर टूट गये। इस मंदिर की बनावट को देखने से ऐसा लगता है कि बिना किसी योजना के यह मंदिर किन्हीं विकट परिस्थितियों में जल्दबाजी में तैयार कर दिया गया होगा।
भूत वाला मंदिर
इस रहस्यमय मंदिर को भूत वाला मंदिर भी कहते है। कुछ लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर को भूत-प्रेतों ने बनाया है। इस मंदिर में रात्रि में भूत-प्रेतों की आहट भी सुनाई देती है। रात के समय इस मंदिर में लोगों को चलने-फिरने, रोने -चीखने की आवाज भी सुनाई देने लगती है।
शाम ढलने के बाद यहाँ आसपास का सारा वातावरण बहुत डरावना हो जाता है। रात के अंधेरे में इस मंदिर के आसपास कोई जाने की हिम्मत नहीं करता। यहाँ अनहोनी होने की तमाम खौफनाक सत्य घटनायें स्थानीय लोगों के मुँह से सुनी जा सकती है।
कहाँ है यह मंदिर
यह रहस्यमय डरावना मंदिर मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के सिंघोनिया गांव में स्थित है। भगवान शिव का यह धाम ‘कननमठ मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। जो अपने रहस्यमय होने कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यह मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला का अदभुद उदाहरण है। मुरैना जिले में स्थित यह अदभुत कननमठ मंदिर, सैकड़ों सालों से, लोगों में कौतूहल का विषय बना हुआ है।
लगभग 20 फुट ऊंचे मिट्टी के टीले पर बना हुआ यह मंदिर देखने में ऐसा लगता है कि पत्थरों के ऊपर पत्थर रखते हुए इस मंदिर को यूं ही खड़ा कर दिया गया होगा। क्योंकि इस मंदिर के निर्माण के समय पत्थरों को जोड़ने के लिए सीमेंट या गारे का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
बहुत खोजों के बावजूद इस बात का पता नहीं लगाया जा सका है कि इस मंदिर के पत्थरों को किस वस्तु से जोड़कर इस मंदिर का निर्माण किया गया होगा। यह भी का आश्चर्य का विषय है कि बिना सीमेंट-गारे का यह मंदिर अब तक क्यों नहीं गिरा? इस मंदिर को बनाने के लिए किस तकनीक का प्रयोग किया गया होगा? जिसकी जानकारी आज तक नहीं मिल सकी।
कननमठ मंदिर के निर्माण कब किसने कराया
इस बारे में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। जो अचरज से भरी हुईं और बड़ी दिलचस्प हैं। इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर ग्यारहवीं सदी में राजा कीर्ति राज सिंह ने अपनी रानी ककनावती के नाम पर बनवाया था। कहा जाता है कि रानी ककनावती भगवान शिव की अनन्य भक्त थी।
एक दिन रानी ने राजा से ज़िद की कि मेरे लिये कल सुबह तक भगवान शिव का एक मंदिर बनवा दो। मुझे कल भगवान की पूजा अपने शिव मंदिर में करनी है। अब रातों-रात मंदिर का निर्माण कैसे हो? रानी की ज़िद कैसे और किस प्रकार पूरी की जाये?
राजा सोच में पड़ गया। उसने राज्य के सेनापति से इस विषय में बात की। सेनापति ने अपने सभी सैनिकों को मंदिर निर्माण के लिए लगा दिया। उन सैनिको ने पत्थर के ऊपर पत्थर रखकर बिना किसी चीज से जोड़े यूं ही खड़ा कर दिया। मंदिर का ढांचा तैयार हो गया।
उसके बाद उस मंदिर के ढांचे के सामने बैठकर रानी ने भगवान शिव का आवाहन किया। उनसे यह प्रार्थना की कि कुछ ऐसा चमत्कार कीजिये जिससे कि मंदिर के पत्थर आपस में जुड़ जायें और यह पत्थरों का यह ढांचा मंदिर के स्वरुप में बदल जाये। रानी ककनावती की शिव भक्ति सच्ची थी, चमत्कार हो गया।
क्या मंदिर को भूतों ने बनाया है
सैनिकों द्वारा रातों-रात तैयार किया गया पत्थरों का वह ढांचा मंदिर में बदल गया और ब्रह्ममुहूर्त में उस मंदिर में पूजा-अर्चना होने लगी। इस मंदिर पर भगवान शिव का प्रताप होने के कारण यह मंदिर आज भी अस्तित्व में है। इस कननमठ मंदिर को भूतों के द्वारा बनाए जाने की भी मान्यता है। ऐसा मानना है कि इस मंदिर का निर्माण भूतों ने किया है।
ऐसा कहा जाता है कि इस क्षेत्र में एक बड़ा काला तांत्रिक रहता था जो शिव का परम भक्त था। एक रात उसने आग जलाकर भूतों का आवाहन किया और उनसे कहा कि तुम सबको रातों-रात यहाँ सिंघोनिया गाँव में एक शिव मंदिर का निर्माण करना है। यदि तुम सब सुबह होने से पहले इस काम को नहीं कर पाये तो मैं काला तांत्रिक सभी भूत-प्रेतों को उस आग में जलाकर राख कर दूंगा। तांत्रिक की बात सुनकर भूत-प्रेत डर गये।
उन्होंने रातों-रात मंदिर का निर्माण आरंभ कर दिया। इस मंदिर का निर्माण पूर्ण होने से पहले ही बारिश होने लगी। बारिश होने के कारण उस तांत्रिक द्वारा उन भूतों को डराये जाने के लिये जलायी गयी आग पानी से बुझ गयी। अब उन भूत-प्रेतों को आग से जलने का कोई डर न था। क्योंकि वह जलती हुईं आग राख में बदल गयी थी।
मौका देखकर वे सभी भूत-प्रेत वहां से भाग निकले और इस मंदिर का काम अधूरा रह गया। भूतों द्वारा निर्माण कराए जाने के कारण इस मंदिर पर आज भी भूतों का साया है। रात में आज भी इस मंदिर में भूत-प्रेतों की मौजूदगी लोगों ने महसूस की है। इस मंदिर के आसपास रात में आना मना है।
कुछ वर्ष पूर्व दो मित्र इस मंदिर की भूत-प्रेत होने की कहानियाँ सुनकर कननमठ मंदिर में घूमने आये। उन्होनें दिन में कनन मठ मंदिर में घूमने के बाद रात को भी इस मंदिर को देखने का प्रोग्राम बनाया।
उन्होनें सोचा कि रात में इस मंदिर को दूर से देखेंगे और यहाँ भूत-प्रेत के होने के सच और झूठ का पता लगायेंगे। दोनों मित्र रात के समय इस मंदिर को दूर से देखने की इच्छा लिए इस मंदिर के सौ मीटर दूर ठहर गये। रात के लगभग 9:00 बज रहे थे।
उन्होंने कनन मठ मंदिर में जो कुछ देखा, उससे आश्चर्य चकित रह गये। उन्होनें देखा कि मंदिर के अंदर भयंकर आग जल रही है उस आग की लपटें मंदिर के चारों ओर से निकल रही है और जोर-जोर से मंदिर की घंटियों की बजने की आवाजे आ रही है।
साथ ही साथ मंदिर के अंदर ऐसा लग रहा था कि जैसे कुछ लोग आपस में चीख-चिल्ला कर बातें कर रहे हों। मंदिर से निकलने वाली तरह-तरह की आवाजें जो सारे वातावरण को डरावना बना रही थीं, वो किसी के भी रोंगटे खड़े कर के ह्रदय भङ्ग कर सकती थी।
दोनों मित्र इस खौफनाक मंजर को देखकर अत्यंत भयभीत हो गये। तभी उन्होंने देखा कि एक आग की लौ मंदिर से बाहर निकल कर उन दोनों मित्रों की ओर बढ़ने लगी। अब दोनों मित्र मारे डर के पसीने-पसीने हो गये।
उन्होंने देखा कि वह आग की ऊँची-उँची लौ, उनको जलाकर मारने के लिए, लगातार उनकी ओर बढ़ रही है। उन्हें लग रहा था कि वह आग की हवा में उड़ती हुई लपट उन दोनों मित्रों को जलाकर राख कर देना चाहती है। दोनों मित्र अपनी जान बचाने के लिये वहां से भाग निकले। दोनों मित्र लगातार दौड़ते रहे। लगभग एक किलोमीटर तक वह आग की लपट उन दोनों पीछा करती रही, फिर गायब हो गयी।
एक हजार वर्ष पुराने इस मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग के स्पर्श करने का लोगों का अनूठा अनुभव है। इस मंदिर के शिव लिंग को छूते ही कुछ भक्तों को ऐसा लगा कि वह भगवान शिव के कैलाश पर्वत पहुँच गये हों।
जून माह की गर्मी में भी उन्हें इस मंदिर में आते ही हिमालय की ठंडी हवाओं का एहसास होने लगा। यह इस शिवमंदिर में भोले बाबा का चमत्कार है जो हर आने वाले भक्त को किसी न किसी रूप में नज़र आता है। फिर भगवान शिव को भूतनाथ भी कहा जाता है।ऐसे में इस मंदिर में भूतों के निवास होने की संभावना बनती है।