अपनी धुन के पक्के विक्रमार्क ने जब बेताल को अपने कंधे पर लादा और आगे बढ़े तो मार्ग में उन्हें बेताल ने अगली कथा सुनायी | प्राचीन काल में किसी समय अंग देश के एक गाँव मे एक धनी ब्राह्मण रहता था। उसके तीन पुत्र थे। एक बार ब्राह्मण ने एक यज्ञ करना चाहा। उसके लिए एक कछुए की जरूरत हुई।
उसने अपने तीनों पुत्रों को कछुआ लाने को कहा। वे तीनों भाई समुद्र तट पर पहुँचे। वहाँ उन्हें एक बड़ा कछुआ मिल गया। उसे देखने के बाद सबसे बड़े भाई ने कहा, “मैं भोजनचंग हूँ, इसलिए मै कछुए को नहीं छुऊँगा।” मझला भाई सबसे बोला, “मैं नारीचंग हूँ, इसलिए मैं इसे नहीं ले जाऊँगा।” फिर सबसे छोटा भाई बोला, “मैं शैयाचंग हूँ, सो मैं भी इसे नहीं ले जाऊँगा।”
अब वे तीनों इस बहस में पड़ गये कि उनमें कौन बढ़कर है, जिससे की बाकी सब उसका कहना माने । जब वे आपस में इसका फैसला न कर सके तो वे तीनो अपने राज्य के राजा के पास पहुँचे । राजा ने उन तीनो भाई के बहस के विषय को विस्तार से सुना, फिर उनसे कहा, “आप लोग थोड़ी देर रुकें। मैं आप तीनों की अलग-अलग जाँच करूँगा।”
इसके बाद राजा ने बढ़िया सा स्वादिष्ट भोजन तैयार कराया और तीनों खाने बैठे। सबसे बड़े भाई ने भोजन की थाल के सामने बैठते ही कहा, “मैं खाना नहीं खाऊँगा। इसमें से मुर्दे की गन्ध आती है।” वह उठकर चला । राजा ने पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह भोजन जिस अन्न से बना हुआ था वह श्मशान के पास के खेत का उगा हुआ था। राजा ने कहा, “तुम सचमुच भोजनचंग हो, तुम्हें भोजन की पहचान है, अतः तुम श्रेष्ठ हो ।”
रात के समय राजा ने एक अत्यंत सुन्दर स्त्री को मझले भाई के पास, उसके शयन कक्ष में भेजा । लेकिन ज्योंही वह वहाँ पहुँची कि मझले भाई ने झल्लाते हुए कहा, “इसे हटाओ यहाँ से। इसके शरीर से बकरी का दूध की गंध आती है।”
राजा ने जब यह सुना तो इसका पता लगाया | जांच कराने पर मालूम हुआ कि वह स्त्री बचपन में बकरी के दूध पर पली थी। राजा बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला, “तुम सचमुच नारीचंग हो, तुम्हे नारी की वास्तविक पहचान है अतः तुम भी श्रेष्ठ हो ।”
इसके बाद उसने तीसरे भाई को उसी रात सोने के लिए सात गद्दों का पलंग दिया। जैसे ही वह उस पर लेटा कि एकदम चीखकर उठ बैठा। लोगों ने देखा, उसकी पीठ पर एक लाल रेखा खींची थी। राजा को इस घटना की ख़बर मिली तो उसने बिछौने को दिखवाया। सात गद्दों के नीचे उसमें एक बाल निकला। उसी से उसकी पीठ पर लाल लकीर खिंच गयी थीं।
राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ उसने तीनों को भाइयों की विशिष्टता से प्रसन्न हो कर उन्हें एक-एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ दीं। अब वे तीनों कछुए को ले जाना भूल गये, और वहीं आनन्द से रहने लगे।
इतना कहकर बेताल बोला, “हे राजन ! अब तुम बताओ, उन तीनों में से सबसे श्रेष्ठ कौन था?” राजा विक्रमादित्य ने कहा, “मेरे विचार से उन सभी भाइयों में सबसे श्रेष्ठ शैयाचंग था, क्योंकि उसकी पीठ पर बाल का निशान दिखाई दिया और ढूँढ़ने पर बिस्तर में बाल पाया भी गया। बाकी दो के बारे में तो यह कहा जा सकता है कि उन्होंने किसी अन्य प्रकार से या पूछकर जान लिया होगा।”
इतना सुनते ही बेताल ने राजा विक्रमादित्य को प्रतिज्ञा की याद दिलायी और उनकी पीठ से उड़ चला फिर पेड़ पर जा लटका। राजा लौटकर वहाँ गए और उसे लेकर लौटे तो उसने अगली कहानी कही।