अधिकांश मंदिरों में पूज्य देवी-देवताओं या किसी नेता अथवा किसी बड़े आदमी का नाम दीवारों पर लिखा हुआ आपने बहुत देखा होगा। लेकिन आज हम आपको ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें उन मजदूरों के नाम लिखे हैं जिन्होंने उसे बनाया।
इतनी बड़ी सोच रखने वाले वह व्यक्ति कौन हो सकते हैं? जिनके मन में यह ख्याल आया कि इस मंदिर को अपनी मेहनत के पसीने से सींचने वाले मजदूरों का भी नाम, इस मंदिर में लिखा होना चाहिये।
अब आप सोच रहे होंगे कि हम जिस मंदिर के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं वह किसी देवी या देवता का मंदिर होगा। तो हम आपका यह भ्रम भी तोड़ देते हैं क्योंकि आज हम जिस मंदिर के बारे में बात करने जा रहे हैं वो किसी देवी या देवता का नहीं बल्कि उस से अलग है। इस मंदिर में देवी या देवता नहीं तो कौन है?
इस मंदिर में किसी भी धर्म के देवी या देवता की मूर्ति नहीं है। इस मंदिर में तिरंगा शान से लहराता है क्योंकि इस मंदिर में हमारे देश की भारत माँ स्थापित हैं। जो अपने भारतवासियों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद दें रही है़।
मंदिर में प्रवेश करते ही भारत माता की सुंदर प्रतिमा दिखाई देती है़। जिनके हाथ में भारत देश का तिरंगा है़। क्योंकि इतिहास साक्षी है़ कि हमेशा से मातृ भूमि की पूजा को सर्वोपरि माना गया है़। मातृ भूमि के आन, बान और शान के लिये देशवासियों ने अपने जीवन की आहुति दे दी। यह मंदिर उसी मातृ भूमि का वंदन है।
कहाँ स्थित है़ यह अदभुत मंदिर?
यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में है़। इस मंदिर की स्थापना काशी विद्यापीठ के कैंपस में की गयी है। काशी विद्या पीठ वही प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान है जिसे पूरे विश्व में ज्ञान, विज्ञान, कला एवं संस्कृति के लिये जाना जाता है। भारत माता मंदिर वाराणसी में इंग्लिशिया लाइन और सिगरा चौराहे के बीच मेंस्थित है़। यह मंदिर ऐसे सुंदर स्थान पर है जहाँ से प्रसिद्ध बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय भी नज़र आता है।
कब हुई मंदिर स्थापना?
भारत माता मंदिर नामक इस मंदिर की स्थापना वर्ष 1936 में की गयी थी। इस मंदिर का निर्माण भारत रत्न पं.शिव प्रसाद गुप्त ने कराया था। इस अदभुत मंदिर की परिकल्पना भी गुप्त जी ने ही की थी।
उनके मन में बहुत दिनों से यह इच्छा थी कि एक ऐसे मंदिर की स्थापना की जाये जहाँ भारत माता की पूजा हो। उन्होनें अपने दिल की बात पं.मदन मोहन मालवीय जैसे कई राष्ट्र भक्तों के सामने रखी।
शिव प्रसाद जी का यह प्रस्ताव सभी को पसंद आया और गुप्त जी की इस कल्पना को साकार रूप दिया गया। इस मंदिर को बनाने में उस समय लगभग 10 लाख रुपये खर्च हुये।
मंदिर की विशेषतायें
इस मंदिर की विशेषतायें अपने आप में अनूठी हैं। क्योंकि देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर इस मंदिर का निर्माण कराया गया है। इस मंदिर की देवी के रूप में भारत माँ को स्थापित किया गया है। प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राम कुमार वर्मा के अनुसार ऐसे मंदिर ही हमारे भारत की धरोहर को संजो कर रखने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
एम् के गांधी द्वारा उदघाटन
इस मंदिर की पहली विशेषता यह है़ कि इस मंदिर का उदघाटन स्वयं एम् के गाँधी ने 25 अक्टूबर 1936 में किया था। ऐसा संयोग ही था कि जब इस मंदिर के उद्घाटन का मन बनाया गया तो उस समय गाँधी जी काशी में ही थे।
जब शिव प्रसाद गुप्त जी ने गाँधी जी को बनारस में भारत माता मंदिर की स्थापना के बारे में बताया तो उन्होनें गुप्त जी को सीने से लगा लिया। वे इस भारतभूमि को समर्पित इस मंदिर के उद्घाटन के लिये सहर्ष तैयार हो गये। इस मंदिर के उद्घाटन का समाचार इग्लैंड के अखबारों ने भी प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया था।
भारत माता की अदभुत प्रतिमा
इस मंदिर की प्रतिमा बनाने के लिये शिव प्रसाद गुप्त जी ने देश के श्रेष्ठ मूर्तिकारों की व्यवस्था की। उन्होनें आदमकद की सुंदर मूर्ति का निर्माण किया। इस भारत माता की मूर्ति को प्रवेश द्वार के सामने ही लगाया गया है।
केसरिया रंग की साड़ी पहने भारत माँ की यह मूरत, जिसमें धानी और सफेद रंग का बॉडर है, बहुत खूबसूरत नजर आती है। उनके हाथ में तिरंगा झंडा सुंदरता को और बढ़ा रहा है। यह वह मूरत है़ जिसके सामने अंग्रेज टूरिस्ट भी नतमस्तक हो जाते हैं।
भारतवर्ष का संगमरमर से बना मानचित्र
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मंदिर में संगमरमर के टुकड़ों के द्वारा बनाया गया हिन्दुस्तान का अदभुद नक्शा है़। यदि आप इस हिन्दुस्तान के मानचित्र के सामने खड़े हो जायेंगे तो आपको ऐसा अनुभव होगा कि आप पूरे देश को सजीव देख रहे हैं। इसे मंदिर की जमीन पर उकेरा गया है़। इस मंदिर में बना भारत का मानचित्र उस समय का है़ जब देश के टुकड़े नहीं हुये थे।
इस भारत माता मंदिर में अखंड भारत को दर्शाया गया है। भारत के उस नक्शे में बलूचिस्तान, पाकिस्तान, बांग्ला देश, म्यांमार और श्री लंका को देश का हिस्सा दिखाया गया है़। संगमरमर से बने इस मानचित्र में पहाड़ और नदियाँ थ्री डी के सदृश्य हैं।
जिन्हें पं शिव प्रसाद गुप्त जी ने गणितीय अनुमान के आधार पर बनवाया है़। इस मानचित्र में हिमालय की ऊँचाई में और नदियों को गहराई में दिखाया गया है़। भारत के इस नक्शे में 450 पर्वत श्रंखलायें और 800 नदियाँ सुशोभित हों रहीं हैं।
गुलाबी पत्थरों से निर्मित मंदिर
परम पावन गंगा नदी के मार्ग में स्थित गुलाबी पत्थरों से निर्मित यह मंदिर बहुत भव्य है़। इसकी सुंदर बनावट देखकर ऐसा लगता है कि किसी राजा का महल खड़ा हो। इस मंदिर की कलाकारी श्रेष्ठ भारतीय सोंच का उदाहरण है़। जिसे जो कोई भी देखता है़ प्रशंसा किये बिना नहीं रह पाता है।
मानचित्र की नदियों में पानी भरा जा सकता है़ भारत माता मंदिर को देखने से यह पता चलता है़ कि इस मंदिर के निर्माण करने वाले के मन में आरंभ से ही यह अभिलाषा थी कि इस मंदिर का कण-कण सजीव नज़र आये। तभी तो इस मंदिर के मानचित्र की नदियाँ इतनी गहरी हैं कि उसमें पानी भरा जा सकता है। देश के राष्ट्रीय पर्वों के समय जब पूरे मंदिर को सजाया जाता है़ तो भारत के मानचित्र की नदियों में पानी भर दिया जाता है़। उसके बाद इसकी सजीवता देखते बनती है।
देश भक्ति गीतों की गूंज
यह वह मंदिर है जहाँ की हवाओं में देश प्रेम का संगीत हमेशा गूंजता है। इस मंदिर में प्रवेश करते ही हर देशवासी का अंग-अंग उत्साह में फड़क उठता है़। राष्ट्रीय पर्वों में इस मंदिर की रौनक देखते बनती है़।
यह वह मंदिर है़ जहाँ भारत माँ का श्रृंगार होता है। पुष्प, रोली व चंदन से उनको सजाया जाता है़। उनकी आरती होती है़ । इस मंदिर में भी शंख गूंजते हैं भारत माँ के सामने, क्योंकि वही इस मंदिर की देवी हैं।
वंदे मातरम के रंगों में रंगी हैं दीवारें
इस मंदिर की दीवारों पर आदरणीय बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित भारत का राष्ट्र गीत वंदेमातरम लिखा हुआ है़। जिसके कारण इस मंदिर की दीवारें भी भारत माता की जय बोल रहीं हैं। 15 अगस्त और 26 जनवरी को वंदेमातरम की गूंज पूरे वातावरण को पवित्र बना देती हैं।
राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त की मंदिर में लिखी कविता
आप को जानकर आश्चर्य होगा कि पं. शिव प्रसाद गुप्त के आग्रह पर राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त जी ने एक लंबी कविता इस भारत माता मंदिर के ऊपर लिख डाली थी। इस कविता में भारत माता मंदिर के प्रति श्रध्दा के भाव छुपे हुये हैं। राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त की देश भक्ति से ओतप्रोत इस रचना को बड़े सम्मान के साथ इस मंदिर में स्थान दिया गया है़। जिसे पढ़ने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है़। उस कविता कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं-
भारत माता का मंदिर यहाँ
समता का संवाद जहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ
पावै सभी प्रसाद जहाँ
देश भक्ति का संदेश देता है
यह भारत का वह अदभुत मंदिर है़ जो देशवासियों को देश के प्रति प्रेम का संदेश देता है़। इस मंदिर के निर्माण का उद्देश्य भारत की आने वाली पीढ़ी को उसे अपने देश से परिचित कराना है़। उन्हें अपने भारत के गौरव शाली इतिहास से अवगत कराना है़। विभिन्न स्कूल-कॉलेजों से इस मंदिर में आने वाले स्टूडेंट्स अपने भारत की विशेषताओं को निकट से देख पाते हैं। वह देख पाते हैं हमारे देश का गौरव।
मंदिर बनाने वाले मजदूरों का नाम लिखे हैं
इस मंदिर के निर्माण में 25 शिल्पकारों एवं 30 मजदूरों का सहयोग लिया गया। उनकी छह वर्षों की कठिन मेहनत के बाद यह भारत माता मंदिर अपने अस्तित्व में आया। जिन मजदूरों ने अपने परिश्रम के पसीने से इस मंदिर को सींचा।
उनको सम्मान देने के लिये उन मजदूरों के नाम इस मंदिर में उकेरे गये हैं। ताकि वे तथा उनकी मेहनत सदा के लिये अमर रहे। जो भी इस मंदिर में आता है़ वह इस अदभुत कार्य के लिये इसका निर्माण कराने वाले पं शिव प्रसाद गुप्त की इस सुंदर सोंच की सराहना करता है़।
विदेशी टूरिस्ट केआकर्षण का केंद्र
जब भी विदेशी टूरिस्ट वाराणसी घूमने के लिये आते हैं तो बनारस के घाटों को घूमते हुये इस भारत माता मंदिर के दर्शन के लिये अवश्य आते हैं। उन्हें पता है कि यह भारत का वह मंदिर है जहाँ भारत की आत्मा बसती है़।